Wednesday 14 October 2020

vमेरा गुलाब--कहानी--देवेंद्र कुमार ==============================

 

 

मेरा गुलाब--कहानी--देवेंद्र कुमार

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   परेश का काम मुंह अँधेरे शुरू हो जाता है। दूध की गाडी सुबह चार बजे चौक में लग जाती है। दूध की थैलियों को बड़े –बड़े थैलों में भर कर साइकिल के हैंडलों पर लटका कर वह दूध यात्रा पर निकल पड़ता है। हाउसिंग सोसाइटी के फ्लैट की घंटी बजाकर दूध देना और फिर अगले फ्लैटों पर यही क्रिया बार बार दोहराने से उसकी दिनचर्या का सूरज उगता है – दिन-प्रतिदिन। इसमें कोई व्यवधान नहीं होता।

   लेकिन उस दिन कुछ हुआ। उसने फ्लैट की घंटी बजाने को हाथ बढाया तो पैर फिसल गया। परेश ने सँभलने की कोशिश की तो पैर फ़्लैट के दरवाजे के पास रखे गमले से टकरा गया। कुछ टूटने की आवाज हुई। परेश ने देखा एक गमला टूट गया था। गमला टूटने से मिट्टी बाहर फ़ैल गई। उसमें लगा पौधा एक ओर झुक गया।तभी फ़्लैट का  दरवाजा खुला।परेश के मुंह से निकला—‘ मैडम,माफ़ करना पैर फिसलने से गमला टूट गया।’

   मैडम ने दूध की थैली लेते हुए एक नजर टूटे हुए गमले पर डाली ,फिर कहा—‘ कोई बात नहीं। वैसे भी हम कल यहाँ से जा रहे हैं। अपने पैसे ले जाओ। ‘ परेश ने हिसाब लगा कर पैसे बताये और लेकर अगले फ़्लैट की ओर चल दिया। टूटे गमले में कौन सा पौधा लगा है,यह देखना चाहता था, लेकिन अभी  एकदम समय नहीं था। दूध सप्लाई करने के बाद परेश एक दुकान पर काम करता था। काम करते हुए टूटे हुए गमले की छवि कई -बार आँखों के सामने तैर गई पर काम बीच में छोड़ कर वह कहीं नहीं जा सकता था।

    अगली सुबह जाकर टूटे गमले को देखने का ध्यान तो आया पर काम की भाग- दौड़ में समय ही नहीं मिला। दूध की सप्लाई के बाद परेश सोसाइटी के गेट के बाहर बैठ कर चाय पीता था। लेकिन उस दिन चाय नहीं पी, टूटे गमले में लगे पौधे को देखने चला गया। उसने देखा फ़्लैट के दरवाजे पर ताला लगा था। टूटे गमले में लगा पौधा एक तरफ को झुका हुआ था। ताला बता रहा था कि वहाँ रहने वाले वहां से जा चुके हैं।

    परेश ने टूटे हुए गमले को संभाल कर उठा लिया,  एक हथेली से झुके पौधे को सँभालते हुए सोसाइटी के दरवाजे की ओर बढ़ा। नजर सोसाइटी के पार्क की ओर चली गई। क्यारियों तथा गमलों में फूल खिले हुए थे। ‘मैं गमले को बाग़ में भी तो रख सकता हूँ।’ –परेश ने सोचा और माली की खोज में इधर उधर देखने लगा। पर माली कहीं नहीं था। उसने गार्ड से पूछा—‘ इस गमले को पार्क में कहाँ रख दूं?’

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       गार्ड ने टूटे गमले को देखा और मुंह बिचका कर बोला –‘ इसकी जगह पार्क में नहीं मंदिर के पीछे है। वहीँ डाल दो।’

    परेश मंदिर के पीछे चला गया। वहां कबाड़ का ढेर लगा हुआ था—टूटा फर्नीचर, लोहे का जंग लगा सामान और कई टूटे हुए गमले वहां पड़े हुए थे। परेश ने झुके, मुरझाए पौधे को देखा –उस पर एक गुलाब झूल रहा था।लग रहा था जैसे टूट कर अब झरा—अब झरा । ‘कबाड़ के इस कब्रिस्तान में इस गुलाब को कभी नहीं फेंकूँगा’—परेश ने जैसे अपने से कहा । और गमले को लेकर गेट पर चला आया। गार्ड ने व्यंग्य से उसकी ओर देखा पर बोला कुछ नहीं। परेश की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। उसका मन हो रहा था कि पौधे को नए गमले में लगा कर अपने घर ले जाए और मुरझाए गुलाब को फिर से खिलते हुए देखे। लेकिन परेश के एक कमरे वाले घर में यह संभव नहीं था। घर का दरवाजा सीधे सड़क पर खुलता था, वहाँ आँगन जैसा कुछ नहीं था जहाँ पौधे रखे जा सकें।

