Monday 15 November 2021

छोले -भठूरे -कहानी-देवेंद्र कुमार

  छोले -भठूरे -कहानी-देवेंद्र कुमार                                     

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  गुलशन के छोले भठूरे बहुत मशहूर हैं।  एक दोपहर गुलशन की दुकान के सामने से गुजरते हुए रजत के पापा नरेश ने कार रोक ली।  रजत,पूर्वा और उनके मम्मी-पापा दुकान पर जा खड़े हुए।   दुकान के बाहर खुली जगह पर कई मेजें लगी हुई थी,कई लोग भठूरों  का आनंद ले रहे थे। कुछ ही देर में इन की मेज़ पर भी गरमा गरम छोले भठूरे की प्लेटें आ गईं।    

  लेकिन खाना शुरू न हो सका,क्योंकि तभी रजत की आवाज़ आई –‘पापा,जरा देखो तो सही यहाँ कितनी गंदगी है। सबकी नज़रें उस तरफ उठ गईं-दुकान के नीचे गंदगी थी, एक मोटा चूहा भी घूम रहा था। नरेश ने गुलशन से कहा-‘ भई,हम इस गंदगी के बीच खड़े होकर नहीं खा सकते, हम जा रहे हैं।’

    यह शिकायत सुनते ही गुलशन घबरा गया गद्दी से उतर कर हाथ जोड़ता हुआ बोला-‘माफ़ करना साहब-इस तरह छोड़ कर मत जाइए। कई दिन से सफाई वाला नहीं आया है,वरना मेरी दुकान पर तो हमेशा खूब सफाई रहती है।फिर मेज पर कपडा मारते छोकरे बदलू से बोला—‘इसे छोड़, पहले दुकान के नीचे से अच्छी तरह से सफाई कर डाल। इसी बीच गुलशन का बेटा श्याम भी झाड़ू लेकर वहाँ आ  गया, वह सात वर्ष का है। अभी तक वह गद्दी पर गुलशन के पास बैठा हुआ स्कूल की किताब पढ़ रहा था। गुलशन ने झाड़ू उसके हाथ से छीनते हुए कहा—‘ तू पढाई छोड़ कर यहाँ झाड़ू लेकर क्या करने आ गया। जा बैठ कर पढ़,यह बच्चों का काम नहीं है।

  ‘ तो फिर बदलू सफाई क्यों कर रहा है?’—श्याम ने कहा। बदलू उम्र में श्याम से एक दो साल ही बड़ा होगा। गुलशन को बेटे की बात ने निरुत्तर कर दिया। कुछ पल वह खामोश खड़ा रहा फिर कढ़ाही  में भठूरे तलते कारीगर चमन से बोला-‘ गैस बंद कर दे, पहले नीचे की सफाई कर डाल।’

  तभी रजत ने नरेश से कहा-‘ पापा, जरा उधर भी तो देखो।’ वह सड़क के पार बने कूड़ा घर की ओर इशारा कर रहा था। नरेश ने देखा कि वहां दो बच्चे कूड़े के ढेर में से चुन कर कुछ चीजें एक बोरे में डाल रहे थे। उसने कहा-‘ पता नहीं बच्चों को यह सब क्यों करना पड़ता है। सभी बच्चों को पढाई और खेलने के अवसर मिलने चाहियें पर...

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  ... पर हमारे देश में कुछ लोग हैं जो बच्चों से मजदूरी ओर ऐसे ही दूसरे काम करवाते हैं और इसलिए इन अभागों को खेल और पढाई के अवसर मिलते ही नहीं।‘ रजत की मम्मी बोलीं,                     

 गुलशन जैसे सोते से जाग उठा था, उसने चमन से कहा-‘ जा जरा कूड़ा घर पर काम करते उन दोनों बच्चो को तो बुला ला।’

  दोनों बच्चे दौड़ते हुए चले आये-फटे पुराने कपडे और हाथ पैर कालिख में सने हुए,सफ़ेद दांत हंस रहे थे। ‘भूख लगी है, कुछ खाना मिलेगा।’

  ‘मिलेगा,पहले हाथ तो धो लो।’-गुलशन बोला। चमन ने दोनों के हाथ धुलवा दिए। बच्चे जमीन पर बैठ गए। नरेश ने कहा-‘वहां नहीं हमारे साथ खड़े होकर खाओ।’ दोनों बच्चे कुछ अचरज के भाव से नरेश के साथ आ खड़े हुए। तब तक चमन सफाई का काम खत्म करके फिर से भठूरे तलने लगा था। 

