Sunday 30 May 2021

मेरे छाते की तरह ==

 

मेरे छाते की तरह

=========

एक दिन

मेरे हाथ में

नया छाता था

और मन में

बार-बार

यही आता था

पूछूं आकाश से

ऐ भाई!

तेरे बादलों का क्या हुआ?

बरसना क्यों भूल गए?

बस,

इसी तरह

जैसे मेरे हाथ में

नया छाता था

और मन में

बार-बार वही वही

आता था।

इसी तरह जुड़ते चले गए

अन्न से अकाल

जीवन से काल

और भी बहुत से सवाल

मुझसे

मेरे छाते की तरह।

      

        ---देवेंद्र कुमार              

--

 

No comments:

Post a Comment