Sunday 24 May 2020

मेरी मुनिया-कहानी-देवेन्द्र कुमार





                                मेरी मुनियाकहानी—देवेन्द्र कुमार
                                           =====
      बाज़ार में जरूरी सामान खरीदने के बाद रचना रिक्शा से घर जा रही थी। बेटी जया साथ थी। एकाएक उसे लगा कि रह रह कर कोई चीज उसके बालों को छू रही है। एक सरसराहट सी होती थी। उसने रिक्शा रोकने को कहा और रिक्शा पर लगी तिरपाल के अंदर देखा- एक डोरी नीचे झूल रही थी। वही रिक्शा चलने पर रचना के बालों का स्पर्श करती थी  बार बार।
      रचना ने रिक्शा वाले से कहा—‘ रिक्शा के अंदर लटकती डोरी को काट क्यों नहीं देते। क्या कभी किसी सवारी ने इस बारे में नहीं कहा।’
      रिक्शा वाला सकपका कर बोला—‘ जी कई लोगों ने कहा, और मैंने लटकती डोरी को झटके से तोड़ने की कोशिश कई बार की,लेकिन मजबूत डोरी टूटी नहीं।’
      रचना ने कहा-‘डोरी झटके से नहीं टूटेगी। इसे काटना होगा। और फिर अपने झोले से एक कैंची निकालकर डोरी को काट दिया।
      ‘ मैडम, क्या आप कैंची साथ लेकर चलती हैं!’—रिक्शा वाले ने अचरज से कहा।
      ‘ मैं घर पर बच्चों के लिए पोशाकें तैयार करती हूँ, इसलिए झोले में सिलाई का सामान  रहता  हैं। इस समय भी बाज़ार से सिलाई का सामान खरीद कर घर जा रही हूँ।’-रचना ने कहा। फिर जया की फ्रॉक को छूते हुए बोली-‘ देखो इसे भी मैंने घर में ही तैयार किया है।’
       फ्रॉक सचमुच सुंदर थी। रिक्शा वाले का मन हुआ कि फ्रॉक को छू कर देखे पर साहस न हुआ।  
पर एक बात कहे बिना न रह सका—‘ मैडम जी, भला आपको सिलाई का काम करने की क्या जरूरत है। आप
      रचना ने बीच में ही टोक दिया—‘ हाँ मैं तो अच्छे खाते पीते घर की लगती हूँ तुम्हें, लेकिन क्या किसी का पहनावा देख कर उसके अमीर या गरीब होने का फैसला किया जा सकता है?’

                                                                                  1      
   ‘जी ’ रिक्शा वाला बस इतना ही बोल पाया। उसे अपनी पुरानी कमीज और रचना तथा जया के परिधान का फर्क एकदम साफ़ दिखाई दे रहा था।रचना की बात का वह भला क्या जवाब दे सकता था। रिक्शा रचना के घर के बाहर रुक गई। रचना ने रिक्शा वाले को पैसे देते हुए कहा—‘वैसे तुम्हारी बात कुछ गलत भी नहीं है।घर में चाहे जैसे भी रहें पर बाहर निकलते समय तो ठीक ठाक पोशाक पहननी ही   पड़ती  है।’ फिर जया की ओर इशारा करते हुए कहा—‘इसके पापा काफी समय से  बीमार चल रहे हैं,इस कारण नौकरी भी जाती रही। उनके इलाज और घर चलाने के लिए मुझे सिलाई का काम’ फिर वह एकाएक चुप हो गई। उसे लगा कि एक अनजान रिक्शा वाले से घर के अंदर की बात नहीं कहनी चाहिए थी। अपने पर मन ही मन उसे  गुस्सा भी आया, लेकिन  अब क्या हो सकता था। बात तो कही जा चुकी थी।   
    रिक्शा वाले ने पूछा—‘ मैडम,साहब को क्या तकलीफ है?’    
