सुख–दुख दो भाई -देवेंद्र कुमार
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परिवार गहरे दुख में डूब गया। श्यामा के पति रामेश्वर की अचानक मृत्यु हो गई। उन्हें कोई खास बीमारी नहीं थी। सगे सम्बन्धियों और पड़ोसियों की भीड़ जमा हो गई। श्यामा अपने इकलौते बेटे प्रेम को गोद में लिए बैठी सिसक रही थी। सब उन्हें साँत्वना दे रहे थे। सबकी जबान पर एक ही चर्चा थी कि रामेश्वर अचानक कैसे चले गए! इन बातों के बीच कई बार बर्तनों की खनक सुन पड़ी। सब की नज़रें बार बार रसोई की तरफ उठने लगीं।” क्या रसोई में कोई भोजन बना रहा था!” पर यह कैसे हो सकता था! जिस घर में मौत होती है वहाँ कई दिनों तक भोजन नहीं बनता, खाना रिश्तेदार और पड़ोसियों के घरों से आता है। तब फिर रसोई में क्या हो रहा था?
एक पड़ोसन ने उठकर रसोई में झाँका तो कामवाली लता बर्तन साफ करती नज़र आई। पड़ोसन ने गुस्से से कहा, “यह बंद करो। बाहर सबको लग रहा है जैसे खाना बन रहा हो।” लता ने कहा, “गंदे बर्तन साफ कर रही हूँ।”
“तो बाद में आकर कर देना।”—पड़ोसन ने कहा। लता की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। इस मौके पर श्यामा से भी कुछ पूछना मुश्किल था। कुछ सोच कर लता ने कहा, “मैं एक काम करती हूँ, जूठे बर्तनों को अपने घर ले जाती हूँ। साफ करके ले आउंगी।” चतुर पड़ोसन को लगा कि लता इस तरह कई बर्तन अपने घर में रख सकती थी, वह बोली, “बर्तन गिन कर ले जाना और उसी तरह वापस ले आना।” यह बात लता को बहुत बुरी लगी, बोली, “कम से कम मुझे चोर तो मत कहो।” पड़ोसन ने बात बनाते हुए कहा, “अरे नहीं मेरा वह मतलब नहीं था।” और बाहर चली गई। लता कुछ पल चुप खड़ी रही फिर बर्तनों को एक बोरी में डाल कर अपने घर ले गई। बाहर निकलते समय पड़ोसन से आँखें मिलीं तो उसने सिर घुमा लिया।
घर पर बेटी जया बोरी देखकर हैरान रह गई। उसने पूछा तो लता ने बता
दिया कि बोरी में क्या है, फिर बोरी खोलकर उलट दी।गंदे बर्तन झन—टन करते हुए फर्श पर बिखर गए। जया के पूछने पर उसने पूरी बात बता दी। सुनकर जया उदास हो गई। वह रामेश्वर बाबू को अच्छी तरह जानती थी। माँ-बेटी ने मिल कर बर्तन साफ करने के बाद घर की झाड़-पोंछ शुरू कर दी। शाम को जया को देखने कुछ लोग आने वाले थे। तख़्त पर नई चादर और टेबल पर सुंदर मेजपोश बिछा दिया गया। अब प्लेटों में नाश्ता लगाने की बारी थी। प्लेटों में नाश्ता लगाते हुए लता की आँखें धोकर रखे गए बर्तनों पर टिक गईं। स्टील के बर्तन धूप में चमक रहे थे। कितने सुंदर लग रहे थे। अब आँखें घर की प्लेटों पर गईं। घर की प्लेटें पुरानी और घिसी हुई हैं पर आज कुछ ज्यादा ही बदरंग लग रही थीं। मन ने कहा-“इन प्लेटों में मेहमानों के सामने नाश्ता भूल कर भी मत रखना वर्ना बात बिगड़ जाएगी,” लता कुछ देर सोचती रही फिर श्यामा की प्लेटें उठा कर उनमे नाश्ता सजा दिया। हाँ यह करते हुए उसकी उँगलियाँ काँप रही थीं। लग रहा था जैसे चोरी कर रही हो।
