खाली गिलास -कहानी-देवेंद्र कुमार
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सवेरे का समय था, बलवान चाय
वाले की दूकान पर काफी भीड़ थी रोज की तरह। वहीँ काम करता था रमुआ। उसका काम था
जूठे गिलास धोना, टेबल पर कपडा मारते रहना और आस पास की दुकानों में चाय दे कर आना। उसका कोई नहीं था इसलिये बलवान
को ही बापू कहता था। वैसे बलवान उसका कौन था, यह बात उसे मालूम नहीं थी। पर उसने
बलवान को कई बार ग्राहकों से इस बारे में कहते सुना था।
वह कहता था – “अरे साहब, क्या बताऊँ रमुआ की कहानी। यह तो मुझे सड़क पर रोता
हुआ मिला था। बस मुझे दया आ गयी और मैं
इसे साथ ले आया। कई बरस हो गए तब से इसे अपने बेटे की तरह पाल रहा हूँ।” सुनने
वाले बलवान की तारीफ़ करते और चाय पीकर चले जाते। इस बीच वह सिर झुकाए काम में लगा रहता। उसे अच्छी तरह पता था कि जरा हाथ रुके
नहीं कि आफत आ जाएगी। बलवान के प्यार का कड़वा सच उसे खूब मालूम था। उसकी आँखों में आंसू आते और सूख़ जाते, वह किस से अपना दुःख
कहता, कहाँ जाता।
हर दिन एक ही ढंग से बीतता
था। रात को चाय की दुकान बंद होने का कोई समय नहीं था, जब तक ग्राहक आते रहते
दुकान चलती रहती, और रमुआ के हाथ और पैर भी काम में लगे रहते। वह जरा भी ढिलाई
नहीं कर सकता था, फिर चाहे भूख लगी हो या सिर दुःख रहा हो, उसे छुटकारा नहीं मिलता था। एक दिन उसने भूख लगने
की बात कह दी तो जोर का तमाचा गाल पर पड़ा था, एक भद्दी गाली सुनने को मिली थी। उस
दिन बलवान ने साफ़ कह दिया था कि खाना दुकान का काम पूरा होने के बाद ही मिलेगा।
रमुआ को पता चल गया था कि क्या बात बलवान से नहीं कहनी है। मतलब यह कि जब बलवान दे
तभी खाना है, और जब छुट्टी दे तभी मेज कुर्सियों के बीच नंगी जमीन पर लेट जाना है, फिर चाहे टूटी- फूटी नींद पूरी हो न हो, उसे सही
समय पर उठ जाना है।
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दो दिन से उसे नींद नहीं आ
रही है, सिर में दर्द होता रहता है। सुबह दूध वाला आकर शटर बजाता है तो रमुआ अंदर
से शटर उठा कर दूध ले लेता है। यह रोज का नियम है। दूध वाला सुबह बहुत जल्दी आ
जाता है, तब तक दिन भी नहीं निकला होता है पर रमुआ का काम तभी से शुरू हो जाता है।
उस दिन रमुआ को शटर उठाने में देर हो गई, पूरे बदन में दर्द हो रहा था। उसे बुखार था। दूध वाले ने
बलवान से देरी की शिकायत कर दी। फिर तो आफत ही आ गई, बलवान ने यह नहीं पूछा कि उठने में देर क्यों हुई थी।
रमुआ ने बुखार के बारे में कुछ नहीं कहा, कहने से कुछ फायदा भी नहीं था,
बुखार कोई पहली बार नहीं हुआ था। मार खाकर वह
काम में लग गया। पर काम में रोज जैसी फुर्ती नहीं थी। चाय बनाने वाले
मुन्ना ने उसका हाथ छूकर देखा तो चौंक कर
बोला- “ अरे, तुझे तो तेज बुखार है!” पर वह इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सका, क्योंकि
बलवान उधर ही देख रहा था। मुन्ना को भी बलवान के गुस्से के बारे में खूब अच्छी तरह
पता था। रमुआ की हिमायत लेकर उसे अपनी मुसीबत नहीं बुलानी थी।
ग्राहक चाय-नाश्ते का मज़ा ले
रहे थे, इस बीच रमुआ बाज़ार में भी कई बार चाय दे आया था, उसका मन कर रहा था कि गरमागरम
चाय पी ले तो शायद तबीयत कुछ ठीक हो जाये, लेकिन पी नहीं सकता था। तभी बलवान ने
बाज़ार में चाय दे आने को कहा। वह चाय का गिलास लेकर चल दिया, पर ठीक से चल भी नहीं पा रहा था।
आगे एक आदमी चबूतरे पर बैठा अखबार पढ़ रहा था | वह रमुआ को जानता था, उसे बलवान की दुकान पर लट्टू की तरह
घूमते देखा था। उसने भी रमुआ के बारे में बलवान के मुंह से खुद की तारीफ कई बार
सुनी थी| उसने रमुआ को डगमगाते आते
देखा तो पुकार लिया – “सुन तो।” फिर बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया। चौंक कर बोला- “
तुझे तो तेज बुखार है,रो क्यों रहा है? चाय पी या नहीं?’
रमुआ ने इनकार में सिर हिला
दिया, और जोर से रो पड़ा, उस आदमी ने चाय का गिलास रमुआ के हाथ से ले लिया, फिर
बोला-“ यहाँ बैठ और चाय पी ले, “
रमुआ ने रोते हुए कहा –“ मार
पडेगी।”
उस आदमी ने कहा-“ कोई नहीं
मारेगा ,तू चाय पी ले, फिर मैं तुझे अपने साथ ले जाकर दवा दिलवा दूंगा।”
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रमुआ चुप बैठा रोता रहा पर
उसने चाय नहीं पी, उसे अच्छी तरह पता था कि बलवान उसके साथ क्या करेगा। उस आदमी ने
रमुआ के सिर पर हाथ फिराया,बोला-“ तू आराम से चाय पी, फिर मैं तुझे डॉक्टर के पास ले चलूँगा| अब बलवान के पास जाने की कोई जरुरत नहीं। “
रमुआ एकटक उस की ओर देखता
रहा, उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
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दुकान पर बलवान ने रमुआ को
पुकारा तो मुन्ना ने कहा-‘ वह तो चाय देकर लौटा
ही नहीं है।”
सुनते ही बलवान आग बबूला हो गया| मुन्ना से बोला-“ उसे पकड़ कर तो ला जरा|''
मुन्ना समझ गया कि आज रमुआ
की खैर नहीं| उसने सब जगह देख डाला, पर
रमुआ कहीं नहीं था। एक दुकान के चबूतरे पर चाय का खाली गिलास रखा था। पर चाय का खाली गिलास रमुआ के
बारे में कुछ कहने वाला नहीं था।
आखिर रमुआ कहाँ गायब हो गया
था ! वह एक अनजान आदमी के साथ
डाक्टर के पास जा रहा था | रमुआ और वह अनजान आदमी एक दूसरे के
कुछ नहीं थे, लेकिन रमुआ के दुःख ने किसी
का मन छू लिया था|अगर यह हो सके तो कई
छोटे बच्चों के बड़े दुःख दूर हो सकते हैं | (समाप्त )
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