Sunday 4 February 2024

बहुत प्यास लगी है-कहानी-देवेंद्र कुमार

 

                                  बहुत प्यास लगी है-कहानी-देवेंद्र कुमार

                                                                                 =======

 

  एक था चोर।  उसका नाम नहीं मालूम। वैसे नाम कुछ भी हो ,वह कहीं का रहने वाला हो ; क्या इतना काफी नहीं कि  वह एक चोर था। हाँ तो रात में जब सब नींद की  गोद में आराम कर रहे थे,  तब वह जाग रहा था। उसका इरादा चोरी करने का था। और  फिर  वह चुपचाप चल दिया।सब तरफ सन्नाटा था। कहीं कोई नहीं था।                                 

  तभी न जाने क्या हुआ,उसका गला  सूखने लगा,बहुत जोर की प्यास लगने लगी। उसने पानी की खोज में इधर उधर देखा पर सूनी सड़क पर भला पानी कहाँ मिलता! वह,मेरा मतलब चोर, जरा रुकिए,मैं उसे लगातार चोर कह रहा हूँ, क्या यह ठीक है ?अभी तक, मेरा मतलब आज की रात , उसने किसी के घर में चोरी नहीं की है चलिये पहले उसका कोई नाम रख दिया जाए। मैं और आप उसे नहीं जानते,क्या हम उसे अनजान के नाम से पुकार सकते हैं ?हाँ यही ठीक रहेगा।

  अनजान नामक एक व्यक्ति रात के समय सूनी सड़क पर पानी खोज रहा था। प्यास से उसका गला सूख रहा था।  इधर उधर देखा तो थोड़ी दूर एक कुआं नज़र आया। अनजान तेज क़दमों से कुएं के पास जा पहुंचा। अब वह  पानी के एकदम पास खड़ा था। लेकिन पानी कैसे मिले,उसके पास लोटा -डोर जैसा तो कुछ था नहीं,तो पानी कैसे पिए! पानी के इतने  निकट पहुँच कर उसकी प्यास और तेज हो गई थी। अब कैसे क्या करे, वह यही सोच कर बैचैन हो गया। तभी पास के मकान का दरवाज़ा खुला और एक आदमी बाहर निकला। उसके हाथ में पानी से भरा लोटा और  गिलास था।

   उसने गिलास अनजान को थमाते हुए कहा-'लो पानी पी लो। 'अनजान गट गट पानी पी गया,उस आदमी ने गिलास को फिर भर दिया। अब अनजान को चैन मिला। उसने पूछा -'भाई,आप कौन हैं? आप को कैसे पता चला कि मैं प्यासा हूँ।'

  उस व्यक्ति ने कहा-'मेरा नाम अमित है। मैं कमरे में बैठा कुछ लिख रहा था,तभी मेरी नज़र खिड़की से बाहर चली गई। मैंने तुम्हें कुएं के पास खड़े देखा और तुरंत समझ गया कि तुम प्यासे हो,अन्यथा इस समय कुएं के पास न खड़े होते।'

  अनजान ने अमित को अपनी प्यास बुझाने के लिए धन्यवाद दिया। वह सोच रहा था -अगर पीने को पानी न मिलता तो न जाने क्या हो जाता।

  तभी अमित ने पूछा -' अरे, मैंने तुम्हारा नाम तो पूछा ही नहीं,और यह तो कहो आधी रात के समय कहाँ जा रहे हो ? इस समय तो कोई सवारी मिलने से रही।'

  अनजान चुप रहा ,कहता भी क्या!

                                                                     1

  अमित बोला-'आओ,अंदर आओ,कुछ देर बाद चले जाना,'  अनजान कुछ पल सोचता खड़ा रहा। अचानक लगी प्यास से उसकी योजना गड़बड़ा गई थी, जो  कुछ करने निकला था वह अब नहीं हो सकता था। फिर वह चुपचाप अमित के पीछे पीछे उसके घर में चला गया।

  अनजान ने देखा सब तरफ शेल्फों में बहुत सारी किताबें लगी थीं, मेज पर कागज़ फैले थे। एक तरफ पलंग बिछा था। उसने पूछा -'क्या आप यहाँ अकेले रहते हैं?'

  'नहीं परिवार के साथ रहता हूँ। यह कमरा घर के बाहरी हिस्से में है। मैं यहाँ लिखता पढता हूँ। कई बार देर रात तक काम करता हूँ। घर में किसी को परेशानी न हो,इसीलिए यह कमरा चुना है मैंने। 'अमित ने कहा और अनजान को पलंग पर बैठने का संकेत किया।

    इतनी किताबें देख कर उसे अचरज हो रहा था। 'ये किताबेंक्या आपने सबको पढ़ लिया है? ' अनजान के प्रश्न पर अमित मुस्करा दिया। बोला-'सब तो नहीं पर ज्यादातर को पढ चुका  हूँ|

