Tuesday 7 March 2023

सिक्का और सांप-कहानी-देवेंद्र कुमार ==

 

सिक्का और सांप-कहानी-देवेंद्र कुमार

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बस्ती से कुछ दूर एक प्राचीन इमारत के खंडहर थे। शायद कभी किसी सामंत या नगर सेठ की हवेली रही हो, जो अब समय के थपेड़ों से टूट-फूट गई थी। काफी बड़े क्षेत्र में पत्थर बिखरे हुए थे। उसका इतिहास कोई नहीं जानता था। और जानने की कोई जरूरत भी नहीं थी। रात की क्या बात, लोग इस खंडहर से दिन में भी बचकर चलते थे। खंडहर के बाहर एक विशाल पेड़ था। लोग कहते थे, वहां रात में चोर-बदमाश आते थे, सियार जैसे जंगली जानवर वहां घूमते देखे जा सकते थे। लेकिन एक रात लोगों ने खंडहर की ओर से आती आवाज सुनी और चौंक गए। न जाने कौन भजन गा रहा था। सबको उत्कंठा हुई। सुबह देखा, पेड़ के नीचे एक साधु बाबा ने धूनी रमा रखी है। जल्दी ही पूरी बस्ती में यह खबर फैल गई। उस दिन पहली बार खंडहर के भाग जागे।

बस्ती वालों ने साधु बाबा से कई बार प्रार्थना की-‘‘महाराज, आप बस्ती के मंदिर में चलकर आसन लगाएं।’’ पर साधु बाबा हमेशा मना कर देते। कहते-‘‘मैं यही ठीक हूं, यदि तुम चाहो तो रात के समय खंडहर के किसी भी कोने में एक दीपक जला देना।’’

साधु बाबा के कहने पर खंडहर के हर कोने में दीपक जला दिए गए। धीरे-धीरे खंडहर ने एक पवित्र मंदिर का रूप ले लिया। यों ऊपर से उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया था, किंतु अब वहां रात को भी अंधेरा नहीं रहता था।घुप अंधेरे में खंडहर हल्के प्रकाश में चमकता

अब उस बस्ती के ही नहीं दूर-दूर से लोग वहां पहुंचने लगे। रविवार के दिन तो वहां मेला सा लग जाता। एक रोज बस्ती का माना हुआ बदमाश सिक्का भी भीड़ में दिखाई दिया। वह कुछ दिन पहले ही जेल से छूटकर आया था। चोरी, ठगी के न जाने कितने मुकदमे चल रहे थे उस पर। एक मुकदमे में सजा काटकर आता तो फिर कुछ कांड कर देता और दोबारा जेल के सींखचों के पीछे दिखाई देता। लोग उसकी छाया से भी बचते थें, उसे देखकर सब इधर-उधर हो गए। आपस में फुसफुसाने लगे। सिक्का ने साधु को नमस्कार किया और चला गया। उसके जाने के बाद लोगों ने साधु बाबा को सिक्का की करतूतें बताईं। सुनकर बाबा मुस्करा उठे। लोग चाहते थे कि बाबा सिक्का को वहां न आने दें। बाबा ने कहा-‘‘ईश्वर की बनाई दुनिया में अंधेरे और उजाले की लड़ाई हमेशा रहती है। मैं यहां कोई बंधन नहीं लगा सकता।’’

लोग चुप रह गए, पर उनके मन में आशंकाएं पलती रहीं। होली के दिन  विशेष उत्सव मनाया गया। दूर-दूर से लोग आए। पहले भजन-कीर्तन , रंग- गुलाल और फिर भोजन का कार्यक्रम था। एकाएक वहां एक औरत चीखने लगी। ‘‘बाबा, मेरा गलहार चोरी हो गया।’’ इधर-उधर ढूंढ़ा गया, पर हार का पता नहीं चला। किसी ने कहा-‘‘हार मिलने से रहा, अब तो यहां सिक्का चक्कर मारने लगा है। जो न हो जाए कम है।’’