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सज संवर कर जया आई तो देखकर चौंक गई, बोली, “माँ, यह क्या ! हम जैसे हैं ठीक हैं। आज तुम्हें अपनी प्लेटें क्यों बुरी लग रही है इसे मै खूब समझ रही हूँ।” पर उसे चुप होना पड़ा क्योंकि मेहमान आ गए थे। वे चार थे—लड़का, उसकी बहन और माता-पिता। स्वागत के बाद मेज पर नाश्ते की प्लेटें लगा दी गईं। जया सुंदर दिख रही थी, जब वह धीरे से मुसकराई तो लड़के ने ध्यान से उसकी तरफ देखा, लड़के की माँ ने जया को अपने पास बैठा लिया और बोली, “जया मुझे पसंद है।” कुछ देर बाद मेहमान चले गए। उनके जाते ही माँ बेटी आलिंगन में बंध गईं। लता ने जया का माथा चूम लिया। बोली, “आज शुभ दिन है।”
साफ़
करने के बाद बर्तनों को बोरी में भर कर श्यामा के घर की तरफ चल दी। वह श्यामा के बारे में सोच रही थी कि उनका लड़का अभी बहुत छोटा है। श्यामा की उमर भी ज्यादा नहीं है| भले ही पैसे की कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन पति का इस तरह एकाएक चले जाना जिन्दगी को उलट पलट कर देता है। बर्तनों की बोरी को लिए हुए लता यही सब सोचती हुई चली जा रही थी।
लता चुप थी लेकिन बोरी में बंद बर्तन आपस में बातें कर रहे थे। लता को उनकी बातें नहीं सुनाई दे रही थीं। बर्तन तो हमेशा ही बातें करते हैं, लोगों को उनकी बातें झन-टन की आवाजों के रूप में सुनाई देती हैं। एक कटोरी ने थाली से कहा, “दीदी, तुमने देखा होगा लता की बेटी जया कितनी सुंदर लग रही थी।” थाली बोली, “तुमने ठीक कहा। दोनों की जोड़ी खूब जमेगी।” एक चम्मच बीच में बोला, “अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ।”
“हाँ, तू भी कह डाल।”—थाली ने कहा।
“आप सबने लता के घर के पुराने बर्तनों को तो देखा ही होगा। कितने पुराने और घिसे हुए थे। तभी तो उसने नाश्ते की प्लेटें बदल दी थीं। अगर नाश्ता पुरानी प्लेटों में दिया जाता तो क्या होता?”
“चुप शैतान।”—थाली ने कहा।” हमेशा बुरा सोचता है। यह क्यों नहीं कहता कि जया का जीवन सुखी हो जाए।”
लता श्यामा के पास पहुँची तो देखा काफी लोग चले गए हैं। श्यामा की दो बहनें बैठी थीं। वे खाना लेकर आईं थीं, पर श्यामा ने कुछ भी नहीं खाया था |
लता ने बर्तनों की बोरी एक तरफ रख दी और श्यामा के पास बैठ कर उसका सर सहलाने लगी। धीरे से बोली, “आप नहीं खाएँगी तो प्रेम भी भूखा रहेगा। आपको उसकी कसम।” फिर एक प्लेट में खाना लगा कर ले आई और श्यामा तथा प्रेम को खिलाने लगी। चम्मच बोरी के एक छेद से बाहर गिर गया था, वह लता की बातें देख—सुन रहा था। लता रसोई में प्लेट रखने गई तो उसने चम्मच को फिर से बोरी में डाल दिया। चम्मच ने थाली से कहा, “मैंने लता का अजीब व्यवहार देखा है। अपने घर में वह कितना हँस रही थी। लेकिन यहाँ दुख का कैसा दिखावा कर रही है।”
थाली ने उसे डांट दिया। बोली, “मैं लता को अच्छी तरह जानती हूँ। वह दिल की साफ़ है। अपने घर पर वह खुश थी तो अपनी बेटी का रिश्ता तय हो जाने की आशा में। और यहाँ वह श्यामा के दुख में मन से शामिल है। सुख और दुख दो भाई हैं। दोनों हर घर में आते जाते रहते हैं। आज यहाँ दुख आया है तो कुछ समय बाद इसका भाई सुख भी आएगा।” इस सबसे अनजान लता श्यामा को साँत्वना दे रही थी। दोनों की आँखों में आँसू थे। (समाप्त )
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