कहानियों की कहानी ( नए संकलन की भूमिका)
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मेरे लिए कहानी लिखना जितना सहज और रोमांचक है।इस संकलन की
भूमिका लिखने की कोशिश उतनी ही कठिन और ऊबाऊ,मेरे सामने सम्पूर्ण कथा कोलाज अपने
इन्द्रधनुषी रंगों में धड़क रहा है।हर कहानी
मुझसे कह रही है कि मैं भूमिका लिखते समय केवल उसकी ही बात करूं। मैं देर तक सोचता रहा कि वह कौन सी कहानी
हो सकती है,मैं जिसकी चर्चा सबसे ज्यादा करूं।मैं देर तक कहानियों में आता जाता
रहा। किसी को उठाता तो दूसरी कहानियां
शिकायत करने लगतीं।मैं उलझन में था कि तभी अपनी कहानी याद आई । और मैंने तय किया कि संकलन की भूमिका का आरम्भ मैं माँ से करूं।
मेरा बचपन और
कहानी कहीं गहरे जुड़े हुए हैं। मेरे पिता नहीं थे और माँ को जबरदस्ती मुझ से दूर
कर दिया गया। वह एक अधेड़ विधुर के पांच बच्चों की विमाता बन कर मुझ से दूर चली गईं। मैं बूढी नानी के साथ एक बड़े मकान में अकेला था।अपने अकेलेपन
को भरने की कोशिश में मेरा परिचय घर में इधर उधर पड़ी फटी पुरानी और आधी अधूरी
किताबों से हुआ।मुझे तो जैसे खज़ाना ही मिल गया।मैं उनमें रम गया,खो गया।पर खज़ाना
जल्दी ही चुक गया,मुझे प्यासा छोड़ गया। मैं बैचैन था।फिर एक खिड़की खुल गई।
हमारी गली
में हरना बाबा अपनी बैठक के चबूतरे
पर सबके पढने के लिए कई अखबार रखवाते थे।उन्होंने मुझ से कहा कि मैं अख़बारों को
नीचे नाली में न गिरने दूं । मुझे अच्छा लगा।मैं अखबार पढता नहीं था पर पढने वालों
की बातें जरूर सुनता था। एक दिन हरना बाबा मुझे अपने साथ बाज़ार ले गए। ।उन्होंने ढेर सारे फल और पूरी-मिठाई खरीदी और पास के अनाथालय में
चले गए। उन्होंने मैनेजर से कहा तो कई बच्चे आँगन में निकल आये। सर्दी ज्यादा थी लेकिन
वे नंगे पैर थे, बदन पर कोई गरम कपडा नहीं
था।मैनेजर के हाथ में छड़ी थी।वह छड़ी हिला कर चीखा-‘सब नीचे बैठ जाओ।’ बच्चे पुतलों
की तरह नंगे फर्श पर बैठ गए।बाबा ने बच्चों को पूरी-मिठाई और फल बाँट दिए। मैनेजर
फिर चीखा-‘जल्दी खाओ वर्ना चमड़ी उधेड़ दूंगा।’ मुझे यह सब अच्छा नहीं लगा। मेरी नानी
तो मुझसे कभी कुछ नहीं कहती थीं। इन बच्चों का कोई नहीं था, ये किसी के कुछ नहीं
थे।क्या इसीलिए इनके साथ मार पीट की जाती थी।
मैं वहां से हट कर एक बड़े चबूतरे पर चढ़ गया।वहां
एक बडे कमरे में किताबों की तालाबंद
अलमारियां नज़र आ रही थीं। मैं अंदर चला गया। कमरे की लम्बी
मेज पर अखबार रखे थे लेकिन कोई पढने वाला नहीं था। कुर्सी पर बैठे आदमी ने मुझे एक किताब थमा दी,बोला-‘बैठ कर आराम से पढो।किताब
का शीर्षक था-‘बितानी वीर’ उसमें हथेली के अंगूठे जितने बड़े बच्चे की कहानी थी।बाद
में पता चला कि वह अंग्रेजी की कहानी ’ टाम थम्ब’ का रूपान्तर थी। उस आदमी ने
कहा-‘चाहो तो किताब को घर भी ले जा सकते हो,अपना नाम पता नोट करवा दो।’ फिर तो मैं
अक्सर वहां से किताब घर ले जाने लगा।मैं सोचता था कि अनाथालय में रहने वाले बच्चों से मिलूं,उनसे
बात करूँ पर मैं उनसे फिर कभी नहीं मिल
पाया।पर उन्हें भूल भी नहीं सका।
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मैं नई सड़क स्थित महावीर जैन स्कूल में पढता था।पर
