बाबा
का स्कूल-कहानी-देवेन्द्र कुमार
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निशि अपनी प्रिय
पुस्तक पढ़ रही थी,तभी एक चीख सुनाई दी।वह भाग कर दूसरे कमरे में गई तो देखा-काम
वाली प्रीतो फर्श से उठने की कोशिश कर रही है और आस पास किताबें बिखरी हुई हैं। निशि ने सहारा देकर उठाया
और पूछा-‘ क्या हुआ,कैसे गिर गई। चोट तो नहीं लगी?’
प्रीतो ने अपना सिर
दबाते हुए कहा-‘ चोट नहीं, चेतावनी मिली है।’यह कहते हुए वह हंस रही थी।निशि ने
अचरज से पूछा-‘चेतावनी! कैसी चेतावनी! मैं तो तुम्हारी चीख सुन कर आई हूँ ,लेकिन तुम हो कि हंस रही हो! आखिर बात क्या है?’
प्रीतो ने जो कुछ
कहा उससे निशि को पता चला कि जब प्रीतो फर्श की सफाई कर रही थी तभी ऊपर वाले शेल्फ
से कई किताबें उसके सिर पर आ गिरीं। वह घबरा कर उठी तो फिसल कर गिर गई।तभी उसके मन
ने कहा कि पुस्तकें सिर पर गिरा कर जैसे देवी सरस्वती ने चेतावनी दी हो कि क्या वह
उम्र भर इसी तरह अनपढ़ ही बनी रहेगी!
‘देवी सरस्वती का
नाम क्यों ले रही हो,उनके बारे में क्या जानती हो ?’—निशि ने पूछा। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी।
‘मैडम जी, हमारी
गली में देवी का मंदिर है। वहां के पुजारी जी अक्सर ही कहते हैं कि विद्या की देवी हैं सरस्वती, और
पुस्तकें हैं उनके मंदिर की खिड़कियाँ। पढना लिखना ही देवी सरस्वती की पूजा है। यही
सोच कर कई बार अपने अनपढ़ रह जाने पर मन दुखी हो जाता है। बचपन में पढ़ नहीं पाई और
अब कौन पढाये मुझे।’
अब जाकर निशि
प्रीतो के मन की कसक को समझ पाई। उसने
कहा-‘ मुझे तो अब पता चला है कि तुम सच में पढना लिखना चाहती हो।’
‘आपने ठीक कहा, मन
कितना चाहता है कि अनपढ़ न रहूँ। इसीलिए बेटी की पढाई पर बहुत ही ध्यान देती हूँ।’
‘ अगर तुम चाहो तो
मैं तुम्हें पढ़ा सकती हूँ।’-निशि ने कहा।
प्रीतो की आँखें
अचरज से फैल गईं।’क्या आप मुझे सचमुच पढ़ाएंगी! ‘प्रीतो के होंठ खुलकर हंस रहे थे।’पर
कैसे!’
