Thursday 8 October 2020

--मेरे सात बाल उपन्यास --(कथासार)

 

--मेरे सात बाल उपन्यास --(कथासार)-

कुछ समय पहले मेरे सात बाल उपन्यासों का संकलन प्रकाशित हुआ था. पुस्तक का कलेवर बड़ा था.पाठकों की सुविधा के लिए मैं यहाँ सातों उपन्यासों का कथा सार प्रस्तुत कर रहा हूँ.

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१.पेड़ नहीं कट रहे हैं २ चिड़िया और चिमनी ३ एक छोटी बांसुरी ४ खिलौने ५ नीलकान ६. अधूरा सिंहासन ७. हीरों के व्यापारी

 

1.       पेड़ नहीं कट रहे हैं

 

जानू एक अनाथ है. वह एक पेड़ के नीचे रहता है. रोटी के लिए बोझा ढोता है. सड़क चौड़ी करने के लिए पेड़ काट दिया जाता है. पेड़ से एक घोंसला गिरता है. जानू घोंसले  को एक बंगले की चारदीवारी के छेद में टिका देता है.

बंगले में अजीत अपने अमीर पिता के साथ रहता है. अजीत जानू से कहता है- ‘घोंसले को हमारे लॉन के पेड़ पर टिका दो.’ अजीत बढ़िया स्कूल मैं है,  लेकिन उसके दोस्त ठीक नहीं. एक दिन जानू अजीत को कबाड़ी शेख की दूकान में  जाते हुए देखता है.जब अजीत बाहर आता है तो बस्ता उसकी पीठ पर नहीं है. जानू को लगता है वह बस्ता शेख की दूकान में भूल गया है. जानू शेख से अजीत का बस्ता लौटाने को कहता है पर शेख उसे बताता है कि जानू बस्ता बेच गया है.जानू को विश्वास नहीं होता.

शेख बीमार है, जानू उसकी मदद करता है, दवाई देता है. दोनों एकदूसरे को अपनी जीवन कथा सुनाते हैं. दोनों ही दुनिया में अकेले हैं. उनमें निकटता हो  जाती है. शेख बस्ता जानू को लौटा देता है. जानू अजीत को उसका बस्ता लौटता है तो वह जानू से नाराज़ हो जाता है. उसे लगता है जानू उसकी जासूसी कर रहा है, जबकि जानू तो बस इतना चाहता है कि अजीत अपने नकली दोस्तों से दूर रह कर ठीक से पढ़े  लेकिन अजीत उसकी कोई बात सुनने को तैयार नहीं. कुछ दिन बाद एक शाम जानू अजीत को अपने दोस्त के साथ रेलवे स्टेशन पर देखता है. आखिर अजीत इस समय वहां कर क्या रहा है?

जानू अजीत के साथी को एक दाढ़ीवाले से बातें करते हुए सुनता है, इसके बाद अजीत का दोस्त उसे जैसे जबरदस्ती ले जाता है. जानू ने सुना है वे काली कोठी जा रहे हैं.  वह सुनसान जगह में  एक खंडहर इमारत है. जानू समझ गया है कि अजीत किसी साजिश का शिकार होने जा रहा है.  वह भी उन दोनों के पीछे चल देता है,तभी जानू उसी दाढ़ीवाले को भी देखता है.

काली कोठी में अँधेरा है.दाढ़ीवाला अपने साथी के हाथों फिरोती का पत्र अजीत के पिता के पास भेजता है, अजीत को बदमाशों ने कैद कर लिया  है. जानू चुपचाप अंदर घुस जाता है,अजीत एक कमरे में  बंधन में  है. जानू उसके बंधन खोलता है तो  अजीत का नकली दोस्त बदमाशों को सावधान कर देता है.जानू अजीत का हाथ थाम कर भागता है. अब तक अजीत भी सच जान गया है. बदमाश इन दोनों के पीछे भागते हैं पर तभी पुलिस आ जाती है. बदमाश पकड़ लिए जातें हैं. असल में  जब अजीत के पिता फिरौती की रकम लेकर जा रहे थे तभी पुलिस मिल जाती है और उनके साथ  वहां आ जाती है. अजीत की आँखें खुल गई हैं, वह सबके सामने जानू को   अपना असली दोस्त मान लेता है. जानू को लगता है कि अभी बहुत सारे पेड़ हैं आसरे के लिए. ==

 

 

 

 

 

 

2.       चिड़िया और चिमनी

 

 

