Tuesday 13 December 2022

माँ नहीं -संस्मरण -देवेंद्र कुमार

 

 

माँ नहीं -संस्मरण -देवेंद्र कुमार  

 

जब भी अतीत की गलियों में जाता हूँ तो सबसे पहली छवि माँ की दिखाई देती हैऔर मैंने संस्मरण का नाम रखा है _  माँ नहीं’ । यह कैसी उलटबांसी है! माँ थी, जीती जागती, मुझे छूने को हाथ बढ़ाती , मेरी ओर आती हुईलेकिन माँ जितना मेरी तरफ बढती थी मैं उतना ही पीछे खिसक जाता था, मन करता था जाकर उनकी गोद में लेटकर आँखें बंद कर लूं , उनकी स्नेहिल उंगलियाँ मेरे माथे को थपकती रहें और मुझे गहरी नींद आ जाएलेकिन ऐसा न   हुआऐसा होना चाहिए था पर नहीं हुआ

मैंने नानी से सुना था मेरे पिता रामपुर में डाक्टर थे, मैं उन्हें नहीं देख सकाउन्हें न जाने किसने जहर दे दिया थातब मैं एक वर्ष का भी नहीं थामाँ मुझे लेकर दिल्ली आ गई थीं नानी के पासयह नानी का दूसरा दुःख थाक्या यह एक संयोग था ? मेरे नाना देहरादून में फारेस्ट अफसर थेउनकी मौत भी जहर दिए जाने से हुई थीकोई सम्पत्ति विवाद थानानी मेरी माँ को लेकर दिल्ली आ गई थीं तब मेरी माँ एक वर्ष की थीं 

माँ की दूसरी शादी कर दी गईमाँ ने इसका बहुत विरोध किया थावह मुझे पढ़ा- लिखा कर बड़ा करना चाहती थींये बातें बाद में नानी मुझे टुकड़ों टुकड़ों में बताया करती थींमाँ का दूसरा विवाह मंदिर में सादे ढंग से हुआ थाउस समय मुझे किसी के साथ कहीं भेज दिया गया थामाँ मेरे लिए जैसे एकदम गायब हो गईं थींमैं जब माँ को बुलाता था तब नानी कहती थीं –‘ कहीं काम से गई है तेरी माँ अभी आ जायेगी,’

माँ कुछ समय बाद आईं यह तो मेरी माँ नहीं थीउनके साथ एक अनजान आदमी थावह मेरा डाक्टर पिता नहीं थामाँ लाल साडी में थींउन्होंने कोठे में जाकर मुझे गोद में भर लिया और जोर से रो पड़ींमुझे प्यार करने लगींमैं उनकी पकड़ से छूट कर बाहर भाग आयामुझे माँ पर बहुत गुस्सा आ रहा थाआखिर मुझे छोड़ कर वह कहाँ चली गई थीं? और वह अनजान आदमी कौन था? क्या वही माँ को मुझसे छीनकर ले गया था? माँ दो दिन घर में रहीं और फिर उस आदमी के साथ चली गई इस बीच मैं माँ के पास नहीं गयावह जब भी मुझे गोद में भरतीं मैं छिटक कर दूर भाग जाताऔर तब मैं उन्हें रोते हुए देखता मैं नाराज़  क्यों न होतावह मुझे बिना बताये उस अनजान आदमी के साथ चली जो गई थीं

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बड़ा विचित्र था माँ का और मेरा सम्बन्ध मैं उन्हें अपना अपराधी मानता थाइसलिए जब वह कुछ दिनों के लिए मेरे साथ होतीं तो मैं उनसे दूर-दूर भागतामैं उन्हें देखता दिन में कई बार नानी से लिपट कर रोते हुएउनका सारा समय मुझे अपने पास बुलाने  और गोद में लेकर प्यार करने की कोशिश में बीत जाता थामेरी नानी कहती-‘ अरे, पूरनजी से नमस्ते तो कर ले।’ पर मैं कभी ऐसा न करतामाँ के नए पति का नाम पूरन चन्द्र थामैं उस आदमी को अपने पिता की जगह कैसे मान सकता थामुझे बाद में पता चला था कि उसकी पहली पत्नी मर गई थी और मेरी माँ को उसके पांच बच्चों की सौतेली माँ बनना पड़ा थाउसकी सबसे बड़ी लड़की मेरी माँ की उम्र की थी यह सब बहुत बाद में बताया था नानी ने

मैं नानी से पूछना चाहता था कि माँ मुझे अपने साथ क्यों नहीं ले गई थीं? यह बहुत बाद में समझ आया कि जबरदस्ती दूसरी शादी होने और मुझे साथ न जा सकने का कारण उनका औरत होना थावह अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकी थीं

