Monday 18 March 2024

दादी का दीपक -कहानी-देवेंद्र कुमार

 

दादी का दीपक  -कहानी-देवेंद्र कुमार

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दादी का दीपक जला कर आशीर्वाद देना  मशहूर हो गया है।  सुबह दादी नियम से भगवान की प्रतिमा के सामने दीपक जलाती हैं ,लेकिन  एक दोपहर उनकी बहू रमा ने उन्हें दीपक जलाते हुए देखा तो बोली-माँजी ,आप शायद भूल गई सुबह आप पूजा कर चुकी  हैं।

          दादी ने कहा -'भूली नहीं हूँ।  यह नया उजाला है नन्ही मुन्नी के लिए ,' फिर समझाया-'‘कामवाली रत्ना ने कुछ देर पहले मुझे बताया है, हमारे पड़ोस में आज एक बच्ची का जन्म हुआ है।  मैं तो कहीं आती जाती नहीं। इसी तरह आशीर्वाद दे रही हूँ उसे। ' सुनकर अच्छा लगा रमा को।  यह सूचना उसे  भी दी थी  रत्ना ने।  लेकिन  इस तरह दीप  जला कर दूर से आशीर्वाद देने की तो कल्पना भी नहीं थी उसे।अब से थोड़े थोड़े समय के बाद इस तरह दादी का दीपक जलने लगा।  ऐसा दोपहर और संध्या समय ही होता था।  क्योंकि रत्ना दोपहर और शाम को ही बर्तन साफ़ करने आया करती थी।  दादी ने उसे समझा दिया था कि ऐसी अच्छी सूचना वह उन्हें जरूर दिया करे।

रत्ना कई घरों में साफ़ सफाई करती थी।  अन्य कामवालियों से भी  रोज बातचीत होती थी।  इसलिए ऐसे सुसमाचार उसे मिलते रहते  थे।  एक दोपहर दरवाज़े की घंटी बजी।  बाहर रमा की परिचित विभा खड़ी थी  साथ में उसका बेटा विजय भी था। पता चला आज विजय का जन्मदिन था,  विजय ने दादी से आशीर्वाद लिया ,विभा ने रमा को परिवार सहित आने का निमंत्रण दिया।  इस तरह जाने अनजाने दादी के दीपक ने कई नए सम्बन्ध बना दिए थे।  यह सुखद था।  रमा और उसके बच्चे पहली बार बधाई देने नए परिवारों में गए थे।  साथ में रमा के पति  गोपेश भी  थे।  ऐसे समारोह से लौटने के बाद गोपेश माँ को बताना  नहीं भूलते थे कि कैसे सब उनके आशीर्वाद की चर्चा करते हैं।सुनकर वह मुस्करा देतीं।

            एक दोपहर  काम खत्म करके रत्ना  घर  जा रही थी तो  सोसाइटी के गार्ड दिलीप ने टोका –रत्ना ,आजकल दादी के साथ तुम्हारी भी खूब चर्चा होती है,तुम बड़े घरों की अच्छी ख़बरें दादी को देती हो ,पर कभी कभी हम जैसों के  साधारण समाचार भी सुना दिया करो उन्हें, तो हमें भी आशीर्वाद मिल सकता है। '

        रत्ना ने कहा-'तुम अपने को साधारण क्यों कह रहे हो,जैसे तुम वैसी मैं। जरा सोचो ,अगर मैं माजी को ऐसे समाचार न दूँ तो क्या वे उन्हें आशीर्वाद  देंगी ,जिन्हें तुम 'बड़े लोग ' कह रहे हो। ' दिलीप ने कहा- 'कल  मेरे बेटे का जन्मदिन था।। 

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रत्ना चुपचाप चली गई ,शाम को उसने दिलीप से कहा- 'माजी ने तुम्हारे बेटे को आशीर्वाद दिया है। 

      "कब, कैसे !"-दिलीप इतना ही कह सका।

      रत्ना ने कहा-तुम्हारे बेटे के लिए दादी ने दीपक जलाया लेकिन मुझे फटकार मिली।  उन्होंने कहा कि मैंने कल ही उन्हें यह समाचार क्यों नहीं दिया | मैं यह कैसे कहती कि तुमने मुझे आज ही बताया था।  वैसे मेरी बेटी आज पांच साल की हो गई है।रत्ना  की बेटी के जन्मदिन की खबर दिलीप ने दादी को दी |  अगले दिन दादी ने रत्ना को फिर डांटा  कि बेटी के जन्मदिन की खबर उसने खुद  क्यों नहीं दी।  रत्ना चुप खड़ी रही। क्या कहती। दादी ने कहा-'इस तरह संकोच करना ठीक नहीं। मुझे भी अपनी माँ समझो।

      एक दोपहर रत्ना काम करने आई तो चुप चुप थी।  दादी ने पूछा -'क्या बात है रत्ना ?क्या आज कोई अच्छी  खबर नहीं है।