कारखाने  की ऊँची चिमनी से लगातार काला विषैला धुआं निकलता रहता है. जंगल में  रहने वाली नीलम चिडिया काले धुएं के बादल के बीच से गुजरी तो उसका गला खराब हो गया, वह बीमार हो गई. पूरे जंगल में यह बात फैल गई.जंगल के राजा  हाथी दादा को नीलम बतलाती है कि चिमनी के धुऐं के कारण वह बीमार हो गई है. हाथी दादा को क्रोध आ जाता है. वह चिमनी को इस अपराध के लिए दंड देने का फैसला करते हैं. हाथी दादा जंगल के निकट बने कारखाने में जाकर अपने पैर की ठोकर से चिमनी को गिरा देते हैं.दोषी को दंड मिल गया. नीलम चिडिया खुश है. लेकिन तभी कुछ पक्षी कारखाने से लौट कर हाथी दादा को बतलाते हैं कि  उन्होंने चिमनी के रोने की आवाज़ सुनी है.वह कह रही है कि उसका क्या कसूर? वह तो दूसरे कामगारों की तरह नौकरी करती है. वह चाह कर भी धुऐं को निकलने से नहीं रोक सकती, क्योंकि उसके हाथ तो हैं नहीं जो अपना मुंह बंद कर सके.  

   हाथी दादा को लगता है यह तो गलत हो गया. तोड़फोड़ के कारण कारखाना बंद है. मजदूर बेकार हो गए हैं.उनके परिवार संकट में  हैं. हाथी दादा उनकी मदद की योजना बनाते हैं. लंगूरों के  झुण्ड रात के समय बस्ती में  फलों के ढेर लगा देते हैं.लेकिन बात नहीं बनती,फल रोटी का स्थान नहीं ले सकते. 

 अब क्या हो? तभी कारखाने का मालिक  हरचरण अपने दोस्तों के साथ जंगल में  शिकार खेलने आ जाता है. जंगल में गोली चलने की आवाज़ गूंजने लगती है. जंगल के जीव नाराज़ हैं. वे शिकारियों को घेर लेते हैं. लंगूर शिकारियो की बंदूकें झील मैं फ़ेंक देते हैं. फिर हरियल तोते की मदद से शिकारियों और हाथी दादा के बीच बातचीत होती है. हरियल तोता मानवों की भाषा जानता है. पहले तो हरचरण अकड़ता है पर हाथी  दादा उसे चेतावनी देते हैं कि वे लोग जंगल  से बच  कर नहीं जा सकते . डरा हुआ हरचरण जंगल की हर शर्त मानने पर विवश है.

हाथी दादा कहते हैं- चिमनी की मरम्मत करवाओ, उसमें विषैले रसायन और कालिख को बाहर निकलने से  रोकने वाले उपकरण फिट करवाओ. बीमार मजदूर परिवारों के  इलाज का प्रबंध तुरंत हो.और सबसे बड़ी बात यह कि बंद कारखाना चालू हो ताकि मजदूरों को काम मिले.

हरचरण ऐसा ही करता है.इसके पीछे जंगली जानवरो के नए हमले का डर  भी जरूर रहा होगा. चिमनी अब फिर से सीधी खड़ी है और उसके अंदर से काला नहीं सफ़ेद धुआं निकल रहा है. कारखाना चल रहा है. नीलम चिडिया चिमनी के पास होकर आई है.दोनों सहेलियाँ बन गई हैं.  ==

     

 

 

 

 

3.       एक छोटी बांसुरी

नौ साल का अमर परेशान रहता है. उसके सैनिक पिता लड़ाई के मोर्चे से लापता हो गए हैं. अमर जानना चाहता है कि पिता कब आयेंगे. पर इसका जवाब उसकी मां कुसुम  के पास नहीं है. वह तो खुद ही परेशान है.अमर ने किताब में एक कहानी पढ़ी थी जिसमे एक लड़का  अपने खोए हुए भाई की खोज में  जाता है और उसे खोज कर ले आता है. अमर को लगता है कि उसे पिता की खोज में जाना चाहिए. लेकिन माँ को छोड़ कर कैसे जाए. एक रात उसकी नींद टूट जाती है. वह घर से बाहर आ जाता है.सुनसान सड़क पर सैनिक मार्च करते जा रहे हैं. अमर सोचता है शायद इनमे से कोई सैनिक उसके पिता का पता बता दे,और वह भी उनके साथ साथ चलने लगता है.वह देर तक चलता जाता है. सैनिक जा चुके हैं. अमर भी थककर सड़क पर लेट कर सो जाता है. एकाएक अमर की नींद टूटती है.सब तरफ जंगल है.वह घबरा जाता है.उसकी समझ में  कुछ नहीं आ रहा है. उसे अब माँ की याद आ रही है.

