Sunday 2 April 2023

सड़क पर कभी नहीं—कहानी—देवेन्द्र कुमार

 

 सड़क पर कभी नहींकहानीदेवेन्द्र कुमार

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एक दोपहर मैं रिक्शा की प्रतीक्षा में खड़ा था। तभी दूर से एक खाली रिक्शा आती दिखाई दी। मैंने  रुकने का इशारा किया। पर रिक्शा वाला मुझे  नहीं बल्कि सड़क पार दूसरी तरफ देख रहा था। मैं  उसके पास जाकर बोला-मैं तुम्हें  रुकने का संकेत कर रहा था और तुम हो कि दूसरी ओर देख रहे हो। क्या बात है!

  रिक्शा वाले ने कहा-बाबू, उधर देखो, वहां एक आदमी किसी बच्चे को पीट रहा है|”,  मैंने उस दिशा में देखा पर मुझे तो वैसा कुछ नहीं दिखाई दिया जैसा रिक्शा वाला बता रहा था। रिक्शा वाले ने कहा-बाबू, हमें चलकर उस बच्चे को बचाना चाहिए।

  मन ने कहा कि अगर सचमुच कोई आदमी एक बच्चे को पीट रहा है तो चलकर देखना चाहिए। शायद रिक्शा वाला सच कह रहा हो। और मैं रिक्शा वाले जगन  के साथ उस तरफ चल दिया। मैंने गली में खड़े एक आदमी से पूछा तो उसने कहा—‘ ढाबे में काम करने वाले छोकरों की पिटाई कोई नई बात नहीं है। रम्मू के ढाबे में कई बच्चे काम करते हैं।गली से जरा हट कर खुली जगह में एक ढाबा था,उस पर लिखा था—‘रम्मू दा ढाबा’     

  ‘बच्चों से इस तरह काम करवाना तो गैर कानूनी है। इसकी शिकायत पर पुलिस गिरफ्तार कर सकती है।मैंने कहा| उस समय रम्मू के ढाबे में कोई नहीं था, शायद यह चर्चा सुन कर रम्मू ने सब को वहाँ  से हटा दिया था। तभी किसी के सिसकने की आवाज आई। मैंने देखा एक बच्चा घुटनों में सिर दिए बैठा रो रहा था। दिखाई दिया उसके माथे पर चोट के निशान थे। जगन ने कहा—‘बाबूजी, बाकी बातें बाद में, पहले इसकी मरहम पट्टी होनी चाहिए।हम जगन की रिक्शा में बच्चे को डाक्टर के पास ले गए। दवाखाने पहुँचने तक जगन बच्चे से शायद अपने प्रदेश की बोली में बात करता रहा,पर मेरी समझ में कुछ नहीं आया। बच्चे की मरहम-पट्टी करवा कर लौटते हुए जगन ने मुझे बताया—‘ बच्चे का नाम जय है और इसका गाँव मेरे गाँव के पास ही है।

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  ‘तो अब क्या करना है?’

 ‘मैं  अभी जय को  अपने कमरे पर ले जाता हूँ। शाम को साथियों के काम से लौटने के बाद मैं उनसे सलाह करूंगा।और फिर जय के साथ इसके गाँव चला जाऊंगा।जगन ने कहा।

   ‘कुछ पता चला कि जय अपने माँ बाप से दूर शहर में क्यों और कैसे चला आया?’ मैंने पूछा।

    ‘यह सब तो इसके माँ बाप से मिलने के बाद ही पता चलेगा।और फिर चुप खड़ा रह गया,लगा कुछ कहना चाहता है। मैंने कहा- ‘देखो जगन, आने जाने में काफी पैसे लगेंगे। अगर हम दोनों मिलकर यह बोझ उठा लें तो..’   जगन की चुप्पी में उसकी सहमति छिपी थी।

  तीसरी सुबह दरवाजे की घंटी बजी। सामने जगन खडा था। बोला –‘बाबूजी,नीचे चलिए आपको कुछ बताना है।नीचे जय के माँ बाप सावित्री और  रामधन से मिलवाया, जय भी साथ था। मैंने पूछा-‘ तुम तो जय को गाँव छोड़ने गए थे, फिर इन्हें अपने साथ क्यों ले आये!जगन ने जो कुछ बताया वह् यही था कि गाँव में रामधन के पास न जमीन है और न रोजगार, ये शहर में काम की तलाश में आये हैं।