‘ देखो, दोपहर में सारा काम निपटा कर तुम कुछ देर आराम करती हो
और बच्चों के स्कूल से लौटने से पहले मैं
भी अपनी मनपसंद पुस्तक के साथ समय बिताती हूँ।मतलब उस दौरान हम दोनों के पास खाली
समय होता है।बस तभी मैं तुम्हें आराम से पढ़ा सकती हूँ।’-निशि ने उसे समझाया।
1
‘यह तो बहुत अच्छा रहेगा लेकिन…’ प्रीतो इतना ही कह सकी। उसके मन में अब भी संदेह था।
इस बीच निशि
अलमारी से लकड़ी की एक पुरानी संदूकची ले आई। उसमें रखा सामान बाहर निकाल लिया। बोली-‘
यह मेरे बाबा की संदूकची है। मैंने उन्हें अपने छुटपन में देखा था। शादी के बाद
विदा होते समय मैं उनकी संदूकची को अपने
साथ ले आई। इसे जब जब देखती हूँ तो लगता है कि जैसे बाबा सामने आ खड़े हुए हों।’
प्रीतो ने देखा संदूकची के सामान में एक
स्लेट,चाक के कुछ टुकड़े,पूजा की माला,एक टूटा चश्मा, कई कौड़ियाँ, रामनामी चादर, पुरानी कापी और कई
धुंधले फोटो थे।
निशि ने स्लेट
प्रीतो को थमाते हुए कहा-‘समझो कि बाबा के स्कूल में अब से तुम्हारा दाखिला हो गया।’
फिर संदूकची का सामान उसमें रख कर ढक्कन बंद
कर दिया। चाक से स्लेट पर अ आ लिख कर प्रीतो से कहा-‘ स्लेट पर जो अक्षर मैंने
लिखे हैं उन्हें देख कर बार बार लिखो। इसी तरह अभ्यास करती रहो।’
प्रीतो ने स्लेट
को माथे से लगाया, निशि की ओर देख कर मुस्कराई और सिर झुका कर निशि के लिखे
अक्षरों को देख कर लिखने की कोशिश करने लगी। इस बीच निशि के बच्चे अनिल और बिभा स्कूल से लौट आये। उन्होंने प्रीतो को स्लेट पर
लिखते देखा तो मुस्करा उठे। प्रीतो ने शरमा कर लिखना बंद कर दिया।
काम निपटा कर प्रीतो
जाने लगी तो निशि ने स्लेट वापस लेते हुए कहा-‘ प्रीतो, बाबा की स्लेट मैं तुम्हें
घर के लिए नहीं दे सकती।’ फिर उसे कुछ पैसे देते हुए बोली —‘ तुम नई स्लेट, चाक और
हिंदी-अंग्रेजी का कायदा खरीद लेना।’
अगले दिन प्रीतो
काम पर आई तो उसके हाथों में स्लेट और हिंदी –अंग्रेजी का कायदा था। सोसाइटी के
गार्ड वीरू ने कहा-‘ क्या काम छोड़ कर स्कूल में दाखिला ले लिया है!’
प्रीतो ने कहा –‘हाँ,
मैंने बाबा के स्कूल में दाखिला ले लिया है। मैं अनपढ़ नहीं रहना चाहती।’और मुस्करा
दी।
‘कहाँ है यह बाबा
का स्कूल?’
2
‘वहीँ जहाँ मैं
काम करती हूँ।’-कह कर प्रीतो अंदर चली गई।
शाम को जब प्रीतो
काम से अपने घर जा रही थी तो वीरू ने उसे रोक लिया ।बोला-‘ सुबह तुमने कुछ नहीं
बताया,अब तो बता दो कि मामला क्या है।’
प्रीतो ने वीरू
को बता दिया कि कैसे क्या हुआ था।सुन कर वीरू बोला-‘प्रीतो,मेरी बीवी रत्ना भी तो
अनपढ़ है।वह कई बार पढने की इच्छा प्रकट करती रहती है। क्या तुम मैडम से रत्ना की
सिफारिश कर सकती हो।’ रत्ना भी प्रीतो की तरह सोसाइटी के कई घरों में साफ़ सफाई का
काम करती थी। दोनों पक्की सहेलियां थीं। प्रीतो ने निशि से रत्ना के बारे में कहा
तो उसने झट हामी भर दी,कहा-‘कोई किसी भी उम्र में पढ़ सकता है। बाबा के स्कूल में
कोई भी दाखिला ले सकता है। पर तुम्हारी सहेली तो रविवार को ही पढने आ सकती है।’
