काली कलम=देवेंद्र कुमार
==
आज के दिन बाबाजी
को काली कलम की जरुरत पड़ती है यह बात अजय को अच्छी तरह पता है। आज१२ दिसम्बर है।
आज के दिन बाबा काली कलम जरूर हाथ मैं लेते हैं। शुरू में उसे यह बात चकित
करती थी पर अब नहीं। क्योंकि एक दिन उसने यह बात
पापा से पूछी तो उन्होने बताया था। वह बोले –‘’
इसके पीछे एक दुःख भरी घटना है। आज तुम्हारी दादी की पुण्यतिथि है। आज ही के दिन
उनका स्वर्गवास हुआ था।’’
पापा की बात सुन
कर अजय को बहुत अचरज हुआ। वह सोचने लगा –‘भला दादी को
याद करने का यह कौन सा तरीका हुआ? उसने पिछले साल १२ दिसम्बर
को देखा था कि सुबह सुबह बाबा ने एक कागज लिया और फिर उस पर काली कलम से लकीरे
खीचने लगे, उसके बाद लिखा -१२ दिसम्बर। इसके बाद बाबा कमरे
से बाहर चले गये। मौक़ा देख कर अजय कमरे मैं चला गया और बाबा का बनाया चित्र वह देर
तक देखता रहा पर कुछ समझ में नहीं आया। बाबा ने कागज पर जो कुछ बनाया था वह ठीक
नहीं लग रहा था। कागज पर बनी रेखाओं मे दादी कहीं नहीं दिख रहीं थीं।
उसने पिता से
पूछा तो वह बोले –‘’ मैं तो बहुत दिनों से देखता आ रहा
हूँ, पर मैने कभी तुम्हारे बाबा से इस बारे में बात नहीं की।
मैं समझता हूँ कि वह तुम्हारी दादी के जाने से बहुत दुखी हैं और १२ दिसम्बर के दिन
उन्हे इसी तरह याद करते हैं।’’
अजय ने कहा –‘’
पर पापा, बाबा ने जो कुछ बनाया है वह दादी का चित्र तो नहीं
है।’’तब अजय के पापा ने कहा –‘’ दादाजी
तुम्हारी दादी को इसी तरह याद करते हैं। यह बात तुम्हे पता नहीं, क्योंकि तब तुम बहुत छोटे थे।’’
अजय बोला – ‘’लेकिन उन्होने दादी का चित्र तो नहीं बनाया है।’’
पापा बोले ;’’–हाँ तुम ठीक कह रहे हो पर यह भी समझो कि तुम्हारे बाबा चित्रकार तो हैं
नहीं, वह तो उन रेखाओं के माध्यम से अपनी भावना व्यक्त कर
देतें हैं।’’
“लेकिन
घर में दादी के कितने फोटो देखे हैं
पुराने एल्बम में मैने। बाबा उन को भी तो सामने रख सकते हैं टेबल पर अपने सामने|’’
अजय ने कहा।
“हाँ ,तुम ठीक कह रहे हो ,पर यह
सुझाव उन्हे कौन दे ।’’ अजय के पापा ने कहा।
अजय देर तक इस
बारे मैं सोचता रहा फिर पुराना एल्बम उठा लाया और देर तक देखता रहा, कुछ
देर बाद बाबा के कमरे मैं गया तो देखा बाबा वहां नहीं हैं। टेबल पर काली कलम से
बना रेखाचित्र रखा था। अजय ने वह चित्र उठाया और उसकी जगह एल्बम रख दिया ,फिर उसका वह पेज खोल दिया जिस पर बाबा और दादी के कई फोटो लगे थे। उन सभी में
दोनों साथ खडे थे। फिर चुपचाप बाहर चला
आया। यह बात उसने पापा को बताई तो वह
नाराज होने लगे। तभी बाबा आ गये, घर में चुप्पी छा गयी। सब
सोच रहे थे कि अब न जाने क्या होगा। बाबा के कमरे से कोई आवाज नहीं आ रही
थी। अजय ने झांक कर देखा – बाबा एल्बम के पेज पलट रहे थे,
वह काफी देर तक एल्बम देखते रहे फिर पुकारा –‘’यह एल्बम कौन रख गया यहाँ ?’’
पापा ने अजय की ओर
देखा जैसे कह रहे हों – अब
तुम जानो। अजय कुछ देर सकुचाता हुआ खडा रहा फिर अन्दर जाकर बोला –‘’ जी,मैने रखा है। आज दादी की पुण्य तिथि हैं न इसीलिए
देख रहा था। आप और
दादी कितने अच्छे लग रहे हैं साथ साथ इन फोटोग्राफ्स में।’’
बाबा के चेहरे पर
मुस्कान आ गयी, अजय को गोद मैं भर कर बोले –‘’
ये फोटो अलग अलग समय पर
खीचे गये थे।’’ इसके बाद बाबा देर तक उसे अपने और अजय की
दादी के चित्रों का इतिहास बतलाते रहे, बीच बीच मैं वे
मुस्करा भी देते थे, पूरे घर में उन दोनों की हंसी
गूँज रही थी। अब बाबा उदास नहीं थे। जब अगला १२ दिसम्बर आया तो बाबा ने पेपर और
काली कलम को हाथ नहीं लगाया, उनकी टेबल पर एल्बम खुला हुआ
रखा था। उन्होने अजय को पुकारा –‘’अजय, क्या अपनी दादी से नहीं मिलोगे?’’
अजय मुस्कराता हुआ
बाबा के पास चला आया। अब बाबा को काली कलम की जरुरत नहीं। यह बात अजय पहले ही जान चुका था। (समाप्त )
No comments:
Post a Comment