Thursday 2 December 2021

c सिक्का और साँप -कहानी-देवेंद्र कुमार

 

    सिक्का और साँप -कहानी-देवेंद्र कुमार

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बस्ती से कुछ दूर एक प्राचीन इमारत के खंडहर थे। शायद कभी किसी सामंत या नगर सेठ की हवेली रही हो, जो अब समय के थपेड़ों से टूट-फूट गई थी। काफी बड़े क्षेत्र में पत्थर बिखरे हुए थे। उसका इतिहास कोई नहीं जानता था। और जानने की कोई जरूरत भी नहीं थी। रात की क्या बात, लोग इस खंडहर से दिन में भी बचकर चलते थे। खंडहर के बाहर एक विशाल पेड़ था। लोग कहते थे, वहाँ रात में चोर-बदमाश आते थे, सियार जैसे जंगली जानवर वहाँ घूमते देखे जा सकते थे।

 

 एक रात लोगों ने खंडहर की ओर से आती आवाज सुनी और चौंक गए। जाने कौन भजन गा रहा था। सबको उत्कंठा हुई। सुबह देखा, पेड़ के नीचे एक साधु बाबा ने धूनी रमा रखी है। जल्दी ही पूरी बस्ती में यह खबर फैल गई। उस दिन पहली बार खंडहर के भाग जगे। सब तरफ भजन-कीर्तन के स्वर गूँजने लगे। धीरे-धीरे हर रोज ही ऐसा होने लगा।

 

बस्ती वालों ने साधु बाबा से कई बार प्रार्थना की, “महाराज, आप बस्ती के मंदिर में चलकर आसन लगाएँ।पर साधु बाबा हमेशा मना कर देते। कहते, “मैं यहीं ठीक हूँ, यदि तुम चाहो तो रात के समय खंडहर के किसी भी कोने में एक दीपक जला देना।

 

साधु बाबा के कहने पर खंडहर के हर कोने में दीपक जला दिए गए। धीरे-धीरे खंडहर के एक पवित्र मंदिर का रूप ले लिया। यों ऊपर से उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया था, किन्तु  अब वहाँ रात को भी अँधेरा नहीं रहता था।घुप अँधेरे में खंडहर हल्के प्रकाश में चमकता नजर आता।

 

अब वहाँ दूर-दूर से लोग आने लगे। हर समय भीड़ रहती थी। रात में  भी कोई--कोई वहाँ टिका ही रहता। एक दिन बस्ती के कुछ धनी-मानी लोग साधु बाबा के पास पहुँचे। उनसे कहा, “महाराज, हम इस खंडहर के स्थान पर एक भव्य मंदिर बनवाना चाहते हैं।

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बाबा ने कहा, “जब तक यह स्थान खंडहर रहेगा, तुम लोगों के मन में इसे बनाने की बात उठती रहेगी और उससे पता नहीं कहाँ क्या-क्या बन जाएगा। जिस दिन इसका पुनर्निर्माण हो गया, कुछ बनाने की इच्छा भी संतुष्ट हो जाएगी। मैं चाहता हूँ तुम लोगों की वह इच्छा कभी मिटे। इसे ऐसे ही रहने दो। ईंट-पत्थर जोड़ने से बात नहीं बनेगी, कुछ और करना होगा।लोगों ने साधु बाबा की बात का मर्म समझ लिया और वे संतुष्ट होकर चले गए।

 

अब उस बस्ती के ही नहीं दूर-दूर से लोग वहाँ पहुँचने लगे। रविवार के दिन तो वहाँ मेला-सा लग जाता। एक रोज बस्ती का माना हुआ बदमाश सिक्का भी भक्तों की भीड़ में दिखाई दिया। वह कुछ दिन पहले ही जेल से छूटकर आया था। चोरी, ठगी के जाने कितने मुकदमे चल रहे थे उस पर। एक मुकदमे में सजा काटकर आता तो फिर कुछ कांड कर देता और दोबारा जेल के सींखचों के पीछे दिखाई देता। लोग उसकी छाया से भी बचते थे। उसे देखकर सब इधर-उधर हो गए। आपस में फुसफुसाने लगे। सिक्का ने साधु को नमस्कार किया और चला गया। उसके जाने के बाद लोगों ने साधु बाबा को सिक्का की करतूतें बताईं।

 

 सुनकर बाबा मुस्करा उठे। लोग चाहते थे कि बाबा सिक्का को वहाँ आने दें। बाबा ने कहा, “ईश्वर की बनाई दुनिया में पाप और पुण्य दोनों हैं। अँधेरे और उजाले की लड़ाई हमेशा रहती है। मैं यहाँ कोई बंधन नहीं लगा सकता।

 

