Monday, 12 December 2022

मेरी माँ--कहानी--देवेन्द्र कुमार ================

 

 

              

                          मेरी माँ--कहानी--देवेन्द्र कुमार

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  मुझे बाज़ार जाने के लिए रिक्शा की तलाश थी। आसपास कोई रिक्शावाला दिखाई नहीं दे रहा था।   मैं इधर उधर देखता खड़ा था,तभी एक रिक्शा मेरी ओर आती नजर आई। रिक्शा चालक को देख कर मैं चौंक गया। वह तो कोई बच्चा लगा मुझे। वह रिक्शा चला नहीं पा रहा था। आखिर एक बच्चे को इस छोटी उम्र में रिक्शा खींचने की क्या जरूरत आ पड़ी थी। वह मुझसे रिक्शा में बैठने को कह रहा था, पर मैंने मना कर दिया। इतने में एक और रिक्शा आ गई। मैं  उस में बैठने लगा तो पहले वाला मुझसे  चिरौरी करने लगा। बोला-‘बाबू, मेरी रिक्शा में बैठ जाओ न। आज तो मुझे खाना भी नहीं मिला है। 

  मैंने बाज़ार जाने का विचार छोड़ दिया। लगा कि पहले इस बच्चे से बात करनी चाहिए। और मैं उसे सामने वाले ढाबे में ले गया।   उसके लिए खाना और अपने लिए चाय मंगवा ली। मैं उसकी कहानी जानना चाहता था। मैंने देखा वह खा नहीं रहा है। मैंने कहा-‘तुम कह रहे थे न कि सुबह से कुछ नहीं खाया है, फिर खा क्यों नहीं रहे हो!’

  ‘आप ने मेरी रिक्शा में सवारी तो की नहीं,मैं मुफ्त में नहीं खाऊंगा,’ वह बोला। उसकी बात मुझे                                                                          अच्छी लगी। मैंने कहा-‘ तुमने ठीक कहा, मुफ्त में किसी से कभी कुछ नहीं लेना चाहिए। मैं इस भोजन के बदले तुमसे कोई काम ले लूँगा। अब तो खा लो।’ वह खाने लगा। उसे खाते हुए देख कर लग रहा था कि वह सचमुच बहुत भूखा था। इस बीच मैं उसके परिवार के बारे में पूछता रहा।   उसका नाम जगन था। उसने बताया कि उसके पिता बहुत गुस्सैल हैं। बात बेबात उसके साथ मार पीट किया करते थे, इसीलिए वह घर से भाग आया है। माँ के बारे में पूछते ही उसकी आँखों में आंसू भर आये। बोला-‘पिता जितना मार पीट करते थे माँ उससे ज्यादा प्यार करती थीं। ’

  ‘तो माँ ने तुम्हें नहीं रोका यहाँ आने से?’

  ‘पिता के आगे माँ क्या करती भला। उनका प्यार मुझे पिटने से तो नहीं बचा सकता था।  इसीलिए मैं भाग आया। 

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  ‘माँ की याद तो आती होगी, कभी उनसे बात करते हो?’

  हम दोनों के पास मोबाइल नहीं है,बात कैसे हो? यहाँ मेरे गाँव के कई जने हैं,वही मेरी बात माँ को बताते हैं और उनका संदेसा मुझे लाकर देते हैं। जगन ने बताया ’वैसे माँ जल्दी ही मुझसे मिलने आएँगी,अभी हाल में उन्होंने कहलवाया है।‘ 

  ‘यह तो बहुत अच्छा होगा। मुझे भी मिलवाना अपनी माँ से।‘ फिर मैं चला आया। पर जगन की बात मन में घूमती रही। जहाँ मैंने जगन को खाना खिलाया था उस ढाबे का मालिक मुझे अच्छी तरह जानता था। मैंने जगन के बारे में उससे बात की तो वह जगन को काम पर रखने को राजी हो गया। ढाबे में ही उसके सोने का इंतजाम भी हो गया। मुझे तसल्ली हो गई थी और जगन भी खुश था। जब भी मैं ढाबे के सामने से गुजरता तो उसका हाल चाल पूछ लेता। ढाबे का मालिक जगन के काम से संतुष्ट था।   

  एक दिन जगन ने मुझे मोबाइल दिखाया। प्रसन्न स्वर में बोला-‘मालिक ने मुझे यह मोबाइल दिया है,अब मैं माँ से भी बात कर सकता हूँ।‘ 

  ‘पर तुमने कहा था न कि तुम्हारी माँ के पास मोबाइल नहीं है। फिर..’ 

  ‘हाँ यह तो है। ’-जगन ने कहा। तभी ढाबे वाले ने उसे आवाज दी और वह अंदर चला गया। पर माँ के प्रति उसकी ललक साफ़ झलक रही थी,क्या जगन अपनी माँ से कभी मिल पायेगा! मैं यही सोच रहा था। 

  उस दिन दरवाजे की घंटी बजी,देखा तो जगन खड़ा था। मुझे आश्चर्य हुआ, इससे पहले तो वह कभी नहीं आया था। मैं कुछ पूछता इससे पहले ही उसने उत्तेजित स्वर में कहा- ‘जल्दी चलिए, माँ आई है, ढाबे में चाय पी रही है। आप उनसे मिल लो।‘ 

  मैं उसके साथ ढाबे पर जा पहुंचा। जगन एक औरत को बाहर बुला लाया। मैंने नमस्ते करके उससे पूछा-‘क्या आप जगन की माँ हैं?