    रचना ने अनमने ढंग से कहा—‘ उनके पेट में दर्द रहता है, काफी इलाज के बाद भी आराम नहीं पड़ा है।’ फिर झट अंदर चली गई। दरवाजा बंद हो गया। पर रचना ने नहीं देखा कि रिक्शा वाला देर तक दरवाजे के बाहर खड़ा रहा,पता नहीं क्यों।
   अगली दोपहर दरवाजे की घंटी बजी, दरवाजे के बाहर कल वाले रिक्शा वाले को देख कर रचना चौंक गई। वह कुछ पूछती इससे पहले ही रिक्शा वाले ने कहा—‘’ मैडम, माफ़ करना आपको तकलीफ देने चला आया और फिर एक पुडिया रचना की और बढ़ाते हुए बोला—‘आप कह रही थीं  न कि साहब के पेट में काफी दिनों से दर्द हो रहा है। मैं एक अच्छे वैद्धजी को जानता हूँ, उन्ही से पेट दर्द की दवा लाया हूँ उनके इलाज से बीमार जल्दी ठीक हो जाते हैं।’
  रचना बरबस मुस्करा उठी। उसने कहा—‘ हर पेट  दर्द की दवा एक नहीं होती।क्योंकि पेट दर्द का कारण एक नहीं होता। पर मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि तुम जया के पापा के लिए दवा लेकर आये हो।मैंने तो यों ही हल्का सा जिक्र किया था जया के पापा के पेट दर्द के बारे में, पर तुमने याद रखा और दवा ले आये।तुमने वैद्ध जी को इस दवा के लिए कितने पैसे दिए वह मैं तुम्हें दे सकती हूँ पर यह दवा नहीं ले सकती।’ कह कर रचना ने पर्स खोला तो रिक्शा वाले ने कहा—‘मैडम, मैंने इस दवा के लिए कोई पैसा नहीं दिया।’ वह जाने के लिए मुडा फिर रुक कर कमरे में खेलती जया की और देख कर बोला—‘ मैडम, अगर आप नाराज न हों तो एक बात कहूँ।‘ हाँ, कहो क्या कहना चाहते हो।’ वह समझ नहीं पाई कि यह अनजान रिक्शा वाला अब क्या कहना चाहता है।रिक्शा वाले ने कहा—‘ मैडमजी, मैं कह रहा था कि जैसी फ्रॉक आपने अपनी बेटी के लिए बनाई है,क्या वैसी ही पोशाक मेरी मुनिया के लिए भी बना देंगी ?’
                                      2           
   रचना ने कहा—‘ मैं तो बच्चों की पोशाकें तैयार करती रहती हूँ, तुम्हारी मुनिया के लिए भी  बना दूँगी। तुम अपनी मुनिया को ले आना फ्रॉक का नाप देने के लिए। नाप लेकर मैं बता दूँगी कि कितना कपडा लगेगा, कपडा लाकर दोगे तो फिर पोशाक तैयार होने में देर नहीं लगेगी।’
   ‘मैडम जी,मेरी मुनिया तो दूर गाँव में अपनी माँ के साथ रहती है। नाप देने के लिए उसका आना मुश्किल है।मैं हाल में गाँव से लौटा हूँ। अब तो कई महीने बाद ही जाना हो सकेगा।’
  ‘तब तो मुश्किल है,बिना नाप लिए तो तुम्हारी मुनिया की पोशाक नहीं बन सकेगी।’
