Sunday 5 December 2021

साल का पहला दिन—कहानी—देवेन्द्र कुमार

 

साल का पहला दिन—कहानी—देवेन्द्र कुमार    

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    तीन मार्च का दिन विशेष होता है जयंत और अचला परिवार के लिए।   उस दिन घर में दो उत्सव मनाये जाते हैं—पहला है घर के पुरखों यानि अक्षत और जूही के पापा जयंत  के  दादा-दादी और पिता तथा माँ के  जन्मदिन, और दूसरा है जयंत और बच्चों की मम्मी अचला की मैरिज एनिवर्सरी। 

 

  सो कर उठते ही अक्षत और  जूही  को अचला और जयंत की पुकार सुनाई देती है—‘हाथ मुंह धो कर दादा जी के कमरे में आ जाओ।  ’ वहां मेज पर चारों पुरखों  के फोटो रखे हुए हैं।   चित्रों पर फूलों की मालाएं चढ़ी  हैं।   हर फोटो के सामने दीपक जल रहा है।   हवा में अगरबत्ती की सुगंध फैली है।   अक्षत और जूही  सिर झुका कर चारों को प्रणाम करते हैं।   बच्चों ने उन चारों में से केवल अपनी दादी को देखा है बाकी किसी को नहीं।   कुछ देर चित्रों के सामने खड़े रहने के बाद, वे चुपचाप कमरे से बाहर आ जाते हैं।   दोनों एक ही बात सोच रहे हैं—क्या पापा के दादा-दादी और माँ और पिता  का जन्म ३ मार्च को हुआ था,लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है! पर यही तो  होता है, नहीं तो परिवार के चारों बड़ों का जन्म दिन एक ही दिन यानि ३ मार्च को क्यों मनाया जाता।   और मम्मी पापा की शादी की वर्ष गाँठ भी तो ३ मार्च को होती है। 

  

  अब दूसरे प्रोग्राम की बारी है।   दो रसोइयों को बाहर से बुलाया गया है।   आज के दिन अचला का सारा समय तो मेहमानों की अगवानी में ही बीत जायेगा।   बच्चों के चाचा और मामा के परिवारों  के काफी लोग आने वाले हैं।  एनिवर्सरी का कार्यक्रम सुबह के नाश्ते से शुरू होकर रात में केक काटने तक चलेगा।  सारा दिन  खूब धमाल मचने वाला है।   साढ़े आठ बजे तक सारे मेहमान आ चुके हैं।  ड्राइंग रूम में खिल खिल और शोर गूँज रहा है।   एक एक करके हर मेहमान दादाजी के कमरे में जाकर प्रणाम करता है।  इस तरह चारों पुरखों के सम्मिलित जन्मदिन का प्रोग्राम पूरा हो जाता है। 

 

    अब ब्रेक फ़ास्ट की बारी है।  कई स्वदिष्ठ व्यंजन बने हैं एक रसोइया दादाजी के कमरे में चार प्लेटों में हर व्यंजन का एक एक कौर रख कर ले जाता है और चित्रों के सामने रख देता है।  यही क्रिया लंच,दोपहर की चाय, डिनर और केक काटने के समय भी दोहराई जाती है।   जयंत का कहना है कि घर के बड़ों को आज बने हर व्यंजन का स्वाद लेना चाहिए। 

 

  अक्षत और जूही उलझन में हैं।   उन्हें पता है कि सुबह एक बार चित्रों को प्रणाम करने के बाद फिर कोई भी दादा जी के कमरे में नहीं झांकता।   हाँ रसोइया जरूर जाता है-व्यंजनों की प्लेटें रखने और उठाने के लिए।   रसोइये के दादाजी के कमरे में आने जाने के बीच अक्षत और जूही भी वहां कई बार जाते हैं।  और खड़े खड़े सोचते रहते हैं- क्या इन चारों पुरखों को मम्मी पापा के  मैरिज एनिवर्सरी प्रोग्राम में शामिल नहीं होना चाहिए।  उनका सोचना है कि पुरखों के चित्रों को बाहर हाल में  सबके बीच तो रखा ही जा सकता है। 

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  कैमरों की क्लिक,रंगारंग रोशनियों, संगीत के सुरों और शानदार दावत के साथ कार्यक्रम पूरा हुआ।   मेहमान विदा हुए तो आधी रात बीत चुकी थी।   अगला दिन रविवार था।   आराम से चाय की चुस्कियां लेते हुए जयंत और अचला विवाह की वर्षगाँठ समारोह की चर्चा कर रहे थे।  तभी अक्षत ने कहा-‘पापा, 

‘क्या हमारे चारों पुरखों का जन्म एक ही दिन यानि ३ मार्च को हुआ था?

 

  ‘यह तुमसे किसने कहा कि मेरे दादा दादी और माता पिता ३ मार्च को  जन्मे थे।  ’-जयंत ने कुछ आश्चर्य से कहा। 

 

  ‘कल हमने पुरखों  का जन्म दिन और अपने विवाह की वर्षगाँठ एक साथ जो  मनाई थी।  उससे तो किसी को भी ऐसा ही लग सकता है।  ’-अचला ने कहा। 

  जयंत ने कहा-‘अक्षत और जूही, मेरे दादा –दादी के जन्मदिन की तारीख मुझे पता नहीं।   हाँ अपने माँ बाप के जन्मदिन की तिथि जरूर पता है’।  ३मर्च को पुरखों का जन्म दिन और अपने विवाह की वर्ष गाँठ एक साथ मनाने के पीछे यही भाव है कि हमारे सगे सम्बन्धी दोनों में शामिल हो सकें। 

   

  ‘ अगर यही बात है तो चारों पुरखों के फोटोग्राफ हाल में सबके बीच होने चाहिएं।  ’जूही ने अपनी राय दी। 