वह उलझन में उलझा खड़ा था, तभी एक पौधे वाला ठेला धकेलता हुआ सामने से गुजरा। परेश ने तुरंत पुकार लगाई। उसे एक उपाय सूझ गया था। उस आदमी ने टूटे हुए गमले को देखा तो बोला—‘ आज मेरे पास नए गमले नहीं हैं, कल ला दूंगा। ‘

परेश कुछ और ही सोच रहा था। बोला—‘ भाई, मुझे नया गमला नहीं चाहिए। ‘ फिर  उसने पौधे वाले को जल्दी से पूरी बात बता दी। कहा—‘ क्या तुम गुलाब के इस पौधे को अपने पौधों के बीच रख सकते हो?मैं इसके लिए तुम्हें कुछ पैसे भी दे सकता हूँ। असल में मैं इस गुलाब को खिलते हुए देखना चाहता हूँ। मेरी गलती से इसकी यह हालत हो गई है। ‘पौधे वाले  का नाम बलराम था।वह एक झुग्गी बस्ती में रहता था। उसने अपनी झोंपड़ी के पीछे एक छोटी सी नर्सरी बना रखी थी। बलराम कुछ देर सोचता रहा। ऐसा प्रस्ताव तो उसके सामने पहली बार 

     आया था।

               परेश ने 50 का नोट बलराम की ओर बढा दिया,बोला—‘ मैं तुम्हें और भी पैसे दे दूंगा।बस गुलाब का ध्यान रखना।’ बलराम ने परेश के हाथों से टूटा गमला लेकर अपने ठेले पर  रख लिया और धकेलता हुआ आगे चला गया। परेश को लगा जैसे सिर से बड़ा बोझ उतर गया हो। दिन भर दूकान पर काम करते हुए गुलाब का ध्यान कई बार आया। लगा अब मुरझाया गुलाब जरूर खिल उठेगा। उसकी आँखें नए गमले में गुलाब को झूमते हुए देख रही थीं। लेकिन तभी ख्याल आया—‘ अरे पौधे वाले का नाम पता तो पूछा ही नहीं!’ कहाँ खोजेगा उसे।

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       वह बैचैन हो गया। शाम को घर जाने की जगह सोसाइटी पहुंचा। गार्ड से पौधे वाले के बारे में पूछा तो वह हंस पड़ा। बोला—‘ अरे एक टूटे गमले के लिए क्यों इतना परेशान हो रहे हो। ‘ फिर बलराम का पता बता दिया। वह सोसाइटी में भी खाद देने आता था।परेश का मन हुआ कि अभी बलराम के घर चला जाए। फिर अपनी हडबडी पर खुद ही हंसी आ गई

       अगली सुबह दूध देने का काम हड़बड़ी में निपटाया। इतनी हड़बड़ी कि कई बार तो गिरते –गिरते बचा। भागता हुआ सोसाइटी के गेट से बाहर निकला और तेजी से बढ़ चला। पीछे से चाय वाले की पुकार सुनाई दी—‘ कहाँ भागे जा रहे हो, चाय ठंडी हो रही है।’ परेश जवाब देने के लिए भी नहीं रुका। बस हाथ हिला दिया। चाय वाला जो चाहे समझ ले। बलराम के दरवाज़े के सामने पहुँच कर पुकारा तो बलराम निकल कर आया। उसने परेश को पहचाना नहीं। कहा—‘ कौन ,क्या चाहिए?’

    परेश हडबडा कर बोला – ‘ टूटा हुआ गमला... उसी के बारे में...’ अब बलराम ने पहचान लिया— 'बाबू , ऐसी भी क्या हड़बड़ी है! मैं आपका टूटा हुआ गमला लेकर कहीं भागा नहीं जा रहा हूँ। आप अपना गमला ले जाओ और अपने 50 रुपये भी। ‘

     परेश समझ गया कि इतनी सुबह आकर उसने बलराम को नाराज कर दिया है। झट थैले में से दूध की थैली निकाल कर बोला—‘ अरे नहीं बलराम भय्या। मैंने तो सोचा था कि सवेरे की चाय तुम्हारे साथ पियूँगा। लो जरा चाय तो बनवाओ। ‘ बलराम का गुस्सा उतर गया। बोला –‘ तो हमारे घर में दूध नहीं है जो दूध लेकर आये हो।’ परेश ने जल्दी से बता दिया कि वह सुबह क्या काम करता है। बिगडती बात संवर गई। बलराम परेश को घर के पीछे नर्सरी में ले गया। पुकार कर पत्नी से कहा—‘ जरा दो चाय और कुछ खाने को ले आओ। मेहमान आये हैं।’

