घर में घर—देवेन्द्र कुमार –बाल कहानी
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“पापा आ गए, पापा आ गए।”
रघु
ने कहा, गौरी ने ताली बजाई।
“आज क्या बात है, मैं तो रोज ही
आता हूँ।” कहकर पापा रजत मुस्करा दिए।
“हां, लेकिन आज खास
बात है। बच्चे कब से आपके लौटने की बाट जोह रहे हैं।” माँ अचला ने
कहा।
“ऐसा क्या है! क्या कोई विशेष प्रोग्राम
है?”
“हां, है। गौरी ने
कहा- “कोई जबरदस्ती घर में घुस आया है, उसे भगाना है।
इस काम में आपकी मदद चाहिए।”
कौन घुस आया है और वह भी जबरदस्ती।
तुमने मम्मी से नहीं कहा।”
“मम्मी हमारी मदद करने को तैयार नहीं
हैं। कहती हैं रहने दो उसे।” रघु ने मम्मी की शिकायत की।
रजत ने अचला की तरफ देखा तो उन्होंने
कहा- “बात कुछ नहीं है। खुली खिड़की से चिड़ियों का जोड़ा घर में घुस आया है।
एक को हमने निकाल दिया, पर दूसरी नहीं निकलती। एक कमरे से दूसरे कमरे
में चली जाती है। बच्चे चिड़िया को निकालने पर तुले हैं।
रजत ने देखा, फर्श पर जगह-जगह
तिनके बिखरे हैं। दो झाडुएं पड़ी हैं और एक डंडा भी।” दूसरे कमरे में
झरोखे के शीशे के ऊपर चिड़िया के पंखों की फड़फड़ सुनाई दे रही थी। उन्होंने कहा- “बच्चो,
लगता
है, चिड़िया अपने आने वाले बच्चों के लिए घोंसला बना रही है। बनाने दो।
लगता है तुमने उस पर झाडू फेंकी है, डंडा मारा है।
“हां, लेकिन चिड़िया है
कि जाती ही नहीं।” गौरी ने कहा।
“हम उसे अपने घर में गंदगी नहीं फैलाने
देंगे। देखिए उसने क्या किया है।” रघु बोला। वह फर्श पर जगह-जगह बिखरे
तिनके और झाडू की सींकें दिखा रहा था।
अचला ने कहा- “रघु , रहने
भी दो, क्यों परेशान कर रहे हो। इस तरह चिड़िया के पीछे पड़ोगे तो वह जिद ठान
लेगी और नहीं जाएगी।”
“नन्ही सी चिड़िया मुझसे लड़ाई करेगी। अब
तो मैं उसे घर से निकालकर ही दम लूंगा।” कहते हुए रघु ने फर्श पर पड़ा डंडा उठा
लिया।
“अरे नहीं, नहीं डंडा रख
दो।” अचला ने रघु के हाथ से डंडा छीनकर परे रख दिया। समझाने के स्वर में
कहा- ‘अरे एक नन्ही चिड़िया ही तो है। तुम आराम से बैठो। यों समय बर्बाद मत
करो। वह खुद चली जाएगी। चलो पढ़ने बैठो।’
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रघु और गौरी मन मारकर किताबें लेकर बैठ
गए, पर मन पढ़ाई में नहीं था- दोनों के बीच चिड़िया आ बैठी थी। वे दोनों
चाहकर भी उसे अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रहे थे। दोनों आपस में यही कह रहे थे- न
जाने चिड़िया कैसे जाएगी घर से। इसकी वजह से तो हर समय का शोर और गंदगी रहेगी।
गौरी ने कहा- “रघु , अगर
चिड़िया ने घोंसले में अण्डे दे दिए तो फिर उनसे बच्चे निकलेंगे और फिर तो हमारे घर
को चिड़ियाघर बनने में देर नहीं लगेगी। तब तो गड़बड हो जाएगी।”
“हां, यह तो है,
पर
मम्मी पापा तो चिड़िया को घर से निकालने में हमारी मदद करने को तैयार ही नहीं है।”
धीरे-धीरे शाम हो गई। रघु और गौरी पापा
के पास जा खड़े हुए, उन्होंने कुछ कहा नहीं। रजत ने दोनों को देखा
तो मुस्कराकर बोले-“मैं समझ गया तुम चिड़िया की शिकायत लेकर आए हो।
पर रात में तो चिड़िया उड़ नहीं सकती। शायद उसे ठीक से दिखाई भी न देता हो। कल
रविवार है। कल देखेंगे कि इस शैतान चिड़िया का क्या कर सकते हैं....”
“जो, जबरदस्ती हमारे
घर में अपना घर बनाने पर तुली है।” रघु ने पापा के कहने से पहले ही बोल
दिया। रजत जोर से हंसे। कहा ‘‘तुम दोनों को चिड़िया फोबिया हो गया है।
भूल जाओ उसे।” पर भूलना क्या आसान था। रात भर आवाजें होती
रहीं।
सुबह उठे तो चिड़िया घर में नहीं थी,
बच्चों ने कहा- “जल्दी से दरवाजे खिड़कियां बंद कर दो ताकि
चिड़िया अंदर न आ सके।‘’ पर हर समय तो खिड़की दरवाजे बंद नहीं रखे जा सकते थे। जब
बच्चों के पापा दफ्तर जा रहे थे तो दरवाजा खोला गया और तभी चिड़िया झट से अंदर आ
गई।
बच्चे चीखकर झाडू और डंडा लेने दौड़े पर
उनकी कोशिश बेकार रही। चिड़िया झरोखे पर जा बैठी थी और वहां चूं-चिर्र कर रही थी।
बीच-बीच में वह कमरे का चक्कर भी काट लेती थी।
अचला ने बच्चों की बैचैनी देखी तो
हंसने लगी। बोली-“बच्चों, तुम तो ऐसे घबरा रहे हो जैसे कोई दुश्मन
घर में घुस आया हो। बेचारी चिड़िया तुम्हारी दुश्मन कैसे बन गई!”