      रत्ना ने कहा-'खबर तो है पर बताने लायक नहीं है। 

      'ऐसी क्या खबर जो मेरे लिए नहीं है।  फिर भी सुना दे।

      रत्ना ने उदास स्वर में कहा-'आज एक तेज रफ़्तार कार  ने बूढ़े भिखारी को कुचल दिया।  बेचारा००० और चुप हो गई ।

     ' क्या कार वाला  पकड़ा गया ?-दादी ने उतावले स्वर में पूछा ।

    'नहीं ,वह इतनी तेज कार चला रहा था कि कोई कुछ भी नहीं देख पाया। कुछ बच्चे पीछे दौड़े जरूर पर वह रुका नहीं।'

'  तो कार वाला यह देखने के लिए भी नहीं रुका कि उसने कितना बड़ा काण्ड कर डाला है|'-दादी ने गुस्से से कहा।  फिर पूछने लगीं - तो कोई  अभागे को अस्पताल भी नहीं ले गया!'

    रत्ना चुप खड़ी थी। दादी उठी और अपने मंदिर में दीप  जला दिया।  रत्ना ने कहा-‘' यह दीपक किस लिए ?'

    उस अभागे के लिए । ' उन्होंने उदास स्वर में कहा।  उस शाम उन्होंने खाना नहीं खाया। । रमा ने कई बार कहा  पर उन्होंने मना  कर दिया।  वह उस अनजान भिखारी के बारे में सोच रही थीं।  मन बैचैन था।  रात में नींद नहीं आई। 

    अगले दिन  रत्ना आई तो दादी ने फिर पूछा -'कुछ पता चला उस कार वाले का?'

    रत्ना  ने कहा  -'नहीं। '

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      इसके बाद हर बार पूछने पर यही उत्तर मिलता था।  एक दिन रत्ना ने कह ही दिया-'उसका कोई होता तो पुलिस में शिकायत करता, सड़कों पर तो आये दिन ऐसा होता रहता है '

     दादी ने कहा-'कोई तो कुछ जानता होगा उसके बारे में।

     रत्ना बोली-'मैंने कई बार उस भिखारी को गार्ड दिलीप से बातें करते हुए देखा था।  शायद उसे कुछ पता हो।

    दादी ने दिलीप को बुलवा लिया| दिलीप ने बताया कि वह भिखारी को पसंद नहीं करता था,  सोचता था कि सोसाइटी के बाहर भिखारी के बैठने से सोसाइटी की शान खराब होती है।  'लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि मेरा मन बदल गया  '-दिलीप ने कहा। 

      दादी ध्यान से सुन रही थीं।

       'शाम का समय था। अचानक एक आवाज़ सुनाई दी -चोर चोर पकड़ो।  एक बदमाश  सड़क पर किसी महिला का पर्स झटक कर भाग रहा था।  भिखारी उस बदमाश से उलझ गया,तब तक और लोग भी आ गए। पर्स महिला को मिल गया । लेकिन छीना झपटी में भिखारी घायल हो गया। तब मैंने अपने  कम्पाउंडर मित्र से उसकी  मरहम पट्टी करवा दी।  पर्स वाली महिला ने उसे कुछ पैसे देने चाहे पर भिखारी ने नहीं लिए -उसने कहा-'  मैंने एक बुरे आदमी से लड़ाई की ,इसका कैसा इनाम। '

   ''  उस दिन के बाद अक्सर मैं उसे अपने साथ खाना खिला देता था।  बातों बातों में उसने बताया था कि वह हमेशा से ऐसा नहीं था।  गांव में  उसका भी घर परिवार था जो बाढ़ में तबाह हो गया। इधर उधर भटकते हुए बहुत समय बीत गया और आज वह बेआसरा भिखारी बन कर जी रहा है।  

       अगली सुबह दादी ने बेटे गोपेश को बुलाया।  कहा- 'चिट्ठी लिखवानी है। '

      गोपेश ने आश्चर्य से कहा -' यह तो मैं पहली बार सुन रहा हूँ। भला किसे चिट्ठी लिखवाना चाहती है आप?'

     दादी ने पुलिस थानेदार को पत्र लिखवाया ,जिसमें भिखारी के कार से कुचल कर मर जाने की शिकायत थी। दादी चाहती थीं कि पुलिस उसके हत्यारे को सजा दिलवाये।

      दादी का पत्र पाकर थानेदार ने कहा-' किसी अनजान भिखारी के लिए ऐसा पत्र मैं पहली बार देख रहा हूँ।  उसने  भी दीपक जला कर आशीर्वाद देने वाली गोपेश की माँ के बारे में किसी से सुना था। उसने कहा -;'गोपेशजी,उस दुर्घटना का कोई गवाह नहीं है,फिर भी मैं मामले की जांच करूंगा। '

      इसके बाद दादी ने गोपेश को कई बार पता करने भेजा ,पर हर बार  एक ही जवाब मिलता था -'मामले की जांच हो रही है। '

      और कुछ हो न हो पर अनजान भिखारी जैसे दादी का अपना हो गया है। रोज  सुबह पूजा के लिए दीपक जलाते समय वह प्रार्थना करती हैं -'भगवान्, भिखारी के अपराधी  को जरूर दंड देना।'(समाप्त )

 

 

 

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