Sunday 23 August 2020

पता नहीं कहाँ गए-कहानी-देवेन्द्र कुमार


     पता नहीं कहाँ गए —कहानी—देवेन्द्र कुमार
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 खोज का आरम्भ विचित्र ढंग से हुआ था ,पता नहीं यह सफल होगी भी या नहीं एक दिन रमेश सोसाइटी के गार्ड रूम से अपनी डाक ले रहे थे तभी उन्होंने दो गार्डों को आपस में बात करते सुनावे कह रहे थे-‘ बुरा हुआ ,पहले माँ बाप कहीं चले गए और फिर उनका बेटा भी गायब हो गया.
  रमेश ने पूछा --’किसकी बात कर रहे हो?’
   गार्ड शेरू ने कहा-‘ साहब, सोसाइटी में काम करने वाली मीना जिक्र कर रही थी मुझे तो ज्यादा कुछ पता नहीं, शायद वह इस बारे में कुछ और ज्यादा बता सके.
  रमेश ने मीना से पूछा तो उसने बताया-‘साहब जी, मेरी बहन के गाँव जलपुर की बात है वहां एक  सुबह धेनु और उसकी बीवी गायब हो गए,उनका बेटा जीतू  गाँव भर में खोजता फिरा,बाद में  वह भी न जाने कहाँ चला गया वह सात आठ साल का रहा होगा.
  रमेश ने कहा-‘ कभी मौका मिले तो धेनु परिवार के बारे में पता कर लेना.’ उस दिन वह यही सोचते रहे कि धेनु का परिवार आखिर कहाँ गायब हो गया .बाद में शेरू ने कहा था-‘साहब,सड़क पर आपको कई बच्चे दिख जायेंगे इनका जीवन सड़क पर ही बीतता है,मेहनत मजूरी करके जैसे तैसे रोटी का जुगाड़ करते हैं और रात में कहीं भी सो जाते हैं. ये सब गाँव से ही तो यहाँ तक पहुंचे हैं. इनके बारे में कोई नहीं जानता कि इनके माँ बाप कौन हैं,और ये सडक पर क्यों रहते हैं.  रमेश के मन में प्रश्न उठा –‘कहीं जीतू भी तो इन बच्चों में नहीं है’ उन्होंने निश्चय किया कि धेनु के परिवार की खोज करेंगे. इस बीच उन्होंने मीना से कई बार पूछा तो यही पता चला कि धेनु का कुछ अता पता नहीं है.
  कुछ दिन बाद रमेश परिवार के साथ दूसरे शहर से लौट रहे थे तभी उनकी नज़र सड़क के किनारे लगे एक बोर्ड पर टिक गई-उस पर लिखा था-जलपुर. मीना ने गाँव का यही नाम तो बताया है नाम पढ़ते ही रमेश ने कार गाँव की तरफ घुमा दी पत्नी लक्ष्मी ने पूछा-‘ गाँव में तो कोई हमारा रिश्तेदार रहता नहीं’.
 रमेश बोले-‘एक जरूरी काम है, थोडा ही समय लगेगा.’गाँव में घुसते ही चाय की दूकान पर कार रोक कर कहा-‘मैं कुछ जानकारी लेकर आता हूँ, तब तक चाय पी लो.’ रमेश को चौकीदार वीरम  मिल गया उसने बताया-‘ धेनु, उसकी पत्नी और जीतू का अभी तक कुछ पता नहीं है. कोई नहीं जानता कि वे कहाँ गए और लौट कर गाँव  आयेंगे भी या नहीं.’ वह रमेश को धेनु      की झोंपड़ी पर ले गया –एकदम जर्जर और अंदर कुछ सामान भी नहीं था. हाँ एक बस्ता जरूर था जिसमें कई किताबें और कापियां थीं. रमेश ने कुछ सोचा और बस्ता उठा लिया. वीरम  ने बताया कि गाँव का साहूकार कुछ समय से धेनु को परेशान कर रहा था,शायद धेनु ने उससे पैसा कर्ज लिया था.
  रमेश ने कहा तो वीरम उन्हें साहूकार के पास ले गया.  
