Wednesday 14 October 2020

एक था पहाड़-एक है पहाड़-कहानी-देवेंद्र कुमार

 

एक था पहाड़-एक है पहाड़-कहानी-देवेंद्र कुमार

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इस कहानी के अंदर हैं हम लोग,राक्षस और एक परी | आइये पढ़ते,सुनते और लिखते है इस कहानी को | पहाड़ -जिसे हम सबने मिल कर बनाया है| आप कहेंगे -यह कैसी अजीब बात, पहाड़ों को तो प्रकृति ने बनाया है धरती की दूसरी सब चीजों की तरह,जैसे समुद्र,जंगल,नदियां- मेरा मतलब  इस धरती पर जो भी है वह सब कुछ |  तो फिर यह कैसे हुआ कि हम मनुष्यों ने इतना बड़ा काम कर दिया -एक पहाड़ बना दिया!  और पहाड़ भी कैसा कि जो दिनों दिन ऊँचा होता जा रहा है. अपने आप नहीं , जिसकी ऊँचाई  हमारे कारण बढ़ती जा रही है |

यह है कूड़े का पहाड़ जिसे हम मनुष्यों यानि मैंने,तुमने और हम सबने  मिल कर बनाया है.  इसे अधिक ऊँचा और ज्यादा ऊँचा बनाने में शायद पूरा समाज जुट गया है, क्योंकि कूड़े को बुहारने और ठिकाने लगाने का काम थोड़े से  सफाई कर्मी करते हैं लेकिन कूड़ा फ़ैलाने में शायद पूरा देश लगा रहता है. ऐसे में कूड़े का पहाड़ तो बनेगा ही, और उसकी ऊंचाई भी हर दिन बढ़ती जायेगी, क्योंकि  जितना कूड़ा प्रतिदिन बुहारा या ठिकाने लगाया जाता है उससे ज्यादा पैदा हो जाता है.ऐसे में कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई बढ़ना निश्चित है.

हाँ तो एक शहर में था  कूड़े का पहाड़. लोग उससे हर समय  बच कर चलते थे. लेकिन फिर भी  उस पहाड़ के आसपास लोग रहते ही थे. हर तरफ बदबू  छाई रहती थी. कूड़े के उस पहाड़ को वहां से  हटाने और उसे पूरी तरह समाप्त करने के लिए अनेक योजनाएं बनी,उन पर काम भी शुरू हुआ,पर पूरी कोई  न हुई. इस बीच कूड़े के पहाड़ का शरीर फैलता जा रहा था ,उसकी ऊंचाई बढ़ती जा रही थी.

कई ट्रक पहाड़ पर कूड़ा डालने के लिए उसके ऊपर घर्र घर्र  करते चढ़ते उतरते रहते थे, और  उसके निचले हिस्से पर, कुछ बच्चे कूड़े में काम लायक चीजें खोजकर एकत्र करने में अपने हाथ गंदे करते नज़र आते. उन बच्चों का सारा समय इसी में गुजरता था.

एक रात कुछ हुआ. कूड़ा और दुर्गन्ध जाग रहे थे. सच कहूं तो दोनों कभी सोते ही नहीं थे. जोर की आवाज़ हुई और कूड़े के पहाड़ में जैसे एक खिड़की खुल गई। कोई आंधी की तरह आया और  खिड़की से  अंदर घुस गया. आप सोच  रहे  होंगे कि कूड़े के  पहाड़ के अंदर भला कौन रह सकता है, ले किन कोई तो था जिसने कूड़े के पहाड़ के अंदर रहने का फैसला कर लिया था. वह था एक  राक्षस। उसका  परिवार एक गुफा में  रहता था.

राक्षस ने सोचा -कूड़े के विशाल पहाड़ के अंदर परिवार के लिए दूसरा ठिकाना बनाया जा सकता है. रात बीती, नया दिन उगा.राक्षस ने पहाड़ में बने  बड़े छेद से बाहर झाँका. उसने अपने को कूड़े में छिपा लिया था. कोई देखता तो समझता कि कूड़े का बड़ा गोला हवा में तैर रहा हो . उसे कूड़े के पहाड़ के  निचले हिस्से में तीन बच्चे दिखाई दिए जो कूड़े के ढेर में से कुछ छांट कर बोरों  में डाल रहे थे. उसने सुना था कि मनुष्यों के बच्चे पढ़ते और खेलते हैं। वह सोचने लगा -ये किसके बच्चे हैं ,जो न पढ़ रहे हैं न खेल रहे हैं.

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 वे बच्चे थे -विशाल,भुवन और  जीवन. उन तीनों का सारा दिन इसी तरह कूड़े के बीच बीतता था. उन के बाबा और पिता यही काम करते थे और अब उन्हें भी कूड़े के बीच काम करना पड़ता था. वे दूसरे बच्चों को स्कूल जाते हुए और खेलते देखते तो उनका मन दुखी हो जाता।वे सोचते- ' वह दिन कब आएगा जब  हम भी पढ़ और खेल सकेंगे इन बच्चों की तरह.'

