Monday 25 July 2022

कहानी मेरी दोस्त-कहानी-देवेंद्र कुमार

 

कहानी मेरी दोस्त-कहानी-देवेंद्र कुमार                                              

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बाबा की एक आदत अजीब लगती है पूरे घर को -- वह हर समय जेब में कागज और पेन रखते हैं।भोजन करते समय भी कागज़ पेन  जेब में रहते ही हैं। कई बार पूछने पर मुस्करा कर  कहते  हैं - यह सब मेरी मित्र के लिए रखना पड़ता है, न रखूं तो वह गुस्सा हो जाती है।

 

कोई समझ नहीं पाता कि आखिर बाबा अपनी किस मित्र के बारे में यह बात कहते हैं। इस बारे में ज्यादा प्रश्न करने का साहस कोई नहीं कर पाता, पर एक दिन उनके पोते अमित  ने जिद ठान ली कि  हर समय बाबा की जेब में रहने वाले कागज़ और पेन का रहस्य जान कर ही रहेगा। उसने कई बार पूछा तो बाबा ने कहा-' अगर जेब में कागज़ पेन न रखूं तो मेरी दोस्त कहानी नाराज़ हो कर चली जाती है। ' फिर बार बार बुलाने पर भी नहीं आती। ''

 

‘’अजीब दोस्त है कहानी जिसके लिए आपको हर समय जेब में कागज़ और पेन रखना पड़ता है, ऐसा क्यों !

 

बाबा ने समझाया-मैं कहानियां लिखता हूँ,पर लिखने से पहले कहानी को पास बुलाना होता है। कहानी सदा हड़बड़ी में रहती है इसलिए जब वह कुछ कहे तो उसे तुरंत कागज़ पर नोट करना होता है, इसीलिए काग़ज़ पेन रेडी रखता हूँ। देखो हमारे आसपास हर समय कुछ न कुछ घटता रहता है,हर घटना में कई कहानिया मौजूद रहती हैं। अब यह लेखक का काम है कि  वह किस पर कहानी लिखता है। अगर कथा सूत्र को तुरंत  नोट न किया जाये तो कहानी खो जाती है और फिर वापस नहीं आती

 

        बाबा,क्या मैं भी कहानी से दोस्ती कर सकता हूँ?' अमित ने पूछा।

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    जरूर कर सकते हो। तुमसे दोस्ती करके कहानी को अच्छा लगेगा।इतना सुनते ही अमित ने कमीज की जेब में छोटा सा  कागज़ रख कर पेन लगा लिया।बोला -' अब मुझे क्या करना होगा?'

 

'जब तुम कोई घटना देखो और तुम्हे ऐसा लगे कि इस  पर कहानी बन सकती है, तो झट उस घटना को नोट कर लो। फिर बाद में उस पर सोच कर  लिखो -बस कहानी बन जाएगी। ' बाबा ने कहा।

 

     'इस में आप को मेरी सहायता करनी होगी।'

 

    'जरूर करूँगा।'और बाबा ने अमित का कन्धा थपथपा दिया। 

अगले दिन अमित की मम्मी ने देखा तो हंस कर कहा- तो अब तुम  अपने बाबा की नक़ल करने लगे। 'यह नक़ल नहीं है ,मैं भी बाबा की तरह कहानी से दोस्ती करूंगा , मुझे भी उनकी तरह लेखक बनना है।'-अमित ने कहा।                                                                                                                 

कई दिन बीत गए,बाबा अमित से  पूछते--'मिली कहानी ? ' जवाब में अमित कोरा कागज़ दिखा कर निराश स्वर में कहता-' नहीं।' और बाबा उसके बाल सहला कर कहते-जल्दी ही कहानी मिल जाएगी उदास मत हो,’

 और फिर एक दिन अमित ने बाबा को कागज़ दिखाया -उस पर लिखा था 'कबूतर '

बाबा ने हँसते हुए कहा-'तो कहानी से तुम्हारी भेंट हो ही गई, पूरी कहानी सुनाओ।'

 

अमित ने बताया-मैं स्कूल बस से उतरा तो किसी ने कहा-'अरे देखो घायल कबूतर ' पर मुझे घायल कबूतर कहीं दिखाई नहीं दिया मैंने जल्दी से लिख लिया -पता नहीं घायल कबूतर  कहाँ गया !क्या इसमें कहानी है?'

