Tuesday 14 November 2023

दोस्ती का घोंसला -देवेंद्र कुमार

 

दोस्ती का घोंसला -देवेंद्र कुमार

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खेल जोरों पर था। फ्लैटों की दो कतारों के बीच वाली खाली जगह ऊबड खाबड़ है, खिलाडी बच्चों ने वहीँ क्रिकेट का पिच बना लिया है। शनिवारइतवार को खूब धमाल होता है। उस दिन बूंदाबांदी हो रही थी। पर फिर अजय और नयन बल्ले और गेंद के साथ पहुँचे | नयन ने शॉट मारा, गेंद उछली और दूसरी मंजिल के एक फ़्लैट की खिड़की के आगे बनी छजली की पटिया पर जा गिरी।

यह तो मुश्किल हो गई। वहाँ से गेंद को कैसे उतारें।”—नयन ने कहा।

हाँ, इतनी ऊँची तो कोई सीढ़ी भी नहीं मिलेगी।”—अजय बोला—‘’एक तरीका है।

क्या?”

एक बांस ढूँढ कर उस फ़्लैट की बालकनी में ले जाएँ, फिर उसकी मदद से गेंद को छ्जली से नीचे गिरा दें।

आइडिया!”—नयन ने ताली बजाई।

दोनों लम्बे से बांस की खोज में इधर उधर देखने लगे। तभी आवाज़ सुनाई दी—”पहले ऊपर आकर देखो फिर कुछ करना,” नयन और अजय ने आवाज़ की ओर गर्दन उठा कर देखा। एक लड़का उस फ़्लैट की खिड़की में खड़ा था, जिसकी छजली पर उनकी गेंद जा गिरी थी।

नयन और अजय ऊपर जा पहुँचे। वह लड़का एक फ़्लैट के दरवाज़े पर खडा इनकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसने कहा, “मेरा नाम विमल है। और फिर दोनों को उस खिड़की के पास ले गया जहाँ खड़े होकर वह इन दोनों से बात कर रहा था। अजय और नयन ने देखागेंद छजली की पटिया पर बने एक घोंसले में जा पड़ी थी। घोंसले में कई छोटे छोटे अंडे नज़र रहे थे।

अरे!”—दोनों एक साथ बोल उठे।

अगर तुम बांस से ठेल कर गेंद को नीचे गिराओगे तो घोंसला भी नीचे जा गिरेगा और अंडे फूट जाएँगे, इसीलिए मैंने तुम दोनों को ऊपर आकर देखने को कहा था।

यह तो तुमने बहुत अच्छा किया।”—नयन ने कहा।

अब तो नई गेंद लानी होगी।”—अजय बोला। क्योंकि हमारी गेंद तो घोंसले की कैद से बाहर आने से रही।

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अरे क्रिकेट बाल की चिंता मत करो। विमल बोला, “मेरे पास कई क्रिकेट बाल्स हैं। तुम्हें नई गेंद नहीं लानी पड़ेगी।

क्या तुम भी क्रिकेट खेलते हो?”नयन और अजय ने एक साथ पूछा। हमने तो तुम्हें कभी खेलते देखा नहीं।

हमारा परिवार कुछ दिन पहले ही यहाँ रहने आया है,”विमल ने मुसकरा कर कहा, फिर एक बॉक्स निकाल लाया, उसमें कई गेंदें थीं।

कुछ देर बाद तीनों नीचे उतर आए। बूंदाबांदी के बीच खेल फिर शुरू हो गया। विमल ने कहा, “हमें घोंसले की ओर पीठ करके शॉट मारने चाहिएँ ताकि बाल फिर से घोंसले में जा गिरे। तभी बारिश होने लगी, तीनों अपने अपने घर चले गए।

नयन घर जाकर चुपचाप बैठा सोचता रहा। घोंसले में पड़े अंडे भला किस पक्षी के हो सकते हैं? अंडों से बच्चे कब निकलेंगे, और कब उड़ जाएँगे ताकि घोंसले को गिरा कर गेंद को लिया जा सके|’’

