Saturday 2 July 2022

शुभ विवाह -कहानी-देवेंद्र कुमार

 

 

शुभ विवाह -कहानी-देवेंद्र कुमार

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सोसाइटी में बड़े पैमाने पर मरम्मत का काम चल रहा हैफ्लैटों के आगे लगी बल्लियों के ढाँचे पर खड़े होकर राज-मजदूर काम कर रहे हैंजगह जगह मलबे के ढेर पड़े हैंदेवा भी एक मजदूर हैलेकिन वह काम नहीं कर रहा है,एक तरफ चुप खड़ा हैउसे ठेकेदार राजवीर का इन्तजार हैकुछ देर बाद राजवीर आता दिखाई दियाउसने देवा को देखा तो चिल्ला कर बोला—‘खाली क्यों खड़ा है ? काम नहीं करना क्या?’

पहले पिछला हिसाब साफ़ करो।’ देवा ने कहा

तेरा कुछ बकाया नहीं हैवैसे भी आगे मुझे तुझसे काम नहीं करवाना,’ –कह कर राजवीर आगे बढ़ गयादेवा समझ गया कि अब कहीं और काम ढूंढना होगाउसने एक नज़र काम करते साथियों पर डाली फिर पार्क की ओर बढ़ गया सर्दियों के दिन हैंहरी घास और फूलों की क्यारियों पर धूप की सुनहरी चादर बिछी हुई हैआज रविवार् हैपार्क में बच्चे दौड़ -भाग कर रहे हैं , अनचाहे देवा के होंठों पर हंसी आ गई मन तुरंत उड़ कर अपने गाँव पहुँच जाता हैअपनी बेटी मुनिया का चेहरा आँखों के सामने चमक उठता हैदेवा का परिवार दूर गाँव मैं रहता है,जहाँ देवा कई महीनों के बाद ही जा पाता हैदेवा सोच रहा था कि दूसरी जगह काम खोजना होगा। वह मुख्य द्वार की ओर चल दिया। तभी किसी ने पुकारा –‘ ओ भैया,जरा रुकना।’

1

 

देवा ने देखा एक छोटी लड़की मुस्कराती हुई उसकी तरफ आ रही है। साथ में शायद उसकी माँ थी। देवा रुक गया। वे दोनों पास आ गयीं ।लड़की ने कहा—‘ तुम वही हो न जो एक दिन हमारी बालकनी में काम कर रहे थे। तब माँ ने तुम्हें पानी पिलाया था।उस दिन खूब गर्मी थी।’’                                               

बच्ची की माँ ने कहा –‘ मेरी बेटी तुमसे कुछ कहना चाहती है। ‘’देवा ने मुस्करा कर बच्ची की और देखा।उसे देख कर देवा को गाँव में रहने वाली अपनी मुनिया की याद आ गई।

लड़की की माँ ने कहा –‘भैया ,यह मेरी बेटी रमा है।इसने कई दिनों से अपनी गुडिया की शादी की धुन  लगा रखी है। गुड्डा इसकी सहेली लता का है।’

‘वाह ,तब तो खूब मज़ा आयेगा,’—देवा हंस पडा।

‘ वो तो ठीक है  लेकिन गुड्डे- गुडिया के इस खेल में घर खूब फैल जाएगा। इसलिए मैं इससे कह रही हूँ कि यह खेल बालकनी में खेले, लेकिन बालकनी में अभी सफाई नहीं हुई है।वहां मलबा पड़ा हुआ है। ‘

अब देवा पूरी बात समझ गया। उसने कहा—‘ तब तो गुडिया की शादी के लिए बालकनी की सफाई करनी होगी। ‘’

रमा झट बोल उठी –‘ हाँ तो तुम कर दो न ।’

देवा ने फ्लैटों की तरफ देखा। आखिर कौन सा फ़्लैट होगा इनका।रमा की माँ ने कहा-मैं ऊपर जाकर अपने फ़्लैट की बालकनी से तुम्हें इशारा करुँगी तो तुम्हें पता चल जाएगा।’

 

2

 

माँ के साथ जाते हुए रमा ने देवा से कहा—‘ चले मत जाना। नहीं तो मेरी गुडिया की शादी कैसे होगी।’

देवा को मजा आ रहा था।बोला—‘ रमा बिटिया,  तुमने मुझे गुडिया की शादी का काम सौंपा  है।उसे पूरा किये बिना कैसे जा सकता हूँ भला। मुझे एक लड्डू तो जरूर मिलेगा ।’’

रमा की माँ ने हँसते हुए कहा –‘ एक खाना और दो ले जाना।’

देवा खड़ा हुआ ऊपर की तरफ देखता रहा।वह भी शादी के खेल में शामिल हो गया था। कुछ देर बाद दूसरी मंजिल की एक बालकनी में रमा अपनी माँ के साथ दिखाई दी।देवा पाड पर चढ़ कर बालकनी में जा उतरा। उसने रमा की माँ से झाड़ू लाने को कहा, फिर पास वाले फ़्लैट के बाहर  काम करते हुए अपने साथी से तसला देने को कहा। साथी ने अचरज से कहा—‘ देवा, तुझे तो राजवीर ने काम से हटा दिया था न। ‘

‘मुझे उसके साथ काम नहीं करना है। यह तो मैं  अपना काम कर रहा हूँ ‘’

‘’अपना काम!’’

