Friday 13 January 2023

रोशनी का चौराहा-कहानी-देवेंद्र कुमार

 

 

 

रोशनी का चौराहा-कहानी-देवेंद्र कुमार

बरसात का मौसम नहीं था, फिर भी जोरों की बारिश शुरु हो गई। दोपहर ढलते ही झुटपुटा हो गया। अगले दिन इम्तिहान है इसलिये अरुण और गरिमा पढ़ रहे थे, पर उनका मन तो बाहर जाकर बारिश में भीगने का हो रहा था। वैसे दोनों अलग अलग बैठ कर पढ़ रहे थे,  पर दोनों का मन एक ही बात कह रहा था। उनके मम्मी-पापा और दादी भी दूसरे कमरे में बैठे थे। तभी मम्मी ने आकर खिडकियों के पर्दे हटा दिए। कहा-“अंधेरा हो गया दिन में, कम से कम लाइट तो जला लो। “और लाइट आन करके बाहर चली गईं, पर जाते जाते हिदायत कर गईं कि ध्यान से पढ़ाई करें।

दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और मुस्करा दिए। पर तभी लाइट चली गई। कमरे मैं अन्धकार छा  गया। दोनों खिड़की के पास जाकर खडे हो गए और फिर खिड़की खोल दी, हवा के तेज झोंके के साथ बूंदें अन्दर आकर उन्हें भिगो गईं । कुछ देर बाद मम्मी मोमबत्ती लेकर अंदर आ गईं पर उससे बात नहीं बनी, अब पढना मुश्किल था। पापा ने पुकारा-“ अरुण और गरिमा, बाहर आ जाओ।

दोनों बाहर के कमरे में चले आये। उन्होंने सुना पापा दादी से कह रहे थे-“ मां, यह तो मुश्किल हो गई, कल बच्चों का इम्तिहान है, अब कैसे होगा? “ दादी ने मुस्करा कर कहा- “रमेश, तुम शायद भूल गए कि गाँव के हमारे घर में बिजली नहीं थी और तुम भी शहर में आने से पहले कई साल तक लैंप की रोशनी में ही पढते थे।”  

अरुण के पापा ने कहा-“ मां, बचपन के वे दिन तो कब का भूल चुका हूँ, और अरुण तथा गरिमा तो कभी गाँव गए ही नहीं।” दादी ने कहा-“ पर मुझे वे दिन कभी नहीं भूलते। “ काफी देर हो गई पर लाइट नहीं आई। तभी दादी ने अरुण की माँ लता से कहा-“ लगता है बिजली जल्दी आने वाली नहीं।” कमरे में चुप्पी छाई रही, भला इस बारे में कोई क्या कह सकता था। तभी दादी उठ कर रसोई में चली  गईं, कुछ देर बाद एक थाली में आटा और गिलास में पानी लेकर आ गईं। लता, रमेश, अरुण और गरिमा चुपचाप उन्हें देख रहे थे, बात कुछ समझ में नहीं आ रही रही थी। भला बात बिजली की हो रही है और दादी हैं कि थाली में आटा लाकर न जाने क्या करने जा रही हैं!। ये चारों हैरानी से देखते रहे। दादी चुपचाप अपना खेल करती रहीं। वह एकदम चुप थीं, फिर कमरे में एक धुन गूंजने लगी। दादी न जाने क्या  गुनगुना रही थीं और उनके हाथ आटे में पानी मिला रहे थे।

आखिर रमेश से चुप न रहा गया, उन्होंने कहा-“ माँ, यह क्या खेल कर रही हो, कुछ हमें भी तो बताओ।दादी ने कहा- “ लाइट नहीं है और कल बच्चों का इम्तिहान है इसलिए उनकी पढाई जरुरी है, देखो शायद कुछ हो जाए।” और फिर से आटा मांडने लगीं। सब चुप बैठे रहे, दादी के हाथ आटे पर चल रहे थे। देखते देखते थाली में आटे का एक बहुत बड़ा दीपक दिखाई देने लगा। दीपक आटे के ही बने हुए एक खम्भे पर टिका हुआ था। इस बीच लता जैसे समझ चुकी थी। वह रसोई में जाकर सरसों के तेल की बोतल ले आई। दादी ने आटे के दीपक में  तेल भर दिया। अब पता चला कि दादी क्या करना चाहती थीं। उन्होंने दीपक के चार कोने बाहर की तरफ बढ़ा दिए फिर रुई की चार बत्तियां तेल में भिगो कर हर कोने से कुछ आगे निकाल दीं। अब रमेश की बारी थी, वह किचन में जाकर माचिस ले आये और दादी के दीपक को जला दिया। कमरे में जल रही मोमबत्तियों का प्रकाश जैसे एकाएक कई गुना बढ़ गया।

कमरे में सम्मिलित हंसी गूँज गई, दादी के दीपक ने जैसे जादू कर दिया था। दादी धीरे धीरे मुस्करा रही थीं। उन्होंने कहा-“ गांवों में हमेशा ही बिजली की दिक्कत रहती है, ऐसे में रोशनी का  चौराहा ही बच्चों की पढाई में उनकी मदद करता है, “

“ मां, तुम इसे रोशनी का चौराहा क्यों कह रही हो?”- रमेश ने पूछा।

दादी ने हंस कर कहा-“ तो इसे और क्या कहूं?  जरा देखो तो कैसे अपने चारों हाथों से रोशनी  फैला कर अंधकार को दूर भगा रहा है।”

तब तक अरुण और गरिमा दूसरे कमरे से किताबें ले आये थे और पढाई में जुट गये थे। अब उन्हें पढने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। मोमबत्ती और दीपक के प्रकाश ने मिल कर अन्धकार को भगा दिया था। बच्चे पढ़ रहे थे। रमेश और लता मां से गाँव के जीवन के बारे में बहुत सी बातें जानना चाहते थे, पर अभी अवसर नहीं था। बच्चे पढाई में डूबे थे और रोशनी का चौराहा अपने चारों हाथों से अंधकार को दूर भगा रहा था। ==

                                                                                                         

 

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