  दोनों बच्चो के नाम थे बिशन और रोहू। कुछ देर दोनों छोले भठूरे की प्लेटों के सामने चुप  खड़े रहे फिर जब रजत ने कई बार कहा तो खाने लगे। रजत ने पूछा-‘ तुम दोनों कूड़े में क्या करते हो।‘ 

   नरेश बोले-‘इस का जवाब तो इनका पिता ही दे सकता है।’ गुलशन ने कहा-‘वह रहा इनका बापू नवीन।’ उसने कूड़ा घर की ओर बढ़ते हुए एक आदमी की ओर संकेत किया जिसके कंधे पर एक बोरा पड़ा हुआ था। गुलशन ने आवाज दी तो वह चला आया। उसे देखते ही बिशन और रोहू घबरा गए।   नरेश के पूछने पर नवीन जो कुछ बताया वह यह था कि उसके बापू यही करते थे और वह भी अपने बच्चो के साथ कूडे में से काम लायक सामान छांट कर बेचता है, तभी रोटी का जुगाड़ होता है। 

  ‘ बचपन तो पढाई और खेल कूद के लिए होता है।’ रजत की मम्मी ने कहा। 

   ‘मैं जानता हूँ मैडमजी,लेकिन...’  और नवीन के इस ‘लेकिन’ शब्द में ही उस जैसे लाखों परिवारों की दुःख-कथा छिपी हुई थी।   

  नरेश ने गुलशन से कहा- ‘बिशन और रोहू जैसे लाखों बच्चे सारा दिन  कूड़े में खटते हैं, मैं भी हर रोज सडकों पर ऐसे अनेक लाचार बच्चों को देखता हूँ। मैंने कई बार इन बच्चों के लिए कुछ करनेका  विचार किया है,पर आज तक कुछ कर नहीं पाया। अब कुछ तो जरूर करना चाहिए। मेरे पड़ोस में एक अध्यापक रहते हैं।  वह सड़कों पर छोटा मोटा काम करने वाले बच्चों को मुफ्त शिक्षा देते हैं।  किताब कापी देने के साथ वह उन बच्चों को खाना भी खिलाते हैं। मैं उनसे बिशन और रोहू के बारे में बात  कर सकता हूँ। वह जरूर मान जाएँगे।’

   ‘मैं सोचता हूँ कि आप बदलू के बारे में भी मास्टरजी से बात करें। पता नहीं मैंने आज तक बदलू, बिशन और रोहू के बारे में क्यों नहीं सोचा।’ गुलशन ने नरेश से कहा। 

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  ‘बदलू के बारे में भी बात कर लूँगा ,लेकिन उसकी पगार का क्या होगा, क्योंकि वह अपने माँ बाप की मदद के लिए ही तो आपके ढाबे पर काम करता है।’ –नरेश बोले। 

  ‘ बदलू की जगह मैं उसके बाप की मदद ले लूँगा। वह बाज़ार में माल ढोता है। किशन और रोहू का पिता भी मेरी दूकान पर काम कर सकता है। बस आप इन तीनों बच्चों की पढाई की व्यवस्था करवा दें।’ –गुलशन ने कहा। 

  नरेश ने मास्टरजी से किशन,रोहू और बदलू के बारे में बात की तो वह तुरंत राजी हो गए। वह दिन भी आ गया जब किशन,रोहू और बदलू साफ़ कपडे पहन कर नरेश के साथ मास्टरजी के पास पढने के लिए गए। मास्टरजी का घर गुलशन के ढाबे से ज्यादा दूर नहीं था। तीनों बच्चे साथ साथ आते जाते थे। सप्ताह में एक दो बार नरेश भी उनका हाल चाल लेने मास्टरजी के पास चले जाते थे। तीनों बहुत खुश थे। तीनों के घर वाले गुलशन के ढाबे पर काम करने लगे थे।   

  एक दिन नरेश अपने परिवार के साथ गुलशन के ढाबे पर गए तो बरबस उनकी नज़र सड़क पार कूड़ा घर की तरफ चली गई। उन्होंने देखा कि कई बच्चे वहां कूड़ा छांट रहे थे।कानों में गुलशन की आवाज आई-‘ बाबूजी, अभी तो बहुत काम बाकी है।’

  ‘तुमने ठीक कहा-अभी न जाने कितने गुलशन और नरेश चाहियें इस समस्या को हल करने के लिए।’ नरेश ने जवाब दिया।  (समाप्त)

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