वहां जाने का मन नहीं करता था,गणित के मास्टर रोज पिटाई करते थे क्योंकि गणित मुझे
बिलकुल समझ नहीं आता था।पिटाई से बचने का
एक ही उपाय सूझा कि मैं स्कूल ही न जाऊं।मैं अनाथालय की लाइब्रेरी से किताब लेकर
दिल्ली रेलवे स्टेशन चला जाता था, वहां बैठ कर सारा दिन किताब पढता और छुट्टी के
समय घर लौट आता।बेचारी नानी,उन्हें कुछ
पता नहीं चलता था।लेकिन क्या मुझे पता था कि इस तरह मैं अपना कैरिअर नष्ट कर रहा
था।
रेलवे स्टेशन के
सामने दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी नई नई खुली थी।मैं वहां गया तो चकित हो उठा। सब तरफ किताबें ही किताबें और भारी भीड़।साहित्य
से असली परिचय वहीँ से आरम्भ हुआ।आज यह याद नहीं रह गया है कि किस विषय की कितनी क़िताबें पढ़ी होंगी,पर
क्या इतना काफी नहीं है कि किताबों की दुनिया ने मेरे अकेलेपन को अपने अंदर
समेट लिया था।मैं अब उदास नहीं था।हाँ एक
इच्छा मन में सिर उठाने लगी थी –क्या मैं भी इन लेखकों की तरह लिख सकूंगा कभी।
मैंने लिखना शुरू कर दिया था लेकिन अभी बहुत लम्बा
रास्ता तय करना था मुझे।नियमित लेखन ‘सरिता’ की नौकरी से शुरू हुआ। वहां लेखन के साथ अनुवाद ,संपादन और प्रूफ रीडिंग की
ट्रेनिंग खूब मिली।मैंने वयस्क पाठकों के
लिए कहानी और कविता लिखना शुरू कर दिया था।बच्चों
के लिए भी कभी कभी लिखता था।मेरी एक कहानी-‘अध्यापक’ ‘पराग’पत्रिका में प्रकाशित
हुई।संपादक आनंद प्रकाश जैन का पत्र मिला-‘तुम और अच्छा लिख सकते हो और लिखो।’इससे
मेरा झुकाव बाल लेखन की ओर बढ़ गया।
कुछ समय बाद मुझे
बच्चो की लोकप्रिय पत्रिका ‘नंदन’ में नौकरी मिल गई।वहां एक नए संसार से मेरा
परिचय होने जा रहा था।’नंदन’और ‘पराग’दो विपरीत ध्रुवों पर थे ।’पराग’में आधुनिक
विज्ञान परक कहानियां प्रकाशित होती थीं,दूसरी और ‘नंदन’ में परी कथाओं, पौराणिक
आख्यानों और लोक कथाओं का बोलबाला रहता था।मेरा काम था कथा सूत्र खोज कर कहानियां लिखना और लिखवाना।संपादक
जी से अनेक लोग मिलने आते थे।जब संपादक जी उनसे कहते –‘नंदन’के लिए लिखिए’ तो मिलने वाले कहते –‘हमें कहानी
बताइए’ और तब वे लोग मेरे पास भेज दिए जाते। कहानी क्या कोई शरबत है जिसे पीते ही
व्यक्ति लेखक बन जाता है! ऐसे हर संभावित लेखक से मुझे जूझना पड़ता था।
सबसे अच्छा पल वह
होता था जब मैं विश्व साहित्य की किसी क्लासिक रचना का सार संक्षेप
करने बैठता था।’नंदन’में
एक स्तम्भ नियमित रूप से प्रकाशित होता था ,जिसका शीर्षक था-‘विश्व की महान कृतियाँ’। अपने कार्य
काल में मैंने विश्व साहित्य की लगभग तीन
सौ श्रेष्ठ पुस्तकों का सार संक्षेप तैयार किया।काम कठिन लेकिन ज्ञानवर्धक और
रोमांचक था। इसी के बहाने से मुझे विश्व साहित्य की प्रसिद्ध पुस्तकों को पढने के
अवसर मिले। यह काम एक शर्त के साथ करना होता था-पुस्तक चाहे कितनी बड़ी क्यों न हो
सार संक्षेप की शब्द सीमा 1500 थी।उसकी भाषा को सरल और रोचक भी होना होता था।एक
सार संक्षेप लिखने के लिए प्राय:तीन-चार पुस्तकें तो पढनी ही होती थीं।
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मैं कुछ पुस्तको