 एक रहस्य मेरे सामने राघव ने खोला थावह हमारी गली के पास दूसरी गली में रहते थे मैंने उन्हें कभी अपने घर में आते नहीं देखा थावह जब जहां मुझे देखते तो प्यार करने लगतेएक दिन मैंने नानी से राघव के बारे में पूछा तो वह राघव को गालियाँ देने लगींकहा-राघव बहुत खराब आदमी हैउससे कभी मत मिलनाउनकी बात मेरी समझ में नहीं आई  एक दिन पता चला राघव को चोट लगी हैमैं नानी से छिप कर उनके घर चला गयाराघव ने मुझे माँ का फोटो दिखायामें हैरान रह गयाभला उनके पास मेरी माँ का फोटो कैसे था! उन्होंने खुद बताया कि वह माँ को पढ़ाने हमारे घर जाया करते थेवह माँ से शादी करना चाहते थेउन्होंने मुझे भी माँ के साथ ले जाने की बात कही थीपर उनके हमारे घर में घुसने पर रोक लगा दी गई, और फिर माँ की शादी उम्र में माँ से काफी बड़े ,पांच बच्चों के पिता के साथ कर दी गई थीपता नहीं ऐसी क्या मजबूरी रही होगीनानी ने इस बारे में कुछ नहीं बताया

माँ के इस तरह हो कर भी न होने का सबसे बुरा असर मेरी पढाई पर पड़ागणित के मास्टर जैमल सिंह बहुत मारते थेऔर गणित मेरी सबसे बड़ी आफत थाऐसा कोई दिन नहीं जाता था जब मार न पड़ी होइसका आसान हल यही सूझा कि मैं स्कूल ही न जाऊंमैं स्टेशन चला जाता था और वहाँ सारा दिन बिता कर छुट्टी के समय घर पहुँच जाता था

इस बीच माँ वर्ष में एक बार कुछ दिनों के लिए आती रहीं और मैं सदा दूर ही भागता रहाअब तक यह समझ आ चुका था कि माँ पांच बच्चों के पिता से छूट कर कभी मेरे पास लौटने वाली नहींएक वर्ष माँ नहीं आईं शायद कोई बीमार थामैं उनसे मिलने को बैचैन हो उठानानी ने मेरी बैचेनी समझ लीबोलीं-‘ जब वह आती है तब उससे दूर भागता रहता हैअब क्यों बैचैन हो रहा है ।’ मैं भला क्या कहतापर हर बीतते दिन के साथ मेरी परेशानी बढती जा रही थीएक रात नींद खुल गई और ऐसा लगा कि अब माँ को कभी देख नहीं पाऊंगामेरी आँखों से आंसू बहने लगे नानी को पता न चलावह गहरी नींद में थींऔर मैंने निश्चय कर लिया कि माँ से मिलने जाऊँगा

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कैसे जाऊँगा ,किसके साथ जाऊँगा यह पता नहीं थाहाँ यह बात नानी को किसी कीमत पर नहीं बतानी थीमैंने बहुत सोचा पर माँ के पास गुप चुप पंहुचने का कोई तरीका नहीं सूझाउन दिनों माँ महू में रहती थीं जो इंदौर के निकट हैउस समय मैं इस बात को भूल गया था कि जब वह नानी के पास आती थीं तब मैं  उनकी छाया से भी दूर भागता थापता नहीं क्यों यह बात मेरे मन में जड़ जमा कर बैठ गई थी कि माँ बीमार होने के कारण ही उस बार नानी के पास नहीं आई थींमैं जितना सोचता उतनी ही चिंता बढती जाती

उस दिन मैं स्कूल न जाकर स्टेशन चला गयापुल पर खड़ा हुआ आती-जाती गाड़ियों को देखता रहाफिर मन में विचार कौंधा और मैं उछल पड़ाअरे अगर मैं रेल लाइन के साथ साथ चलता जाऊं तो गाडी की तरह महू पंहुच सकता हूँमैंने इसी तरह माँ के पास पहुँचने का इरादा बना लियारात में मैंने सोच लिया कि कैसे क्या करना हैमैं जानता था कि नानी को इस बात  की भनक भी नहीं लगनी चाहिएसुबह उठ कर मैंने बस्ते से किताबें निकाल कर कोठे में छिपा दीं फिर उसमें एक पाजामा -कमीज रख लींमेरे पास बस दो रूपये का नोट थानानी पूजा कर रहीं थीं और मैं माँ से मिलने निकल पड़ाउस समय मैं और कुछ नहीं सोच रहा थास्टेशन पहुँच कर मै रेल लाइन के साथ वाली पगडण्डी पर चलने लगामेरे पास से थोड़ी थोड़ी देर बाद गाड़ियां गुजरती जा रहीं थीं

