Saturday 8 August 2020

माँ नहीं-स्मरण-देवेन्द्र कुमार





          माँ नहीं—देवेन्द्र कुमार—मेरा बचपन
                  ==================
                   
  जब भी बचपन की गलियों में जाता हूँ तो सबसे पहली छवि माँ की दिखाई देती हैऔर मैंने संस्मरण का नाम रखा है _ ‘माँ नहीं’। यह कैसी उलटबांसी है! माँ थी, जीती जागती, मुझे छूने को हाथ बढ़ाती, मेरी ओर आती हुईलेकिन माँ जितना मेरी तरफ बढती थी मैं उतना ही पीछे खिसक जाता था, मन करता था जाकर उनकी गोद में लेटकर आँखें बंद कर लूं, उनकी स्नेहिल उंगलियाँ मेरे माथे को थपकती रहें और मुझे गहरी नींद आ जाएलेकिन ऐसा न हुआऐसा होना चाहिए था पर नहीं हुआ   
  मैंने नानी से सुना था मेरे पिता रामपुर में डाक्टर थे, मैं उन्हें नहीं देख सका।   उन्हें न जाने किसने जहर दे दिया थातब मैं एक वर्ष का भी नहीं थामाँ मुझे लेकर दिल्ली आ गई थीं नानी के पासयह नानी का दूसरा दुःख थाक्या यह एक संयोग था? मेरे नाना देहरादून में फारेस्ट अफसर थेउनकी मौत भी जहर दिए जाने से हुई थी, कोई सम्पत्ति विवाद थानानी मेरी माँ को लेकर दिल्ली आ गई थीं तब मेरी माँ एक वर्ष की थीं    
  माँ की दूसरी शादी कर दी गईमाँ ने इसका बहुत विरोध किया थावह मुझे पढ़ा- लिखा कर बड़ा करना चाहती थींये बातें बाद में नानी मुझे टुकड़ों टुकड़ों में बताया करती थींमाँ का दूसरा विवाह मंदिर में सादे ढंग से हुआ थाउस समय मुझे किसी के साथ कहीं भेज दिया गया थामाँ मेरे लिए जैसे एकदम गायब हो गईं थींमैं जब माँ को याद करता था तब नानी कहती थीं –‘ कहीं काम से गई है तेरी माँ, अभी आ जायेगी 
  माँ कुछ समय बाद आईंयह तो मेरी माँ नहीं थीउनके साथ एक अनजान आदमी था   वह मेरा डाक्टर पिता नहीं थामाँ लाल साड़ी में थींउन्होंने कोठे में जाकर मुझे गोद में भर लिया और जोर से रो पड़ीं, मुझे प्यार करने लगींमैं उनकी पकड़ से छूट कर बाहर भाग आया  मुझे माँ पर बहुत गुस्सा आ रहा थाआखिर मुझे छोड़ कर वह कहाँ चली गई थीं? और वह अनजान आदमी कौन था? क्या वही माँ को मुझसे छीनकर ले गया था? माँ दो दिन घर में रहीं और फिर उस आदमी के साथ चली गई इस बीच मैं माँ के पास नहीं गयावह जब भी मुझे गोद में भरतीं मैं छिटक कर दूर भाग जाताऔर तब मैं उन्हें रोते हुए देखतामैं नाराज़ क्यों न होतावह मुझे बिना बताये उस अनजान आदमी के साथ चली जो गई थीं
                                        1    
  बड़ा विचित्र था माँ का और मेरा सम्बन्ध मैं उन्हें अपना अपराधी मानता थाइसलिए जब वह कुछ दिनों के लिए नानी के पास आतीं तो मैं उनसे दूर-दूर भागतामैं उन्हें दिन में कई बार नानी से लिपट कर रोते हुए देखताउनका सारा समय मुझे अपने पास बुलाने और गोद में लेकर प्यार करने की कोशिश में बीत जाता थामेरी नानी कहती-‘ अरे, पूरनजी से नमस्ते तो कर ले।‘  पर मैं कभी ऐसा न करतामाँ के नए पति का नाम पूरन चन्द्र थामैं उस आदमी को अपने पिता की जगह कैसे मान सकता थामुझे बाद में पता चला था कि उसकी पहली पत्नी मर गई थी और मेरी माँ को उसके पांच बच्चों की सौतेली माँ बनना पड़ा थाउसकी सबसे बड़ी लड़की मेरी माँ की उम्र की थीयह सब बहुत बाद में बताया था नानी ने   
  मैं नानी से पूछना चाहता था कि माँ मुझे अपने साथ क्यों नहीं ले गई थीं? यह बहुत बाद में समझ आया कि जबरदस्ती दूसरी शादी होने और मुझे साथ न जा सकने का कारण उनका औरत होना थावह अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकी थीं 
