ओवरकोट-कहानी-देवेन्द्र कुमार
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सर्दी ज्यादा थी,
मैंने घर से निकलते समय ओवरकोट पहनना चाहा तो देखा उसके दो बटन एकदम ढीले होकर लटक
रहे थे,उनकी मरम्मत करवाना जरूरी था। हमारे घर से थोड़ी दूर, फुटपाथ पर भुवन दरजी सिलाई मशीन लेकर बैठता है। मैंने उसे ओवरकोट दिया और
थोड़ी देर में आने की बात कह कर बाज़ार की ओर चल दिया।
एक घंटे बाद भुवन
के पास लौटा तो उसे कई लोगों से घिरा पाया। मुझे देखते ही भुवन ने हाथ जोड़ कर
पूछा-‘ साहब जी,माफ़ करना, आपके ओवर कोट की कीमत कितनी होगी?’ मैंने कहा -‘भुवन, ओवर कोट
के दाम की बात छोड़ो।अगर बटन ठीक हो गए हों तो बताओ कितने पैसे दूं।’
उसके पास खड़ा एक
आदमी बोला-‘ साहब, ओवर कोट तो पता नहीं कहाँ है, इसीलिए तो यह बेचारा आपसे उसके
दाम पूछ रहा है।’ मैं कुछ पूछता इससे पहले पता चल गया कि भुवन का बेटा जीतन मेरा
ओवर कोट उठा कर रफू चक्कर हो गया था। भुवन की आँखों में आंसू थे।‘’ मैं आपके ओवर कोट के दाम धीरे धीरे चुका दूंगा|’ कहते हुए उसने जेब से कई नोट निकाल लिए। मैंने उसे रुकने का संकेत किया। मैं
मामले को पूरी तरह समझ लेना चाहता था।
जीतन के बारे में
और भी बहुत सी बातें पता चलीं—यह् कि वह भुवन का जरा भी हाथ नहीं बंटाता। भुवन
सारा दिन कमर झुकाए सिलाई मशीन पर काम करता रहता है, पर जीतन को फुर्सत नहीं।
पूछने पर यही कहता है कि वह जरूरत
मंद लोगों की मदद करता घूमता है। पर किसी
को यह बात एक बहाना ही लगती है।
मैं कुछ और पूछता कि तभी आवाज़ उभरी-‘लो साहब, आ गया आपके ओवर
कोट का चोर।’ हाँ वह जीतन ही था। वह आकर
भुवन के पैरों से लिपट कर माफ़ी मांगने लगा।भुवन ने बेटे को परे धकेलते हुए उसके
गालों पर थप्पड़ जड़ दिए और चीखा-‘ ओवर कोट कहाँ
बेच आया इन बाबू जी का।’ अब जीतन मेरे पैरों पर गिर कर बोला –‘ गलती हो गई
बाबू जी, मैंने तो उसकी मदद करनी चाही थी, पर वह ओवर कोट लेकर भाग गया।’
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उसने जो कुछ बताया उसका सार यही था कि वह बाज़ार से जा रहा
था तो उसने दो आदमियों को झगड़ते हुए देखा। एक है विनय और दूसरा रेवा लाल जो लोगों
को उधार देकर बाद में उन्हें वसूली के लिए परेशान करता है। वह विनय से उधार चुकाने
को कह रहा था और विनय कुछ और समय मांग रहा था। पर रेवा लाल इसके लिए तैयार नहीं था।
तभी न जाने रेवा लाल को क्या सूझा,उसने फुट पाथ पर रखी पानी की भरी बाल्टी उठा कर विनय पर डाल दी और बडबडाता हुआ वहां से
चला गया।
‘ लेकिन इससे
ओवर कोट का क्या सम्बन्ध!’ मैंने कहा।’
‘इस कड़ी ठण्ड में
भीगने से विनय बुरी तरह कांपने लगा। तभी मुझे ओवर कोट का ध्यान आया,बापू जिसके बटन
ठीक कर रहे थे। मैं तुरंत जाकर ओवर कोट ले आया और विनय के बदन पर लपेट दिया। उस
समय बापू वहां नहीं थे|’ ‘मैंने सोचा था कि किसी दुकानदार से विनय के
लिए कपडे मांग लूँगा और फिर ओवर कोट बापू की मशीन पर रख आऊँगा |लेकिन जब मैं एक
दुकान से उसके लिए पैंट शर्ट लेकर निकला तो विनय कहीं नहीं था। मुझे एक आदमी ने बताया कि उसने विनय
को ओवर कोट एक कबाड़ी को देते हुए देखा था। फिर पता नहीं विनय कहाँ चला गया। मैंने
विनय को काफी खोजा पर वह कहीं नज़र नहीं आया।’ जीतन ने कहा।
कुछ सोच कर मैंने
कहा-‘ तुम्हें विनय को नहीं कबाड़ी को खोजना चाहिए था। उस के पास कबाड़ का ठेला है,
इसलिए वह ज्यादा दूर नहीं जा सका होगा।’ जीतन मुझे वहां ले गया जहाँ उसने ओवर कोट
विनय को दिया था। हम दोनों कबाड़ी को खोजते रहे,फिर एकाएक आवाज़ सुनाई दी—‘कबाड़ी
आया,कबाड़ी...’ हम उस दिशा में बढे।थोडा आगे मुझे अपने ओवर कोट की झलक मिली। हम
तेजी से बढ़ कर कबाड़ी के पास जा पहुंचे।जीतन ने पूछा- ‘क्यों भैया,क्या यह ओवर कोट तुम्हारा
है?’