  रामधन ने बताया कि उसका एक जानकार जय को यह कह कर अपने साथ शहर ले आया था कि इसे अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवा देगा लेकिन उसने जय को रम्मू के ढाबे पर छोड़ दिया खटने और पिटने के लिए,उसने इसके बदले कुछ रकम जरूर ली होगी।जगन ने आगे कहा।

   ‘तो अब क्या इरादा है।मैंने जगन से पूछा।

   मैंने सोच लिया है-- मैं जय के बापू को रिक्शा चलाना सिखा कर,इन्हें भी ठेकेदार से रिक्शा किराये पर दिलवा दूंगा। आगे आपकी मदद की दरकार होगी।

    कैसी मदद ?’

  ‘ क्या आप अपने जान पहचान वाले कुछ घरों में सावित्री को साफ़ सफाई का काम दिला सकते है?

  ‘इसकी कोशिश मैं कर सकता हूँ।’-मैंने  कहा।

  ‘ इस दौरान मैं इन के रहने और खाने का इंतजाम अपने कमरे में  कर  सकता हूँ ।

    लेकिन तुम्हारे साथ और भी तो कई लोग रहते  हैं। क्या वे ऐतराज नहीं करेंगे?’ मैंने पूछा।

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    ‘ बाबूजी, इस परदेश में हम सब मिलकर रहते हैं।पहले कई बार मेरे साथियों के मेहमान भी हमारे साथ रहे हैं।गाँव से काम की तलाश में शहर आने वाले लोग कुछ दिन अपने जान पहचान वालों के साथ रहते ही हैं।

  मुझे लगा कि समस्या हल हो गई।लेकिन अभी तो बहुत कुछ होना था।क्योंकि तभी जगन ने कहा—‘बाबूजी,मुझे जय की चिंता है।क्योंकि दिन के समय मेरे कमरे में कोई नहीं होगा,मेरे साथियों के साथ साथ रामधन और सावित्री भी तो काम पर जायेंगे। तब...

   और तब मुझे रमा का ध्यान आया,वह मेरे मित्र रजत की पत्नी है और बेसहारा बच्चों के लिए एक संस्था  चलाती है।वहां बच्चों को कई तरह के हुनर सिखाने के अतिरिक्त पढाया भी जाता है।    

     ‘मैं जय को लेकर रमा के पास गया।उन्हें पूरी बात बताई। रमा ने जय का सिर सहलाते हुए कहा-जय जैसे और भी कितने ही बच्चे हैं यहाँ।फिर वह हमें एक बडे  कमरे में ले गईं। वहां दस  बारह बच्चे काम करते दिखाई दिए।कोई कागज के फूल बना रहा था तो कोई कपडे की रंगीन कतरनों से खिलौने। जय बड़े ध्यान से बच्चों को देख रहा था। आज तक तो उसने ढाबे में बर्तन मांजे थे और खूब पिटाई खाई थी। क्या मैं यहाँ पढाई करूंगा?’उसने मुझ से पूछा पर जवाब रमा ने दिया—‘ तुम्हें यहाँ बहुत कुछ करने का अवसर मिलेग|’

  मैंने रमा से पूछा था’-- बच्चे दस्तकारी का जो सामान तैयार करते हैं उनका आप क्या करती हैं?’

 ‘शहर में ऐसी कई दुकानें हैं जहाँ बच्चो द्वारा तैयार की गई वस्तुओं की बिक्री होती है। उस रकम को इन बच्चों में बाँट दिया जाता है ताकि ये महसूस कर सकें कि उनकी मेहनत की भी कुछ कीमत है। यहाँ बच्चों के  रहने और भोजन की व्यवस्था है।हम कुछ पैसे उनसे इस मद में भी लेते हैं ताकि उन्हें ऐसा न लगे कि वे किसी की दया पर पल रहे हैं।

 दो दिन बाद जगन फिर मेरे पास आया। बोला-जय के साथ चार और बच्चे ढाबे में काम करते थे,वे डर कर भाग गए थे,अब विशाल भाई उन्हें ढूँढ कर ले आये हैं। उन चारों के साथ और भी कई बच्चे आ गए हैं|’ मैंने उसे टोकते हुए कहा-यह विशाल  भाई कौन हैं?’ उसने कहा कि ढाबे वाली जगह उन्हीं की है और वह सामने चाय की दुकान भी चलाते हैं। वह आपसे मिलना चाहते हैं|उन्होंने रम्मू को वहां से जाने को कह दिया है. बच्चों से  ढाबे में काम करवाने की शिकायत के डर से रम्मू ने काम बंद कर दिया है.

