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कहानी चिड़िया के नाम—देवेन्द्र कुमार
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छुट्टी का दिन था। बाग में बच्चों की धमा-चौकड़ी चल रही थी। हवा में उनका शोर और ठहाके गूँज रहे थे। एक बूढ़ा आदमी वहाँ से गुजरा। वह कभी भीख माँगता तो कभी छोटी-मोटी मजूरी करता। अकेला एक टूटी हुई झोंपड़ी में रहता था।
लोग उसे गप्पू कहा करते थे। क्योंकि भीख माँगते समय वह बड़े करुण स्वर में अपने दुख की सच्ची-झूठी कथा सुनाया करता था। वैसे उसका असली नाम तो शायद खुद उसे भी अब याद नहीं रह गया था।
बच्चों की खिलखिलाहट सुनकर गप्पू के होंठों पर भी मुस्कान आ गई। वह बाग में चला आया और बैठ गया। बच्चों को खेलते देख उसे अपना बचपन याद आ रहा था। किसी से बातें करने का मन हो रहा था। भिखारी से कोई बात करना पसंद नहीं करता था | तभी बच्चों ने गप्पू को बैठे देखा तो खेल रुक गया। एक बच्चा गप्पू के पास आकर बोला, “तुम क्यों बैठे हो यहाँ। हमारा खेल मत बिगाड़ो, यहाँ से चले जाओ।”
घास पर एक चिड़िया दाना चुग रही थी। गप्पू ने बात बनाई, “मेरी चिड़िया उड़कर यहाँ बैठ गई है, इसीलिए मुझे भी आना पड़ा। यह जाएगी तो मैं भी चला जाऊँगा। तुम सब खेलो। तुम्हारा खेल बिगाड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं।” बच्चों ने चिड़िया को देखा फिर बोले, “इस चिड़िया पर क्या तुम्हारा नाम लिखा है जो इसे अपनी कह रहे हो।”
“नाम तो नहीं लिखा है, पर हम दोनों पुराने दोस्त हैं। जब मैं कहीं जाता हूँ तो यह ऊपर उड़ती है। और जब यह कहीं बैठती है तो मैं भी बैठ जाता हूँ।”
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तब तक बाकी बच्चे भी वहाँ आ गए। एक ने कहा, “क्या जब चिड़िया पेड़ पर बैठेगी तो तुम भी पेड़ पर चढ़ोगे?” उसके इतना कहते ही सब बच्चे जोर से हँसे।
गप्पू घबराया नहीं। उसने कहा, “भला मैं पेड़ पर क्यों चढूँगा। चिड़िया जानती है मैं पेड़ पर नहीं चढ़ सकता। इसीलिए वह नीचे मेरे पास आकर जमीन पर बैठ जाती है।” बच्चों को गप्पू की बातों में मजा आ रहा था। तभी चिड़िया फुर्र से उड़ गई। यह देख बच्चे ताली बजाने लगे, “अहा, अहा, तुम्हारी चिड़िया तो उड़ गई।”
गप्पू ने मुँह बिचकाकर कहा, “मुझसे रूठ गई है।”
“क्यों भला?”
“तुम लोगों के आने से पहले मैं चिड़िया से बातें कर रहा था। फिर तुम लोगों से बोलने लगा तो वह रूठ कर बोली-
‘तुम
अपने नए दोस्तों से बातें करो, मैं तो जा रही हूँ।” बातों-बातों में गप्पू
ने
खुद को बच्चों का दोस्त बना लिया था।
“तो अब क्या करोगे?” एक ने पूछा।
“जाकर मनाना पड़ेगा चिड़िया को।” गप्पू ने कहा।
“क्या चिड़िया मान जाएगी?”
“हाँ, क्योंकि वह बहुत समझदार है।” गप्पू बोला।
“क्या तुम चिड़िया की बोली समझते हो?” बच्चे पूछ रहे थे। उन्हें मजा आ रहा था।
“मैं उसकी बोली समझता हूँ और वह मेरी बात समझती है।”
“चलो हटो, ऐसा तो बस कहानी में होता है?”