वहां एक बूढा आता है.वह बांसुरी बजाकर भीख मांगता है.अमर उसे पिता के बारे में  बतलाता है.बूढा अमर से  कहता है कि वह उसके पिता को जानता है और अमर को उनके पास ले जा सकता है.भोला अमर ! उसे क्या पता कि बूढा उसे धोखा दे रहा है. वह उसके साथ चल देता है. वह पिता  से मिलने की  कल्पना में  खोया हुआ है. वे दोनों एक गाँव में  पहुंचते हैं.वहां एक औरत इन्हे खाना देती है.शाम ढल रही है. वह औरत कहती है-'जहाँ तुम बैठे हो वहां सांप निकलते  हैं.गाँव के बाहर एक मंदिर है,तुम वहां चले जाओ.' रात में  वही औरत इन दोनों के लिए खाना लेकर आती है. उसके साथ अमर की उम्र  का एक लड़का है.वह उसका पोता है  --गूंगा -बहरा. वह साथ लाई लालटेन ले जाती है.तभी एक चीख सुनाई देती है. पता चलता है,उसके पोते  रोहू को सांप ने  काट लिया है. गांव वाले रोहू को  शहर के अस्पताल ले जाते हैं,बूढा और अमर भी साथ हैं.

बांसुरी- बाबा ने इस बीच अमर को बांसुरी बजाना सिखा दिया है.एक शाम मौसम खराब है.अमर बांसुरी- बाबा के साथ एक सराय  के बाहर खड़ा है.वे भूखे हैं और बारिश भी हो रही है.पर उन्हें कोई अन्दर नहीं जाने देता. तभी एक सेठ परिवार के साथ वहां आता है.सेठ सराय  में  चला जाता है.बांसुरी बाबा कुछ लोगों की बातें सुनता  है तो शोर मचा देता है.वे लोग सेठ को लूटने की बातें कर रहें हैं. वे लोग बांसुरी बाबा को घायल करके भाग जाते हैं. अब इन्हें अन्दर जगह मिलती है.बांसुरी बाबा को बहुत चोट लगी है. वह अमर से कहता है- ‘मैंने तुझ से झूठ कहा था,मैं तेरे पिता को नहीं जानता.’ अमर बहुत घबरा जाता है  और बेहोश होकर गिर पड़ता है.बांसुरी बाबा की मौत हो जाती  है.अमर बहुत बीमार है पर उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं.

तभी डॉक्टर रायजादा वहां किसी को देखने आते हैं. उन्हें अमर के बारे में  पता चलता है.अमर को देखते ही डॉक्टर समझ जाते हैं कि अगर उसकी देखभाल नहीं हुई तो वह मर सकता है.रायजादा अमर को अपने घर ले जाते हैं. गाँव में  उनकी बहन की शादी है.वह अमर को अपने साथ ले जाते हैं.अमर दवा और  देख भाल से  ठीक हो रहा है.उन्हें अमर ने  सब बता  दिया  है.एक रात वह कहीं चले जाते हैं फिर अमर को अपने पास बुला  लेते हैं. अरे! यह तो रोहू का गाँव है. वहां रोहू मिलता है.फिर  अमर अपनी माँ को देखता है तो रोकर उनसे लिपट जाता है.यह सब डॉक्टर ने किया है. वह रोहू का इलाज कर रहे हैं.डॉक्टर अमर  से कहते हैं रोहू का इलाज शहर मैं  ही हो सकता है क्या तुम इसे अपने घर ले जाओगे? अमर झट रोहू का हाथ पकड़ लेता है. उसे पिता नहीं मिले , पर  कुछ ऐसा मिल गया है जिसे वह हमेशा अपने पास रखना चाहेगा ==.

 

4.       खिलौने

लेखू खिलौने बेचता था. खिलौने बनाने  वाले सुखीराम के साथ रहता था. उसका अपना कोई नहीं था. सुखीराम उसे मारता पीटता था, पर वह कुछ नहीं कर सकता था. एक लड़की थी मुन्नी. उसके पैर में तकलीफ थी.वह खिड़की में  बैठी देखती रहती थी.लेखू गली में  आया तो मुन्नी ने उससे खिलौना मांग लिया. लेखू ने खिलौने के बदले पैसे मांगे .मुन्नी एक गरीब मजदूर की  बेटी थी.उसके पास पैसे नहीं.थे मुन्नी रोकर लेखू को अपनी तकलीफ के बारे में बतलाती है तो लेखू को दुःख होता है.