  एक रहस्य मेरे सामने राघव ने खोला थावह हमारी गली के पास दूसरी गली में रहते थे   मैंने उन्हें कभी अपने घर में आते नहीं देखा थावह जब भी मुझे देखते तो प्यार करने लगते  एक दिन मैंने नानी से राघव के बारे में पूछा तो वह राघव को गालियाँ देने लगींकहा-‘राघव बहुत खराब आदमी हैउससे कभी मत मिलनाउनकी बात मेरी समझ में नहीं आई
  एक दिन पता चला राघव को चोट लगी हैमैं नानी से छिप कर उनके घर चला गयाराघव ने मुझे माँ का फोटो दिखायामैं हैरान रह गयाभला उनके पास मेरी माँ का फोटो क्यों था! उन्होंने खुद बताया कि वह माँ को पढ़ाने हमारे घर जाया करते थेवह माँ से शादी करना चाहते थेउन्होंने मुझे भी माँ के साथ ले जाने की बात कही थीपर उनके हमारे घर में घुसने पर रोक लगा दी गई, और फिर माँ की शादी कर दी गई-- उम्र में माँ से काफी बड़े, पांच बच्चों के पिता के साथ। पता नहीं ऐसी क्या मजबूरी रही होगीनानी ने इस बारे में मुझे कभी कुछ नहीं बताया 
  माँ के इस तरह हो कर भी न होने का सबसे बुरा असर मेरी पढाई पर पड़ागणित के मास्टर जैमल सिंह बहुत मारते थे, गणित मेरी सबसे बड़ी आफत थाऐसा कोई दिन नहीं जाता था जब मार न पड़ी होइसका आसान हल यही सूझा कि मैं स्कूल ही न जाऊंमैं स्टेशन चला जाता था और वहाँ सारा दिन बिता कर छुट्टी के समय घर पहुँच जाता था
                                       2    
  इस बीच माँ वर्ष में एक बार कुछ दिनों के लिए आती रहीं और मैं सदा दूर ही भागता रहा  अब तक मैं यह बात अच्छी तरह समझ आ चुका था कि माँ पांच बच्चों के पिता से छूट कर कभी मेरे पास लौटने वाली नहीं
  एक वर्ष माँ नानी के पास नहीं आईंशायद कोई बीमार थामैं उनसे मिलने को बैचैन हो उठानानी ने मेरी बैचेनी समझ लीबोलीं-‘ जब तेरी माँ आती है तब तो तू उससे दूर भागता रहता हैअब क्यों बैचैन हो रहा है।’ मैं भला क्या कहतापर हर बीतते दिन के साथ मेरी परेशानी बढती जा रही थीएक रात नींद खुल गई और ऐसा लगा कि अब माँ को कभी देख नहीं पाऊंगामेरी आँखों से आंसू बहने लगेनानी को पता न चलावह गहरी नींद में थींऔर मैंने निश्चय कर लिया कि माँ से मिलने जरूर जाऊँगा 
 कैसे जाऊँगा,किसके साथ जाऊँगा यह पता नहीं थाऔर यह बात नानी को किसी कीमत पर नहीं बतानी थीमैंने बहुत सोचा पर माँ के पास गुप चुप पंहुचने का कोई तरीका नहीं सूझा   उन दिनों माँ महू में रहती थीं जो इंदौर के निकट हैउस समय मैं इस बात को भूल गया था कि जब वह नानी के पास आती थीं तब मैं उनकी छाया से भी दूर भागता थापता नहीं क्यों यह बात मेरे मन में जड़ जमा कर बैठ गई थी कि माँ बीमार होने के कारण ही नानी के पास नहीं आई थींमैं जितना सोचता उतनी ही चिंता बढती जाती   
  एक दिन मैं स्कूल न जाकर स्टेशन चला गयापुल पर खड़ा हुआ आती-जाती गाड़ियों को देखता रहाफिर मन में विचार कौंधा और मैं उछल पड़ामैंने सोच लिया कि अगर मैं रेल लाइन के साथ साथ चलता जाऊं तो गाड़ी की तरह महू पंहुच सकता हूँमैंने इसी तरह माँ के पास पहुँचने का इरादा बना लिया   
  रात में मैंने सोच लिया कि कैसे क्या करना हैमैं जानता था कि नानी को इस बात  की भनक भी नहीं लगनी चाहिएसुबह उठ कर मैंने बस्ते से किताबें निकाल कर कोठे में छिपा दीं फिर उसमें एक पाजामा -कमीज रख लींमेरे पास बस दो रूपये का नोट थानानी पूजा कर रहीं थीं और मैं माँ से मिलने निकल पड़ाउस समय मैं और कुछ नहीं सोच रहा था। स्टेशन पहुँच कर मैं रेल लाइन के साथ वाली पगडण्डी पर चलने लगामेरे पास से थोड़ी थोड़ी देर बाद गाड़ियां गुजरती जा रहीं थीं 