निशि ने ठीक कहा था। सोसाइटी की सभी कामवालियां रविवार को छुट्टी करती हैं।
रविवार की दोपहर
को प्रीतो और रत्ना एक साथ बाबा के स्कूल में पहुँचीं। छुट्टी के कारण निशि के पति
रमेश और बच्चे-अनिल और विभा घर में ही थे। वे सब निशि से सहमत थे कि हर किसी को
शिक्षा मिलनी ही चाहिए।
निशि दोनों को
अपने कमरे में ले गई। रत्ना बहुत खुश थी।जल्दी ही बाबा के स्कूल की बात सबको पता चल गई। एक शाम
प्रीतो घर जाने लगी तो उसे जमना,कमला,लक्ष्मी,लता और प्रभा ने घेर लिया। उन सबकी
एक ही मांग थी कि वे सभी पढना चाहती हैं और प्रीतो को निशि से उनकी सिफारिश करनी
होगी। वे सब प्रीतो और रत्ना की तरह सोसाइटी के घरों में काम करती थीं।
निशि ने प्रीतो से
सुना तो कहा-‘ तुम सबको पढ़ा कर मुझे बहुत
अच्छा लगेगा। अगले रविवार को अपनी सब सखियों को ले आना।’
वह रविवार विशेष
था। छह छात्राएं बाबा के स्कूल में पढ़ने आईं थीं। निशि का कमरा बाबा का स्कूल बन
गया था। निशि ने एक कापी में जमना,कमला,लक्ष्मी,रत्ना, प्रभा और प्रीतो के विवरण
लिख लिए –नाम -पता,हरेक के विवाह की तारीख,
मोबाइल नंबर, घर के सदस्यों के नाम और जन्म दिन की जानकारी।उससे पता चला कि
अगले रविवार को लक्ष्मी के बेटे अजय का जन्म दिन है।निशि ने पूछा-‘लक्ष्मी,तुम कैसे मानती हो अजय का
जन्म दिन?’ लक्ष्मी ने बताया-‘शाम को काम से लौटने के बाद हम बेटे को आइसक्रीम
खिलने ले जाते हैं।उसके लिए मनपसंद खिलौना ले देते हैं।’
अगले रविवार को एक
आश्चर्य लक्ष्मी की प्रतीक्षा कर रहा था बाबा के स्कूल में। वहां पहुंचते ही सब ने
उसे रंग बिरंगी पन्नी में लिपटे पैकेट थमा कर कहा-;अजय के लिए हमारे आशीर्वाद,’ कमरे
में सम्मिलित खिल खिल गूंजने लगी। उन सबकी ओर
से निशि ने गिफ्ट पैकेट तैयार करवा लिए थे।
3
‘ मेरे बेटे का
ऐसा जन्म दिन तो कभी नहीं मना इससे पहले।’-लक्ष्मी ने प्रसन्न स्वर में कहा।
निशि ने कहा-‘प्रीतो की बेटी का जन्मदिन मंगलवार
को है। पर हम उसे रविवार को मनाएंगे।’
एक रविवार को प्रभा
स्कूल नहीं आई।निशि ने पूछा तो पता चला
कि वह दो दिन से काम पर भी नहीं आ रही है।उसका
पति बीमार है। निशि ने कहा-‘आज स्कूल की छुट्टी। हम सबको प्रभा के घर चलना चाहिए।’
जमना को प्रभा का घर मालूम था।
अपनी सखियों को एक
साथ आया देख प्रभा अपलक ताकती रह गई।उसका पति उठ कर बैठ गया।वह हैरानी से निशि को
देख रहा था।निशि ने उसका हाल पूछा तो पता चला कि
अब पहले से ठीक है। निशि ने प्रभा से कहा-‘ क्या हमें चाय नहीं पिलाओगी?’यह
सुन कर प्रभा के साथ लक्ष्मी चाय बनाने लगीं।निशि ने रास्ते में नाश्ते के लिए
बिस्किट और नमकीन ले लिया था।इस पर प्रभा ने कहा-‘ क्या मैं आप सबको चाय नाश्ता भी
नहीं करा सकती।’इस पर निशि ने कहा-‘तो वह सब भी ले आओ।’ और कमरे में खिल खिल
गूंजने लगी।
चलते समय निशि ने
कहा-‘ प्रभा,बाबा के स्कूल में एब्सेंट रहने पर जुरमाना भरना होता है। अगले रविवार
को स्कूल में जरूर हाजिरी लगाना।’ एक बार
फिर कमरा हंसी से भर गया। बाबा का स्कूल चल निकला था।(समाप्त )
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