Wednesday 22 November 2023

एक झूठी और सच्ची कहानी -देवेंद्र कुमार

 

                                                              

                              एक झूठी और सच्ची कहानी -देवेंद्र कुमार

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  मुझे बच्चों के लिए लिखना अच्छा लगता है,क्योंकि उस समय मैं बच्चों के एकदम पास होता हूँ।बच्चे मेरी हर कहानी में उछल कूद करते हुए, खिल खिल करते दिखाई देते हैं ,समझो कि हम आपस में बहुत घुले मिले हैं। मेरी कहानियों के पात्र सच, मेरा मतलब जीवित बच्चे और स्त्री- पुरुष होते हैं। पर एक दिन मन में आया -आज एक झूठी कहानी लिखनी चाहिए ,जिसका हर पात्र नकली या झूठा हो। देखना चाहिए कि  झूठी कहानी कैसे लिखी जाती है। और मैंने लिखना शुरू किया। --बलवीर और जानकी के कोई संतान नहीं थी,इसलिए दोनों दुखी रहते थे।

    एक दिन बलवीर ने जानकी से कहा-'हमें किसी अनाथालय से  बच्चे को गोद लेना चाहिए। उस समय दोनों सोसाइटी के गेट से बाहर निकल रहे थे। जानकी ने सड़क पर खड़े एक बच्चे की ओर संकेत किया।

वह एक कार के शीशे साफ़ कर रहा था। बोली -'इस बच्चे को देखो। यह और इस जैसे बहुत सारे बच्चे अनाथ ही तो हैं।लोग कहते हैं कि ये सड़क पर रहते हैं। मैं सोचती हूँ कि इसे या इस जैसे किसी बच्चे को अपनाना चाहिए हमें।'

  ' नहीं ,मैं तो किसी अनाथालय से कोई बच्चा लेना पसंद करूंगा। '--कह कर बलवीर आगे बढ़ गए। मुझे लगा कहानी जैसे रुक गई। मैंने लिखा-फुटपाथ पर दो बच्चे लेटे  थे। उन्हें बुखार था। वे सड़क पर रहने वाले बच्चे थे -अमर और जय।उनकी देख भाल करने वाला कौन था भला। उस दिन   जानकी सोसाइटी के गेट से बाहर निकली तो उन बच्चों पर नज़र पड़ी। वह उनके पास गईं ,बदन छू कर देखा और बलवीर से कहा-'इन बच्चों को तुरंत  अस्पताल  में दाखिल करना होगा,अन्यथा…'

 बलवीर अमर और जय को अपनी कार से अस्पताल ले गए।दोनों पति पत्नी अक्सर जरूरतमंदों की मदद किया करते थे।

  अस्पताल में अमर और जय का अच्छा इलाज हो रहा था। उनके साथी भी उन्हें देखने आते थे। इलाज का पूरा खर्च बलवीर दम्पति उठा रहे थे। जानकी खुश थी। लेकिन आगे क्या होने वाला था!अमर और जय ठीक हो गए थे, उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी। तो क्या वे दोनों फिर से पहले की तरह सड़क पर रहने लगेंगे?

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   मैंने कहानी को आगे बढ़ाया -जानकी के घर में दया साफ सफाई का काम करती थी और एक कमरे के घर में अकेली रहती थी।उसका पति दूसरे शहर में काम करता था और हर शनिवार को दया के पास आया करता था।  जानकी ने दया से बात की तो वह अमर और जय को कुछ समय के लिए अपने साथ रखने को तैयार हो गई।जानकी ने उसे बच्चों की देखभाल का खर्च देने की बात कही,उसे लगा कि अनाथ बच्चों की देखभाल हो जाएगी और उसे काफी पैसे भी मिलेंगे।वैसे दया अपना कोई बच्चा नहीं था।

     मेरी झूठी कहानी अब आगे बढ़ रही थी। अमर और जय आराम से दया के साथ रह रहे थे। एक दिन दया के घर कई मेहमान आ गए,वह परेशान हो गई,अब क्या करे। एक कमरे के घर में इतने लोगों के लिए जगह कहाँ थी भला।

   मैंने कहानी को आगे बढ़ाया। गाँव में बलवीर की जमीन थी, उस पर भगवान् माली सब्जी और फल उगाता था। वह अपनी  पत्नी के साथ रहता था। जानकी ने सोचा अमर और जय को गाँव भेज दिया जाए तो कैसा रहे। उसने माली भगवान् से बात की और एक दिन बलवीर और जानकी दोनों बच्चों को गांव छोड़ आये।वहां ताज़ी हवा और हरियाली के बीच अमर और जय को अच्छा लगा। जानकी  संतुष्ट थी कि अब बच्चों के फिर सड़क की जिंदगी में लौट जाने का कोई डर नहीं था।