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उस दिन यही चर्चा होती रही। सब सिक्का को कोस रहे थे। थोड़ी देर बाद सिक्का वहां दिखाई दिया। उसने साधु बाबा के चरण छुए और हाथ जोड़कर बैठ गया। लोग कहने लगे-‘‘देखो, कैसा बगुला भगत बना बैठा है। जरूर इसी ने हार उड़ाया है।’’ सिक्का के जाने के बाद भक्तों ने मिलकर बाबा से शिकायत की। वे चाहते थे, बाबा कोई उपाय करें।

साधु महाराज ने कहा-‘‘सिक्का चोर है, इसका मतलब यह तो नहीं कि हार उसी ने चुराया है।’’

‘‘तो फिर कहां गया?’’

इस पर बाबा मौन हो गए, आंखें मूंद लीं। हार का पता नहीं चला। सिक्का उसी तरह साधु बाबा के पास आता रहा।

कुछ समय बाद फिर समारोह हुआ. बाबा को खंडहर में आये एक वर्ष पूरा हो गया था. भीड़ जमा हुई.बाबा पेड़ के नीचे बैठे प्रवचन कर रहे थे। तभी एक चीख गूंजी-‘‘सांप...सांप...’’ लोग इधर-उधर भागने लगे। स्त्रियां और बच्चे रोने-चीखने लगे। भीड़ काई की तरह फट गइ। एक काला सांप लहराता हुआ नजर आया और झाडि़यों में घुस गया। एक आदमी चीख उठा-‘‘बाबा, मुझे सांप ने काट लिया... मैं मरा...’’

सब जैसे पत्थर की प्रतिमाएं बन गए...साधु महाराज आसन से उठ खड़े हुए- उन्होंने बढ़कर उस आदमी का पैर कसकर पकड़ लिया। पिंडली पर सांप काटे का निशान दिख रहा था।

 

फिर साधु बोले-‘‘कोई जल्दी से डाक्टर को बुलाओ।’’

‘‘बाबा, इतने बड़े संत हैं, कुछ कीजिए। मंत्र से विष उतार दीजिए...’’ कुछ लोग घबराकर बोले।

‘‘मैं जादूगर नहीं, भगवान का तुच्छ सेवक हूं। तुम जैसा हूं। समय मत गंवाओ, जल्दी जाओ।’’ साधु बाबा ने क्रोध से कहा।

तभी भीड़ को चीरकर सिक्का आगे बढ़ आया। उसने कहा-‘‘डाक्टर के आने तक तो बहुत देर हो जाएगी।’’ और अपना मुंह सांप काटे स्थान पर टिका कर चूसने लगा। वह चूसता जाता, थूकता जाता। दोनों ओर लोग तमाशबीनों की तरह खड़े थे। रोगी को अस्पताल ले जाया गया।दो दिन में वह आदमी स्वस्थ हो गया, जिसे सांप ने काटा था। कई दिन तक सिक्का की भी तबीयत खराब रही। लेकिन इससे आगे कुछ पता नहीं चला, क्योंकि उसी रात पुलिस उसे पकड़ कर ले गई। दिन में उसने कहीं से माल चुराया था, पुलिस उसके पीछे थी।

बाद में लोगों ने साधु महाराज से कहा-‘‘महाराज, हम आपसे न कहते थे कि सिक्का पक्का चोर है। देख लीजिए, आज फिर पकड़ा गया। हार भी उसने ने चुराया होगा।’’

बाबा धीरे से हंस दिए। बोले-‘‘हो सकता है, चुराया हो। सिक्का बुरा आदमी है। उसके मन में अंधेरा है लेकिन कहीं उजाले की नन्ही किरण भी है, यह उसने उस दिन अपने प्राणों पर खेलकर प्रमाणित कर दिया था। हो सकता है जेल से छूटकर वह फिर चोरी करे और पकड़ा जाए, लेकिन मेरा विश्वास है वह मन के अंधेरे से लड़ रहा है।

सब चुप खड़े थे। (समाप्त )

 

      

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