‘’ जी, मैंने इसे कुछ देर पहले विनय से
खरीदा है सौ रूपए में, क्या बात है?’ कबाड़ी ने घबराये स्वर में पूछा। जीतन ने मेरी
ओर संकेत करते हुए कहा-’’यह ओवर कोट इन
बाबू जी का है, मैंने विनय को बदन गरम रखने के लिये दिया था पर वह ओवर कोट तुम्हें बेच कर
फरार हो गया। अगर पुलिस में रिपोर्ट हो जाये तो तुम मुश्किल में फंस सकते हो।’
कबाड़ी ने झट ओवर
कोट उतार कर मुझे थमा दिया।बोला-‘ माफ़ करना बाबू जी,आगे से ऐसी गलती फिर कभी नहीं होगी।’
मैंने कबाड़ी को सौ
रूपए दे दिए फिर हम लौट चले।जीतन ने कहा—‘आपका ओवर कोट मिल गया,पर मुझे भी एक बड़ी
सीख मिल गई। मैंने विनय तथा उस जैसे लोगों की कई बार मदद की है। लेकिन आज विनय ने
जो कुछ किया उससे मैं अजीब उलझन में उलझ गया हूँ। यह कैसे पता चले कि किसकी मदद की
जाए और किसकी नहीं!’
मैंने कहा-‘जीतन,
जरूरत मंद की मदद जरूर करनी चाहिए। तुम्हारे मन में असहाय लोगों की सहायता का भाव
है,यह जान कर मुझे अच्छा लगा है।पर इस तरह किसी को कुछ भी दे देना तो समझ दारी
नहीं।’ और मैं उसे एक कूड़ा घर के सामने ले गया,वहां तीन बच्चे कूड़े में से काम
लायक चीजें बीन कर एक बोरे में डाल रहे थे
मैंने कहा—‘जीतन, तुम इनकी क्या मदद कर सकते हो? कोई ऐसी सहायता जिसकी मदद से इन्हें
इस कूड़ा घर से मुक्ति मिल जाए।‘’
‘मुझे अपने एक मित्र का ध्यान आ रहा है। वह बेसहारा
बच्चों के लिए एक संस्था चलाता है।वहां मैंने कई बच्चों को पढ़ते हुए देखा है,उन्हें कोई
शिल्प और कारीगरी का हुनर भी सिखाया जाता है।’जीतन ने कहा।
मैंने
कहा ‘’तुमने सड़कों पर कई बच्चों को
इधर उधर घूमते देखा होगा,वे किसके बच्चे हैं,क्या खाते हैं, रात में कहाँ सोते
हैं,क्या उनके बारे में कुछ जानते हो?’
‘जी नहीं, इन बच्चों के बारे में तो मैंने कभी
कुछ सोचा ही नहीं।’-जीतन ने कहा।’ क्या इस काम में आप मेरी मदद नहीं करेंगे?’
‘’जरूर करूंगा,-मैंने
कहा। ‘पर पहले तुम्हें अपने पिता की मदद करनी होगी।वह बूढ़े हो गए हैं। मुझे पता
चला है कि तुम सिलाई का काम जानते हो।’
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‘जी जानता हूँ ।बापू ने ही सिखाया है।’
‘ तो सबसे पहले कुछ कमा कर पिता के हाथ में दो।उसके
बाद सडको पर रहने वाले बच्चो की मदद करो। सावधान! किसी को भी पैसे देने की मत
सोचना। ये स्वाभिमानी बच्चे भीख में कुछ नहीं लेंगे|’
इस बात को कई दिन
बीत गए हैं | अब मैं सुबह जीतन को सिलाई
मशीन पर मेहनत करते देखता हूँ। कूड़ा घर में भी तीनों बच्चे मुझे अब दिखाई नहीं
देते।निश्चय ही जीतन उन बच्चों को अपने मित्र की संस्था में ले गया है।कभी कभी
भुवन से भेंट होती है तो वह मुस्करा देता है,उसकी मुस्कान में बहुत कुछ छिपा है।
एक बेजान ओवर कोट ने कैसे कमाल कर दिया ! (समाप्त)
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