वह सोचता है –अगर एक चिडिया पकड़कर मुन्नी को दे दे तो उसका मन बहल जाएगा.वह चिडिया पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ता  है तो नीचे रखे अपने खिलौनोँ  पर गिर पड़ा और सारे खिलौने टूट गए. चिडिया भी  मर जाती है.लेखू दुखी  है. तभी वहां चीतल आता है –  वह लेखू की मदद करता है. मृत चिड़िया को जमीन में दबा  दिया जाता है.चीतल एक खंडहर में  रहता है. लोग उसे भिखारी कहते हैं पर उसकी एक दुःख भरी कहानी है. सुखीराम खिलौने टूटने के कारण लेखू को मार पीटकर भगा देता है. अब लेखू कहां जाए. स्टेशन पर सामान ढोते हुए वह बेहोश हो जाता है. एक बार फिर चीतल लेखू की मदद करता है और उसे अपने साथ खंडहर में  ले जाता है.  

खंडहर में  सिपाही हेकड़ राम आ जाता है. वह समझता है कि चीतल लेखू का अपहरण करने वाला है. पर ऐसा नहीं है.चीतल उसे पूरी बात  बतलाता  है, हेकड़ राम  का भ्रम दूर हो जाता है. लेखू चीतल के साथ वहीँ रहता है. खंडहर के पास से रेलवे लाइन गुजरती है. एक रात लेखू की नींद टूट जाती है. वह देखता है कि वहां से जाती रेल गाडी से एक पोटली गिरती है,जिसे दो लोग उठा कर ले जाते हैं. लेखू अपने  उन  दोस्तों से मिलना चाहता है जो कई दिनों से बाज़ार में  खिलौनें बेचते नहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं. आखिर वे कहाँ चले गए?

लेखू मुन्नी से मिलने जाता है.मुन्नी और उसकी सखियाँ रंगीन कपडे की कतरनों से सुंदर खिलौने बना रही हैं. वे लेखू को खिलौने बेचने के लिए देती हैं. लेखू वे खिलौने  एक  डॉक्टर की बेटी जूही को देता है. डॉक्टर कहते हैं और खिलौने लाओ.. जूही का अपहरण हो जाता है.  एक रात लेखू के सर  पर वार होता है. वह बेहोश हो कर गिर जाता है और फिर  अपने को बंदी पाता  है. वहीँ उसके दोस्त और जूही भी कैद में हैं.  उन्हें बच्चों की तस्करी करने वाले गिरोह ने पकड़ा है.तभी चीतल और  हेकड़ राम वहां आ जाते हैं . तस्करों ने बच्चों को एक बड़ी नाव में कैद कर रखा है. सब तस्कर पकडे जाते हैं.लेखू और उसके दोस्तों की  देख रेख और शिक्षा  का जिम्मा डॉक्टर लेते हैं. अब उन्हें खिलौने नहीं बेचने पड़ेंगे . == 

 

 

 

 

5.       नीलकान

गोनू मजदूरी करके पेट पालता है. वह दुनिया में  अकेला है. उसी बस्ती में  परमू का मेहनती गधा भी है, जिसके कानों को परमू ने नीले रंग से रंगा हुआ है. एक दिन परमू का गधा गोनू के पास खड़ा था, तभी किसी ने गोनू को गधा कह कर पुकारा. परमू का गधा सोचने लगा-यह लड़का तो मनुष्य है फिर इसे गधा क्यों कहा जा रहा है?वह गोनू से पूछना चाहता है पर वह तो बोल नहीं सकता केवल रेंक सकता है. वह सोचता है- हे भगवान् ! क्या मैं मनुष्य की तरह नहीं बोल सकता?’

और तभी चमत्कार हुआ. परमू का गधा मानवों की तरह बोलने लगा. उसने कहा-‘ गोनू भाई, क्या  हाल है? तुम कुछ उदास लग रहे हो.’ गोनू चिल्लाया-‘ भूत, भूत !’ और वहां से भाग चला. परमू के  गधे ने कहा-‘ मैं भूत नहीं हूँ. और उसे समझाया तब गोनू शांत हुआ. उसने जान लिया कि दुनिया में  चमत्कार भी होते हैं. दोनों में दोस्ती हो गई. गोनू  ने गधे का नाम नील कान रख दिया. दोनों भले लोगों की खोज में  चल दिए.

