संभल के जाना चिड़िया — कहानी—देवेन्द्र कुमार
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एक थी चिड़िया। वैसे उसका कोई नाम नहीं था, पर हम उसे रानी चिड़िया कह सकते हैं। क्योंकि
वह टोली की प्रमुख थी। तो रानी चिड़िया एक दिन राजमहल के बाग में जा उतरी। उसने
देखा, एक मोटा आदमी
शानदार वस्त्र पहने एक सिंहासन पर बैठा था। उसके बदन पर गहने चमचमा रहे थे। वह
राजा था।
राजा के चारों ओर कई लोग हाथ जोड़े और सिर झुकाए खड़े थे।
वे कह रहे थे, “महाराज की जय हो।
हमारे महाराज अमर रहें।” चिड़िया ने देखा, लोगों की इस प्रशंसा का राजा पर कोई प्रभाव
नहीं हो रहा था। उसकी आँखें बंद थीं। राजा सो रहा था।
एकाएक राजा की नींद टूट गई। वह हिला-डुला, कुछ बड़बड़ाया। यह देखते ही उसके मंत्री और
दरबारी मूर्तियों की तरह स्थिर हो गए। सब डरे हुए थे। कुछ पता नहीं था कि राजा को
अगर गुस्सा आ जाए तो किसे क्या सजा दे डाले।
राजा को गुस्सा आ गया। शायद उसने कोई बुरा सपना देखा था,
“सब भागो, चले जाओ। मुझे एकांत चाहिए।” वह चिल्लाया। मंत्री और दरबारी चुपचाप पीछे हट गए। अब राजा
अकेला था। आकाश में बादल घिरे थे, ठंडी हवा बह रही थी। रानी चिड़िया सोच रही थी, क्या ऐसा ही होता है मनुष्यों का राजा! चलो, इससे कुछ बातें करूँ। उसने कहा, “राजा जी प्रणाम!”
राजा चौंक गया। आसपास तो कोई नहीं था, फिर कौन बोला?
चिड़िया ने फिर कहा, “राजा जी, प्रणाम! आप राजा
हैं तो मैं हूँ रानी चिड़िया।”
एक चिड़िया को मनुष्य की बोली बोलते हुए सुन राजा हैरान रह
गया। उसे लगा कोई भूत-प्रेत का चक्कर है। उसने कहा, “तुम...बोलने वाली चिड़िया! तुम...।”
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चिड़िया हँस पड़ी। उसने कहा, “हाँ, राजाजी, मैं मनुष्यों की बोली बोल और समझ सकती हूँ।”
“लेकिन हम तो ऐसा नहीं कर सकते। ऐसा क्यों?”
“कोशिश करने पर आप भी पशु-पक्षियों की बोली समझ सकते हैं।
लेकिन आप लोग तो पशु-पक्षियों का शिकार करने में लगे रहते हैं।” चिड़िया बोली|
राजा ने कहा, “चिड़िया, तुम तो दूर-दूर तक उड़ती फिरती हो। बहुत दुनिया देखी होगी तुमने। बताओ कोई नई
बात। मैं तो एक तरह की बातें सुन-सुनकर ऊब चुका हूँ।” राजा ठीक कह रहा था। हर समय उसे चापलूस दरबारी
घेरे रहते थे, जिनका बस एक ही
काम था, राजा की झूठी
तारीफें करके उसकी नजरों में ऊँचा उठने की कोशिश करते रहना।
चिड़िया ने कहा, “मैं बहुत दूर नहीं जाती, सारा दिन दाना जुटाने में ही चला जाता है। लेकिन अभी-अभी
मैंने एक भयानक दृश्य देखा था। आपके दो सैनिक दो गाँव वालों को बुरी तरह मार रहे थे।
वे चोरी की शिकायत करने गए थे, पर सैनिकों ने उन्हीं बेचारों को चोर बताकर कारागर में बंद कर दिया।”
“मेरे राज्य में ऐसा अन्याय ! नहीं ऐसा नहीं हो सकता!” राजा ने तुरंत कहा।
“महाराज, मैं भला झूठ क्यों बोलूँगी? असल में तो साधारण जनता के साथ आपके सैनिक ऐसे ही पेश आते हैं।”
“मैंने घोषण कराई है, कोई भी दरबार में आकर अपनी बात कह सकता है। और जनता आती भी
है। मैं इस घटना की जाँच कराऊँगा।” राजा को गुस्सा आ रहा था।
“ठीक है, मैं कल फिर आऊँगी,” कहकर चिड़िया उड़
गई। असल में उसने ठीक कहा था। राजा के कर्मचारी गरीब जनता के साथ ऐसा ही बुरा
व्यवहार करते थे। लेकिन राजा को कुछ पता नहीं चलता था। मंत्री, सेनापति तथा दूसरे बड़े अधिकारी उसे यही बताते
रहते थे कि प्रजा बड़ी सुखी है, किसी को कोई शिकायत नहीं है।
2
राजा ने मंत्री से पूछा, “मैंने सुना है सैनिकों ने दो निर्दोष लोगों को ही चोर बताकर
कारागार में डाल दिया!”
