Sunday 19 March 2023

कभी नहीं --कहानी-देवेंद्र कुमार

 

 

 

 

 

 

                                     

      कभी नहीं --कहानी-देवेंद्र कुमार

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रविवार को छोड़ कर बाकी हर सुबह भागमभाग से भरी होती है—खास तौर पर बेला के लिए।  वह कई घरों में सफाई का काम करती थी, और हर परिवार चाहता था कि सबसे पहले बेला उनके घर में सफाई का काम पूरा करे।  इसलिए वह हर समय हडबडी में रहती थी।  काम पूरा करते न करते उसका बदन थकान से टूटने लगता था।  तब मन में एक ही बात आती थी—काश कोई तो हो जो मेरा हाथ बंटा सके।  ऐसे में उसके सामने अपनी जिद्दी बेटी झुमकी का चेहरा उभर आता था, जो हर बार –‘नहीं कभी नहीं’’ कह कर उसकी थकान को और भी बढ़ा दिया करती थी।           

उस दिन भी रविवार था।  बेला के हाथ तेजी से चल रहे थे।  वह ड्राइंग रूम में पोंछा लगा रही थी।  दरवाजे के पास पुराने अखबारों का ढेर लगा था, कुछ पत्रिकाएं भी थीं।  आते समय वह कबाड़ी से कह कर आई थी कि आकर पुराने अखबार ले जाए।  ढेर के पास चप्पलें रखी थीं।  उसने चप्पलें उठा कर अखबारों के ढेर पर रख दीं और सफाई करने में जुट गई।  तभी जोर की आवाज़ आई---‘ अरे यह क्या ! अखबार पढने के लिए होते हैं, उन पर जूते चप्पल नहीं रखे जाते।  क्या इतना भी पता नहीं?’-यह उलाहना घर की मालकिन ममता ने दिया था |

बेला ने माफ़ी मांगते हुए चप्पलें तुरंत जमीन पर रख दीं और काम पूरा करके जाने लगी,  तभी कबाड़ी आ गया।  वह अखबार तोल रहा था तो बेला  एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी।  मन में हूक़ उठी-- काश उसे भी पढना आता| तभी नज़र पत्रिका के एक पन्ने पर टिक गई।  आँखें उस पर छपे फोटो पर अटक कर रह गईं।  ‘इसे झुमकी को जरूर दिखाना होगा,तभी मेरी बात को सही मानेगी वह। ’ कबाड़ी पुराने अखबार लेकर चला गया।  बेला ने कबाड़ी से मिले पैसे ममता को दिए तो उसने पूछा –‘’यह मैग्जीन कबाड़ी को क्यों नहीं दी?’

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बेला सकपका गई —पत्रिका अब भी उसके हाथ में थी।  उसने हडबडा कर कहा—‘माफ़ करना मैडम, मैं भूल गई।  वैसे मैं इसे घर ले जाकर अपनी बेटी को दिखाना चाहती हूँ।  इसे देख कर शायद उसे मेरी बात समझ आ जाए।‘  

‘’लेकिन तुम्हें तो पढना आता नहीं और शायद झुमकी भी पढना-लिखना नहीं जानती। ‘

‘’मैडम, आप एकदम सही कह रही हैं।  मैं झुमकी को बस यह तस्वीर दिखाना चाहती हूँ। ’ कहते हुए बेला ने पत्रिका का पृष्ठ खोल कर ममता को दिखाया।  पेज पर फर्श पर पौंछा  लगाती लड़की की तस्वीर थी।  ममता कुछ पल पत्रिका में छपे चित्र को देखती रही।  बेला कह रही थी—‘मैं जब भी झुमकी से हाथ बंटाने के लिए कहती हूँ उसका एक ही जवाब होता है—‘मैं यह काम कभी नहीं करूंगी,कभी नहीं।  मैं तो दूसरे बच्चों की तरह पढना चाहती हूं। ’

‘तो इसमें गलत  क्या है।  बच्चों की उम्र पढने और खेलने के लिए ही तो होती है। ’’—ममता ने कहा।  

‘’आप की बात एकदम ठीक है, अपने बच्चों को सभी खुश देखना और पढ़ाना-लिखाना चाहते हैं।  लेकिन हमारे जैसे लोग मजबूर हैं।  हम चाह कर भी ... ’ और बेला ने अपनी बात को अधूरा छोड़ दिया।  लेकिन ममता उसका मतलब अच्छी तरह समझ गई।  वह क्यों झुमकी से काम में हाथ बंटाने को कहती थी इसे समझना मुश्किल नहीं था। लेकिन झुमकी भी तो ठीक कह रही थी।  उसका भी एक सपना था जो हर बच्चे का होता है।   