 

   ‘बच्चों की बात में दम है।  ’-अचला ने बच्चों का साथ दिया। 

   ‘तो अगली बार से ऐसा ही होगा।  ’जयंत बोले। 

 

    क्या किसी तरह आप अपने  दादा दादी की जन्म तिथि  का पता लगा सकते हैं?’-अचला ने पूछा। 

 

  ‘मेरे दादा के मित्र जयराज जी से कुछ दिन पहले ही मेरी बात हुई थी।  वे भी बहुत बूढ़े हैं,शायद उन्हें इस बारे में कुछ पता हो।   कहो तो दिन में जाकर  उनसे मिल आऊँ।  ’ जयंत ने अचला से पूछा। 

 

  ‘जरूर जाइए।  ’ माँ के बोलने से पहले ही अक्षत और जूही बोल उठे। 

 

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  दोपहर में जयंत जयराज जी से मिलने चले गए।   तीन चार घंटे बाद लौटे तो उन्होंने बताया-‘ मैं उनसे मिला तो सही पर वह मेरे दादा जविनाश जी की जन्म तिथि के बारे में कुछ नहीं बता सके।   उन्होंने कहा कि उन्हें तो अपनी ही जन्म तिथि याद नहीं है।   पर मैंने उनसे वादा करा लिया है कि वह अगले रविवार को हमारे घर आएंगे। 

 

  ‘वाह! तब तो उनसे मिल कर खूब मजा आएगा।   वह आपके दादाजी के बारे में ऐसी बातें  बता सकते हैं जिन्हें आप ने भी कभी न सुना हो।  ’-अक्षत और जूही ने ख़ुशी भरे स्वर में कहा। 

 

  रविवार का दिन विशेष था; दोपहर को जयंत जयराज जी  को लेकर आये।  उनके साथ एक वृद्ध महिला और थीं।   अचला ने उन वृद्ध महिला को सहारा देकर सोफे पर बैठा दिया।  वह हांफ रही थीं।                                                   

अचला ने उन्हें ग्लूकोज मिला पानी पिलाया।   कुछ देर में वह सामान्य हो गईं।  पता चला कि उनका नाम कीर्तन देवी है।  और वह जयंत की दादी उर्मिला जी के बचपन की सहेली थीं। 

 

  जयंत ने बताया कि जयराज जी ही उन्हें साथ लाये हैं।  अक्षत और जूही ने दोनों के पैर छू कर आशीर्वाद लिया।   जूही ने वृद्धा से पूछा –‘दादी  ,आप का यह नाम कैसे पड़ा?’

  वृद्धा ने बताया-‘ मेरे जन्म के समय घर में कीर्तन हो रहा था।   बस मेरा नाम कीर्तन देवी रख दिया गया।  ’कह कर वह पोपले मुंह से हंस दीं। 

 

  जयंत बोले-‘ मुझे तो आज पता चला है कि आप मेरी दादी की पक्की सहेली थीं।  ’ इतने में अचला जयंत के दादा और दादी के चित्र ले आई।  जयराज जी और कीर्तन देवी ने उन चित्रों को सीने से लगा लिया।   बच्चों ने देखा कि जयराज जी और कीर्तन देवी की आँखों में आंसू झलक रहे थे।  दोनों बारी बारी से चित्रों को चूम रहे थे।  कुछ देर बाद जयंत जयराज जी और कीर्तन देवी को  उनके घर छोड़ने चले गए।   उनके लौटने तक अक्षत और जूही माँ अचला से बातें करते रहे। 

  

    जयंत के लौटने के बाद अचला ने पति से कहा-‘बच्चे सोचते हैं कि पुरखों का जन्मदिन और हमारे विवाह की वर्ष गाँठ के उत्सव  अलग अलग दिन मनाने चाहियें।  मुझे भी इनकी बात ठीक लगती है। 

 

  ‘अब तो दोनों ही उत्सव बीत गए हैं,जो कुछ होगा अगले वर्ष ही हो सकता है।  ’-जयंत ने कहा।  ’तीन   मार्च हमारे विवाह की वर्ष गाँठ का दिन होता है,अगर पुरखों का जन्मदिन अलग से मनाना है तो उसे किस दिन मनाया जाये,यह कैसे तय होगा। 

 

 ‘हमने सोच लिया है।  ’-अक्षत और जूही ने कहा-‘ नए वर्ष का  पहला दिन इसके लिए सबसे अच्छा रहेगा। 

 

  ‘नए वर्ष का पहला दिन मतलब एक जनवरी।   वाह, क्या आईडिया है।  ’जयंत बोले ’पर अगले वर्ष की एक जनवरी तो 9 महीने बाद ही आएगी।   उसके लिए तो लम्बा इन्तजार करना होगा। 

 

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  ‘नहीं,बच्चे चाहते हैं कि पुरखों का नया जन्मदिन अगले या उसके बाद वाले रविवार को ही मनाया जाए।  ’-अचला ने कहा।   ‘और उस उत्सव में जयराज  जी और कीर्तन देवी को जरूर बुलाया जाये,   साथ में वे मेहमान भी रहें जो कल की हमारी  विवाह वार्षिकी आये थे। 

 

  प्रोग्राम बन गया।   परिवार के पुरखों का पहला नया जन्मदिन अगले रविवार को मनाया गया।   चारों के फोटोग्राफ ड्राइंग रूम की  मेज पर रखे गए।   सब कुछ पहले की तरह हुआ।   मेहमानों में जय्रराज जी  और कीर्तन देवी भी मौजूद थे।  सब लोग उनके संस्मरण सुनते और तालियाँ बजाते रहे।   सबसे ज्यादा खुश थे अक्षत और जूही।   (समाप्त )

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