को याद करना चाहूंगा।एक पुस्तक थी-जेम्स ओटिस की ‘टोबी टेलर’यह एक अनाथ बच्चे की
कहानी है जिसे अनाथालय का नीरस जीवन अच्छा नहीं लगता. वह वहां से भाग जाना चाहता
है। तभी नगर में सर्कस लगता है ।अनाथालय के बच्चे सर्कस देखने जाते हैं। एक धूर्त
स्टाल मलिक टोबी को चाकलेट का लालच देकर
रोक लेता है।टोबी को लगता है कि अनाथालय
से छुट्टी मिली ,अब मज़े करूंगा।लेकिन उसे पता नहीं कि वह बंधुआ मजदूर बन चुका है।जल्दी ही टोबी का भ्रम टूट जाता है।लेकिन अब पछताने
से क्या होगा।सर्कस उसके शहर से दूर और दूर होता जा रहा है।सर्कस के कुछ कलाकार
भागने में टोबी की मदद करते हैं।फिर से अपने ‘घर’ पहुँचने में उसे कई मुश्किलों से
जूझना पड़ता है।
‘हाईडी’योहन्ना
स्पाईरी की महान कृति है।हाईडी अनाथ है।वह
अपनी मौसी के साथ रहती है,हाईडी के बाबा गाँव से दूर झोंपड़ी में रहते हैं। मौसी
जबदस्ती उसे बाबा के पास छोड़ जाती है। बाबा
को हाईडी बहुत प्यारी लगती है,लेकिन कुछ दिन बाद मौसी फिर हाईडी को लेने आ
जाती है।वह चाहती है कि हाईडी शहर में एक अमीर आदमी की बीमार बेटी की देख भाल करे।यह
पूरा समय हाईडी के लिए बहुत कष्ट में बीतता है।वह फिर से कैसे अपने बाबा के पास पहुँचती
इसकी कथा दुःख भरी है।
हमने सुना है जब
कोई बच्चा जन्म लेता है तो परियां उसे
आशीर्वाद देने आती हैं।एक नवजात की इच्छा है कि वह सदा बच्चा बना रहे ,कभी बड़ा न
हो।यह कहानी है जेम्स एम बेरी की कृति ‘पीटर पान’ की।परियों के वरदान
से पीटर सदा शिशु ही बना रहता है।वह अमर है लेकिन उसके प्रिय जन तो युवा और फिर
बूढ़े होने के बाद मरते जाते हैं ।अब पीटर को महसूस होता है कि उसने अपने लिए वरदान नहीं अभिशाप मांग लिया था।वह पूरी दुनिया के खोये हुए बच्चों के
लिए नेवर लैंड नाम की दुनिया बसाता है।
एक थी ऐना सीवेल
,उसके पैर खराब थे इसलिए उसे हर कहीं घोडा गाडी से यात्रा करनी पड़ती थी।अपनी इन
यात्राओं में ऐना ने देखा कि हर कोई घोडों के साथ चाबुक से बात करता है, घोडों की
दुर्दशा देख कर ऐना को बहुत दुःख हुआ।उन्होंने ‘ब्लैक ब्यूटी ‘के शीर्षक से एक
घोड़े की आत्म कथा लिखी।इसमें घोड़े ने अपनी दुःख कथा कही है।यह ऐना सीवेल’की अकेली कृति है जो उनकी मृत्यु से
केवल एक वर्ष पहले प्रकाशित हुई थी।
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महान पुस्तकों के सार संक्षेप के अतिरिक्त ‘नंदन’
में विदेशी लेखकों की कहानियां भी प्रकाशित होती थीं। जिन रचनाकारों में मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया वे
थे डेनमार्क के हैंस एंडरसन और आयरलैंड के आस्कर वाइल्ड। एंडरसन की कहानी ‘माचिस वाली
लड़की; मुझे हमेशा याद रहेगी। एक बिन माँ की बच्ची सर्दियों की रात में सड़क पर
माचिस बेच रही है।माचिस बिकेगी तो खाना मिलेगा।बच्ची को सर्दी लग रही है।वह ठण्ड
से बचने के लिए माचिस की तीली जलाती है तो उसे अपनी माँ दिखाई देती है,वह एक के
बाद दूसरी तीली जलाती जाती है।सुबह सड़क पर बच्ची
मरी हुई मिलती है, उसके आस पास जली हुई तीलियाँ बिखरी हुई हैं। ।
एक है जल
परी,समुद्र में रहती है ।उसने पानी से बाहर की दुनिया की अनेक कहानियां सुनी हैं।जलपरी