लोग चुप रह गए, पर उनके मन में आशंकाएँ पलती रहीं। एक दिन विशेष उत्सव मनाया गया। दूर-दूर से लोग आए। पहले भजन-कीर्तन और फिर भोजन का कार्यक्रम था। एकाएक वहाँ एक औरत चीखने लगी।बाबा, मेरा गलहार चोरी हो गया।इधर-उधर ढूँढ़ा गया, पर हार का पता नहीं चला। हार बहुत कीमती था। वह महिला एक सेठ की पत्नी थी। किसी ने कहा, “हार मिलने से रहा, अब तो यहाँ सिक्का चक्कर मारने लगा है। जो हो जाए कम है।

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उस दिन चर्चा होती रही। सब सिक्का को कोस रहे थे। थोड़ी देर बाद सिक्का वहाँ दिखाई दिया। उसने साधु बाबा के चरण छुए और हाथ जोडकर बैठ गया। लोग कहने लगे, “देखो, कैसा बगुला भगत बना बैठा है। जरूर इसी ने हार उड़ाया है।सिक्का के जाने के बाद भक्तों ने मिलकर बाबा से शिकायत की। वे  चाहते थे, बाबा कोई उपाय करें।

 

साधु महाराज ने कहा, “सिक्का चोर है, इसका मतलब यह तो नहीं कि हार उसी ने चुराया है।

 

तो फिर कहाँ गया?” इस पर बाबा मौन हो गए, आँखें मूँद लीं। हार का पता नहीं चला। सिक्का उसी तरह साधु बाबा के पास आता रहा।

 

एक रोज फिर मेला जुड़ा। हजारों की संख्या में भक्त इकट्ठे हुए। बाबा पेड़ के नीचे बैठे प्रवचन कर रहे थे। तभी एक चीख गूँजी, “साँप...साँप...” लोग इधर-उधर भागने लगे। एक काला साँप लहराता हुआ नजर आया और झाड़ियों में घुस गया। एक आदमी ने चीखा, “बाबा, मुझे साँप ने काट  लिया... मैं मरा...”

 

सब जैसे पत्थर की प्रतिमाएँ बन गए...साधु महाराज आसन से खड़े हुए, उन्होंने बढ़कर उस आदमी का पैर कसकर पकड़ लिया। पिंडली पर साँप काटे का निशान दिख रहा था।फिर साधु बोले, “कोई जल्दी से डाक्टर को बुलाओ।

 

बाबा, आप इतने बड़े संत हैं, कुछ कीजिए। मंत्र से विष उतार दीजिए...” कुछ लोग घबराकर बोले।

 

मैं जादूगर नहीं, भगवान का तुच्छ सेवक हूँ। तुम जैसा हूँ। समय मत गँवाओ, जल्दी जाओ।साधु बाबा ने क्रोध से कहा।

 

तभी भीड़ को चीरकर सिक्का आगे बढ़ आया। उसने कहा, “डाक्टर  के आने तक तो बहुत देर हो जाएगी।और अपना मुँह साँप काटे स्थान पर टिका कर चूसने लगा। वह चूसता जाता, थूकता जाता। सिक्का का मुँह खून से भर गया। दोनों और लोग तमाशबीनों की तरह खड़े रहे थे। वह विष चूस-चूस कर थूकता रहा।

 

 

इतने में ही डाक्टर आते दिखाई दिए। रोगी को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। लोगों ने देखा सिक्का वहाँ अर्ध मूर्छित  पड़ा है। बाबा उसके सिर पर हाथ फेर रहे हैं।दो दिन में वह आदमी स्वस्थ हो गया, जिसे साँप ने काटा था। कई दिन तक सिक्का की भी तबीयत खराब रही। लेकिन इससे आगे कुछ पता नहीं चला, क्योंकि उसी रात पुलिस उसे पकड़ कर ले गई। दिन में उसने कहीं से माल चुराया था, पुलिस उसके पीछे थी।

 

बाद में लोगों ने साधु महाराज से कहा, “महाराज, हम आपसे कहते थे कि सिक्का पक्का चोर है। देख लीजिए, आज फिर पकड़ा गया। हार भी उसी ने चुराया होगा।

 

बाबा धीरे-से हँस दिए। बोले, “हो सकता है, चुराया हो । सिक्का बुरा आदमी है। उसने मन में अँधेरा है लेकिन उजाले की नन्ही किरण भी है, यह उसने उस दिन अपने प्राणों पर खेलकर प्रमाणित कर दिया था। हो सकता है जेल से छूटकर वह फिर चोरी करे और पकड़ा जाए, लेकिन मेरा विश्वास है वह अपने मन के अँधेरे से लड़ रहा है। ऐसे में उसे ठुकराना ठीक नहीं, वरना अँधेरा जीत जाएगा। मैं यह नहीं होने दूँगा।

 

सब चुप खड़े थे। उन्होंने समझ लिया कि उन्हें क्या करना है? सब अपने अंदर का अँधेरा देख रहे थे।(समाप्त)

 

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