फूल जैसी लड़की(HEIDI) -लेखिका -योहन्ना स्पायरी-(रूपान्तर
=देवेंद्र कुमार)
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एक थी लड़की सुन्दर सलोनी लेकिन अनाथ।
उसके पिता एक दुर्घटना में मारे गए इसी दुःख में माँ भी चली गई। नन्ही हाइडी को उसकी मौसी ने पाला था।वह स्विट्ज़रलैंड के एक गांव में रहती थी, तभी एक समस्या आ
गई। हाइडी की मौसी को शहर में नौकरी मिल
गई।वह हाइडी को अपने साथ नहीं ले जा सकती थी।अब क्या किया जाये -यही सोचते
हुए उसे हाइडी के बाबा का ध्यान आया। बाबा गाँव से दूर पहाड़ी पर अपनी कुटिया में
रहते थे।किसी से नहीं मिलते थे। उन्होंने कभी हाइडी की भी खोज खबर नहीं ली थी। गाँव वाले उन्हें सनकी बूढा कहते थे।
मौसी हाइडी को बाबा के पास छोड़ने चल दी। प्रश्न
यही था -क्या बाबा हाइडी को अपने पास रखने को तैयार होंगे !आज तक तो उन्होंने अपनी पोती कोई भी खबर नहीं ली थी| अब जो भी हो, हाइडी की मौसी को तो
नौकरी पर जाना ही था।
मौसी हाइडी को लेकर बाबा के पास जा पहुंची| बाबा कुटिया के बाहर बैठे थे। मौसी कुछ कहती इससे पहले ही
हाइडी ने बाबा को हेलो
कहा और उनसे जा लिपटी। कुछ इस तरह जैसे वह बाबा को बहुत अच्छी तरह जानती हो। हाइडी की मौसी ने उन्हें सब कुछ बता दिया। कुछ इस तरह जैसे कह
रही हो -अब आपको हाइडी की देख रेख करनी होगी।
बाबा उलझन में पड गए| वह समझ नहीं
पा रहे थे कि नन्ही हाइडी कैसे रहेगी उनके साथ , उधर हाइडी बाबा की कुटिया में घूम रही थी। सोच रही थी-मेरे
बाबा की कुटिया कितनी सुन्दर है|बाबा ने हाइडी की मौसी से क्रोधित स्वर में कहा –‘जाओ,चली जाओ। फिर कभी मत आना यहाँ।’ पर उन्होंने हाइडी कुछ नहीं कहा। क्या उन्होंने अपनी पोती को अपना
लिया था? हाइडी
का भोला चेहरा देख कर मन में स्नेह जाग उठा। वह सोच रहे थे-आखिर इस नन्ही
मुन्नी का क्या कसूर है। मैंने पहले इसकी
खबर क्यों नहीं ली।‘
जल्दी ही हाइडी का परिचय पीटर से हो गया। वह उम्र में हाइडी से
बड़ा था। पीटर चरागाह में बकरियां चराता था।दोनों दोस्त बन गए,हाइडी पीटर के साथ खूब घूमती थी। सर्दी के मौसम में पीटर बकरियां चराना
छोड़ स्कूल जाता था। एक दिन पीटर ने बाबा से
कहा -'कभी हाइडी के साथ हमारे घर आइये।' एक दिन बाबा हाइडी के साथ पीटर के घर
गए बर्फ गाडी –स्लेज- में बैठ कर}| उस
दिन बर्फ गिर रही थी। हाइडी को बहुत मज़ा आया।पीटर की दादी देख नहीं पाती थी। उन्होंने हाइडी का चेहरा छू कर उसे प्यार किया।
इसी तरह दो वर्ष
बीत गए हाइडी ने वहां मौसम के कई रंग देखे थे। उसकी नन्ही दुनिया में थे -उसके
प्यारे बाबा, पीटर,उसकी माँ और नेत्रहीन दादी।और थे नीला आकाश,हरीभरी धरती,गिरती बर्फ,उछलते झरने,सुगंध भिखेरते रंग बिरंगे
फूल|
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लेकिन एक बार फिर समस्या हो गई। हाइडी की मौसी
उसे वापस ले जाने आ पहुंची थी। उसने बाबा से
कहा-'शहर में एक बच्ची बीमार है। उसका नाम क्लारा है। वह अमीर
