भरने
का खेल -कहानी-देवेंद्र कुमार
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चुन्नू
के पास आजकल कोई काम नहीं है। कई महीनों से बेरोजगार चल रहा है। बहुत कोशिश की है।
जिसने जहां बताया वहीं गया है, पर अब तक कुछ न हुआ। बीच में कई दिन रिक्शा
चलाई, पर बीमार होने के कारण वह काम भी छूट गया।
उस दिन बाजार में गुलाब सिंह मिल गए। दोनों एक ही गांव के हैं। गुलाबसिंह
की दुकान अच्छी चलती है। चुन्नू ने उन्हें अपना हाल बताया तो गुलाब सिंह ने कहा-“तुम कल सुबह मेरे घर आ जाना। शायद मैं
तुम्हारे लिए कुछ कर सकूं।” उन्होंने सुबह ठीक दस बजे बुलाया था। लेकिन
चुन्नू तो आधा घंटा पहले ही पहुंच गया। उसे डर था कहीं देर न हो जाए। पर गुलाबसिंह
घर पर न थे। वह कुछ देर दरवाजे पर खड़ा रहा फिर घर के सामने वाले पार्क में चला
गया।
सर्दियों के दिन थे। अभी धूप अच्छी
तरह निकली नहीं थी-कहीं कहीं नजर आ रही थी। बाग में सन्नाटा था। चुन्नू घास पर जा
बैठा। घास अभी ओस से गीली थी। कपड़े नम हो गए तो उठकर टहलने लगा। ठीक दस बजे फिर
गुलाबसिंह के दरवाजे पर जा खड़ा हुआ। पता चला वह जरूरी काम से कहीं दूर चले गये हैं, देर से लौटेंगे।
चुन्नू की समझ में न आया कि अब क्या
करे। आखिर वह कब तक प्रतीक्षा कर सकता था। थोड़़ी देर और रुकने की सोचकर फिर से बाग
में चला आया। अब धूप और फैल गई थी। कई बच्चे आकर घास पर दौड़ -भाग करने लगे थे। बच्चों का यों फुदकना, हंसना चुन्नू को अच्छा लगा। तुरन्त
गांव में मौजूद अपने बच्चे की याद आ गई। वह भी तो घास पर उछलते, खिलखिलाते इन्हीं बच्चों जैसा है, पता नहीं कैसा होगा। चुन्नू का मन हुआ
कि दौड़कर जाए और अपने बेटे को गोद में भर ले। पर यह नहीं हो सकता था। जब तक शहर
में कोई ठीक काम न मिल जाए, वह परिवार को यहां नहीं ला सकता था।
1
चुन्नू का मन उदास हो गया, पर फिर भी नजरें घास पर दौड़ते- भागते बच्चों पर टिकी रहीं। एकाएक उसने एक बच्चे को जमीन पर गिरते
देखा। शायद बच्चे का पैर मुड़ गया था। वह पैर को पकड़
कर
चीख रहा था। चुन्नू तुरन्त दौड़कर बच्चे के पास जा पहुंचा। उसे गोद में उठाया और
पैर मलने
लगा। तभी बिट्टू-बिट्टू पुकारती हुए एक
औरत बाग में दौड़ी आई। शायद वही उस बच्चे की मां थी। औरत ने बच्चे को चुन्नू के
हाथों से झपट लिया। पूछा--“तुमने इसे मारा क्या?”
चुन्नू झट बोला-“जी नहीं, एकदम नहीं। मैं तो दूर बैठा था। इसे
गिरते देखा तो दौड़कर उठाया। शायद पैर में चोट लगी है। डाक्टर को दिखाना होगा।”
“हूं....” बिट्टू की मां ने कहा-“आज इसके पापा भी घर पर नहीं हैं। सुबह
ही कहीं चले गए। मैं इसे रोकती रही पर यह बाग में भाग आया और अब देखो...”
