Saturday 6 June 2020

मत खाओ कहीं और जाओ-कहानी-देवेन्द्र कुमार


 मत खाओ—कहीं और जाओ-कहानी-देवेन्द्र कुमार
                              =============                      

     क्या ऐसा हो सकता है कि स्कूल और कूड़ा घर पास पास न हों। अगर हों तो कूड़ा घर में कूड़े के  ढेर न लगे हों जिनमें गायों के झुण्ड खाने की तलाश में मुंह मारते दिखाई दें। लेकिन जीवन के स्कूल की यही हालत है। स्कूल से निकलते समय कूडे से सामना होता है। स्कूल सड़क से परे मैदान में बना हुआ है लेकिन स्कूल को मुख्य सड़क से जोड़ने वाली पगडण्डी कूड़ा घर से एकदम सट कर निकलती है। सुबह के समय तो कूड़ा घर लगभग खाली होता है लेकिन जब बच्चे दोपहर में छुट्टी के बाद निकलते हैं तो कूड़ा घर में कूड़े का अम्बार लगा होता है, गायों का झुण्ड खाने की खोज में कूड़े के ढेर में मुंह मारता दिखाई देता है और कुछ लड़के कूड़े में से काम लायक चीजें छांट रहे होते हैं। कूड़ा सड़क पर भी फैला होता है।    
     जीवन अपने पापा से कहता है कि उसे किसी दूसरे स्कूल में शिफ्ट करा दिया जाए। लेकिन यह इतना आसान नहीं है। जीवन और उसके साथी दोपहर में स्कूल से निकलते समय कूड़े से उठने वाली दुर्गन्ध और वहां भोजन की तलाश में मुंह मारती गायों के झुण्ड के बारे में हर दिन बात करते हैं।आखिर इस समस्या का क्या समाधान हो सकता है।
     एक दिन उन्हें कूड़ा घर के पास एक विचित्र दृश्य दिखाई दिया— कूड़ा घर के पास खड़ा एक बूढा आदमी अपनी लाठी से  ठक ठक करते हुए जोर जोर से कह रहा था—गायों, कूड़ा मत खाओ,कहीं और चली जाओ।‘ उसके पास खड़ा एक बच्चा भी रह रह कर वही दोहरा रहा था। जीवन और उसके साथी तथा सड़क पर आते जाते कई लोग रुक कर देखने लगे, लोग बूढ़े की पुकार सुन कर हंस रहे थे। कुछ लोग बूढ़े को जानते थे। उसे आँखों से बहुत कम दिखाई देता था। वह पास ही रहता था। एक आदमी ने बूढ़े के पास जाकर कहा—‘ बाबा,क्या गायों का झुण्ड तुम्हारी बात समझ रहा है जो कूडे में मुंह मारना छोड़ कर कहीं और चला जाएगा! यह तुम्हें क्या सूझा!’
     बूढ़े ने कहा—‘ मैं रोज ही कूड़े में खाना तलाशती गायों के बारे में सुनता हूँ। मैं तो घर में ही रहता हूँ, मैंने सोचा इस बारे में कुछ करना चाहिए।इसलिए अपने पोते के साथ यहाँ चला आया।’
                                            1
      जीवन ने अपने साथियों से कहा—‘ असल में बूढ़े बाबा गायों से नहीं हम लोगों से कह रहे हैं कि गायों को कूडे से दूर रखने के लिए कुछ करो।’ उसके दोस्तों ने कहा—‘हां इस बारे में हमें जरूर कुछ तो करना चाहिए।‘ अगले दिन जीवन ने अपनी कक्षा में इसकी चर्चा की। सभी बच्चे एक स्वर में बोले—‘हम गायों को कूडा नहीं खाने देंगे।’             
       अगले दिन बच्चे स्कूल से निकले तो वही रोज वाला दृश्य सामने था। बूढ़े बाबा कूड़े में खाना खोजती गायों से कहीं और जाने को कह रहे थे। जीवन और उसके साथी कुछ सोच कर आये थे।हर बच्चे ने अपने लंच बॉक्स से  खाना निकाल कर कूड़ा घर से कुछ दूर फुटपाथ पर रख दिया फिर कुछ बच्चे हाथ में रोटी लेकर गायों को दिखाते हुए झुण्ड को खाने तक ले आये। गायों का झुण्ड फुटपाथ पर रखे भोजन को खाने में जुट गया। यह देख कर बच्चे मुस्कराने लगे। उनकी योजना सफल हो गई थी। जीवन की पूरी क्लास ने उस रोज आधा भोजन खाया था। अगले दिन दूसरी क्लास के बच्चों ने पिछले दिन वाला प्रयोग दोहराया। फिर तो यह प्रयोग रोज होने लगा। बच्चे देखते थे, गायों का झुण्ड कूड़ा घर से दूर वहां प्रतीक्षा करता था जहाँ उन्हें अब रोज भोजन मिलने लगा था।
       क्या समस्या हल हो गई थी? नहीं, कुछ दिन बाद गर्मियों की छुट्टियाँ होने वाली थीं। क्या तब गायों का झुण्ड फिर से कूड़े में भोजन खोजने लगेगा ? बच्चों ने स्कूल के प्रिंसिपल से कहा तो उन्होंने नगर निगम को पत्र लिखा कि कूड़ा घर को वहां से हटा दिया जाए। फिर स्कूल के छात्र प्रिंसिपल के साथ निगम के बड़े अधिकारी से मिलने गए। एक साथ इतने छात्रों को देख कर अधिकारी चौंक गए। उन्होंने स्कूल के पास बने कूड़ा घर को हटवाने का आश्वासन दिया। और सच में बच्चों की छुट्टियों से पहले कूड़ा घर को बंद कर दिया गया। सफाई करवाने के बाद कूड़ा घर के बाहर दीवार बना दी गई।वहां एक बोर्ड लगा दिया गया, उस पर लिखा था—यहाँ कूड़ा डालना मना है। फिर एक दिन कुछ लोग बंद कूड़ा घर के बाहर फूलदार पौधों के गमले रख गए।
       बच्चे छुट्टियों से लौटे तो उन्होंने आपस में कहा—‘ इन पौधों का ध्यान हम मिल कर रखेंगे। दोपहर में स्कूल से बाहर आकर बच्चे पौधों में पानी डालते थे। सामने की हाउसिंग सोसाइटी के माली ने बिना कहे पौधों की जिम्मेदारी संभाल ली। कूड़ाघर के ऊपर तक फूलदार बेलें फ़ैल गईं।छोटे बड़े अनेक हरे भरे गमले देख कर यह कल्पना करना कठिन था कि कुछ समय पहले यहां गन्दा कूड़ा घर हुआ करता था।(समाप्त) 
 


No comments:

Post a Comment