    जानकी  अमर और जय को अपने पास रख कर उन्हें कुछ बनाना चाहती थी। उन्हें गाँव भेज कर उसने अमर  और जय को अपने से दूर कर दिया था। बलवीर ने उसे समझाया-हम अमर और जय के साथ यहाँ नहीं रह सकते। उनके दोस्त उन्हें फिर से अपने पास ले जाने की कोशिश करेंगे,वे दोनों भगवान् माली के पास ही ठीक हैं ।

    अमर और जय को हर तरह का आराम था,लेकिन फिर भी वे अपने दोस्तों के लिए बैचैन थे।एक दिन गाँव के स्कूल के मास्टर जी फल सब्जी  लेने के लिए भगवान् के पास आये।उन्होंने अमर और जय के बारे में पूछा। भगवान् ने उन्हें पूरी कहानी सुना दी। बताया कि दोनों बैचैन रहते हैं ।

     मास्टर जी ने कहा-'पहले इन्हें सड़क पर रहने के लिए हर समय बहुत मेहनत करनी पड़ती थी। अब बिना कुछ किये सब कुछ मिल जाता है,ये तुम्हारे काम में मदद करें और इन्हें पढना  भी चाहिये। दोनों ने  झट कहा-'हम पढ़ना चाहते हैं।' यह उनका सपना था जो शायद सच होने जा रहा था। 'लेकिन इनकी फीस…’ भगवान्  ने कहना चाहा   तो मास्टर जी ने टोकते हुए कहा -'वेतन मुझे सरकार से मिलता है, इन बच्चों को मैं अपनी ख़ुशी के लिए पढ़ाऊंगा।'बात बन गई। भगवान् ने अमर और जय से काम में मदद करने को कहा। वह उन्हें क्यारियों के पास ले गया। अमर और जय को फूलों के नाम बताये,पौधों के बारे में बताया। कुछ देर बाद मास्टर जी आ गए। पेड़ पौधों के बाद अब किताब की बारी थी।

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   उधर शहर में अमर और जय के दोस्त जानकी से अपने दोस्तों के बारे में पूछते रहते थे। क्या वे कभी आपस में मिल पाएंगे? जानकी और बलवीर ने सोच विचार के बाद तय किया कि दोस्तों को आपस में मिलना चाहिए। भगवान् को खबर भेज दी गई और एक  दिन अमर और जय  के छह दोस्तों  को गाँव ले गए। बिछुड़े हुए दोस्त लपक कर गले मिले,उनके होठों पर हंसी थी और आँखों  में आंसू। भगवान् का बगीचा हँसते फूलों का गुलदस्ता बन गया था। मास्टर जी अब आठ शिष्यों को पढ़ा रहे थे। तो क्या अमर और जय के दोस्त भी वहीँ रह जाने वाले थे? और फिर एक रोज बलवीर और जानकी भी वहां आ पहुंचे। उनके साथ काफी सामान  था। जानकी ने कहा-'हमारे बच्चे यहाँ हैं तो हम शहर में अकेले क्यों दुखी  और उदास रहें । हमने भी यहीं रहने का फैसला किया है। उन्होंने निश्चय किया था कि जब अमर और जय यहाँ आ गए हैं तो उनके दोस्त शहर की सड़कों पर क्यों रहें।

  अगले दिन दया भी अपने पति के साथ वहां आ गई। जानकी ने उन दोनों को गाँव बुलवा लिया था,आखिर भगवान् की पत्नी अकेले कितने जनों का भोजन बना सकती थी। दया के पति को भगवान् की मदद  करनी थी। और उस शाम जब परिंदे पेड़ों पर उतर रहे थे तब बलवीर और जानकी अपने आठ बच्चों से घिरे बैठे मुस्करा रहे थे। एक तरफ खुले चूल्हे पर दया भगवान् की पत्नी के साथ सब के लिए भोजन बना रही थी। आँगन में भोजन की सुगंध तैर रही थी। आज से पहले तो कभी ऐसी दावत नहीं हुई थी।

  अब मैं अपनी झूठी कहानी को समाप्त करता हूँ। क्या आप बताएँगे की असली कहानी और झूठे किस्से में क्या फर्क होता है। (समाप्त )    

        

  

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