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  पता चला कि धेनु ने साहूकार से पांच सौ रुपये का कर्ज लिया था और चांदी के जेवर गिरवी रखे थे. साहूकार ने कहा-‘ साहब,आज कर्ज चुकाने की आखिरी तारीख है, अगर आज शाम तक धेनु ने मेरी रकम नहीं लौटाई तो मैं उसके जेवर वापिस नहीं करूंगा.
  रमेश ने कहा-‘ धेनु कहाँ है यह कोई नहीं जानता फिर भी तुम ऐसी गलत बात कह रहे हो. खैर तुम  ब्याज समेत अपनी रकम मुझसे लो और धेनु के जेवर मुझे दे दो.’ साहूकार भला क्या  कहता,उसने अपनी रकम लेकर जेवर लौटा दिए .बोला-‘ बाबूजी, आप क्यों धेनु का कर्ज चुका रहे हैं! यहाँ तो लेनदेन का धंधा ऐसे ही चलता है.
  रमेश ने गुस्से से कहा-‘तुम नहीं समझोगे, गरीबों का खून चूसना अच्छा नहीं. ’ फिर वीरम से पूछा-‘क्या तुम ये जेवर अपने पास रखना चाहोगे?जब धेनु वापस आ जाये तो उसे दे देना,’ पर वीरम ने मना कर दिया. बोला-‘इन्हें आप ही रखें ,अपना नाम पता बता दें. जब  धेनु आएगा तो मैं आपको खबर कर दूंगा’.
  रमेश ने जेवरों की छोटी सी पोटली कार में लक्ष्मी को थमा कर कहा –‘किसी की अमानत है,सावधानी से रख लो. फिर पत्नी को पूरी बात बता दी .दोनों घर लौट आये.
   कुछ दिन गुजर गए .वह वीरम से फोन पर  धेनु के बारे में पूछते रहे. एक शाम रमेश सोसाइटी के गेट के बाहर मुंडेर पर बैठे शेरू से धेनु के चर्चा कर रहे थे, तभी उनकी नज़र सड़क पर किसी की कार के शीशे साफ़ करते छोकरे पर टिक गई .उन्होंने लड़के को पास बुला कर पूछा  ‘क्या तुम्हारा नाम  जीतू  है?’
  ‘मेरा नाम कमल है पर मैं जीतू को जानता हूँ , हम दोस्त हैं और साथ साथ ही रहते हैं .इधर उसे कई दिन से बुखार आ रहा है.
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  यह सुनते ही रमेश ने उत्तेजित स्वर में पूछा –‘वह कैसा है?क्या तुम मुझे जीतू के पास ले जा सकते       हो?’ उन्हें लगा जैसे उनकी खोज बस पूरी होने ही  वाली है. कमल उन्हें एक फ्लाईओवर के नीचे ले गया. वहां मलबे और कबाड़ के बीच एक लड़का मैली चादर पर लेटा था,उसकी आँखें बंद थीं .पास बैठा एक बूढा उसके माथे पर पानी की पट्टी रख रहा था. रमेश अपलक जीतू को देखते रहे. मन हो रहा था कि तुरंत उससे पूछ लें कि उसके माँ बाप कहाँ  चले गए,वह गाँव से इतनी दूर शहर में कैसे आ गया. कौन लाया है उसे? पर अभी इसका मौका नहीं था.
  ‘यही है मेरा दोस्त जीतू.’ कमल ने कहा. रमेश ने जीतू का बदन छू कर देखा, उसे तेज बुखार था. कमल बूढ़े के बारे में बता रहा था-‘ यह हमारे विदुर बाबा  हैं. हम दिन में कहीं भी रहें पर रात में इनके पास आते ही हैं.
  विदुर ने कहा-‘बाबू, मैं सड़क पर रहने वाले बच्चों का सब कुछ हूँ-माँ बाप, दादा दोस्त जो भी कहो.
  आप इन बेसहारा बच्चो का ध्यान रखते हैं ,इससे अच्छा इनके लिए और क्या हो सकता है,’-रमेश बोले-‘जीतू को तेज बुखार है. इसे किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना चाहिए. मेरे एक डाक्टर मित्र का क्लिनिक है. अगर आप कहें तो जीतू को उन्हें दिखा दें,’
  ‘आपने ठीक राय दी है डाक्टर के पास ले चलते हैं’-विदुर बाबा ने हामी भर दी. रमेश जीतू को अपने मित्र डाक्टर के पास ले गए. विदुर और कमल भी साथ थे. डाक्टर ने अच्छी तरह जीतू की जांच की,कहा-‘चिंता की कोई बात नहीं है. दो तीन दिन यहाँ हमारी देख रेख में रहेगा,समय पर दवा और खाना खायेगा तो तबीयत सुधर जाएगी.