  रिक्शा वाला कुछ देर असमंजस में खड़ा रहा, फिर  जया की ओर इशारा करके बोला—‘मैडम जी,मैं तो कहता हूँ कि मेरी मुनिया  और आपकी बिटिया की कद काठी एक जैसी ही है,आप बस अपनी बेटी के नाप की पोशाक बना दें।वह मेरी मुनिया को एकदम फिट आएगी’ –यह कह कर उसने सौ का नोट रचना की ओर बढ़ा दिया।
    रचना को कुछ विचित्र लगा। उसने कहा –‘हर किसी की कद काठी अलग होती है,इसलिए नाप भी  अलग होता है, पर तुमने जिद ठान ली है इसलिए मैं जया के नाप की फ्रॉक बना तो दूँगी,लेकिन छोटी बड़ी हो जाए तो मुझे दोष न देना।’
   ‘कभी नहीं।’—रिक्शा वाले ने कहा तो रचना ने सौ का नोट ले लिया।कहा—‘ एक हफ्ते बाद आकर फ्रॉक ले जाना।’ रिक्शा वाला चला गया लेकिन रचना को सब अजीब लग रहा था।कुछ विचित्र था वह अनजान रिक्शा वाला।फिर सब कुछ भूल कर रचना घर के कामों में लग गई। जया के पापा को डाक्टर के पास ले गई तो पता चला कि उनकी तबियत अब पहले से ठीक है। इस अच्छी खबर से उत्साहित होकर रचना मन लगा कर सिलाई के काम में जुट गई। उसने जया के नाप की दूसरी फ्रॉक बना डाली। एक सप्ताह बीत गया पर रिक्शा वाला फ्रॉक लेने नहीं आया। फिर १५ दिन पीछे चले गए,पर वह अब भी नहीं आया। रचना कुछ उलझन में पड़ गई।आखिर वह क्यों नहीं आया। फिर दिमाग में जैसे बिजली सी कोंध गई।अरे उसने रिक्शा वाले का नाम –पता तो लिया ही नहीं। अब उसे ढूंढ कर फ्रॉक कैसे दे पाएगी।
                                                         


                                                  3
  एक दिन बाज़ार गई तो आस पास से गुजरने वाले रिक्शा वालों  को ध्यान से देखती गई। शायद वह कहीं दिख जाए,लेकिन वह रिक्शा वाला कहीं नहीं दिखाई दिया। ऐसा कई बार हुआ। लेकिन एक दिन वह मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा दिखाई दे गया। रचना ने रिक्शा रुकवाई और लगभग भागती हुई उसके पास जा पहुंची,और गुस्से से कहा—‘भले आदमी अपनी मुनिया की फ्रॉक लेने क्यों नहीं आये?’रचना ने देखा उसके पैरों पर पट्टियाँ बंधी थीं। ‘मेरे पास तुम्हारा नाम और पता ठिकाना भी नहीं था।’
    वह हाथ जोड़ता हुआ खड़ा होने लगा पर लड़खड़ा गया—‘माफ़ करना मैडम, मुझे बीच बचाव करते हुए चोट लग गई इसीलिए नहीं आ सका। ठीक होते ही मैं आकर मुनिया की फ्रॉक ले जाऊँगा। मेरा नाम जगन है। वैसे यह मंदिर मेरा ठिकाना है।’
    ‘ठीक है, जल्दी आने की कोशिश करना।’ कह कर रचना घर चली आई।घर के सामने रिक्शा से उतरने लगी तो रिक्शा वाले ने कहा—‘ मैडम, क्या आप जगन को जानती हैं?’
