स्वाद -देवेंद्र कुमार
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बाजार में बहुत भीड़ थी इसलिए जीवन ठेले को तेजी से नहीं धकेल पा रहा था। लेकिन उसके मालिक पेमू को इसमें उसकी शरारत नजर आ रही थी। पेमू सड़क के मोड़ पर आलू की टिक्की का स्टाल लगाता है। ठेले पर उबले हुए आलू, खट्टी-मीठी चटनी, तेल का डिब्बा, और दूस्र्रे जरूरी सामान लदे हुए थे। पेमू की आलू–टिक्की मशहूर है। धंधा अच्छा चलता है। ग्राहकों से बहुत मीठा बोलता है, लेकिन जीवन तक पहुँचते–पहुँचते मिठास में कड़वाहट घुल जाती है। वह जीवन को पूरी पगार नहीं देता, किसी न किसी बहाने से कुछ पैसे रोक कर रखता है। उसका मानना है अगर सारे पैसे दे दिए तो जीवन किसी और के पास काम करने चला जाएगा।
जीवन ठेला धकेलता हुआ यही सोच रहा था कि पेमू से बकाया पैसे कैसे लिए जा सकते हैं, तभी जीवन को लगा किसी ने पीछे से उसका कुरता खींचा हो, उसने गर्दन घुमा कर देखा तो एक लड़की नज़र आई, जो हाथ को मुँह की तरफ ले जाकर भूखे होने की बात कह रही थी।
डबल रोटी के पैकेट ठेले पर आगे की तरफ रखे थे, उसके हाथ के पास आलू की पिट्ठी का बड़ा भिगोना कपडे से ढका हुआ रखा था। उसमें कुछ तैयार टिकिया भी थीं। जीवन ने एक नज़र पेमू पर डाली फिर ठेले को रोके बिना दो तीन टिकिया उठा कर लड़की की फ़ैली हथेली रख कर ठेले को तेजी से आगे बढ़ा दिया। तभी ठेला उलट गया। सारा सामान सड़क पर फ़ैल गया।
जीवन ने देखा कई बच्चे भिगोने से आलू की पिट्ठी ले जा रहे हैं, उन्हीं में वह लड़की भी थी जिसे उसने आलू की टिकिया दी थीं। तेजी से बढ़कर लड़की का हाथ खींचते हुए चिल्लाया| लड़की हाथ छुड़ा कर भाग चली। वह रोते हुए चीख रही थी, “अम्मा, यह मुझे मार रहा है। “तभी सामने से एक बुढिया दौड़ कर आई और बोली, “क्यों मार रहा है मुनिया को?”
इसकी वजह से मेरा कितना नुक्सान हो गया है।”— जीवन चिल्लाया। बुढिया लड़की को लेकर एक झोंपड़ी में घुस गई। गुस्से से उबलता हुआ जीवन भी अंदर चला गया। सचमुच बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई थी उस लड़की की भूख मिटाने के चक्कर में। पेमू भला अब क्यों उसे काम पर रखने लगा। और बकाया पैसे भी अब मिलने वाले नहीं थे।
“इस अबोध ने तेरा क्या नुकसान कर दिया जरा मैं भी तो सुनूँ। “
“इसी की वजह से मेरा रोजगार चला गया।”—कहते हुए जीवन ने झोंपड़ी में नजर घुमाई, एक टाट के टुकड़े पर बुढिया लड़की को गोद में लिए बैठी थी।” जीवन समझ गया कि दादी-पोती भीख माँगती हैं। कहा, “तुम भीख माँगती हो पर इसे क्यों शामिल कर लिया इस में। ”
1
“यह मेरी कोई नहीं है। पता नहीं इसके माँ बाप कौन हैं। सारा दिन सड़क पर घूमती है पर शाम होते ही मेरे पास आ धमकती है, मेरे साथ ही सोती है।”
“अम्मा मुझे कहानी सुनाती है रात में”—कहकर मुनिया हँस पड़ी।
जीवन के गुस्से पर हँसी के छींटे पड़ गए। वह बरबस मुसकरा दिया। फिर उसने अम्मा को सब बता दिया।
“यह तो बुरा हुआ तेरे साथ। अब क्या करेगा? तेरा घर तो होगा।” जीवन को बताना पड़ा कि उसके माँ बाप गाँव में हैं, वह एक दोस्त के साथ रहता है। काम मिलना आसान नहीं है, पता नहीं अब कैसे क्या होगा। यह सब बताते हुए वह लगातार मुनिया की ओर देख रहा था। आखिर कहाँ हैं इसके माँ बाप? क्या इसका कहीं कोई नहीं जो इसे भीख माँगनी पड़ती है। कुछ देर के लिए जैसे अपनी परेशानी भूल गया। उसने कहा, “अम्मा, तुम भी क्यों हाथ फैलाती हो दूसरों के सामने।और तुम्हारा घर परिवार?”