आदमी की बेटी है। क्लारा के पैर खराब हैं, वह चल फिर नहीं सकती। व्हील चेयर पर बैठी रहती है। उसके पिता सीसमान व्यापार के सिलसिले में
अक्सर शहर से बाहर रहते हैं। क्लारा की माँ नहीं हैं।घर में नौकर तो हैं पर क्लारा
का कोई दोस्त नहीं है, अगर हाइडी उसके साथ रह
सके तो बहुत अच्छा होगा। इससे हाइडी का जीवन
भी बदल सकता है। यह शहर में रहकर पढाई कर सकती है,इसके नये दोस्त बन
सकते हैं। ‘
लेकिन बाबा ने हाइडी को भेजने से मना कर दिया। तभी उन्हें काम से कहीं जाना पड़ा। अब
मौसी को मौका मिल गया। भोली हाइडी मौसी के बहकावे में आ गई। किसी
तरह बहला फुसला कर मौसी उसे अपने साथ शहर ले गई। क्लारा हाइडी को देख कर
बहुत खुश हुई'।उसे अकेलेपन की सहेली मिल गई थी। हाइडी को
बाबा की याद आ रही थी। पर उसे क्लारा से भी सहानुभूति हो गई ,सोचती थी--'क्लारा के पैर
कैसे ठीक होंगे।‘ कुछ दिन बीते, क्लारा को हाइडी का साथ अच्छा लगता था,पर हाइडी उदास रहने लगी थी। क्लारा के
पिता का घर बहुत शानदार था। लेकिन हाइडी को तो खुले वातावरण में, हरियाली के बीच रहने की आदत थी।
क्लारा की गवर्नेस रोटेनमॉयर कड़े स्वाभाव की थी।
वह हाइडी को अनपढ़ गंवार समझती थी और उसे डांटती रहती थी। हाइडी का मन बैचैन रहने लगा। उसे हर पल अपने प्यारे
बाबा की याद आती रहती थी। वह जैसे भी हो बाबा के पास लौट जाना चाहती लेकिन यह नहीं
हो सकता था। वह गांव से दूर अनजान शहर में थी।
कुछ दिन बाद क्लारा के पिता घर लौट आये। क्लारा
ने उनसे हाइडी की बहुत तारीफ की। बेटी को खुश देख कर सीसमान संतुष्ट हो गए।
फिर क्लारा की दादी वहां आई। वह क्लारा के लिए सुन्दर चित्रों से सजी कहानियों की किताब लाई थी। हाइडी किताब के पन्ने पलटने लगी, कई चित्र पहाड़
और देहात के थे। चित्रों में पहाड़,हरे भरे चरागाह और रंग बिरंगे फूल देख कर हाइडी रोने लगी। उसकी पीड़ा भला कौन
जान सकता था|
एक सुबह नौकर घर का दरवाज़ा खोलने गया तो देखा
द्वार खुला हुआ था। नौकर ने द्वार अपने हाथ से बंद किया था, तो रात में द्वार किसने खोला और क्यों ! सीसमान ने पता
लगाने का निश्चय किया और रात में छिप कर
बैठ गए | कुछ देर बाद सीसमान
ने देखा कि किसी ने द्वार खोला। टार्च के प्रकाश में हाइडी नज़र आई।आखिर
द्वार क्यों खोला था हाइडी ने! पूछने पर वह कुछ न बता सकी।उसे डाक्टर को दिखाया
गया |डाक्टर ने जांच की तो पता चला हाइडी नींद में
चलती थी। हाइडी के बारे में पूरी
बात जान कर डाक्टर ने सीसमान से कहा-' बच्ची को उसके गाँव भेज
देना चाहिए| उसका मन अपने
बाबा से मिलने के लिए बैचैन है|”
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हाइडी
के जाने की बात सुन कर क्लारा उदास हो गई। पर क्लारा के पिता ने बेटी को समझा
बुझा कर हाइडी को नौकर के साथ उसके गाँव
भेज दिया। बाबा से लिपट कर हाइडी खूब रोई ,बाबा की आँखें भी बरस रही थीं।
शहर में क्लारा बहुत उदास रहने लगी थी। हाइडी उसके लिए ख़ुशी बन कर आई थी जो उससे छीन ली गई
थी। हाइडी से मिलने को बैचैन थी क्लारा। उसकी उदासी कैसे दूर हो सकती थी!