 मैं पेशे से पत्रकार हूँ और बच्चों के लिए कविता-कहानी भी लिखता हूँ।'-और उसने एक किताब अनजान को थमा दी। अनजान किताब के पन्ने  उलटने लगा। पुस्तक में बच्चों के गीत थे। हर पृष्ठ पर सुन्दर  चित्र बने थे। मुख  पृष्ठ पर अमित का नाम छपा हुआ था।एकाएक अनजान गीत गुनगुनाने लगा। बोला -'पढ़ कर अपना बचपन याद आ गया।                                                                  

    'सबका बचपन खट्टा -मीठा होता है। मैं अपने बचपन से जुड़ा रहूँ इसलिए भी बच्चों के लिए लिखता हूँ। अमित ने कहा फिर पूछने  लगा-'तुम भी बताओ न अपने बचपन के बारे में।'

  अनजान का मन जैसे उड़ कर अपने बचपन में जा पहुंचा ,'बोला -'मेरा बचपन गाँव में बीता,भरा पूरा परिवार था। पर वह सब तो पीछे छूट गया। अब तो मैं शहर में अकेला ही रहता हूँ। 'कहते हुए उसका स्वर उदास हो गया। मन  बचपन और वर्तमान की तुलना कर रहा था।

  अमित ने कहा-तो ताज़ा कीजिये अपने बचपन के दिन।'

  अनजान की आँखों के सामने अपने बचपन की किताब के पन्ने खुल गए। बोला  -हमारा गाँव नदी किनारे और खूब हरा भरा था।थोड़ी दूर पर एक टीला था, जिसे गाँव वाले मल्लू का पहाड़ कहते थे,वैसे टीला बहुत ऊँचा नहीं था।

   'तो फिर उसका नाम मल्लू का पहाड़ क्यों था?'-अमित ने पूछ लिया।

                                                                                  2

  अनजान ने कहा-'हमारे गाँव में एक था मल्लू पहलवान। वह हर रोज टीले पर दौड़ कर चढ़ जाता और वहां कसरत करता था।जब वह दूर से भागता हुआ आता और बिना रुके टीले पर चढ़ जाता तो सब तालिया बजाते। हम बच्चों को उस तमाशे में खूब मज़ा आता था।' कह कर वह खिलखिला उठा। बोला -'और जिस दिन कथक्कड़ बाबा आते तो उस दिन सारा गाँव उन्हें घेर कर बैठ जाता।'

   कौन थे कथक्कड़ बाबा?'

     'पता नहीं उनका असली नाम क्या था। वह जब आते, किस्से सुनाते। लोग उन्हें घुमक्कड़ बाबा भी कहते थे क्योंकि वह हर समय यात्रा पर ही रहते थे।

     घुमक्कड़ कथक्कड़ ,वाह!'

      'जब आते तो अपनी यात्राओं के किस्से सुनाते| उनकी यात्रा कथाएं बहुत मजेदार होती थीं।' –अनजान ने कहा।

      उनके कुछ किस्से तो जरूर याद होंगे आपको। क्या कभी किसी  ने उन कहानियों को लिख कर रखा।?'

      अनजान ने इंकार में सर हिला दिया|

      'तो अब आप उनके किस्सों को लिखिए। मेरे लेख और कहानियां अनेक अखबारों में प्रकाशित  होते हैं।आपकी रचनाएँ भी छप सकती हैं। '।मुझे लगता है कथक्कड़ के किस्से पाठकों को जरूर पसंद आएंगे।'

      'लेकिन मैंने तो कभी कुछ लिखा नहीं। '-अनजान ने कहा।

     'अरे, बातों में कितना समय निकल गया। मैंने तो आपको चाय के लिए भी नहीं पूछा| मैं अभी चाय बना कर लाता हूँ। 'अमित ने कहा-मैं  कमरे से सीधे रसोई में जा सकता हूँ। तब तक आप किताबें देखिये।-कह कर अमित दूसरे दरवाज़े से घर के अंदर चला  गया|

     अनजान को जैसे होश आया। वह तुरंत वहां से चला जाना चाहता था।अब तक उसने अपने बारे में अमित को कुछ नहीं बताया था।क्या बिना कुछ कहे चले जाना ठीक होगा? उसने मेज से कागज़ उठा कर लिखा –मैं अपना परिचय दिए बिना नहीं जा सकता। उसने अपना सच लिखा और तेजी से बाहर निकल गया।

     अमित चाय लेकर लौटा तो अनजान नहीं था। उसने वह कागज़ उठा लिया, जिस पर अनजान अपना सच लिख कर चला गया था।

  मैं   नहीं जानता कि अनजान कहाँ चला गया है! सच तो यह है कि मैं और आप उसका असली नाम भी नहीं जानत |यह कहना मुश्किल है कि वह कहाँ जाएगा,क्या करेगा। शायद वह अपनी किताब को फिर से लिखे। मैं समझता हूँ आप भी यही सोच रहे हैं। (समाप्त ) ।      

No comments:

Post a Comment