मंत्री घबरा गया, उसकी समझ में ही न आया कि राजा को यह
बात पता चली तो किस तरह ! वैसे बात सही थी। वे दो आदमी मंत्री के विरोधी के
रिश्तेदार थे, इसलिए उनके साथ ऐसा व्यवहार किया गया था।मंत्री ने हाथ
जोड़कर कहा , “हमारे महाराज के
न्याय की रोशनी में अन्याय का अँधेरा रह ही नहीं सकता। किसी ने आपको गलत सूचना दी
है। न ऐसा कभी हुआ है, न होगा। मैं आपके
संकेत पर अपने प्राण न्योछावर कर सकता हूँ।”
राजा का क्रोध शांत हो गया। वह सोचने लगा, “मैं भी कैसा हूँ, एक नन्ही-सी चिड़िया के कहने पर अपने निष्ठावान मंत्री पर
ही संदेह कर बैठा। ”उस दिन राजा का
मनोरंजन करने के लिए मंत्री ने दो नटों को बुलवाया। नटों के करतब देखकर राजा बहुत
ही प्रसन्न हुआ। चारों ओर से जय-जयकार की बौछारें हो रही थीं। नटों को पुरस्कार
देने के साथ-साथ राजा ने मंत्रियों को भी मोतियों की मालाएँ उपहार में दीं।
लेकिन फिर भी उस रात बहुत देर तक राजा को नींद नहीं आई।
उसकी शासन व्यवस्था में कहीं अन्याय हुआ है, यह खबर उसे एक नन्ही चिड़िया ने दी थी। बार-बार मन में यही
प्रश्न उठता था, ‘चिड़िया झूठ
क्यों बोलेगी? लेकिन यह भी तो
हो सकता है कि उसकी नन्ही आँखों ने गलत देखा हो, नन्हे कानों ने गलत सुना हो। मेरे सब अधिकारी बहुत ईमानदार
हैं।
उस रात सोया तो मंत्री भी नहीं। उसके इशारे पर बहुत से
विरोधियों को चुपचाप पकड़ लिया गया। वह जानना चाहता था कि राजा को कौन ऐसी खबरें
दे रहा था? अपने हर विरोधी
को कुचल डालने की योजना बना ली मंत्री ने। लेकिन राजा को कुछ पता नहीं था। वह नरम
शैया पर सुख की नींद सो रहा था।
अगले दिन राजा फिर राजमहल के उद्यान में सैर करने गया।
चिड़िया वहाँ आई हुई थी, पर जब तक एकांत
नहीं हुआ, उसने कुछ नहीं
कहा। जैसे ही मौका मिला, चिड़िया उड़कर
राजा के सामने जा बैठी। उसने कहा, “राजा, जो कुछ कल बताया
था, आज उससे भी भयंकर कांड
देखा है मैंने।”
3
राजा ने कहा, “चिड़िया, तुम्हारी खबर गलत थी। और मैं जानता हूँ, आज भी तुम मुझे जो कुछ बताओगी, वह भी कुछ वैसा ही होगा। जानती हो, मैं कल रात देर तक सो नहीं पाया। तुमने मेरे मन
में संदेह के बीज डाल दिए हैं। अगर मैं तुम्हारी सूचना पर विश्वास करने लगूँ तो
मेरी व्यवस्था चौपट हो जाएगी। मैं अपने सच्चे, अच्छे, ईमानदार अधिकारियों पर ही अविश्वास करने लगूँगा। उस हालत में मेरा राजकाज कैसे
चलेगा? अब तुम्हारी तरह
मेरे पंख तो हैं नहीं जो उड़कर सबका हालचाल लेता फिरूँ।”
“राजा, मेरी खबर गलत नहीं थी और जो कुछ आज मैं आपको बताने वाली थी, वह भी सच है। आप कैसे राजा हैं, जो न सच जानते हैं और न सच का पता लगाना चाहते
हैं।”
“बस, बस, तुम हो एक नन्ही चिड़िया। राज-काज कैसे चलता है,
यह भला तुम क्या जानो। जो
रोज करती हो, वही करती रहो। अब
मेरे पास आकर मुझे उल्टा-सीधा पाठ मत पढ़ाना। वैसे भी बोलने वाली चिड़िया मैंने
पहली बार देखी है। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें सोने के पिंजरे में स्थान दे सकता
हूँ।” राजा के इशारे पर
चिड़िया को पकड़ने के लिए उस पर जाल फेंका गया, लेकिन वह बचकर उड़ गई।
जोर-जोर से धड़कते दिल से उड़ती हुई चिड़िया सोच रही थी,
‘अब ऐसी गलती नहीं करूँगी।
कम से कम किसी राजा से सच नहीं कहूँगी।’ चिड़िया जान गई थी अगर फिर कभी उसने राजा को सच बताने की
कोशिश की तो उसके प्राण नहीं बचेंगे। वह
कभी राजा के पास नहीं गई।(समाप्त)
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