सर्दियों का मौसम था, गांव में बर्फ गिर रही थी। हाइडी को अब क्लारा की याद आ रही थी।कैसी होगी वह? इस मौसम में हाइडी कहीं जा नहीं सकती थी।बाबा ने तय किया कि वह हाइडी को नीचे गांव में ले जाएंगे | गांव के लोग हैरान थे- बाबा इतने
वर्षों बाद गाँव में कैसे आ गए। वहां
हाइडी पीटर और उसकी नेत्रहीन दादी से मिली।
मौसम बदला और हाइडी के बाबा को क्लारा का पत्र
मिला |वह हाइडी से मिलने आ रही थी। बाबा ने हाइडी को
बताया तो वह बहुत खुश हुई। वह क्लारा को भूल नहीं पाई थी। क्लारा के साथ उसकी दादी
भी आई थी। साथ में एक नौकर क्लारा की व्हील चेयर ले कर आया था। हाइडी और उसके बाबा
क्लारा को व्हील चेयर में दूर तक घुमाने ले जाते। क्लारा का सारा समय अब तक घर के अंदर ही बीता था। गांव
की ताज़ी हवा ने जैसे उसका कायाकल्प कर दिया।
लेकिन अब क्लारा
को शहर वापस जाना था। हाइडी के बाबा ने
क्लारा की दादी से कहा-'क्यों न आप क्लारा को मेरे पास रहने दें। यहाँ
रहकर क्लारा बहुत खुश है, उसे हाइडी का
साथ अच्छा लगता है। मैं और हाइडी उसका खूब ध्यान रखेंगे।’ क्लारा भी यही चाहती
थी। उसकी दादी मान गईं।
अब क्लारा का पूरा दिन हाइडी के साथ खुली हवा
में फूलों के बीच बीतता था। उसके पीले गालों का रंग गुलाबी हो चला। बाबा हर सुबह उसके
पैरों की मालिश करते फिर व्यायाम करवाते। उन्हें आशा थी कि एक न एक दिन उसके
पैर जरूर ठीक हो जायेंगे।एक दिन बाबा
दोनों सखियों को चरागाह में छोड़ गए। कुछ दूर रंगारंग फूल खिले थे, हाइडी क्लारा का हाथ पकड़
कर आगे ले गई, -कहा-‘ देखो इन फूलों को।' क्लारा ने कहा -'मैं चल नहीं सकती'।
हाइडी ने कहा -'कोशिश करके देखो। 'तब तक पीटर भी वहां आ गया। क्लारा को दोनों ने थामा हुआ था। क्लारा धीरे धीरे पैर रखने लगी। उसके कदम लड़खड़ा रहे थे पर वह एक के बाद दूसरा
कदम बढ़ा रही थी। यह तो पहली बार हुआ था।फिर तो वह रोज ही चलने का अभ्यास करने लगी।
तब हाइडी और पीटर उसे दोनों और से संभाले रहते थे।
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हाइडी
के दादा ने क्लारा के पिता को पत्र लिखा- -'आप लोग तुरंत आइये।'
सीसमान अपनी माँ के साथ गांव आ पहुंचे।
उन्होंने क्लारा को चलते हुए देखा तो ख़ुशी से रो पड़े,यह तो चमत्कार हो गया था। सीसमान ने बाबा को धन्यवाद दिया तो उन्होंने कहा- हरीभरी धरती,आकाश,पहाड़ और रंगबिरंगे फूलों को
धन्यवाद दो, मुझे नहीं ' उन्होंने आगे कहा-'में बहुत बूढा हो गया
हूँ। मेरे बाद दुनिया में हाइडी का कोई
नहीं है।'
सीसमान और क्लारा की दादी ने कहा -हम हाइडी के
हैं हाइडी हमारी है (समाप्त)
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लेखिका परिचय =योहन्ना स्पायरी =जन्म =१२जून ,१८२७,हिरजाल,स्विट्ज़रलैंड में
निधन =७
जुलाई,१९०१,जूरिख में। कहते हैं हाइडी एक सच्ची कहानी है.लेखिका एक बार हाइडी से मिली
थीं दोनों मित्र बन गई थी ===
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