उस दुनिया में जाना चाहती है,इसके लिए उसे स्त्री बनना होगा।एक जादूगरनी उसे
स्त्री तो बना देती है पर बदले में उसकी
आवाज छीन लेती है | जलपरी एक गूंगी सुंदर
स्त्री बन कर समुद्र से बाहर आती है पर सब उसे जादूगरनी समझते हैं, क्योंकि
रात के समय जलपरी अपनी सखियों से मिलने
समुद्र तट पर आती है। वह दुखी है।मनुष्यों की दुनिया ने उसे दुःख दिया है,वह फिर
से समुद्र में जाना चाहती है ,लेकिन इसके लिए उसे राजकुमार को मारना होगा।जल परी इसके
लिए तैयार नहीं होती।वह समुद्र में कूद कर झाग बन जाती है।
नंदन के लिये
मैने सैंकड़ों परी कथाएं लिखीं पर कभी उन्हें अपना नहीं माना,क्योंकि वे मौलिक कहानियां
नहीं थीं। उन कथाओं के पात्र होते थे-अच्छी और बुरी परियां,दानव और
राक्षस,शैतान बौने, राजा-रानी,राजकुमार और राजकुमारी,मंत्री,सेनापति ;दुष्ट
तांत्रिक और कल्याण करने वाले महात्मा।इन्हीं को लेकर परी कथा का ताना बाना बुना
जाता था।
कभी राक्षस
राजकुमारी को पिंजरे में कैद कर देता था,तो तांत्रिक भी क्यों पीछे रहता,वह युवराज
की तोता बना कर उडा देता,फिर निदान खोजा
जाता। कभी परियां जादू करतीं तो महात्मा का आशीर्वाद चमत्कार कर देता।कई बार
परियां संकट में फंस जाती।कोई परी नदी में स्नान से पहले अपने पंख उतार कर नदी तट पर रखती तो कोई दुष्ट
उसके पंख लेकर गायब हो जाता।पंख वापस पाने लिए परी को उस पंख चोर की अनेक शर्तें
माननी पड़ती थीं।एक और मुश्किल थी।कई कहानियों में परियां दिन निकलने से पहले
परीलोक वापस न जा पाती तो उनका जादू समाप्त हो जाता।उन्हें साधारण धरती वासियों की
तरह यहीं रहना पड़ता। पर पौराणिक आख्यानों की अप्सराओं के सामने ऐसा कोई संकट नहीं
होता था।वे मन की गति से कहीं भी आ जा सकती थीं।
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ये कहानियां
प्राय:एक ही तरह से शुरू होती थीं—एक था राजा
प्रजा पालक और न्यायी। प्रजा उसके राज में बहुत सुखी थी और हर समय ‘हमारे
राजा अमर रहें’के नारे लगाया करती थी।कुछ शब्दों में प्रजा की बात करने के बाद
असली कहानी शुरू होती थी।उसमें सामान्य जन नहीं राजा रानी ,उनके बच्चे,परी ,राक्षस
बौने,संत महात्मा,दुष्ट तांत्रिक,सेनापति,मंत्री होते थे। पूरी कहानी इन्हीं के
गिर्द घूमती थी। अनेक बार ऐसी परी कथाएं तैयार करने के बाद मुझे लगा कि अब कथा के
नेपथ्य में रहने वाले उपेक्षित पात्रों को भी सामने लाने वाली कहानियां लिखी जानी चाहियें। ऐसी परी
कथाएं सामने आईं जिनके हीरो सामान्य जन थे
और उन्हीं के कारण परियों का संकट दूर हुए थे।यह सब पत्रिका की रीति नीति की सीमा में रह कर किया गया था।कहना न
होगा कि ऐसी कथाओं को पाठकों ने ज्यादा पसंद किया।इन कहानियों को लिखने के लिए
मैंने परी लोक के असंख्य चक्कर लगाये हैं पर अब और नहीं|
मैंने तय कर लिया
था कि अपने मौलिक लेखन में हमारे आसपास के
वंचित, उपेक्षित पात्रो को केंद्र
में रख
कर साहित्य कर्म करूंगा,और निरंतर वही कर भी रहा हूँ| इधर लिखी गई कहानियों
का यह संकलन मेरे इस निश्चय की पुष्टि करता
है।==
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