“नहीं, कभी-कभी सच में भी हो जाता है।” गप्पू ने कहा।
बच्चों ने अपना खेल बंद कर दिया। वे गप्पू को घेरकर बैठ गए। उन्हें गप्पू की बातों में कहानी का रस आ रहा था। यह तो एकदम नया खेल था उनके लिए। वे भूल गए कि गप्पू ने फटे-पुराने कपड़े पहन रखे थे। बच्चे ध्यान से गप्पू की बातें सुन रहे थे।
2
“अच्छा यह तो बताओ तुम और चिड़िया आपस में क्या बातें करते हो।”
गप्पू मुस्कराया। उसने कहा, “चिड़िया बहुत बातूनी है। वही ज्यादा समय बोलती रहती है। असल में मैं ठहरा बूढ़ा आदमी। मैं तो कहीं आता-जाता नहीं। और चिड़िया तो भई पंखों वाली है। वह न जाने कहाँ-कहाँ घूमती है- नदी, जंगल, पहाड़, खेल-खलिहान, नई-नई जगह की सैर करती है। बस, इसीलिए उसके पास मुझे सुनाने के लिए नई-नई बातें होती हैं। मेरी दोस्त चिड़िया बोलती रहती है, और मैं सुनता रहता हूँ।”
“यह तो बड़ी मजेदार बात बताई तुमने।” कहकर बच्चे हँस पड़े।
गप्पू का मन जैसे भीग गया। आज कितने समय बाद कुछ बच्चों ने उससे इस तरह घुलमिल
कर
बातें की थीं।
एक बच्चे ने पूछा, “तब तो चिड़िया तुम्हें कहानी भी सुनाती होगी-क्यों?”
“कहानियों का तो खजाना है चिड़िया के पास। जब भी कहीं से आती है तो कोई मजेदार कहानी अवश्य सुनाती है।” गप्पू ने आकाश में उड़ते परिंदों को देखा।
“तो हमें भी सुनाओ न चिड़िया से सुनी कहानी।” बच्चे बोले। उनकी आँखें चमक रही थीं।
गप्पू को अपना बचपन याद आ गया, जब दादी रात में उसे कहानियाँ सुनाया करती थीं। कुछ कहानियाँ उसे आज भी याद थीं। वह कहानी सुनाने लगा। बच्चे एकदम खामोश होकर सुन रहे थे। अपना खेल भूलकर वे गप्पू की चिड़िया के खेल में शामिल हो गए थे। कहानी सचमुच मजेदार थी। सुनकर सभी बच्चे खुश हो गए।
तब तक कई चिड़ियाँ उनके पास आ उतरीं और घास पर पड़े दाने चुगने लगीं।
एक बच्चे ने पूछा, “ये कौन-सी चिड़ियाँ हैं?”
“इनमें एक तो वही है मेरी दोस्त और बाकी हैं उसकी सहेलियाँ। लेकिन मेरी दोस्त मुझसे बात नहीं कर रही। लगता है अभी तक नाराज है।” गप्पू बोला।
“तो जाकर मना लो।” बच्चे बोले।
“कैसे मनाऊँ?” गप्पू ने भोला-सा मुँह बनाया।
“जैसे चिड़िया तुम्हें कहानियाँ सुनाती है, वैसे ही तुम भी उसे कोई कहानी सुना दो। आज उसे हम लोगों के बारे में
भी बता देना।”
3
धूप ढल रही थी। हवा ठंडी हो चली थी। बच्चों ने आकाश की ओर देखा और फिर उठकर चल दिए। फिर एक बच्चा रुक
कर बोला, “चिड़िया से तुम्हारी क्या बात हुई हमें बताना।”
“हाँ, हाँ, क्यों नहीं।”
बच्चे चले गए। पार्क में धुँधलका छा गया। चिड़िया का झुंड तो कब का जा चुका था। गप्पू भी उठ खड़ा हुआ। आज भीख नहीं माँगी थी, काम भी नहीं मिला था। पेट खाली था, पर मन में एक विचित्र खुशी थी|
और हाँ, बच्चों के पास फिर से आने का एक बहाना मिल गया था उसे।
चिड़िया से सुनी कहानी उन्हें सुनाने का बहाना। (समाप्त)
वाह! बहुत अच्छी कहानी।
ReplyDeleteमिलने और बातें करने के बहाने तो हमें भी पसंद हैं।