Sunday 4 June 2023

पार्टी हो जाए कहानी-देवेंद्र कुमार

 

पार्टी हो जाए कहानी-देवेंद्र कुमार

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पुष्पा के घर किटी पार्टी चल रही थी। पुष्पा की सारी सखियाँ अपने परिवार के साथ आई थीं। डिनर हो चुका था, पर पार्टी ख़त्म होने पर नहीं रही थी। अब बच्चे बोर हो रहे थे। उन्होंने आपस में खुसफुस की, फिर सबको सुना कर कहा, “हम आइस क्रीम खाने जा रहे हैं। फिर अमित, रमेश, विवेक और रचना दरवाज़े की ओर बढे। पुष्पा ने अपने बेटे रजत को इशारा किया तो वह बच्चों के साथ चल दिया। क्योंकि मेहमान बच्चे इलाके से अनजान थे।

बच्चों को बाहर आकर अच्छा लगा। रजत बच्चों को अब आइसक्रीम के ठेले पर ले गया। वे चारों अपनी पसंद की आइसक्रीम चुनने लगे। तभी रचना को ठेले के ढक्कन पर एक कार्ड रखा दिखाई दिया। कार्ड पर लिखा था—”अमित को जन्म दिन की बधाई। तुम्हारा दोस्तश्याम। उस कार्ड को बारी बारी से चारों ने पढ़ा फिर रजत ने भी देखा। सबके मन में एक ही बात घूम रही थीआखिर यह अमित कौन है जिसका दोस्त श्याम बधाई कार्ड आइस क्रीम के ठेले पर भूल गया है। आइस क्रीम खाते हुए वे सब उस बधाई कार्ड के बारे में बातें करते रहे। कुछ देर के लिए जैसे भूल ही गए कि अब उन्हें घर जाना चाहिए।

विवेक बोला, “हो सकता है कि अमित आस पास ही रहता हो। वर्ना श्याम यहाँ से आइस क्रीम लेता।

इसका मतलब है कि इस समय अमित की बर्थ डे पार्टी चल रही होगी।”—रचना बोली।

यानि हमें भी चल कर पार्टी में शामिल होना चाहिए।”—विवेक ने मुसकरा कर कहा।

चलो आसपास देखते हैं। और पाँचों आगे चलते हुए इधर उधर देखने लगे। दोनो ओर बने भवनों में उजाला था पर कुछ पता नहीं चल रहा था। तभी सामने एक बैलून वाला नज़र आया।

अमित ने कहा, “पार्टी में बैलून तो जरूर लगे होंगे। हो सकता है कि इसी गुब्बारे वाले से बैलून लिए गए हों। बच्चे गुब्बारे वाले से पूछने लगे कि क्या उसने किसी अमित या श्याम को गुब्बारे बेचे हैं? उसने कहा, “अजी मुझे भला कैसे याद रह सकता है। मैं गुब्बारे खरीदने वालों के नाम नहीं पूछता। हाँ, आपको लेने हों तो ले लो। बस दो ही बचे हैं।

रमेश ने गुब्बारे ले लिए। वे वापस मुड़ने लगे तो गुब्बारे वाले ने कहा, “हाँ, याद आया, कुछ देर पहले एक औरत मुझसे दो बैलून ले गई थी। शायद किसी के बर्थ डे के लिए। और उसने एक गली की ओर इशारा कर दिया।

‘’ मिल गया। जरूर वह अमित की माँ होगी। चल कर देखते हैंकिसका जन्म दिन है, कहीं अमित का तो नहीं?” वे बढ़ चले। विवेक ने पुकारा, “अमित।

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तभी एक दरवाज़ा खुल गया और एक औरत ने बाहर झाँककर देखा। रजत ने पूछा, “आँटी, क्या आज अमित का जन्म दिन है?”

कौन अमित? आज मेरी मुनिया का जन्म दिन तो है, आओ अंदर जाओ। कहकर उस महिला ने दोनों पल्ले खोल दिए। ये पाँचों अंदर चले गए। एक कमरे में मद्धिम बल्ब जल रहा था। एक चारपाई पर एक लड़की लेटी थी। एक खूँटी से दो गुब्बारे लटक रहे थे। रचना चारपाई पर लेटी हुई लड़की के पास बैठ गई। पूछा, “क्या तुम्हारा ही नाम मुनिया है?”

जवाब में उस लड़की ने सिर हिला दिया और मुसकरा दी। औरत ने कहा, “इसे कई दिन से बुखार रहा है। पर जन्म दिन मनाने की जिद पकडे हुए है। अभी इसके बापू आने वाले हैं, वही मनाएँगे इसका जन्म दिन।

अब तो मेरे फ्रेंड भी गये हैं।”—कहती हुई मुनिया बैठ गई।

 इसके कपडे तो बदल दो”—रचना बोली।

माँ ने मुँह साफ़ करके मुनिया को नई फ्रॉक पहना दी। तभी दरवाज़े पर आहट हुई। एक आदमी अंदर गया। बापू गए।”—मुनिया ने कहा। वह इन पाँचों की ओर देख रहा था।

इन पाँचों को अपना परिचय देने की जरुरत नहीं पड़ी। मुनिया की माँ ने एक दरी बिछा दी। बच्चे बैठ गए। मुनिया ने कहा, “अब मेरे जन्म दिन का केक काटो। तब तक मुनिया की माँ प्लेट में हलवा ले आई। रमेश ने कुछ सोचा और् प्लेट में रखे हलवे को हाथ से गोल आकार दे दिय। बोला, “केक तैयार हो गया। किसी दूकान में तो ऐसा केक मिलेगा नहीं। तब मुनिया की माँ चाक़ू ले आई।

रचना ने चाक़ू मुनिया के हाथ में थमा कर कहा, “केक काटो। सब बच्चे मुनिया को घेर कर खड़े हो गए और ताली बजाने लगे। उन्होंने कहा, “मुनिया, हैप्पी बर्थ डे। कमरे में हँसी गूँजने लगा। सब ने हलवे का केक खाया। अमित ने कहा, “मुनिया। तुम्हारा गिफ्ट उधार रहा, हम फिर आएँगे। उसने मुनिया के पिता का मोबाइल लेकर सबके नंबर फीड कर दिए, मुनिया के पिता का नंबर भी ले लिया।

माँ ने कहा, “मेरी मुनिया का ऐसा जन्म दिन तो कभी नहीं मना।

अमित बोला, “हम ने भी ऐसी अनोखी जन्म दिन पार्टी कभी नहीं देखी।

रजत ने कहा, “मुनिया, अगले महीने मेरा जन्म दिन है। मैं आप सबको लेने आऊँगा। मुनिया ने कहा, “भूल मत जाना।

कभी नहीं।

मुनिया की माँ ने सबके सिर पर हाथ फेरा। कहा, “मैं तो तुम सबको कुछ दे सकी।

दिया तो है आशीर्वाद।”—रजत बोला। फिर वे बाहर निकल आए।

अब बच्चे घर की तरफ बढ़ रहे थे। सचमुच अनोखी बर्थ डे पार्टी से रहे थे वे। (समाप्त )

 

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