राक्षस ने सोचा -   ' अगर मैं इन तीन खिलौनों को  अपनी गुफा में ले जाऊं रहे  तो  कैसा रहे। हमारे बच्चे  इनसे खेलेंगे , मजे करेंगे.' और  उसने हाथ बढ़ा  कर विशाल,भुवन,और जीवन को एक साथ ही  कूड़े के पहाड़ के  अंदर  खींच लिया, कोई कुछ नहीं जान सका. बच्चे गैस  और  दुर्गन्ध  से  अचेत  हो गए. राक्षस उनसे कोई बात न  कर सका.

दिन  ढल गया. विशाल,  भुवन और जीवन अपने घर न  लौटे तो उनके माँ- पिता खोज खबर लेने आये. उनके अध भरे बोरे तो पड़े थे पर तीनों बच्चों का पता  न चला. उनके परेशान माँ-बाप इधर उधर खोजते रहे.  पता चलता भी तो कैसे! तीनों बच्चों के माँ-बाप सारी  रात भटकते रहे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि उनके बच्चों का क्या हुआ.

उस रात एक अच्छी परी आकाश से नीचे उतरी तो उसने रोने की आवाजें सुनी। वह जगह उन तीन बच्चों के घरों के आसपास थी. परी ने उनके रोने की आवाजें सुनीं तो उसे लगा, इनकी मदद करनी चाहिए. परी जा पहुंची कूड़े के पहाड़ के पास।

उसने कूड़े के पहाड़ में बना हुआ सूराख देखा। अपनी जादुई छड़ी का प्रकाश अंदर डाला तो विशाल,भुवन और जी वन   अचेत पड़े दिखाई दिए , पास ही  राक्षस भी सो रहा था,उसके खर्राटों से कूड़े का पहाड़ थरथरा रहा था. परी ने राक्षस को दंड देने का निश्चय किया. उसने तीनों बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया. तीनों की बेहोशी टूट गई.

उस समय परी बूढी दादी अम्मा के रूप में थी. वह बच्चों को उनके घर ले गई. तीनों परिवारों को एक एक टोकरी भोजन दिया, फिर कहा -'तुम में कोई भी कूड़े में अपने और बच्चों के हाथ गंदे नहीं करेगा.'

'अगर हम कूड़े में से काम लायक चीजें छांट कर नहीं बेचेंगे तो परिवार का पेट कैसे भरेंगे.'-भुवन के बापू ने कहा.

'मैं तुम सबको ऐसी जगह ले चलूंगी जहाँ तुम्हें कूड़े में हाथ गंदे नहीं करने पड़ेंगे. '-दादी माँ बनी परी ने कहा. और तीनों परिवारों को अपने  साथ चलने को कहा. इसके बाद परी विशाल, भुवन और  जीवन के परिवारों को अपने साथ एक नई  जगह ले गई. वहां खुले और हरे भरे मैदान में एक बड़ी इमारत बनी  हुई थी. इमारत पर लिखा था -' बच्चों का घर'|'  मैदान में अनेक बच्चे दौड़ भाग कर रहे थे.थोड़ी दूर खेतों में किसान खेती के काम में लगे थे.

'यहाँ का मालिक कौन है?'-भुवन के पिता ने पूछा-'किसकी है यह जगह?'

दादी माँ ने हँसते हुए कहा-' और किसकी होगी! तुम्हारी,मेरी यानि हम सबकी.'

जीवन का बापू बहुत खुश था. उसने धीरे से कहा-'यहां गंदगी नहीं है,कूड़े का पहाड़ भी नहीं दिखाई देता. तो अब से हम सबको कूड़े में हाथ गंदे नहीं करने पड़ेंगे,वाह.'

बस तभी से विशाल, भुवन और जीवन अपने माँ बाप के साथ परी के आश्चर्य लोक में सुखी हैं. तीनों के पिता खेतों में फसल उपजाते हैं,बच्चों का सारा समय पढ़ाई और खेल कूद में बीतता है,कूड़े का पहाड़ उनके लिए एक बुरा सपना था जो बीत चुका है.

 लेकिन परी को अभी राक्षस को दंड देना है.

 रात के समय परी कूड़े के पहाड़ के निकट जा खड़ी हुई. उस ने नदी को पुकारा तो पानी का रेला हवा में उड़ता हुआ आया और कूड़े के पहाड़ को बहा कर ले गया और समुद्र में फेंक दिया. कूड़े का  पहाड़ और राक्षस कहाँ गए,कोई न जान पाया.

  सुबह लोग जागे तो अद्भुत दृश्य सामने था.कूड़े के पहाड़ की जगह हरा भरा मैदान नज़र आ रहा था.। क्या बच्चे ,क्या बड़े स्तंभित ,चकित भाव से अपलक ताक रहे थे. कोई कुछ नहीं समझ पा रहा था.  उसी पल लोगों ने कसम उठाई कि वे कूड़े का पहाड़ कभी नहीं बनने देंगे.

और तभी एक आवाज़ कानों में आयी-'और कितनी देर तक सोते रहोगे!'यह मेरी पत्नी पूछ रही थीं. तो क्या मैं सपना देख रहा था. हाँ,ऐसा ही था. क्योंकि कूड़े का पहाड़ अपनी जगह उसी तरह खड़ा था. और सबसे बुरी बात यह थी कि कई बच्चे कूड़े में काम कर रहे थे. क्या मेरा ,आपका सपना कभी सच होगा?कौन जाने. ==

 

 

 

 

                                                             

 

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