   ‘नहीं तो’—और रचना ने फ्रॉक वाली बात बता दी। तब रिक्शा वाले ने कहा –‘जगन अच्छा आदमी नहीं है,वह आपसे झूठ कह रहा था कि उसे चोट झगडे में बीच बचाव करते हुए लगी थी। सच यह है कि वह चोरी करते हुए पकड़ा गया था, तब लोगों ने उसे मारा था। वह कई बार जेल जा चुका  है। जहाँ तक मुझे मालूम है,जगन का कोई  घर परिवार नहीं है| हम रिक्शा वाले साल में एक दो बार गाँव जरूर जाते हैं अपने परिवार की खोज खबर लेने के लिए।लेकिन हमने तो उसे कहीं आते जाते नहीं देखा,बीच बीच में   वह गायब हो जाता है, बाद में पता चलता है कि वह जेल में था। आप उससे सावधान रहें।’ अपनी बात कह कर रिक्शा वाला तो चला गया,पर रचना को गहरी उलझन में डाल गया।  क्या सच था क्या झूठ यह समझन मुश्किल था।
  एक दिन रचना मंदिर के पुजारी से मिली। क्योकि अक्सर जगन को वहीँ देखा जाता था। पुजारी ने कहा—‘  जगन के बारे में लोग तरह की बातें करते हैं।कुछ लोग उसे अच्छा कहते हैं तो कई  नज़रों में जगन खराब आदमी है।पर मैंने  उसे कोई गलत काम करते हुए नहीं देखा।वह अक्सर लोगों की पैसों से मदद करता है, लेकिन इसी बात पर आपस में झगडा भी हो जाता है। सही गलत का फैसला करना कठिन है। ‘कई दिन पहले जगन  सात-आठ साल की एक  लड़की को लेकर मेरे पास आया था,लड़की रो रही थी| उसने बताया कि लड़की उसे रोती हुई मिली थी। मैंने उसे लड़की को पुलिस को सोंपने को कहा पर वह पुलिस से डरता था कि कही उसे लड़की भगाने  के जुर्म में सज़ा न हो जाए। उसने कहा कि वह लड़की को उसके गाँव छोड़ने जा रहा है।बस तभी से उसका कुछ पता नहीं है। कोई नहीं जानता कि उस लड़की का क्या हुआ। पर मैं समझता हूँ कि वह उस लड़की के साथ कुछ गलत नहीं करेगा|’
   रचना घर लौट आई, अब वह  गहरी उलझन में थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जगन के बारे में दूसरे लोगों की बातें कितनी सच थीं और कितनी  झूठ। यह बात उसकी समझ से बाहर थी  कि  
 जगन ने अपना  कोई घर परिवार न होते हुए भी अपनी बेटी मुनिया के लिए जया के नाप की फ्रॉक बनवाने की जिद क्यों की थी।क्या वह जया में ही अपनी बेटी की छवि देख रहा था जो केवल उसकी कल्पना में ही थी। क्या जगन फिर कभी आएगा अपनी मुनिया की फ्रॉक लेने के लिए।कौन जाने।==        
   
 









































































































  मेरी मुनियाकहानी—देवेन्द्र कुमार

                                           =====
      बाज़ार में जरूरी सामान खरीदने के बाद रचना रिक्शा से घर जा रही थी। बेटी जया साथ थी। एकाएक उसे लगा कि रह रह कर कोई चीज उसके बालों को छू रही है। एक सरसराहट सी होती थी। उसने रिक्शा रोकने को कहा और रिक्शा पर लगी तिरपाल के अंदर देखा- एक डोरी नीचे झूल रही थी। वही रिक्शा चलने पर रचना के बालों का स्पर्श करती थी  बार बार।
      रचना ने रिक्शा वाले से कहा—‘ रिक्शा के अंदर लटकती डोरी को काट क्यों नहीं देते। क्या कभी किसी सवारी ने इस बारे में नहीं कहा।’
      रिक्शा वाला सकपका कर बोला—‘ जी कई लोगों ने कहा, और मैंने लटकती डोरी को झटके से तोड़ने की कोशिश कई बार की,लेकिन मजबूत डोरी टूटी नहीं।’
      रचना ने कहा-‘डोरी झटके से नहीं टूटेगी। इसे काटना होगा। और फिर अपने झोले से एक कैंची निकालकर डोरी को काट दिया।
      ‘ मैडम, क्या आप कैंची साथ लेकर चलती हैं!’—रिक्शा वाले ने अचरज से कहा।
      ‘ मैं घर पर बच्चों के लिए पोशाकें तैयार करती हूँ, इसलिए झोले में सिलाई का सामान  रहता  हैं। इस समय भी बाज़ार से सिलाई का सामान खरीद कर घर जा रही हूँ।’-रचना ने कहा। फिर जया की फ्रॉक को छूते हुए बोली-‘ देखो इसे भी मैंने घर में ही तैयार किया है।’
       फ्रॉक सचमुच सुंदर थी। रिक्शा वाले का मन हुआ कि फ्रॉक को छू कर देखे पर साहस न हुआ।  
पर एक बात कहे बिना न रह सका—‘ मैडम जी, भला आपको सिलाई का काम करने की क्या जरूरत है। आप
      रचना ने बीच में ही टोक दिया—‘ हाँ मैं तो अच्छे खाते पीते घर की लगती हूँ तुम्हें, लेकिन क्या किसी का पहनावा देख कर उसके अमीर या गरीब होने का फैसला किया जा सकता है?’