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 विदुर बोला -‘मैं जीतू के साथ रहूँगा.’ पर डाक्टर ने मना कर दिया, जीतू को डाक्टर को दिखाने में रात हो गई,रमेश घर चले आये. उस रात वह सो न सके. रह रह कर जीतू का ध्यान आता रहा वह समझ नहीं पा रहे थे कि जीतू के माँ  बाप कहाँ चले गए. सुबह रमेश लक्ष्मी के साथ जीतू को देखने क्लिनिक जा पहुंचे.
  जीतू का बुखार कम था, वह नाश्ता कर रहा था. रमेश ने कहा-‘तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगे, जरा बताओ तो तुम्हारे माता पिता जलपुर से कहाँ चले गए, गाँव से यहाँ कौन लाया तुम्हें?’
 जीतू चुप रहा,जैसे कुछ सोच रहा हो,फिर बोला-‘जलपुर,कहाँ है जलपुर.
  ‘क्या तुम जलपुर के धेनु के बेटे नहीं हो?’
   जीतू कोई जवाब देता तभी विदुर कमरे में आ गया. उसने जीतू को लिपटा लिया और प्यार करने लगा. दोनों हंस रहे थे. रमेश और लक्ष्मी  कमरे से बाहर आ गए. वह सोच रहे थे-‘इसका मतलब यह जीतू कोई और है,धेनु का बेटा नहीं है. मन में निराशा भर गई. वह घर चले आये.  मन कह रहा था-तुम्हारी कोशिश बेकार गई.
  लक्ष्मी पति की निराशा को समझ रही थी. उसने कहा-‘यह बच्चा भी तो धेनु के बेटे जीतू जैसा है. तुम हमेशा सड़क पर रहने वाले बेसहारा बच्चों की मदद करने को तैयार रहते हो, फिर वह जीतू हो या कमल –सबकी हालत एक जैसी ही है. उनका नाम कोई भी हो ,इससे क्या फर्क पड़ता है.’
  रमेश मुस्करा दिए-‘तुमने मेरी निराशा दूर कर दी. जीतू को एक दो दिन में क्लिनिक से छुट्टी मिल जाएगी. उसके बाद वह फिर सड़क पर होगा. यह ठीक नहीं. तुम जानती हो कि मेरे मित्र बेसहारा बच्चो के लिए संस्था चलते हैं. वहां ऐसे बच्चों  के रहने,खाने का प्रबंध होता है साथ ही उन्हें दस्तकारी तथा तरह तरह की चीजें बनाना सिखाया जाता है. मैं जीतू के बारे में अपने मित्र से बात करूंगा.’
 ‘सड़क पर और बच्चे भी तो रहते हैं ,हमें सभी के बारे में सोचना चाहिए’-लक्ष्मी ने कहा.
 ‘हम दोनों की सोच एक जैसी है, नाम से क्या फर्क पड़ता है.’ रमेश कुछ और कहते तभी फोन की घंटी बजी,उधर से उनके मित्र डाक्टर बोल रहे थे. उन्होंने कहा-‘तुम जिस लड़के को दाखिल करवा गए थे,वह न जाने कब भाग गया.’
  सुन कर रमेश हैरान रह गए. उन्होंने विदुर को जीतू के पास छोड़ा था, कहीं विदुर ही तो जीतू को अपने साथ नहीं ले गया! वह लक्ष्मी के साथ फ्लाईओवर के नीचे विदुर के ठिकाने पर गए पर वहां कोई नहीं मिला. इस बात को कई दिन बीत गए हैं. कमल को भी कुछ पता नहीं है. आखिर कहाँ चला गया जीतू! क्या कभी पता चल सकेगा? रमेश की खोज अधूरी ही  रह गई है. और साहूकार के पंजे से छुडाये गए जेवरों का बोझ भी परेशान कर रहा है. रमेश ने एक बार फिर जलपुर जाने का निश्चय कर लिया है(समाप्त )                      



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