Saturday 24 December 2022

चढ़ता पानी-कविता-देवेंद्र कुमार ==

 

    चढ़ता पानी-कविता-देवेंद्र कुमार

                             ==

धन्यवाद ईश्वर

नदी बहाने के लिए

धन्यवाद इंजीनियर

मजबूत पुल के लिए

सुरक्षित खड़ी है भीड़

तमाशा चढ़ते हुए पानी का

देख रहे हैं  हम सब               

सुना है कहीं पीछे

लील गई नदी गाँव के गाँव

==

पानी चढ़ता जा रहा है

पुल के खम्भे पर बना खतरे का निशान

उछलता  पानी छू  रहा है उसे

उत्तेजित सनसनी

नदी  कब पार करेगी खतरे  का निशान

चर्चा हो रही है.

बिक रहा है नाश्ता

और गुब्बारे लाल नीले

लग रही है शर्त

बढ़ेगा कितना और पानी 

अरे यह क्या!

चढ़ना रुक गया पानी का

नदी उतार पर है

निराश हो गए लोग

मतलब खतरे का निशान

रह जाएगा अनछुआ

चलो घर चले

अब कुछ नहीं होगा यहां

उतार पर है सनसनी

उतरते पानी की तरह

रुको जरा देखो ,अरे

लहर  ने  फिर सिर उठाया है

देखो देखो खतरे का निशान

अब डूबने ही वाला है. 

ठहर जाओ

देख कर ही चलेंगे

डूबना खतरे के निशान  का

तालियां -लहर फिर उछली

नहीं मानेगी

जरूर पार करेगी

लाल निशान 

न मानेगी नदी

न घर जाएंगे हम

तमाशा अधूरा छोड़ कर

       ==

 

No comments:

Post a Comment