बूढ़ी छड़ी-कहानी-देवेंद्र कुमार
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अजीब है बाबा की छड़ी। घर में किसी ने कभी बाबा को छड़ी
लेकर चलते हुए नहीं देखा। घर के बच्चे कई बार मजाक में पूछते हैं, ‘‘बाबा, क्या आप सिर्फ
दिखाने के लिए छड़ी रखते हैं?’बाबा हंसकर कह देते, ‘‘अरे, छड़ी लेकर चलते हैं बूढ़े लोग, पर मैं तो बूढ़ा
नहीं हूं।’’ लेकिन बार-बार पूछने पर भी यह कभी न बताते कि
जब छड़ी लेकर चलते नहीं तो रखते किसलिए हैं? बच्चे तो बच्चे, घर के बड़े लोग भी नहीं जानते कि आखिर छड़ी का
रहस्य क्या है? और छड़ी भी कैसी-एकदम पुरानी, बदरंग! उस पर जगह-जगह लकीरें और दरारें साफ दिखाई देती हैं।
घर के लोगों ने देखा है-छड़ी बाबा के कमरे में एक कोने में
रखी रहती है। बाकी हर चीज की जगह कई-कई बार बदल जाती है, लेकिन छड़ी का ठिकाना वहीं रहता है। लगता है
बाबा के लिए उनकी छड़ी कुछ विशेष है।बाबा का नाम रंजन राय है और उनका इकलौता बेटा
है सुरेश। सुरेश की पत्नी दया खूब पढ़ी-लिखी है, पर वह नौकरी नहीं करती। दिन में कई बच्चे घर पर
ही पढ़ने आ जाते हैं। उन्हें बहुत ध्यान से पढ़ाती है। पूरी बस्ती में लोग उसे ‘मैडम पास कराने
वाली’ कहकर सम्मान से
बात करते हैं|
एक दिन दया को
गुस्सा आ गया। एक बच्चा अपने काम में लापरवाही कर रहा था। फिर एक दिन उसने दूसरे
बच्चों के सामने दया का अपमान कर दिया। दया ने कुछ सोचा फिर अपने ससुर के कमरे में
गई और कोने में रखी छड़ी उठा लाई। उस समय बाबा घर में नहीं थे। छड़ी दिखाते हुए
बच्चे को धमकाया, फिर एक बार मार भी दिया।उसी समय बाबा घर में लौट आए। उन्होंने दया के हाथ में
छड़ी देखी, पर कुछ कहा नहीं। चुपचाप कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया। दया ने तुरंत छड़ी
को उनके कमरे के दरवाजे से टिकाकर रख दिया और बच्चों को पढ़ाने लगी।
दिन ढल गया, पर बाबा के कमरे का दरवाजा बंद ही रहा। दया चाय बनाकर ले
गई। दरवाजा खटखटाया तो बाबा ने दरवाजा खोल दिया। दया उनका गंभीर मुंह देखकर जान गई
कि मामला गड़बड़ है। चाय का प्याला तिपाई पर रखकर वह दरवाजे के बाहर रखी छड़ी उठा
लाई और उसे कोने में रखने लगी,पर रख न सकी|
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तभी बाबा ने कहा, ‘‘दया, अब मैं इस छड़ी को अपने पास नहीं रखूंगा, अब मुझे इसकी
जरूरत नहीं।’’ दया ने देखा बाबा की आंखों में आंसू थे, उनके होंठ कांप रहे थे। इस तरह अपने बूढ़े ससुर
को छोटे बच्चों की तरह रोते हुए उसने शायद पहली बार देखा था। उसने कहा, ‘‘पिताजी, मुझसे गलती हो
गई। मुझे आपसे पूछकर छड़ी यहां से उठानी चाहिए थी।’’
‘‘लेकिन यह छड़ी….’’ और बात को बीच
में ही अधूरी छोड़कर रंजन राय फिर उदास हो गए।दया अचरज के भाव से अपने ससुर को
देखती रह गई। आखिर उसने पूछ ही लिया, ‘‘पिताजी, पूरी बात बताइए, आप छड़ी के बारे में कुछ कह रहे थे।’’
‘‘यह छड़ी मेरे अध्यापक की है। बात मेरे बचपन के दिनों की है।
वह अध्यापक मुझसे बहुत प्यार करते थे। मैं कक्षा में सबसे आगे भी रहता था । इस
कारण क्लास के दूसरे साथी मुझसे नाराज रहते थे। एक बार उनमें से किसी ने मेरी झूठी
शिकायत उनसे कर दी। सुनकर मास्टर साहब को बहुत गुस्सा आया। उन्हें लगा यह तो मेरी
बहुत बड़ी गलती थी। बस, उन्होंने अपनी छड़ी से मुझे पीटना शुरू कर दिया।’
‘‘फिर?’’
‘‘वह मारते हुए
कहते जा रहे थे-तूने मेरा अपमान किया है। मेरी इज्जत मिट्टी में मिला दी है। मैं
कहता रहा-जी, किसी ने मेरी झूठी शिकायत की है। आप पता कर लें।-आखिर उन्होंने छड़ी फेंक दी
और खुद रो पड़े। क्योंकि वह मुझसे बहुत स्नेह करते थे।बाद में तो उन्हें पता चल
गया कि शिकायत झूठी थी। इसके कुछ दिन बाद ही एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गयी।
तब मुझे बहुत रोना आया।’’उन्होंने आगे कहा, ‘‘इसके कुछ दिन बाद की बात है। मैं मास्टरजी के
घर के सामने से जा रहा था। एकाएक मैंने घर के बाहर पड़ी छड़ी देखी। मैंने छड़ी को
एकदम पहचान लिया । वह वही छड़ी थी जिससे पहली बार उन्होंने मेरी पिटाई की थी और
फिर खूब रोए थे। शायद बेकार समझकर किसी ने उसे बाहर फेंक दिया था। मैंने चुपचाप
छड़ी उठाई और घर ले आया। बस, तब से इसे सदा अपने साथ रखता हूं। इस बात को न जाने कितना
समय बीत गया है। यह मुझे अपने प्रति मास्टरजी के स्नेह की याद दिलाती रहती है।’’ और रंजन बाबू की
आंखों में फिर आंसू आ गए।
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दया की आंखें भी गीली हो गईं। उसने छड़ी उठाकर कोने में
पुरानी जगह रख दी और कहा, ‘‘पिताजी, अब चाहे मुझे कितना भी गुस्सा क्यों न आए, मैं किसी बच्चे
को हाथ नहीं लगाऊंगी।’’ दया जान गई थी कि रंजन बाबू के लिए वह छड़ी उनके अध्यापक के
स्नेह, पिटाई और
पश्चात्ताप का प्रतीक थी।
उस छड़ी के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चला। दया छड़ी का
रहस्य जान गई थी। पर रंजन बाबू ने उससे कह दिया था कि वह इस घटना के बारे में किसी
से कुछ न कहे। उसके बाद अनेक बार घर के बच्चों ने छड़ी के बारे में जानना चाहा, पर रंजन बाबू हमेशा
की तरह चुप ही रहे। वह जानते थे कि उनके मास्टरजी की छड़ी का रहस्य दया के पास
सुरक्षित था। (
समाप्त)
बच्चे बड़े दोनों के लिए बेहद इमोशनल कहानी है. आनंद से झूम जाते हैं आपकी कहानियों को पढ़कर.
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