चुन्नू ने कहा-“कोई बात नहीं, मैं बच्चे को डाक्टर के पास ले चलता
हूं।“ फिर उसने बताया कि वह किसका इंतजार कर रहा था। गुलाबसिंह का नाम
सुनकर लगा जैसे औरत को कुछ तसल्ली हो गई। बोली-“हां, वह कहीं गए हैं। हम लोग उन्हीं के मकान
की ऊपर वाली मंजिल में रहते हैं।”
चुन्नू ने बच्चे को फिर से गोद में ले लिया और उसकी माँ के पीछे-पीछे चल
पड़ा। डाक्टर का दवाखाना पास में ही था। चुन्नू संकोच में था क्योंकि उसकी जेब में
बहुत थोड़े से पैसे थे।
डाक्टर ने बिट्टू के पैर की जांच की फिर बोला-“इसका पैर किस गड्ढे में पड़कर मुड़ गया
है पर चोट ज्यादा नहीं है।” फिर डाक्टर ने पैर की पट्टी कर दी।
बिट्टू की मां ने कहा-“भला बाग में गड्ढे का क्या काम।” फिर डाक्टर को फीस देकर अपने बच्चे को
घर में ले गई। जब वह घर में जा रही थी तभी गुलाबसिंह उधर आते दिखाई दिए। उन्होंने
चुन्नू को अंदर बुला लिया। बोले-“माफ करना भाई, मुझे आने में देर हो गई।” तब तक बिट्टू की मां ने उन्हें बच्चे
को चोट लगने की बात बता दी। और चुन्नू की ओर इशारा करते हुए कहा-“इन्होंने ही बच्चे को दौड़कर उठाया था।”
गुलाबसिंह ने चुन्नू को अपनी दुकान पर काम
करने को कहा। बोले-“मैं तुम्हें ज्यादा पैसे तो नहीं दे सकूंगा, पर कुछ समय तक तो तुम्हारा काम चल ही
जाएगा। मेरी दुकान पर काम करते हुए तुम दूसरा काम भी खोज सकते हो।” उन्होंने चुन्नू को अगले दिन आने के
लिए कह दिया।
2
काम का इंतजाम हो जाने से चुन्नू की
चिंता कुछ कम हो गई। वह फिर बाग में चला आया। उसके कानों में डाक्टर की बात गूंज
रही थी- ‘बच्चे का पैर किसी गड्ढे में पड़कर मुड़ गया है।‘ वह बाग में घूमता हुआ सोच रहा था-बाग
में अगर गड्ढा है तो कहां? यह तो बहुत खतरनाक बात है। आज एक बच्चे का पैर
गड्ढे में फंसकर मुड़ा है तो कल कोई और बच्चा इसी तरह घायल हो सकता है। यह सोचता
हुआ चुन्नू ध्यान से बाग में उगी घास के अंदर देखता हुआ चलने लगा। और उसने देखा
घास में एक नहीं कई छोटे-छोटे गड्ढे नजर आ रहे थे। उन गड्ढों का कारण समझने में
देर नहीं लगी।
अक्सर बाग या मैदानों में शादी ब्याह या दूसरे समारोह होते हैं तो शामियाने
खड़े किये जाते हैं। शामियाने के डंडे जब उखाड़े जाते हैं तो गड्ढे रह जाते हैं।
शामियाने लगाने वालों को बांस गाड़ना तो याद रहता है पर बांसों के कारण होने वाले
गड्ढों को भरने की बात वे एकदम भूल जाते हैं। यह सोचते-सोचते चुन्नू ने तय किया कि
वह बाग की जमीन में बने ज्यादा से ज्यादा गड्ढे भरने की कोशिश करेगा।
बाग के बाहर एक तरफ रेती और बदरपुर का ढेर लगा हुआ था। चुन्नू ने जमीन पर
पड़ा एक गत्ते का टुकड़ा उठाया। उस पर रेत और बदरपुर रख लिया और बाग में जाकर बारी
बारी से गड्ढे भरने में जुट गया। तब तक धूप अच्छी तरह फैल चुकी थी। बाग में कई लोग
धूप सेकने आ बैठे थे। काफी बच्चे भी इधर से उधर धमा चौकड़ी मचा रहे थे। चुन्नू का मन
घबरा गया। उसे लगा कहीं किसी बच्चे का पैर गड्ढे में न चला जाए. उसने जोर से पुकार कर कहा—‘बच्चो, घास पर मत दौड़ो, रुक जाओ। घास में गड्ढे हैं। तुम्हारा
पैर गड्ढे में फंस सकता है।”
चुन्नू को यों जोर से पुकारते
देख लोग उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे तो चुन्नू ने अपनी बात दोहरा दी, फिर रेत और बदरपुर से घास में छिपे
गड्ढे भरने में जुट गया। उसकी देखा देखी और भी कई लोग इस काम में लग गए। बच्चों ने
इसे नया खेल समझा और वे भी इस खेल में शामिल हो गए। बच्चे दौड-दौड़कर कागजों में
रेत और बदरपुर लाकर लोगों को देने और कहने लगे-“अंकल, गड्ढे भर दो नहीं तो हमें चोट लग
जाएगी।”
चुन्नू की देखा-देखी बहुत सारे स्त्री-पुरुष और बच्चे गड्ढे भरने के खेल
में लग गये। अब पता चला कि बाग की जमीन में एक नहीं अनेक छोटे-छोटे गड्ढे और सूराख
थे और यह बच्चों के कोमल, छोटे पैरों के लिए बहुत ही खतरनाक था।
आखिर बाग की धरती में बने सारे गड्ढे भर दिए गए। मोहल्ले वालों ने फैसला
किया कि आगे से वे किसी टैंट वाले को बाग में टैंट नहीं लगाने देंगे।
3
सबसे ज्यादा खुशी चुन्नू को थी। सब उसकी तारीफ कर रहे थे। खास तौर से बच्चे
तो उसके पक्के फैन हो गए थे। उस दिन उसे मोहल्ले में बहुत देर तक रुकना पड़ा।
बिट्टू की मां ने उसे अपने घर चाय पीने के लिए बुलाया तो मोहल्ले के बच्चे भी आए।
जब वह चलने लगा तो बच्चों ने कहा-“अंकल, यह गड्ढे भरने का खेल आपके साथ हम भी
खेलना चाहते हैं। बताइए, अगली बार यह खेल कहां खेला जाएगा?”
चुन्नू क्या कहता, बस मुस्कराता रहा-मन ही मन उसने निश्चय कर लिया
था-अगर किसी बाग में, फुटपाथ पर कहीं कोई गड्ढा देखेगा तो उसे भरने
की कोशिश जरूर करेगा ताकि किसी छोटे बड़े का पैर उसमें फंसकर घायल न हो जाए। ( समाप्त )
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