अगली दोपहर स्कूल से लौटते हुए उसने अजय से कहा, “चल कर घोंसले को देखेंगे।

अब वहाँ देखने को क्या है, हमारी बाल तो घोंसले में फंस कर रह गई है। वह तो निकल नहीं सकती।”—अजय बोला

 नयन बस्ता घर में रख कर वह अकेला ही विमल के पास जा पहुँचा।

उसे देखकर विमल मुसकरा उठा, फिर दोनों खिड़की में खड़े होकर घोंसले को देखने लगे। आकाश में कई पक्षी उड़ रहे थे। आखिर ये किस परिंदे के अंडे हैं?”नयन ने विमल से जानना चाहा।

विमल ने मुसकरा कर कंधे उचका दिए। , “क्या पता। अंडे फूटेंगे और बच्चे बाहर निकलेंगे। उनकी माँ उन्हें तब तक दाना खिलाएगी जब तक वे बड़े होकर उड़ना नहीं सीख जाते। और फिर वे उड़ कर कहाँ चले जाएँगे, क्या पता।

नयन बोला, “ये अंडे इस तरह खुले में पड़े रहेंगे तो कौआ  या कबूतर चोंच मार सकते हैं। तब तो अंडे नष्ट हो सकते हैं, इनमें मौजूद बच्चे जन्म लेने से पहले ही मर सकते हैं।

बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं।”—विमल ने कहा।

अगर हम इन अंडों को किसी तरह ढक दें तब ये सुरक्षित रह सकते हैं।

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वह कैसे? क्या इन पर कोई कपडा डाल दें।

कपडा नहीं, नीचे से कुछ हरे पत्ते लाकर घोंसले पर डालने से काम बन जाएगा।”—नयन ने सुझाव दिया। दोनों नीचे जाकर पौधों से कुछ पत्ते तोड़ लाये और हाथ बढ़ा कर धीरे से घोंसले पर डाल दिए। अब ठीक है। नयन ने संतोष के भाव से कहा और फिर घर लौट आया। उसे तसल्ली हो गई थी कि अब कोई शिकारी परिंदा अंडों पर झपट्टा नहीं मार सकेगा। वह सोच रहा था अब अंडों से बच्चे सुरक्षित बाहर सकेंगे। अगली दोपहर वह फिर से विमल के घर जा पहुँचा। विमल ने हँसकर कहा, “तुम घोंसले में रखे अंडों को लेकर बहुत चिंता कर रहे हो। क्रिकेट खेलने की बात तो जैसे भूल ही गए हो।

तुम ठीक कह रहे हो। मैं सोच रहा हूँ इन अंडों से बच्चे सुरक्षित बाहर जाएँ। इनकी माँ इन्हें दाना खिलाकर बड़ा कर दे और फिर ये आकाश में उड़ जाएँ।”—नयन ने कहा।

हाँ-हाँ, बिल्कुल वैसा ही होगा जैसा तुम चाहते हो। अब अंडों में सुरक्षित नन्हे जीवों की चिंता छोड़कर जरा मुसकरा दो मेरे दोस्त। विमल ने कहा और खिलखिला उठा। नयन भी हँस पड़ा। इस समय भी वह घोंसले की ओर ही देख रहा था। अगली दोपहर आने की बात कहकर नयन घर चला आया। लेकिन उसके बाद काफी समय तक उसका विमल के घर जाना हो सका। उसी दिन खबर मिली कि गाँव में नयन के नानाजी बीमार हैं। अगली सुबह की गाडी से वह माँ के साथ नानाजी से मिलने चल दिया। स्कूल की छुट्टियाँ शुरू हो गई थीं।

नानाजी नयन को देखकर बहुत खुश हुए। में अब और भी जल्दी ठीक हो जाऊँगा।”—कहते हुए उन्होंने नयन को बाँहों में भर लिया। उन्होंने नयन की दिनचर्या के बारे में पूछा तो उसने घोंसले में गेंद गिरने की घटना कह सुनाई। उसकी मम्मी ने कहा, “आजकल तो यह हर समय यही बात करता रहता है। मुझसे पूछता रहता है कि अंडों से बच्चे कब निकलेंगे।