                                                                                  1      
   ‘जी ’ रिक्शा वाला बस इतना ही बोल पाया। उसे अपनी पुरानी कमीज और रचना तथा जया के परिधान का फर्क एकदम साफ़ दिखाई दे रहा था।रचना की बात का वह भला क्या जवाब दे सकता था। रिक्शा रचना के घर के बाहर रुक गई। रचना ने रिक्शा वाले को पैसे देते हुए कहा—‘वैसे तुम्हारी बात कुछ गलत भी नहीं है।घर में चाहे जैसे भी रहें पर बाहर निकलते समय तो ठीक ठाक पोशाक पहननी ही   पड़ती  है।’ फिर जया की ओर इशारा करते हुए कहा—‘इसके पापा काफी समय से  बीमार चल रहे हैं,इस कारण नौकरी भी जाती रही। उनके इलाज और घर चलाने के लिए मुझे सिलाई का काम’ फिर वह एकाएक चुप हो गई। उसे लगा कि एक अनजान रिक्शा वाले से घर के अंदर की बात नहीं कहनी चाहिए थी। अपने पर मन ही मन उसे  गुस्सा भी आया, लेकिन  अब क्या हो सकता था। बात तो कही जा चुकी थी।   
    रिक्शा वाले ने पूछा—‘ मैडम,साहब को क्या तकलीफ है?’    
    रचना ने अनमने ढंग से कहा—‘ उनके पेट में दर्द रहता है, काफी इलाज के बाद भी आराम नहीं पड़ा है।’ फिर झट अंदर चली गई। दरवाजा बंद हो गया। पर रचना ने नहीं देखा कि रिक्शा वाला देर तक दरवाजे के बाहर खड़ा रहा,पता नहीं क्यों।
   अगली दोपहर दरवाजे की घंटी बजी, दरवाजे के बाहर कल वाले रिक्शा वाले को देख कर रचना चौंक गई। वह कुछ पूछती इससे पहले ही रिक्शा वाले ने कहा—‘’ मैडम, माफ़ करना आपको तकलीफ देने चला आया और फिर एक पुडिया रचना की और बढ़ाते हुए बोला—‘आप कह रही थीं  न कि साहब के पेट में काफी दिनों से दर्द हो रहा है। मैं एक अच्छे वैद्धजी को जानता हूँ, उन्ही से पेट दर्द की दवा लाया हूँ उनके इलाज से बीमार जल्दी ठीक हो जाते हैं।’
  रचना बरबस मुस्करा उठी। उसने कहा—‘ हर पेट  दर्द की दवा एक नहीं होती।क्योंकि पेट दर्द का कारण एक नहीं होता। पर मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि तुम जया के पापा के लिए दवा लेकर आये हो।मैंने तो यों ही हल्का सा जिक्र किया था जया के पापा के पेट दर्द के बारे में, पर तुमने याद रखा और दवा ले आये।तुमने वैद्ध जी को इस दवा के लिए कितने पैसे दिए वह मैं तुम्हें दे सकती हूँ पर यह दवा नहीं ले सकती।’ कह कर रचना ने पर्स खोला तो रिक्शा वाले ने कहा—‘मैडम, मैंने इस दवा के लिए कोई पैसा नहीं दिया।’ वह जाने के लिए मुडा फिर रुक कर कमरे में खेलती जया की और देख कर बोला—‘ मैडम, अगर आप नाराज न हों तो एक बात कहूँ।‘ हाँ, कहो क्या कहना चाहते हो।’ वह समझ नहीं पाई कि यह अनजान रिक्शा वाला अब क्या कहना चाहता है।रिक्शा वाले ने कहा—‘ मैडमजी, मैं कह रहा था कि जैसी फ्रॉक आपने अपनी बेटी के लिए बनाई है,क्या वैसी ही पोशाक मेरी मुनिया के लिए भी बना देंगी ?’