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    जगन मुझे रम्मू के  ढाबे के अंदर ले गया। वहां एक बूढा आदमी बच्चो से घिरा बैठा था।वही विशाल  भाई थे। उन्होंने मुझे बताया कि  ढाबे में काम करने वाले बच्चों के साथ कुछ और बच्चे भी चले आये हैं ।अब मैं चाहता हूँ कि सड़क पर जीवन जीने वाले ये बच्चे फिर से सड़क पर वापस न जाएँ।

  ‘हम क्या कर सकते हैं इन के लिए।’-मैं जैसे खुद से यह सवाल कर रहा था।                           

 जवाब विशाल भाई ने दिया-ढाबे की जगह काफी बड़ी है, मैं सोचता हूँ ये बेसहारा बच्चे यहाँ भी तो रह सकते हैं ।

   ‘जरूर रह सकते हैं। बस कुछ चीजों का इंतजाम करना होगा नहाना धोना,भोजन और पढाई।यह कहते हुए मेरे सामने रमा की छवि घूम गई। और फिर मास्टर शंकर भी याद आये। वह बेसहारा बच्चों को पढाना चाहते थे पर उनके एक कमरे वाले घर में इतनी जगह नहीं थी।

   विशाल  ने कहा—‘मैं इन बच्चों को सुबह और शाम का नाश्ता दे सकता हूँ ,लेकिन बाकी कामों में आप की मदद  चाहिए।

  ‘मै और मेरे दोस्त मिलकर इन बच्चों के लिए  दो टाइम भोजन की व्यवस्था किसी ढाबे से कर सकते हैं।मैंने उन्हें रमा और मास्टर शंकर के बारे में न सिर्फ बताया बल्कि उसी शाम दोनों को विशाल के पास भी ले आया। रमा ने कहा—‘ हमारी  टीम  सुबह ९ बजे से इन बच्चो के लिए यहाँ  वर्कशॉप चला सकती है,’ मास्टर शंकर ने कहा कि वह दोपहर २ बजे पढाने आ सकते हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए इतनी बड़ी जगह देख कर वह बहुत खुश थे|

    मैंने कहा-पता नहीं सड़क पर रहते हुए ये अपनी नित्य क्रिया कैसे करते थे,पर यहाँ तो उसका इंतजाम सबसे पहले करना होगा।विशाल भाई ने कहा-इस बारे में मैं पहले ही सोच चुका हूँ। मैंने इस जगह एक शौचालय और गुसलखाना बनवाने का फैसला किया है। इस दौरान मैंने बच्चों का इंतजाम अपने और कुछ पडोसी दोस्तों के घरो में करने का सोचा है,मुझे उम्मीद है मेरे दोस्त लोग मना  नहीं करेंगे। मैंने कसम उठा ली है  कि इन बेसहारा बच्चों को फिर कभी सड़क पर नहीं रहने दूंगा।

    सब कुछ योजना के अनुसार हो रहा है।एक रात मैं बच्चो से मिलने गया तो देखा बच्चे टीवी पर प्रोग्राम देख रहे हैं। विशाल  भाई ने बताया-मेरे घर में तो कलर टीवी चलता है, पुराना यूँही रखा था।इसके भाग जग गए कि इसे बच्चों का साथ मिल गया है। भाई ने अपना बिस्तर  बच्चों के बीच लगा लिया था।पूछने पर बोलेरात में इनसे इनकी सच्ची कहानियां सुनूंगा। हो सकता है इन बच्चों को कोई धोखा देकर यहाँ ले आया हो।

  ‘विशाल भाई,ऐसे लाखों बेसहारा बच्चे होंगे देश की सड़कों पर

   ‘तो समझ लो कि तुम,मैं जगन,रमा और मास्टर शंकर जैसे लोग भी जरूर होंगे उनके साथ।शायद हम सब मिलकर एक सच्चा सपना देख रहे थे।( समाप्त)  

 

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