बेला पत्रिका लेकर चली गई।  अगले दिन आई तो चुपचुप थी।  जल्दी जल्दी काम निपटाया और चली गई।  पत्रिका के बारे में कुछ नहीं कहा।  ममता ने भी कुछ नहीं पूछा । हालाकि वह जानना चाहती थी कि झुमकी ने तस्वीर देख कर क्या कहा होगा।  उसी शाम ममता किसी काम से बाज़ार गई थी।  घर लौटते हुए उसने बेला को एक अखबार वाले के स्टाल पर खड़े देखा।  भला बेला वहां क्या कर रही थी? उसने बहुत सोचा पर कुछ समझ में नहीं आया।  पर अगली सुबह बात साफ़ हो गई।  

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बेला काम पर आई तो ममता से कहा—‘ मैडम, माफ़ करना।  झुमकी से बहुत बड़ी गलती हो गई।  मैंने उसे पोंछा लगाती लड़की की तस्वीर दिखाई और उसे समझाया तो वह बिफर उठी और उस पन्ने को फाड़ दिया। ‘’ कहते हुए उसने पत्रिका के साथ एक फटा हुआ पेज भी रख दिया।    ममता को पिछली शाम की घटना याद आ गई।  उसने पूछा -—‘ तुम अखबार वाले के पास क्यों खड़ी थीं?’ बेला ने बता दिया कि वह ऐसी ही दूसरी पत्रिका लेने गई थी, लेकिन मिली नहीं।  अखबार वाले ने कहा कि पत्रिका पुरानी है इसलिए नहीं मिल सकती।  उसने इसके दाम तीस रुपये बताये थे, आप मेरी पगार में से काट लेना। ’ कह कर उसने  सिर झुका लिया । वह आंसू रोकने की कोशिश कर रही थी।

                                                           

सुन कर ममता मुस्करा दी।  कहा –‘ इसकी चिंता मत करो।   कल तुम झुमकी को अपने साथ लेकर आना।   मैं उससे बात करूंगी। ’’

बेला ने उत्साह भरे स्वर में कहा –‘’ जरूर करना मैडम, शायद वह आपकी बात मान जाए।  अगर ऐसा हो सके तो मेरी बहुत मदद हो जायेगी।  ‘’

अगली सुबह बेला झुमकी को लेकर आई।  उसका चेहरा उदास था।  ममता ने झुमकी के  सिर पर हाथ फेर कर कहा-- ‘’ तुम दूसरे बच्चों की तरह पढना लिखना चाहती हो, यह जान कर मुझे अच्छा लगा।  पत्रिका के फटे हुए पन्ने को देख कर मुझे जरा भी गुस्सा नहीं आया, बल्कि तुम पर गर्व हुआ कि तुम पढ़ना और आगे बढ़ना चाहती हो।  मैं इसमें तुम्हारी मदद करूंगी।  ‘’

‘’मैडम, यह क्या! मैं तो समझी थी कि ... ’’ बेला ने कहना चाहा।

‘’कि मैं झुमकी को तुम्हारा हाथ बंटाने के लिए मना लूंगी। ’’ -–कह कर ममता जोर से हंस पड़ी।  ‘’ कभी नहीं। उसे दूसरे बच्चों की तरह पढने और खेलने दो। ’’

‘’लेकिन मैडम, आप तो जानती हैं... ’’—बेला के स्वर में उदासी बोल रही थी.

‘’यही न कि तुम्हें हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती है और फिर भी पूरा नहीं पड़ता।  मैं तो कहती हूँ कि तुम भी झुमकी की तरह हिम्मत दिखाओ।  अपने घर की हालत सुधारने के लिए कोई नया रास्ता खोजो।  और भी बहुत से काम हैं जिन्हें तुम कर सकती हो। ’’

--‘’नया रास्ता! कैसा रास्ता।  कौन दिखायेगा नया रास्ता।  ऐसे कौन से दूसरे काम हैं?’’

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‘’यह सब तुम मुझ पर छोड़ दो।  मैं बताऊंगी, कल से तुम झुमकी को भी साथ लेकर आना। मैं पढ़ाऊँगी इसे। ’’

--‘लेकिन इसका सपना तो स्कूल में पढने का है। ’’

 ‘’बेला, झुमकी को किसी स्कूल में एकदम दाखिला नहीं मिल सकता।  इसके लिए पहले काफी तैयारी करनी होगी।  उसमें मैं मदद करूंगी। ’’                                     

‘‘लेकिन आप... ’’—बेला आगे न बोल सकी।  

--‘’हाँ मैं।  एक अनपढ़ बच्ची को पढ़ाने में मुझे बहुत खुशी मिलेगी। ’’

बेला ने झुमकी की तरफ देखा। उसका चेहरा चमक रहा था, होंठ हंस रहे थे।  

झुमकी के साथ घर लौटते हुए बेला सोच रही थी—न जाने मैडम किस नए रास्ते की बात कह रही थीं।  उसकी आँखों के सामने कुछ तस्वीरें उभर रही थीं। झुमकी का सपना पूरा होने जा रहा था. . वह बहुत खुश थी.. .  चलते चलते आकाश की ओर नज़र  उठाई, -खुले आसमान  में  पक्षियों का झुण्ड पंख पसारे उड़ता जा रहा था. हाँ वह भी उड़ना चाहती है.  ( समाप्त)     

   

  

   

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

      

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