अम्मा ने कोई जवाब नहीं दिया |
“क्या तुम्हें रोटी बनानी आती है?”—एकाएक जीवन ने पूछ लिया।
“पूरी जिन्दगी रोटी खिलाकर ही तो न जाने कितने छोटों को बड़ा किया है मैंने।...”—बुढिया ने पोपले मुँह से हँसते हुए कहा।
जीवन ने और कुछ नहीं पूछा, चुपचाप सड़क पर चला आया, लेकिन शाम को फिर आया। उसके साथ एक लड़का और था। उसने एक थैला जमीन पर रखा और उसमें से कुछ निकालने लगा...एक स्टोव, तवा, चिमटा और दो प्लेटें। साथ में एक डिब्बे में आटा भी था।
“यह क्या उठा लाया?”—अम्मा ने अचरज से पूछा। “लाना ही था तो खाने को कुछ लाता| और ये तेरे साथ कौन है?”
“यह मेरा दोस्त रघु है। हम दोनों साथ साथ रहते हैं। हमें भूख लगी है इसीलिए आए हैं।”—जीवन ने हँसते हुए कहा। बूढी अम्मा अपलक अचरज से ताक रही थी। उसकी समझ में जीवन की यह पहेली नहीं आ रही थी।
जीवन ने कहा, “यह सब सामान रघु का है। कभी कभी इसकी माँ गाँव से यहाँ आती हैं, तब हम दोनों को घर का खाना नसीब हो जाता है, नहीं तो हर रोज ढाबे में खाने जाते हैं ,पर ढाबे के खाने से यह बीमार हो जाता है। इसीलिए आज तुम्हारे हाथ की रोटियाँ खाने आए हैं।”
“मेरे हाथ की रोटियाँ! घर की रसोई में खाना बनाये तो मुझे अरसा बीत गया है। ‘’ इससे आगे अम्मा कुछ कह न पाई।
2
कुछ देर बाद झोंपड़ी में स्टोव की आवाज़ गूँजने लगी। अम्मा ने एक प्लेट में आटा गूँध लिया और फिर गरम रोटी की महक उठने लगी। सब्जी के बदले नमक था। रघु और जीवन खाने लगे। जीवन ने एक रोटी मुनिया को थमा दी। वह भी खाने लगी। “बहुत पेट भर गया, अब बस।” जीवन के इतना कहते ही अम्मा ने स्टोव बंद कर दिया।
“स्टोव क्यों बंद कर दिया। तुम्हारी रोटी कहाँ है?” जीवन ने पूछा तो अम्मा ने ऊपर की ओर देखा।”तुम हमारे लिए रोटी बनाओ और खुद भीख माँगो, अब से यह कभी नहीं होगा।” कहकर जीवन ने फिर से स्टोव जला दिया। आखिर अम्मा को जीवन की बात माननी पड़ी।
अम्मा चुप बैठी है। आज न जाने कितने समय बाद अपने हाथ की बनाई गरम रोटी खाई है, अपने बच्चों जैसे दो अनजान लड़कों को पेट भर रूखी रोटियाँ खिलाई हैं। कहीं यह सपना तो नहीं। पेट भर खाने के बाद जीवन और रघु अलसा गए हैं। मुनिया पास में गुड़ीमुड़ी बनी सो रही है। अम्मा की दोनों हथेलियाँ बारी बारी से तीनों के सिर सहला रहीं हैं। मन एकदम बहुत पीछे दौड़ गया है। बहुत कुछ याद आ रहा है। और फिर आँखों से आँसूं बहने लगे। लेकिन अम्मा ने आँसुओं को रोकने की कोशिश नहीं की। उनकी हथेलियाँ अपना काम कर रही थीं।(समाप्त )
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