     अभी पूरी तरह दिन नहीं निकला था। ठंडी हवा में पौधे हिलडुल रहे थे जैसे अंगडाई ले रहे हों। परेश ने देखा—टूटे गमले को एक नए गमले में रख दिया गया था, गुलाब का पौधा एक डंडी के सहारे सीधा खड़ा था। अब उतना मुरझाया भी नहीं लग रहा था। बोला—‘ बलराम भय्या,  तुमने तो गुलाब का कायाकल्प कर दिया है ।’ बलराम हंस पड़ा। तभी बलराम की पत्नी और बेटा वहां आ गए। पत्नी के हाथों में चाय के प्याले थे । बेटे ने नाश्ते की प्लेट पकड़ रखी थी। परेश ने लड़के को गोद में बैठा लिया। बोला –‘ बच्चे फूलों के बीच रहकर उन जैसे हो जाते हैं।’ बलराम ने बताया कि गाँव में उनका बड़ा बाग़ था। एक बार फसल बर्बाद होने पर कर्ज लेना पड़ा। कर्ज चुका नहीं और बाग़ सेठ का हो गया। तब से शहर में जूझ रहा है । परेश ने भी अपने परिवार के बारे में बताया,चाय पीते-पीते जैसे दोनों दोस्त हो गए|

      चलते –चलते परेश ने पूछा—‘ यह टूटा हुआ गमला....

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       बलराम बोला—‘ मैंने टूटा हुआ गमला हटाने की सोची थी पर रुक गया। यहाँ कई लोग पौधे लेने आते हैं। अभी तो यह टूटा हुआ गमला तुम्हारे गुलाब की पहचान है। अगर टूटे हुए गमले को हटा दिया तो फिर मैं भी तुम्हारे गुलाब को नहीं पहचान सकूँगा।इसीलिए...

परेश को लगा बलराम ठीक कह रहा है। बोला—‘ यह तो तुमने बढ़िया बात सोची बलराम भय्या ।’ सच टूटे हुए गमले के कारण उसका गुलाब अलग से पहचाना जा रहा था। उसने पूछा—‘मैं इतनी सुबह-सुबह आ गया कहीं तुम्हें...

‘ बुरा लगा तो था लेकिन...

‘ क्या हम सवेरे की चाय साथ-साथ पी सकते हैं?’ परेश ने बताया कि अब तक वह सुबह की चाय कहाँ पीता रहा है।बलराम से पहले उसकी पत्नी बोल उठी – ‘ लेकिन दूध लेकर मत आना।’

परेश चुप चाप चला आया। वह बहुत खुश था।

लेकिन अगली सुबह चाय नहीं मिली। परेश ने देखा- दरवाजे पर ताला लगा था।पता चला कल रात में बलराम के बेटे की तबीयत खराब हो गई।उसे अस्पताल ले जाना पड़ा।कौन सा  अस्पताल यह किसी को पता नहीं था। परेश ने अनुमान लगाया –बलराम बेटे को सरकारी अस्पताल में ही ले गया होगा। वहाँ पहुंचा तो बलराम मिल गया। परेश को देख कर चौंक गया।परेश ने कहा—‘मैं तो सुबह की चाय पीने आया था।’ फिर बोला—‘ मैं अभी आया।’ अस्पताल के बाहर कई चाय वाले बैठे थे। परेश ने पूछा –‘ किसी के पास थर्मस है?’ एक चाय वाले ने बताया –‘ है तो सही पर पैसे रख कर देंगे।’ परेश ने पैसे जमा करा दिए। कई कप चाय भरवा ली। नाश्ते के लिए भी ले लिया।बलराम से बेटे की तबीयत के बारे में पूछा तो उसने बताया—‘ बुखार पहले से कम है लेकिन पूरी तरह ठीक होने में एक दो दिन और लगेंगे,’

परेश ने कहा---‘ पहले भाभीजी को चाय देकर आओ, फिर हम दोनों चाय पियेंगे।' चाय पीते पीते परेश ने बलराम से कह दिया कि कोई चिंता न करे, सब ठीक हो जाएगा।बलराम ने कसकर परेश का हाथ पकड़ लिया, बोला कुछ नहीं। उस खामोश पकड़ ने सारी बात कह दी थी।बच्चे को दो दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिल गई। उन्हें घर पहुंचा कर परेश चलने लगा तो बलराम की पत्नी ने कहा—‘ कल से हर सुबह की चाय हमारे साथ पीना, पर उस चाय में दूध आपका नहीं होगा। यह मेरी शर्त है।’

परेश मुस्करा कर रह गया। अब हर सुबह की चाय बलराम का परिवार परेश के साथ पीता था -- पिछवाड़े की नर्सरी में गुलाबों के बीच। परेश का गुलाब टूटे गमले के कारण अलग ही पहचाना जाता था। दो नए गुलाब और खिल गए थे—वे तीन भाई थे( समाप्त )।

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