पुलिया का दुःख --कहानी-देवेंद्र कुमार
======
रामदास को बाजार जाना था। उन्होंने रिक्शा वाले
को पास बुलाया , वह रिक्शा में बैठने जा रहे थे कि
रुकना पड़ा। एक युवक तेजी से आया और उनके पैर छू कर बोला -'मुझे माफ़ कीजिये,
उस
दिन मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई थी।'
रामदास कुछ समझ न सके। उन्होंने उस युवक को इससे पहले कभी नहीं देखा था।
फिर वह पैर छू कर किस अपराध की माफ़ी मांग रहा था
! बोले -मैं तुम्हें नहीं जानता। हम शायद पहली बार मिल रहे हैं। तुमने
मेरा क्या बुरा किया है जो पैर छू कर माफ़ी
मांग रहे हो! मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। शायद तुम्हें कोई गलत
फहमी हुई है।आखिर बात क्या है?’
‘युवक ने कहा -'आप मुझे भला कैसे जानेंगे,पर मैंने आपको एकदम सही पहचाना है।'बोला-'उस घटना को कई वर्ष बीत गए हैं। आपको
शायद याद न हो, पर मैं उसे कभी भी नहीं भूल पाया।’
रामदास ने बाजार जाने का विचार त्याग दिया। युवक का हाथ थाम कर चाय की
दूकान के बाहर पड़ी बेंच पर बैठ गए। पूछा –‘हाँ अब बताओ कि बात क्या है?
तुम
मेरे बेटे की उम्र के हो। पर इस तरह तो उसने भी कभी माफ़ी नहीं मांगी।'
युवक ने कहा-'मेरा नाम रजत है। कोई तीन वर्ष हुए तब
आप सड़क पर गिर पड़े थे। आपके माथे से खून बहने लगा था। कुछ याद आया ?'
अब
रामदास को याद आ गया। सचमुच एक दोपहर बाजार में गिर कर घायल हो गए थे। माथे से खून
भी बहने लगा था। ‘लेकिन तुम कैसे जानते हो उस घटना के
बारे में?'- रामदास ने अचरज भरे स्वर में पूछा।
रजत ने कहा-'मैं कैसे नहीं जानूंगा,मैं आपके एकदम पास खड़ा था। और अपने
मुझसे ही तो रिक्शा बुलाने के लिए कहा था। लेकिन…
'लेकिन क्या?'-रामदस ने पूछा। '
‘लेकिन मैंने आपकी मदद नहीं की थी। मैं
उस समय मेहमानों के लिए आइसक्रीम ले रहा था। मैं आपकी बात अनसुनी कर घर चला गया था। लेकिन मुझे अपनी भूल का अहसास
हुआ और मैं फिर बाजार में उस जगह जा पहुंचा जहाँ आपको चोट लगी थी. लेकिन आप नहीं मिले। आइसक्रीम वाले ने
बताया कि उसने एक घायल आदमी को रिक्शा में बैठा दिया था और फिर वह अपने काम में लग
गया था। मुझे अपनी भूल पर बहुत पछतावा था। मुझे
आपके साथ जाकर आपकी चोट की मरहम पट्टी
करवानी चाहिए थी। मैंने आइसक्रीम वाले
से पूछा था कि क्या वह आपको जानता पहचानता
था,लेकिन उसने मना कर
दिया।मेरा मन कई दिन तक बहुत बैचैन रहा।
ठीक से सो नहीं पाया। माँ ने मेरी बेचैनी
का कारण जानना चाहा पर मैं उन्हें कैसे बतलाता। उसके बाद
मैं कई बार उस स्थान पर गया। मैं सोचता था -शायद आप मिल जाएँ तो…’
'लेकिन तुम मुझे कैसे पहचानते भला।'-रामदास ने पूछा।
1
'आपका खून से सना चेहरा मेरे मन में जैसे गड गया
था। -'रजत ने कहा-'आज आप को देखा तो झट पहचान गया,
इसीलिए
क्षमा मांग रहा हूँ। उसके बाद ही मेरा मन इस अपराध भावना से मुक्त हो पायेगा। '
रामदास ने रजत का कन्धा थपथपा दिया।बोले -'हाँ अब उस दिन की पूरी घटना याद आ गयी
है। लेकिन ऐसा तो हम सबके साथ कई बार होता है।तुम्हारी बात से मुझे अपने बचपन की
ऐसी ही घटना याद आ गई है। मेरे स्कूल और
घर के मार्ग पर एक पुलिया थी। वहां कई
फेरी वाले खड़े रहते थे। जैसे तुमने मुझे देखा था उसी तरह मुझे भी एक दिन एक बूढ़े
बाबा नज़र आये थे। उनके हाथ से खून बह रहा था। मैं उनके पास से गुजरा तो उन्होंने
कहा था-'बेटा ,कोई रिक्शा बुला दो तो घर चला जाऊं|यहाँ कोई रिक्शा दिखाई नहीं दे रही।'
मैंने
एक बार उन की तरफ देखा पर रुका नहीं ,और घर चला गया।‘
‘फिर क्या हुआ ?'-रजत ने उत्सुक भाव से पूछा
'मैं घर पहुंचा तो माँ ने धीरे से कहा-'
शोर
मत करो। तुम्हारे दादा जी आराम कर रहे हैं उनकी तबीयत ठीक नहीं है।'
मैंने झट कहा-'दादा जी को क्या हुआ,वह ठीक तो हैं?'