  जनवरी का महीना थाठंडी हवा चल रही थीधूप भली लग रही थीचलते हुए नानी की याद भी आ रही थीपता नहीं वह मुझे कहाँ- कहाँ ढूँढ रही होंगीकहीं उन्हें बिना बताये आकर मैने गलती तो नहीं कर दीलेकिन फिर माँ की याद आई और मैं बढता रहादोपहर ढलने लगी,धूप हलकी पड़ गईहवा ठंडी हो गई थीमैं एक स्टेशन के पास पहुंचा तो अँधेरा होने लगा थाअब याद नहीं कि वह कौन सा स्टेशन थामैं वेटिंग हाल में चला गयाइतनी बात समझ में आ रही थी कि रात के अँधेरे में रेल लाइन के साथ- साथ नहीं चला जा सकेगा
                                     3    
  वेटिंग हाल सब तरफ से खुला हुआ थाबर्फ सी ठंडी हवा बदन में चुभने लगीमेरे पास ओढने को कुछ नहीं थामैंने देखा वहां बैठे सभी लोग चादर और कम्बल में लिपटे हुए थे   इस तरह घर से आकर शायद मैंने बड़ी भूल कर दी थीलेकिन अब भला क्या हो सकता था   मैं घुटनों  में सिर दबा कर बैठा रहामेरे दांत किटकिटा रहे थेपता नहीं मैं कब तक इस तरह बैठा रहातभी किसी ने मुझे छुआ, एक आदमी मेरे पास खड़ा थाउसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा-‘आओ बच्चे।’ वह मुझे वेटिंग हाल के कोने में ले गयाबोला-‘यहाँ बैठ जाओ।’ मैंने देखा वहां कम्बलों पर कई लड़के बैठे थेवे चाय पीते हुए कुछ खा रहे थेउस आदमी ने चाय का गिलास थमा कर कहा-‘ चाय पी लो।’ कुछ बिस्किट भी दिएमुझे ठण्ड और भूख दोनों परेशान कर रही थींमैं चाय पी रहा था तो उसने मुझे कम्बल ओढा दिया तो मुझे चैन मिला 
     अब उसने पूछा-‘ घर से भाग कर आये हो?’
     मैंने कहा-‘ नहीं, मैं भाग कर नहीं आयामैं माँ के पास जा रहा हूँ।’
     साथ में और कौन है?’
      कोई नहीं।’
      माँ कहाँ है?’
      मैंने कहा-‘ महू।‘
      वह मुझे घूरता रहा।’ जानते हो महू कितनी दूर है?’
       मैंने कहा कि पता नहीं फिर बता दिया कि कैसे जा रहा हूँ 
   मैं  भी महू से हूँ।’ फिर उसने बताया कि वह नाटक मण्डली लेकर जगह- जगह घूमता है   उसने वहां बैठे लड़कों की ओर इशारा कियामैंने देखा- उनमें कई लड़के मेरे जितने थेउस आदमी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा-‘ बच्चे, अपनी नानी के पास लौट जाओमाँ के पास इस तरह कभी नहीं पहुँच सकोगे।’   
    मैंने कहा-‘ मुझे माँ के पास जाना है।’ थकान से मेरी आँखें बंद हुई जा रही थींमैं कब सो  गया पता न चलाएकाएक इंजन की सीटी ने मुझे जगा दियामैं हडबडा कर उठ बैठा। मेरे   उठते ही एक लड़के ने बिछा हुआ कम्बल समेट लियामैंने देखा- वे तैयार खड़े थेउस आदमी ने कहा-‘ बच्चे, हमें गाडी पकडनी हैजाओ, नानी के पास लौट जाओ।’
  मुझे माँ के पास जाना है।’ मैंने कहामैं उन्हें प्लेटफार्म पर लगी गाडी में सवार होते हुए देखता रहाअब मुझे आगे जाना था, जाने से पहले उस आदमी ने मुझे कुछ पैसे दिए थे   कहा था-‘ नानी के पास लौट जाओ।’ मैं चुप खड़ा देखता रहालेकिन आगे जाना न हुआकुछ देर बाद मैंने नानी को वहां आते देखाउनके साथ हमारे कुछ रिश्तेदार भी थेनानी ने मुझे लिपटा  लिया और आंसू बहाने लगींमैं हैरान था कि उन्हें मेरे वहाँ होने बात कैसे पता चली   नानी ने बाद में बताया था कि गली के एक आदमी ने मुझे वहाँ देख लिया था और तुरंत जाकर उन्हें खबर दे दी थी 
  माँ को भी इस बात की खबर मिल गई थीऔर दो दिन बाद वह नानी के पास आ गई थीं  मुझे देख कर उन्होंने मेरी ओर हाथ बढाया तो मैं भाग कर गली में निकल आया, मैं माँ से नाराज था, उनसे बात नहीं करना चाहता था    
                                            ( समाप्त )





No comments:

Post a Comment