जनवरी का महीना थाठंडी हवा चल रही थीधूप भली लग रही थीचलते हुए नानी की याद भी आ रही थीपता नहीं वह मुझे कहाँ- कहाँ ढूँढ रही होंगीकहीं उन्हें बिना बताये आकर मैने गलती तो नहीं कर दीलेकिन फिर माँ की याद आई और मैं बढता रहादोपहर ढलने लगी,धूप हलकी पड़ गईहवा ठंडी हो गई थीमैं एक स्टेशन के पास पहुंचा तो अँधेरा होने लगा थाअब याद नहीं कि वह कौन सा स्टेशन थाशायद ओखला था, मैं वेटिंग रूम में चला गयाइतनी बात समझ में आ रही थी कि रात के अँधेरे में रेल लाइन के साथ- साथ नहीं चला जा सकेगा

वेटिंग रूम सब तरफ से खुला हुआ थाबर्फ सी ठंडी हवा बदन में चुभने लगीमेरे पास ओढने को कुछ नहीं थामैंने देखा वहां बैठे सभी लोग चादर और कम्बल में लिपटे हुए थेइस तरह घर से आकर शायद   मैंने बड़ी भूल कर दी थीलेकिन अब भला क्या हो सकता थामैं घुटनों  में सिर दबा कर बैठा रहामेरे दांत किटकिटा रहे थेपता नहीं मैं कब तक इस तरह बैठा रहातभी किसी ने मुझे छुआ , एक आदमी मेरे पास खड़ा थाउसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा-‘आओ बच्चे।’ वह मुझे वेटिंग हाल के कोने में ले गयाबोला-‘यहाँ बैठ जाओ।’ मैंने देखा वहां कम्बलों पर कई लड़के बैठे थेवे चाय पीते हुए कुछ खा रहे थेउस आदमी ने चाय का गिलास थमा कर कहा-‘ चाय पी लो।’ कुछ बिस्किट भी दिएमुझे ठण्ड और भूख दोनों परेशान कर रही थींमें चाय पी रहा था तो उसने मुझे कम्बल ओढा दियामुझे चैन मिला

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                   उसने पूछा-‘ घर से भाग कर आये हो?’

मैंने कहा-‘ नहीं, मैं भाग कर नहीं आयामैं माँ के पास जा रहा हूँ। ‘

साथ में और कौन है?’

कोई नहीं।’

माँ कहाँ है?’

  मैंने कहा-‘ महू। ‘

   वह मुझे घूरता रहा।’ जानते हो महू कितनी दूर है?’

   मैंने बता दिया कि कैसे जा रहा हूँ

मैं  भी महू से हूँ। ‘ फिर उसने बताया कि वह नाटक मण्डली लेकर जगह- जगह घूमता हैउसने वहां बैठे लड़कों की ओर इशारा कियामैंने देखा- उनमे कई मेरे जितने थेउस आदमी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा-‘ बच्चे , अपनी नानी के पास लौट जाओमाँ के पास इस तरह कभी नहीं पहुँच सकोगे। ‘

मैंने कहा-‘ मुझे माँ के पास जाना है।’ थकान से मेरी आँखें बंद हुई जा रही थींमैं कब सो  गया पता न चलाएकाएक इंजन की सीटी ने मुझे जगा दियामैं हडबडा कर उठ बैठामैरे उठते ही एक लड़के ने बिछा हुआ कम्बल समेट लियामैंने देखा- वे तैयार खड़े थेउस आदमी ने कहा-‘ बच्चे, हमें गाडी पकडनी हैजाओ नानी के पास लौट जाओ।’

मुझे माँ के पास जाना है।’ मैंने कहामैं उन्हें प्लेटफार्म पर लगी गाडी में सवार होते हुए देखता रहाअब मुझे आगे जाना था, जाने से पहले उस आदमी ने मुझे कुछ पैसे दिए थेकहा था-‘ नानी के पास लौट जाओ। ‘ मैं चुप खड़ा देखता रहालेकिन आगे जाना न हुआकुछ देर बाद मैंने नानी को वहां आते देखाउनके साथ हमारे कुछ रिश्तेदार भी थेनानी ने मुझे लिपटा  लिया और आंसू बहाने लगींमै हैरान था कि उन्हें मेरे वहाँ होने बात कैसे पता चलीउन्होंने बाद में बताया था कि गली के एक आदमी ने मुझे वहाँ देख लिया था और तुरंत जाकर नानी को खबर दे दी थी

माँ को भी इस बात की खबर मिल गई थीऔर दो दिन बाद वह नानी के पास आ गई  थींमुझे देख कर उन्होंने मेरी ओर हाथ बढाया तो मैं भाग कर गली में निकल आया , मैं उनसे नाराज थाउनसे बात नहीं करना चाहता था।।

                                            ( समाप्त )

 

 

 

 

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