माँ बोली-'कोई ख़ास बात नहीं है,पर तुम स्कूल से लौटने के बाद बहुत शोर
करते हो, इसीलिए कहा है।'
दादा जी की तबीयत ठीक नहीं है,यह सुन कर मन परेशान हो गया,माँ के मना करने पर भी मैं दादा जी के
कमरे में चला गया, वह सो रहे थे। और फिर मुझे पुलिया वाली घटना याद आ
गयी। बूढ़े बाबा का खून से सना चेहरा सामने आ गया। मुझसे खाना नहीं खाया गया। माँ
ने कारण पूछा तो मैंने सच बता दिया।
माँ ने
कहा-'बेटा, यह तो बहुत गलत हुआ। तुम्हें उनकी मदद करनी चाहिए थी,
उनके
घर छोड़ कर आना चाहिए था।'
मैं क्या कहता।स्कूल आते जाते समय मैं
तो हर रोज पुलिया के पास से गुज़रता था। और तब उनका खून से सना चेहरा सामने आ जाता
था। मैं अपने आप पर नाराज़ होने लगता था। इसके बाद पिता जी का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया। बचपन की कड़वी स्मृति समय
के साथ पीछे चली गई। लेकिन आज तुमने मुझे फिर मेरे बचपन के दिनों में पहुंचा दिया है। अपने अपराध की कसक फिर से
परेशान करने लगी है '- रामदास ने उदास स्वर में कहा।
रजत ने धीरे से उनके घुटने को छू दिया ,बोला-'आपने ही तो अभी अभी कहा है कि सबके जीवन में कभी कभी ऐसा कुछ हो
जाता है।’
तभी चाय वाला चाय लेकर आ गया। चाय पीते
हुए दोनों ने एक दूसरे के पते और टेलीफोन नंबर ले लिए। रामदास घर चले आये। बचपन की गलती उन्हें फिर से परेशान कर रही
थी।
कुछ दिन बाद रजत मिलने आया।बोला -'आज मेरी बहन का जन्म दिन है। आपको उसे
आशीर्वाद देने आना है।'
'लेकिन मैं तो तुम्हारे परिवार में किसी
को जानता नहीं। मैं यहीं से बिटिया को आशीर्वाद दे रहा हूँ।'— रामदास बोले।
‘बहन
के लिए आपका आशीर्वाद मैं नहीं ले जाऊँगा।
आपको मेरे घर आना ही होगा। मैंने घर में आपके बारे में बता दिया है।'
'तो क्या यह भी बता दिया कि हम दोनों कैसे आपस में मिले हैं।'-कह कर रामदास हँस दिए।
'जी,यह कैसे कहता भला। तब तो मुझे वह सब भी
कहना पड़ता जिसकी क्षमा मुझे आपसे अभी तक नहीं मिली है।'
'और मिलेगी भी नहीं।-'-रामदास ने कहा -'मुझसे क्षमा लेकर तुम तो अपराध बोध से
मुक्त हो जाओगे,पर मेरा क्या। मुझे कौन माफ़ी देगा।
दोनों की गलतियों ने ही तो इस अनोखी दोस्ती को
जन्म दिया है। इसे ऐसे ही चलने दो।' रजत और रामदास दोनों के होंठ मुस्करा रहे थे। (समाप्त )
No comments:
Post a Comment