                                      2          
   रचना ने कहा—‘ मैं तो बच्चों की पोशाकें तैयार करती रहती हूँ, तुम्हारी मुनिया के लिए भी  बना दूँगी। तुम अपनी मुनिया को ले आना फ्रॉक का नाप देने के लिए। नाप लेकर मैं बता दूँगी कि कितना कपडा लगेगा, कपडा लाकर दोगे तो फिर पोशाक तैयार होने में देर नहीं लगेगी।’
   ‘मैडम जी,मेरी मुनिया तो दूर गाँव में अपनी माँ के साथ रहती है। नाप देने के लिए उसका आना मुश्किल है।मैं हाल में गाँव से लौटा हूँ। अब तो कई महीने बाद ही जाना हो सकेगा।’
  ‘तब तो मुश्किल है,बिना नाप लिए तो तुम्हारी मुनिया की पोशाक नहीं बन सकेगी।’
  रिक्शा वाला कुछ देर असमंजस में खड़ा रहा, फिर  जया की ओर इशारा करके बोला—‘मैडम जी,मैं तो कहता हूँ कि मेरी मुनिया  और आपकी बिटिया की कद काठी एक जैसी ही है,आप बस अपनी बेटी के नाप की पोशाक बना दें।वह मेरी मुनिया को एकदम फिट आएगी’ –यह कह कर उसने सौ का नोट रचना की ओर बढ़ा दिया।
    रचना को कुछ विचित्र लगा। उसने कहा –‘हर किसी की कद काठी अलग होती है,इसलिए नाप भी  अलग होता है, पर तुमने जिद ठान ली है इसलिए मैं जया के नाप की फ्रॉक बना तो दूँगी,लेकिन छोटी बड़ी हो जाए तो मुझे दोष न देना।’
   ‘कभी नहीं।’—रिक्शा वाले ने कहा तो रचना ने सौ का नोट ले लिया।कहा—‘ एक हफ्ते बाद आकर फ्रॉक ले जाना।’ रिक्शा वाला चला गया लेकिन रचना को सब अजीब लग रहा था।कुछ विचित्र था वह अनजान रिक्शा वाला।फिर सब कुछ भूल कर रचना घर के कामों में लग गई। जया के पापा को डाक्टर के पास ले गई तो पता चला कि उनकी तबियत अब पहले से ठीक है। इस अच्छी खबर से उत्साहित होकर रचना मन लगा कर सिलाई के काम में जुट गई। उसने जया के नाप की दूसरी फ्रॉक बना डाली। एक सप्ताह बीत गया पर रिक्शा वाला फ्रॉक लेने नहीं आया। फिर १५ दिन पीछे चले गए,पर वह अब भी नहीं आया। रचना कुछ उलझन में पड़ गई।आखिर वह क्यों नहीं आया। फिर दिमाग में जैसे बिजली सी कोंध गई।अरे उसने रिक्शा वाले का नाम –पता तो लिया ही नहीं। अब उसे ढूंढ कर फ्रॉक कैसे दे पाएगी।
                                                         


                                                  3
  एक दिन बाज़ार गई तो आस पास से गुजरने वाले रिक्शा वालों  को ध्यान से देखती गई। शायद वह कहीं दिख जाए,लेकिन वह रिक्शा वाला कहीं नहीं दिखाई दिया। ऐसा कई बार हुआ। लेकिन एक दिन वह मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा दिखाई दे गया। रचना ने रिक्शा रुकवाई और लगभग भागती हुई उसके पास जा पहुंची,और गुस्से से कहा—‘भले आदमी अपनी मुनिया की फ्रॉक लेने क्यों नहीं आये?’रचना ने देखा उसके पैरों पर पट्टियाँ बंधी थीं। ‘मेरे पास तुम्हारा नाम और पता ठिकाना भी नहीं था।’
    वह हाथ जोड़ता हुआ खड़ा होने लगा पर लड़खड़ा गया—‘माफ़ करना मैडम, मुझे बीच बचाव करते हुए चोट लग गई इसीलिए नहीं आ सका। ठीक होते ही मैं आकर मुनिया की फ्रॉक ले जाऊँगा। मेरा नाम जगन है। वैसे यह मंदिर मेरा ठिकाना है।’
    ‘ठीक है, जल्दी आने की कोशिश करना।’ कह कर रचना घर चली आई।घर के सामने रिक्शा से उतरने लगी तो रिक्शा वाले ने कहा—‘ मैडम, क्या आप जगन को जानती हैं?’
