Monday 8 February 2021

रिश्ते --कहानी-देवेंद्र कुमार ======

 

                                                             रिश्ते --कहानी-देवेंद्र कुमार                                                                        

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   नाम है भीमा पर लोग उसे भीखू कहते हैं। क्यों भला! कारण है सबके सामने हाथ फ़ैलाने की बुरी आदत।iइसीलिए सब उससे बच कर चलते थे,सलाह देते कि कोई काम करे,इस तरह हरेक से याचना करना अच्छी बात नहीं। क्या करे भीमा! वह लंगड़ा कर चलता है,फ्रैक्चर के बाद हड्डी गलत जुड़ने की वजह से पैर में खराबी आ गई है। कई महीने तक काम पर न जा सकने के कारण नौकरी चली गई। इसके बाद काम मिला ही नहीं। अब सड़क पर आ गया है। लोगों के आगे हाथ फ़ैलाने के अतिरिक्त और कुछ सूझा ही नहीं। वह खुद इस तरह जीने को गलत मानता है लेकिन और करे भी तो क्या!

   एक दोपहर बस स्टैंड के पास खड़ा था तभी एक बच्चे को जमीन पर गिरते देखा। भीमा ने बच्चे को गोद में उठा लिया। उसके माथे से  खून निकल रहा था। वह घबरा कर इधर उधर देखने लगा,समझ नहीं पा  रहा था कि क्या करे।और तभी उसे रजत बाबू नज़र आये,उसने पुकारा-'बाबू जी,इसे देखिये। 'रजत पास की सोसाइटी में रहते हैं, औरों  की तरह भीमा से नफरत नहीं करते,कभी कभार मदद भी कर देते  हैं।उन्होंने कहा-'आओ मेरे साथ, पास में एक कम्पाउंडर रहता है। वह इसके घाव की मरहम पट्टी कर देगा।    

        बच्चे की  मरहम पट्टी के बाद सड़क पर आये तो बच्चे के माँ बाप उसे खोजते मिल गए। उन्होंने बताया कि वे दूकान से सामान ले रहे थे तभी उनका बेटा हाथ छुड़ा कर भाग निकला। भीमा ने बताया कि कैसे क्या हुआ था। बच्चे की माँ ने  भीमा से कहा-'भैया ,तुमने मदद की, नहीं तो  कुछ भी हो सकता था। वह भीमा को कुछ पैसे देने लगी तो उसने मना  कर दिया।बोला -'बच्चे की मदद के बदले भीख क्यों दे रही हो।बेटा जैसा तुम्हारा वैसा मेरा|'  इतना कहते ही  मन में कुछ होने लगा।आखिर उसका अपना कौन है -कोई नहीं,आँखें गीली हो गईं।

   तभी रजत उसे चाय की टपरी  पर ले गए। बोले-'भीमा, आज तुमने एक अच्छा काम किया है। और बच्चे की मदद के बदले पैसे भी नहीं लिए। कैसा लग रहा है ?'

   क्या कहे भीमा। यह पहली बार था जब उसने भीख लेने से मना  किया था। क्या ऐसा रोज नहीं हो सकता। रजत चले गए ,भीमा सड़क पर निकल आया। शाम ढल रही थी। सड़क पर घरों की ओर लौटते लोग थे और आकाश में घोंसलों की  तरफ उड़ते परिंदों का शोर। भीमा को कहीं जाना नहीं था ,वह बस  चला जा रहा था।तभी उसने एक बूढ़े को पटरी पर बैठे देखा। बूढा सड़क पार ढाबे की ओर देख रहा था। जरूर भूखा है,वरना इस तरह  ढाबे की तरफ  ताकता हुआ न बैठा रहता।         

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   भीमा उसके पास जा खड़ा हुआ,पूछा -'क्यों भूख लगी  है ?'बूढ़े ने उस की ओर देखा पर बोला  कुछ नहीं।भीमा ने कुछ सोचा और सड़क  पार करके ढाबे में चला गया। ढाबे वाला जीतन भीमा को जानता है। उसने तुनक कर कहा-'जानते हो  न कि मैं भीख नहीं देता।'

   '  मैं अपने लिए नहीं उसके लिए कह रहा हूँ।'और भीमा ने सड़क पार बैठे बूढ़े की ओर संकेत कर दिया।

       तेरे पास चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं और मैं मुफ्त में  रोटी खिलाता नहीं।'-जीतन के स्वर में कड़वाहट घुली हुई थी।

    भीमा ने देखा-ढाबे में कई ग्राहक खाना खा रहे थे,तंदूर से गरम रोटियां निकल रही थीं।भीमा कुछ  सोचता रहा फिर बोला -'तुम्हारे ढाबे में बहुत काम है। मुझसे कुछ काम करा लो। उसी को बूढ़े बाबा के खाने के दाम समझ लेना।

 जीतन ने कहा-'हाँ ऐसा कुछ हो तो सकता है। आज बर्तन साफ़ करने वाला नहीं  आया है।वही कर लो। और हाँ बूढ़े बाबा को यहाँ ले आओ।'