आगे  उन्हे एक बुढिया मिली जो भूख से परेशान थी. गोनू ने उसे खाना खिलाया. गोनू और नीलकान ने रात वहीँ बिताई. लेकिन जब सुबह उठा तो  नीलकान  गायब था. गोनू को नीलकान एक गड्ढे में  गिरा हुआ  मिला. उसे  बाहर निकाला गया . उसने गोनू को  बताया कि गड्ढे में  सोने के सिक्कों की पोटली पड़ी है.

वे सिक्कों के असली मालिक की खोज मैं निकल पड़े. गोनू ने सिक्कों की पोटली नीलकान के  गले से लटका दी. एक पुल से गुजरते हुए पोटली नीचे तैरती एक नाव में  जा गिरी. गोनू जल्दी से नाव के  पास जा पंहुचा. नाव के मल्लाह ने उनकी मदद की और पोटली खोज ली  लेकिन झटका लगने से सिक्कों की पोटली नदी में  गिर गई.

दोनों आगे चले .आगे पशु मेला लगा था.वहां नील कान को किसी ने पकड़ लिया. अब नीलकान का पता कैसे चले क्योंकि वहां कई गधों के कान नीले रंग में रंगे हुए थे. तब नील कान ने मानवों की तरह बोल कर  सब को हैरान कर दिया. वहां मौजूद चार ठगों ने नील कान को पकड़ लिया. वे उसे राजा  को दे कर इनाम लेना चाहते थे. जब ठग नील कान को ले जा रहे थे तो गोनू ने कहा-‘ दोस्त, आदमी की बोली में  कभी मत बोलना,’ नील कान दरबार में सिर्फ रेंकता रहा.  राजा ने ठगों को जेल मैं डाल दिया.

गोनू नीलकान  को खोज रहा था, वह गोनू को जंगल  में  मिला.इस बार नील कान ने मानव की बोली बोल कर सब को हैरान कर दिया. राजा  ने कहा- नील कान, तुम हमें राज्य की सच्ची ख़बरें  दिया करो. नील कान ने सच बताया तो मंत्री नाराज हो गया क्योंकि वह राजा से झूठ  कहा करता था. वह नील कान को मारने की कोशिश करने लगा .दोनों भाग कर चले आये. गोनू ने बूढी अम्मा के पास रहने का फैसला किया. दुनिया में  उसका कोई और था भी नहीं. अम्मा खुश  थी पर एक दिन नील कान  न जाने कहाँ चला गया. ==

 

 

6.       अधूरा सिंहासन

जंगल में छात्रों की बस ख़राब हो जाती है. वे समय बिताने के लिए सामने दिखाई देती गुफा में चले जाते हैं. वहां हाथी दांत के दो सिंहासन रखे हैः. उनमें एक पूरा है और दूसरा अधूरा ,गुफा की दीवारों पर हाथियों के शिकार और कटे पेड़ों के चित्र भी बने हैं. सब हैरान थे आखिर इनका रहस्य क्या था. पूछताछ करते हुए छात्र और अध्यापक सुखपुर पंहुच जाते हैं. वहां जयंत मिलते हैं. वह भी  उनके साथ गुफा में  जाते हैं. एक सिंहासन पर राजा  मानवेन्द्रसिंह लिखा  है.  राजा  जयंत के पुरखे थे. पर उनका सिंहासन निर्जन गुफा में  क्यों रखा था इस बारे में  जयंत को भी कुछ पता नहीं है.

एक सुबह जयंत चुपचाप कहीं  चले जाते हैं.वे देर तक नहीं लौटे तो बच्चों के दोनों टीचर जयमल  और विजयन गुफा में  खोजने गए. जयंत नीचे वाली गुफा में  बेहोश मिले. जयंत को होश आ गया.गुफा में  कीमती साड़ियाँ और चित्रकला का सामान मिला.गुफा में  आने जाने का एक गुप्त मार्ग भी मिला.