' चलो तुम्हारे घायल कबूतर की कहानी को आगे बढ़ाते हैं।'     

कहते हुए बाबा अमित के साथ सोसाइटी के गेट पर चले आये। उन्होंने वहां खड़े गार्ड से पूछा -तो उसने बताया-' जी बाबूजी,एक घायल कबूतर नीचे गिरा था। उस पर एक बिल्ली झपटी तो उसे हमने भगा दिया,फिर किसी ने कहा कि  उसे जीतू भिखारी उठा ले गया।

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यह जीतू कौन है ?' -अमित ने पूछा। बाबा जीतू  जानते थे वह  सबके सामने हाथ फैला कर अपने लिए  रोटी  का जुगाड़ करता था।कई बार बाबा ने भी उसकी मदद की थी। आखिर जीतू घायल कबूतर को कहाँ ले गया होगा ,यही सोच रहे थे अमित के बाबा|  जीतू उन्हें अगली सुबह मिला। उन्होंने   घायल कबूतर के बारे में पूछा तो वह बोला -'बाबूजी, घायल कबूतर को मैं पक्षियों के अस्पताल ले गया था। वहां डाक्टर उसका इलाज कर रहा है। अभी  मैं वहीँ से आ रहा हूँ।

 

'कल तुमने एक बहुत अच्छा काम किया है। 'कहते हुए बाबा ने अपनी जेब में हाथ डाला तो जीतू बोला  -बाबूजी ,आप कई बार  मदद करते हैं , पर आज मैं आपसे   कुछ नहीं लूँगा। घायल कबूतर की जान बचा  कर मुझे अच्छा लगा, बस इतना ही काफी है।

 

फिर जीतू बाबा और अमित को पक्षियों के अस्पताल ले गया। वहां डाक्टर ने बताया कि कबूतर पहले से ठीक है। स्वस्थ होते ही हम उसे आकाश में उडा देंगे।'

अमित ने पूछा -क्या कबूतर को खुले आकाश में छोड़ना ठीक होगा। वह फिर घायल हो सकता है। '

बाबा ने समझाया -परिंदों को खुला आकाश पसंद है ,पिंजरे की कैद नहीं।'

 

जीतू ने कहा कि  अस्पताल के कर्मचारी रजत ने उसे साथ में खाना खिलाया है। ,उसने माँगा नहीं था।

रजत बोला -बाबू जी, मैं तो हमेशा जीतू से कहता हूँ कि किसी के आगे हाथ न फैलाये ,कोई दूसरा काम करे। कल  इसने एक घायल कबूतर  की जान बचा कर एक अच्छा काम किया ,इसीलिए मैंने इसे अपने साथ खाना खिलाया। मैं तो कहता हूँ अगर यह दूसरों के आगे हाथ न फैलाये,  इसी तरह घायल

परिंदो की मदद करता रहे तो मैं इसे रोज अपने साथ  खाना खिला सकता हूँ।'

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बाबा ने कहा -'भला इससे अच्छी बात और क्या होगी। यह तो सारा दिन इधर से उधर घूमता रहता है। बस यह जब किसी घायल पक्षी को देखे तो यहाँ इलाज के लिए ले आये और तुम इसे अपने साथ खाना खिलाओगे| '

 

जी बाबूजी।'-रजत ने कहा।

 

लेकिन अगर किसी दिन जीतू कोई घायल पक्षी न ला सके तो क्या इसे खाना नहीं खिलाओगे?-अमित ने पूछा|

 

तो क्या हुआ। मेरे लिए इतना ही बहुत है कि यह भीख मांगना छोड़ कर घायल पक्षियों की सेवा करने लगा है।'रजत ने कहा और जीतू की ओर देख कर मुस्करा दिया।

 

जीतू खुश था कि उसे दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा।

और फिर वह दिन जब इलाज से ठीक हुए कबूतर को  खुले आकाश में उडा दिया गया। तब वहां बाबा,अमित और जीतू मौजूद थे|

अब जीतू ने नया काम संभाल लिया था| वह खुश था और सबसे ज्यादा प्रसन्न था अजित क्योंकि कहानी से उसकी दोस्ती हो गई थी। (समाप्त )

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