नयन ने कहा, “नानाजी, आप तो गाँव में रहते हैं, आपने अंडों से बच्चे निकलते हुए और फिर उन्हें बड़े होकर उड़ते हुए जरूर देखा होगा। मैं भी देखना चाहता हूँ।

इसमें क्या मुश्किल है। मैं माली से कह दूँगा, वह तुम्हें ले जाकर सब दिखा देगा। अगले दिन माली रामधन नयन को अपने साथ ले गया। गाँव में बहुत हरियाली थी। इतने पेड़ नयन ने अपने नगर में देखे ही नहीं थे। रामधन एक पेड़ पर चढ़ गया, फिर अपने साथी की मदद से नयन को ऊपर चढा लिया। नयन कुछ डर रहा था। रामधन ने तसल्ली दी, “बबुआ, गिरने नहीं दूँगा। बस तुम डाल को थामे रहो। मैंने सहारा दे रखा है। उस पेड़ पर अनेक घोंसले थे। नयन ने देखा कि कई घोंसले खाली थे तो कुछ में अंडे पड़े थे। एक घोंसले में कई नन्हे जीव चोंच खोले अजीब आवाजें कर रहे थे। निश्चय ही उन्हें अपनी माँ का इन्तजार था। नयन देर तक देखता रहा। वह सोच रहा था, “हमारे घोंसले में पड़े अंडों की माँ कहाँ होगी?”

पूरी छुट्टियाँ नयन ने गाँव में मजे किये। वह रोज रामधन माली के साथ घूमने निकल जाता था। गाँव के लोगों के रहन सहन, वहाँ के पेड पौधों और पशु पक्षियों के बारे में उसने खूब जानकारी जुटा ली। लेकिन अब लौटने की बारी थी। स्कूल खुलने वाले थे, इसलिए वापस जाना ही था।

नयन के पिता उन्हें लेने स्टेशन आए हुए थे। टैक्सी घर पहुँची तो नयन झट विमल से मिलने चल दिया। माँ ने पुकारा, “नयन, पहले घर चलो। लेकिन तब तक तो वह विमल के घर की सीढियाँ चढ़ कर काल बेल बजा चुका था। दरवाजा विमल ने खोला। बोला, “मैंने खिड़की से तुम्हें आते हुए देख लिया था। आओ देखो अपने घोंसले को, लेकिन...

लेकिन क्या... बाकी शब्द मुँह में ही रह गए। नयन ने देखा घोंसला खाली था, बस गेंद पड़ी थी। यह क्या विमल!

हाँ नयन, तुम अपने नाना जी से मिलने गए और यहाँ मौसीजी गईं, फिर हम सब भी घूमने निकल गए। दो दिन पहले ही लौटे हैं। आकर देखा तो घोंसला खाली था।

घोंसला खाली था... नयन ने जैसे अपने आप से कहा। उसकी नज़रें घोंसले पर टिकी हुई थीं। कुछ देर दोनों चुप रहे। पता नहीं क्या हुआ होगा। नयन ने धीरे से कहा।

 क्यों चिंता कर रहे हो। सब कुछ अच्छा ही हुआ होगा। अब तुम अपनी गेंद ले सकते हो। “—विमल बोला।

इस घोंसले को ऐसे ही रहने दो गेंद के साथ। मुझे अपनी क्रिकेट बाल नहीं चाहिए।”—नयन ने कहा। कहकर वह जाने के लिए मुड़ा तो विमल बोला, “अब तो तुम मेरे घर आओगे नहीं क्योकि अंडों से निकले बच्चे बड़े होकर उड़ गए हैं।

परिंदे उड़ गए तो क्या, अपने पीछे दोस्ती का घोंसला तो छोड़ गए हैं।”—नयन बोला। कमरे में दोनों की हँसी खिलखिला रही थी। (समाप्त )


 

 

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