पूरे और अधूरे सिंहासनों का रहस्य जयंत को एक पुरानी किताब में  मिला.  उसमे लिखा था लिखा था -- राजा मानवेन्द्र काफी पहले हुआ था. भूकंप में  सिंहासन टूट जाने से राजा  ने हाथी दांत का सिंहासन बनवाने का फैसला किया. रानी देवयानी ने मना किया, इससे काफी निर्दोष हाथी मारे जाने वाले थे. पर राजा  नहीं माना. बहुत सारा हाथी दांत चोरी से पास के चरकारी राज्य में  चला गया. दोनों राज्यों के बीच युद्ध की नौबत आ गई. फिर रानी देवयानी गायब हो गई. ऐसा ही चरकारी में  भी हुआ. दोनों राजाओं के पास पत्र आए कि अगर युद्ध नहीं टाला  गया तो रानी का सर काट  कर भेज दिया जाएगा. दोनों राजा डर  गए और युद्ध रोक दिया गया. दोनो राजाओं ने हाथी दांत के सिंहासनों को गुफा में रखवा दिया,चरकारी वाला सिंहासन अधूरा  था. फिर दोनों रानियाँ सकुशल वापस आ गईं . देवयानी ने मानवेन्द्र को बताया कि युद्ध को रोकने के लिए दोनों रानियों ने मिल कर यह नाटक किया था. वह  पति को गुफा में  ले  गईं. हाथियों और कटे पेड़ों के  चित्र देवयानी ने बनाये थे.

इस तरह पूरे और अधूरे सिंहासनों का रहस्य खुल गया.जयंत ने गुफा में  पर्यावरण का संग्रहालय बनवाने का फैसला किया . ==

 

 

7.       हीरों के व्यापारी

 

 

राजेश और सुरेन्द्र दोस्त हैं. रात में राजेश सुरेन्द्र को छोड़ने जा रहा था. रास्ता रेलवे लाइन के पास से जाता  था. तभी गाडी में  चीख गूंजी . कोई डिब्बे  से उतर कर भाग चला. फिर एक  कार तेजी से चली गयी.राजेश को झाड़ियों में  एक डायरी मिलती है ,जिस पर उसके बड़े भाई नारायण का नाम लिखा है. पता चलता है कि ट्रेन में  एक हीरा व्यापारी की हत्या हो गई.  राजेश सोच रहा था, नारायण भाई की डायरी आखिर वहां क्यों है?

रात में राजेश को नींद नहीं आ रही है. कोई आहट सुन कर वह खिड़की से झाँक कर देखता है कि एक आदमी दीवार फांद कर घर के नौकर भीखू की कोठरी में  जाता है.राजेश चुपचाप कोठरी के बाहर छिप कर अंदर की बातें सुन और देख लेता है. अंदर खड़ा दाढ़ी वाला आदमी भीखू को एक कागज़ दे कर कहता है- 'यहाँ आ जाना.' और फिर जैसे आया था उसी तरह चला जाता है. राजेश ने पेट दर्द का बहाना करके भीखू को दवाई लाने भेज दिया. इसके बाद अंदर जाकर उस कागज पर लिखा पता याद कर लिया.

अगले दिन राजेश नारायण भाई को एक कार में जाते देखता है. राजेश के साथ सुरेन्द्र भी है. दोनों एक कार में लिफ्ट लेकर नारायण की कार का   पीछा करते हैं. आगे वाली कार एक सुनसान कोठी में चली जाती है. यह दोनों भी छिप कर अन्दर घुस जातें हैं.लेकिन ये कुछ कर पाते इससे पहले  बदमाश  इन्हें पकड़कर तहखाने में  डाल  देते हैं.  नारायण भाई भी वहीँ हैं. उनका भेद भी खुल गया है.असल में  नारायण भाई  उस गिरोह में  गुप्त रूप से शामिल होकर  काम कर रहें हैं ताकि मौका मिलने पर उन्हें गिरफ्तार करवा सकें.

ये जैसे तैसे अपने बंधन खोलन में सफल हो जाते हैं. इन्हें तहखाने से बाहर जाने का एक गुप्त रास्ता भी मिल जाता है जो नदी तट पर निकलता है. ये  दो तस्करों को बेहोश कर देते हैं.पर सरदार इन्हें देख लेता है. वह इन पर गोली चलाने वाला है पर तभी  भीखू उसे गिरा देता है. सरदार भीखू का आवारा बेटा  है.  तब तक पुलिस भी आ जाती है. असल में  दोनों दोस्तों ने जिस कार में  लिफ्ट लिया था वह  एक पुलिस अफसर की थी. इन दोनों को  सुनसान कोठी के बाहर उतरते देख कर उन्हें संदेह हो गया था और वह पुलिस के साथ पता करने चले आए थे .हीरा चोर तस्कर पकडे जाते हैं. भीखू का दुःख  समझा जा सकता है, लेकिन वह अपने मालिक के बेटों के प्राण बचाकर खुश है. ==

     

 

 

 

 

 

 

 

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