   बात बन गई थी। वह बूढ़े को हाथ पकड़ कर ले आया और कुर्सी पर बैठा दिया।  जीतन के इशारे पर एक लड़के ने बाबा के सामने भोजन परोस  दिया।

    अब दाम चुकाने की बारी थी। सिंक में जूठी  प्लेटों का ढेर था। भीमा काम में जुट गया। बर्तन धोने के बाद उसने सिंक के नीचे भी सफाई कर दी वहां काफी गंदगी थी। उसने देखा अब बाबा जमीन पर बैठा था। जीतन ने एक कोने में बानी कोठरी की और इशारा किया,बोला -कोठरी में काफी बेकार सामान पड़ा है।सफाई करके बाबा को वहां बैठा दो।'

   कोठरी से कबाड़ निकल कर भीमा ने ढाबे के बाहर फुटपाथ पर रख दिया ,और अच्छी तरह फर्श धो कर पोंछा लगा दिया| जीतन ध्यान से देख रहा था। उसने कहा-'ढाबे के बाहर एक छोटी चारपाई पड़ी है। उसे कोठरी में रख दो। बाबा उस पर लेट जाएगा।'

   बाबा को चारपाई पर लिटा कर भीमा ने झाड़ू थाम ली और फर्श पर पड़ा कूड़ा बुहार दिया I अब तक  सिंक में  बहुत से जूठे बर्तन फिर जमा हो गए थे। भीमा ने उन्हें भी साफ़  डाला तभी जीतन ने कहा-'क्या बाबा की भूख मिटने से तेरा पेट भी भर गया?क्या कहे भीमा!

  तभी कोठरी से बूढ़े के जोर जोर से खांसने की आवाज़ आने लगी। भीमा पानी का गिलास लेकर बाबा के पास चला गया, बाबा की पीठ सहलाई तो  कुछ आराम पड  गया।' 'कोई दवा लेते हो?'-भीमा ने पूछा। बाबा ने जो कहा उससे पता चला कि फ्लाईओवर के नीचे एक पान वाला बैठता है,वहीँ पड़ी है बाबा की पोटली। उसी में दवा है।

 भीमा पान  वाले के पास गया, कहा-'बाबा ने पोटली मंगवाई है|’

'अरे तू कौन है।'

   'वह मेरे बाबा हैं, मैं इतने दिनों से दूसरे शहर में था आज ही आया हूँ।' भीमा ने बात बनाई। पोटली लेकर चला तो मन में ख़ुशी थी।कितनी सफाई से उसने अपने को उस अनजान बूढ़े बाबा से जोड़ लिया था।

  ढाबे पर पहुंचा तो जीतन ने कहा-'आ खाना खा  ले।' बाहर  बारिश शुरू हो गई थी।जीतन ने छाता लिया और घर  जाते हुए बोला -' अब कहाँ जाओगे तुम दोनों। यहीं रह जाओ।'

   ढाबे में दो लड़के काम करते थे और रात में वहीँ सोते थे। भीमा के लिए भी चादर बिछ गई,तेज बारिश पड  रही थी।खुले ढाबे में बौछारें अंदर तक  आ रही थीं।भीमा लेटा  नहीं, चादर ओढ़ कर तंदूर के पास जा बैठा जिससे हल्की गर्माहट मिल रही थी। वह अपने लिए नहीं,  बाबा के बारे में सोच रहा था।

   आज तो जैसे तैसे खाना मिल गया लेकिन  कल ,हाँ कल क्या होगा। उसने पान वाले से बूढ़े को अपना बाबा बताया था। क्या वह झूठ सच हो सकता था! भीमा पूरी रात नहीं सोया। सिंक में पड़े सारे बर्तनों को साफ़ किया, फर्श को फिर बुहार दिया।

   सुबह जीतन आया तो साफ़ सफाई देख कर खुश हो गया। बर्तन सफाई वाला नहीं आया था। भीमा ने पूरे दिन काम किया। बीच बीच में बूढ़े बाबा की खोज खबर लेता रहा। जीतन ने कहा-'क्या तू रोज यहाँ काम करेगा?बर्तन सफाई वाला तो ठीक से काम नहीं करता। '

   'अगर उसे नौकरी से निकलोगे तो मैं काम नहीं करूंगा '-भीमा ने कहा तो जीतन हंसने लगा,बोला -नहीं ढाबे में काम तो रहता ही है,और हाँ मैंने सोचा है,बूढा बाबा उस कोठरी रहे तो कोई हर्ज नहीं, तुम उसकी देख भाल कर ही लोगे। हमारे ढाबे से थोड़ी दूरी पर सुलभ शौचालय है। यहाँ काम करने वाले लड़के वहीँ नहाते धोते हैं, उनके पैसे मैं देता हूँ। तुम दोनों को भी दिक्कत नहीं होगी। '

   भीमा को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था। वह संतुष्ट भाव से काम में लग गया। कोठरी में बूढा बाबा आराम से लेटा  था। भीमा उसे सुलभ शौचालय ले गया था और लौट कर चाय बिस्किट दे दिए थे।कहीं यह भीमा का सपना तो नहीं था! जी नहीं ,एकदम नहीं जो था एकदम सच था===         

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