देवा ने उत्तर नहीं दिया और सफाई करने लगा। देवा ने अच्छी तरह धो कर बालकनी साफ़ कर दी ।फिर दरवाजे के पीछे से देखती रमा से कहा—‘’बिटिया, अब तुम यहाँ आराम से अपनी गुडिया की शादी कर सकती हो।’

 और फिर जैसे ऊपर चढ़ा था उसी तरह नीचे उतर  कर चल दिया।अब उसे काम की तलाश में जाना था। लेकिन आज का दिन तो बेकार हो गया। अब तो कल ही कुछ होगा। बाग़  में बच्चे खिलखिला रहे थे। गुनगुनी धूप बदन को जैसे सहला रही थी। वह अलसा गया। शायद नींद लग गई थी। फिर  झटके से उठ बैठा। उसे तो नए काम की तलाश मैं निकलना है।अलसाने से कैसे चलेगा। उठ कर बाहर की तरफ चला तो फिर गुडिया के ब्याह की बात याद आ गई। देखना चाहिए कि ब्याह का खेल कैसा रहा।

 देवा फिर से बालकनी में  जा पहुंचा । देखा जमीन पर कुछ फूल बिखरे हुए हैं। छोटी छोटी कटोरियों में  रोली,हल्दी और चावल रखे थे।एक तरफ एक दीपक जल रहा था। मतलब शादी पूरी हो गई थी। वह वापस चलने के लिए घूमा  तो आवाज़ आई—‘शादी तो हो गई। तुम कहाँ चले गए थे।’ और कमरे का दरवाजा खुल गया।’वहाँ रमा मुस्करा रही थी।

देवा बोला—‘’ वह तो देख ही रहा हूँ।’’

‘’शादी हो गयी पर दावत अभी चल रही है।’’यह रमा की माँ बोल रही थीं। ‘’आओ अंदर आओ।’’उन्होंने देवा से अंदर आने को कहा।

देवा सकुचा गया।उसने अपने मैंले कपड़ों पर नजर डाली। हाथ-पैर भी धूल मिटटी से गंदे हो रहे थे। बोला—‘मैडम, मैं फिर आ जाऊँगा कपडे बदलकर ।’’

रमा की माँ ने हंस कर कहा—‘ तुमने बालकनी की सफाई की है। तुम सफाई न करते तो रमा की गुडिया की शादी कैसे होती ।मेंहनती आदमी के कपडे तो  काम में   गंदे होते ही हैं। आ जाओ। ‘’

अब देवा  मना न कर सका। उनके पीछे पीछे अंदर चला गया। वहाँ कई बच्चे भोजन कर रहे थे। एक तरफ झूले में  गुड्डा-गुडिया झूल रहे थे, खूब चमक दार वस्त्रों में सजे धजे। झूले पर फूल मालाएं लटक रही थीं। बल्ब टिमटिमा रहे थे। माँ ने  रमा से कहा—‘’देवा भैया के हाथ पैर धुलवा दो।’

रमा देवा को बाथ  रूम में  ले गई।जब देवा बाहर आया तो उसे आसन पर बैठने को कहा गया। फिर उसके सामने एक प्लेट में  भोजन परोस दिया गया। छोटी छोटी कटोरियों में सब्जी और नन्ही नन्ही पूरियां । साथ में थे छोटे छोटे लड्डू। छोटी पूरियों को देख कर देवा को बचपन के दिन याद आ गये। उसकी माँ नन्ही नन्ही दो रोटी बना कर एक आग में डालती थीं और दूसरी उसे देकर कहतीं थीं यह पंख पखेरू के लिए। बच्चे उसी की तरफ देख रहे थे।रमा  की माँ उन्हें  बता रही थी कि  कैसे  देवा के कारण ही गुड्डे –गुडिया की शादी हो सकी है।

वह सकुचा कर खड़ा हो गया। देखा एक तरफ रंगीन पन्नी में लिपटे कई पैकेट रखे थे,  जरूर गुडिया की शादी में  आये बच्चे लाये होंगे। पर वह तो खाली  हाथ था। उसने रमा से कहा—‘गुडिया ,मैं तो शादी में कुछ लेकर नहीं आया। ‘

4

 

          रमा की माँ ने कहा- देवा भाई, तुम्हारे कारण ही रमा की गुडिया की शादी हो सकी है।  यही  तुम्हारा उपहार है। ‘

रमा ने कहा—भैया, गुड्डा-गडिया को देखो तो सही ।कितने सुंदर दिख रहे हैं।’ देवा ने पास जाकर देखा। सचमुच सुंदर जोड़ी थी। देवा ने रमा के सर पर धीरे से हाथ रख दिया। मन ही मन आशीर्वाद  दिया   रमा से बोला –गुडिया के लिए  मैं   एक दिन उपहार लेकर आऊंगा,’’।रमा की माँ ने चलते समय देवा के हाथ में  एक थैली थमा दी।बोलीं--; इसमें लड्डू हैं।रमा और इसकी सहेलियों ने बनाए हैंअपने छोटे हाथों से। घर जाकर बच्चों को जरूर खिलाना।’

जी,जरूर।—कह कर देवा दरवाजे से बाहर आ गया। उसने नन्हे लड्डुओं की थैली कस कर थाम ली। अभी तक उसका इरादा काम के लिए किसी के पास जाने का था। पर लड्डू की थैली ने उसका मन बदल दिया। अब देवा बस अड्डे की तरफ चल दिया अपने गाँव जाने के लिए। उसका मन अपनी गुडिया से मिलने को मचल उठा। वह उसे गुड्डे गुडिया की शादी के नन्हे लड्डू आज ही खिलाना चाहता था। गाँव में  भी तो ऐसा खेल हो सकता है।’’ हाँ, जरूर हो सकता है।’’ वह बुदबुदाया और तेजी से बढ़ चला।(समाप्त )

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