   ‘नहीं तो’—और रचना ने फ्रॉक वाली बात बता दी। तब रिक्शा वाले ने कहा –‘जगन अच्छा आदमी नहीं है,वह आपसे झूठ कह रहा था कि उसे चोट झगडे में बीच बचाव करते हुए लगी थी। सच यह है कि वह चोरी करते हुए पकड़ा गया था, तब लोगों ने उसे मारा था। वह कई बार जेल जा चुका  है। जहाँ तक मुझे मालूम है,जगन का कोई  घर परिवार नहीं है| हम रिक्शा वाले साल में एक दो बार गाँव जरूर जाते हैं अपने परिवार की खोज खबर लेने के लिए।लेकिन हमने तो उसे कहीं आते जाते नहीं देखा,बीच बीच में   वह गायब हो जाता है, बाद में पता चलता है कि वह जेल में था। आप उससे सावधान रहें।’ अपनी बात कह कर रिक्शा वाला तो चला गया,पर रचना को गहरी उलझन में डाल गया।  क्या सच था क्या झूठ यह समझन मुश्किल था।
  एक दिन रचना मंदिर के पुजारी से मिली। क्योकि अक्सर जगन को वहीँ देखा जाता था। पुजारी ने कहा—‘  जगन के बारे में लोग तरह की बातें करते हैं।कुछ लोग उसे अच्छा कहते हैं तो कई  नज़रों में जगन खराब आदमी है।पर मैंने  उसे कोई गलत काम करते हुए नहीं देखा।वह अक्सर लोगों की पैसों से मदद करता है, लेकिन इसी बात पर आपस में झगडा भी हो जाता है। सही गलत का फैसला करना कठिन है। ‘कई दिन पहले जगन  सात-आठ साल की एक  लड़की को लेकर मेरे पास आया था,लड़की रो रही थी| उसने बताया कि लड़की उसे रोती हुई मिली थी। मैंने उसे लड़की को पुलिस को सोंपने को कहा पर वह पुलिस से डरता था कि कही उसे लड़की भगाने  के जुर्म में सज़ा न हो जाए। उसने कहा कि वह लड़की को उसके गाँव छोड़ने जा रहा है।बस तभी से उसका कुछ पता नहीं है। कोई नहीं जानता कि उस लड़की का क्या हुआ। पर मैं समझता हूँ कि वह उस लड़की के साथ कुछ गलत नहीं करेगा|’
   रचना घर लौट आई, अब वह  गहरी उलझन में थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जगन के बारे में दूसरे लोगों की बातें कितनी सच थीं और कितनी  झूठ। यह बात उसकी समझ से बाहर थी  कि  
 जगन ने अपना  कोई घर परिवार न होते हुए भी अपनी बेटी मुनिया के लिए जया के नाप की फ्रॉक बनवाने की जिद क्यों की थी।क्या वह जया में ही अपनी बेटी की छवि देख रहा था जो केवल उसकी कल्पना में ही थी। क्या जगन फिर कभी आएगा अपनी मुनिया की फ्रॉक लेने के लिए।कौन जाने।==        
    










No comments:

Post a Comment