  ’हाँ।‘ उस  ने कहा। मुझे कुछ अजीब लगा। वह जगन से दूर खड़ी हुई थी जैसे उसे जानती न हो।   क्या यही प्यार था एक माँ का इतने समय से बिछड़े हुए बेटे के लिए!           

   ‘इसे अपने साथ ले जाओ या यहाँ इसके साथ रहो।’-मैंने कहा। जगन की माँ ने मेरी बात का कोई 

जवाब नहीं दिया। बोली- ‘मुझे काम है।‘ और फिर वह जगन की ओर देखे बिना चली गई। जगन ने जैसे मेरे मन को पढ़ लिया, बोला-‘माँ को कोई काम था इसलिए जाना पड़ा।‘ और ढाबे में चला गया।  मैं जगन की माँ के अजीब व्यवहार के बारे में सोच रहा था,तभी एक रिक्शावाला मेरे पास आया।  उसने कहा-‘तो जगन ने आपको अपनी नकली माँ से मिलवा दिया।’

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  ‘नकली माँ!’-मैंने अचरज के भाव से पूछा। 

  ‘और नहीं तो क्या। जगन ने जिस औरत से आपको मिलवाया, वह उसकी कोई नहीं है। वह मेरे एक साथी की माँ है। जगन ने मेरे साथी से कई बार कहा कि वह अपनी माँ को कुछ देर के लिए उस की माँ बनने को कह दे, ताकि उसे अपनी माँ कह कर आप से मिलवा सके। इसके लिए उसने हम सब को ढाबे में चाय भी पिलवाई। 

  ‘मेरे सामने इतना नाटक क्यों?’-मुझे जगन पर गुस्सा आ रहा था। 

  ‘बाबूजी, वह आपकी बहुत इज्जत करता है।आपने उसकी इतनी मदद जो की है।‘ 

  ‘झूठा,फरेबी।‘- मैंने कहा। 

  ‘जगन कई सालों से अनाथालय में रह रहा था, पर वहां से भी निकाल दिया गया उसे।‘रिक्शा वाले ने जगन के बारे में एक चौंकाने वाली जानकारी दी |

  ‘लेकिन वह तो गाँव से भाग कर यहाँ आने की बात बता रहा था मुझे।‘गुस्सैल पिता और ममतामयी माँ के बारे में कहे गए उसके शब्द कानों में गूंजने लगे। और एक दिन मैं उस अनाथालय में जा पहुंचा जहाँ से जगन को निकाल दिया गया था। वहां के मैनेजर ने बताया कि जगन दूसरे बच्चों के साथ अक्सर झगड़ा करता था। वह कहा करता था कि गाँव में उसकी माँ रहती हैं और वह उनके पास चला जाएगा। इस पर दूसरे बच्चे उसका मजाक उड़ाते थे।बस आपस में मार पीट हो जाती थी। एक बार किसी बच्चे ने उसे ‘बिना माँ का झूठा जगन’ कहा तो जगन ने उसे खूब मारा। उसकी शरारतों से तंग आकर जगन को  अनाथालय से निकाल दिया गया।   

  ‘क्या गाँव में उसकी माँ और गुस्सैल पिता की  कहानी झूठी थी ? आखिर सच क्या था?उस शाम मैं यह निश्चय करके ढाबे पर गया था कि उसके झूठ की पोल खोल कर रहूँगा और इसके बाद फिर कभी उससे नहीं मिलूँगा। मुझे देखते ही वह बाहर आ गया।बोला-‘माफ़ करना बाबूजी,उस दिन माँ को जरूरी काम था इसलिये वह जल्दी चली गई थीं उन्होंने कहा है कि अगली बार आयेंगी तब वह आपसे खूब बातें करेंगी।’

  यानि वह अब भी अपनी उस माँ की कल्पना में खोया हुआ था जो कहीं थी ही नहीं।शायद  मैं उसकी आँखों में ममतामयी माँ की छवि देख पा रहा था! पता नहीं क्यों मुझे अपना गुस्सा पिघलता हुआ लगा। वह अपनी 'माँ 'की  कल्पना में खोया हुआ था। और फिर  मैंने अपना इरादा बदल दिया। मैं उसके सपने को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था। मैंने कहा-‘ठीक है जब अगली बार तुम्हारी माँ आएँगी तो हम तीनों खूब बातें करेंगे।‘ 

  ‘वाह तब तो खूब मज़ा आएगा।’-कह कर जगन खिलखिला उठा। मुझे भी हंसी आ गई। मैं न चाहते हुए भी उसके सपने में शामिल हो गया था।  (समाप्त)       

 

             

                

              

                          

                

           

 

 

  

 

 

 


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