“मम्मी, आप चाहे कुछ भी
कहें, हम चिड़िया को घर से निकाल कर ही रहेंगे।”रघु और गौरी एक
स्वर में बोले।
बच्चे सारा दिन इसी तरह भाग दौड़ करते
रहे पर चिड़िया को घर से बाहर नहीं निकाल सके। लगता था जैसे चिड़िया ने उसी घर में
घोंसला बनाने की जिद ठान ली थी। बच्चों के बहुत कोशिश करने पर भी चिड़िया घर में ही
रही और शाम हो गई। बच्चों के पापा आफिस से लौट आए। उन्होंने कहा- “बच्चों,
मैं
तुम्हारी परेशानी समझ रहा हूँ लेकिन एक नन्ही चिड़िया के पीछे यों पड़ना ठीक नहीं।
अब घर में अगर वह आ ही गई है तो यही सही। वह तुम्हारे घर पर कब्जा करने के इरादे
से तो आई नहीं है। घोंसला बना रही है- तो इसमें अण्डे देगी। अण्डों से बच्चे
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निकलने तक उनकी देखभाल करेगी। फिर बच्चे बड़े
होकर उड़ जायेंगे तो चिड़िया भी तुम्हारे घर में आना बंद कर देगी।”
“लेकिन अगर उसके बाद भी चिड़ि़या ने
हमारा घर नहीं छोड़ा तो....” रघु ने पूछा।
“तो फिर देखा जाएगा। इतनी दूर की चिंता
क्यों कर रहे हो।” कहकर रजत ने रघु का कंधा थपथपा दिया और दूसरे
कमरे में चले गए।
रात का एकाएक रजत की नींद टूट गई। कुछ
गिरने की आवाज सुन वह चौंक कर उठ बैठे। देखा रघु पास में खड़ा है और थोड़ी दूर पर एक
डंडा पड़ा है। रजत ने पूछा तो रघु बोला- “पापा, मुझे नींद नहीं
आ रही थी। तभी मैंने एक बिल्ली को झरोखे पर झपटते देखा। वह चिड़िया को अपना शिकार
बनाने के लिए झपट रही थी। तब मैंने डंडा फेंक कर मारा तो बिल्ली भाग गई।
”ओह, तो बिल्ली के
पंजों से चिड़िया को बचाने का इनाम तुम्हें मिलना चाहिए।” कहकर रजत ने रघु
को बांहों में भर लिया और उसका सिर थपथपा दिया।
तब तक अचला भी जाग गई थी और एक तरफ खड़ी
पिता-पुत्र की बातें सुन रही थी। उसने कहा-“हां, शाम
तक रघु चिड़िया को घर से निकालने पर तुला
था पर फिर रात को उसने चिड़िया की जान बचाई है बिल्ली से।”
“यानी अब तुम चिड़िया के दुश्मन नहीं
दोस्त बन गए हो।” रजत ने मुस्कराते हुए कहा।
“नहीं मैं चिड़िया का दोस्त तो नहीं,
पर
जब मैंने बिल्ली को चिड़िया पर झपटते देखा तो मैं रह न सका। मैंने डंडा फेंका तो
बिल्ली को लगा, फिर वह भाग गई।”
अचला ने कहा- “बिल्ली ने
चिड़ि़या का घोंसला देख लिया है तो वह फिर आएगी। अब घोंसले पर हर समय तो पहरा दिया
नहीं जा सकता।”
“हां, यह तो तो ठीक
है। जब तक चिड़िया के अंडे-बच्चे हमारे घर में हैं हमें उन्हें बिल्ली से बचाना ही
होगा।”
रजत ने कहा- “कुछ तो करना
होगा।“ फिर वह और अचला सोच विचार करते रहे। थोड़ी देर बाद घर में एक बढ़ई को
बुलाया गया। उसने झरोखे के ऊपर चौड़ी जालीदार संदूकची सी लगा दी। अब घोंसला जाली की
संदूकची में सुरक्षित था।
गौरी ने ताली बजाते हुए कहा- “अहा
अहा, अब शैतान बिल्ली घोंसले तक नहीं पहुंच सकेगी।” तभी देखा गया कि
चिड़िया घोंसले के ऊपर लगी जाली के बाहर पंख फड़फड़ाती हुई चक्कर लगा रही थी, पर
जाली बंद थी इसलिए वह चाहकर भी घोंसले तक नहीं पहुंच पा रही थी।
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रजत ने कहा-“यह तो गड़बड़ हो
गई। जाली लगने से घोंसला तो बिल्ली के पंजों से सुरक्षित हो गया, लेकिन
चिड़िया अपने घोंसले में ही नहीं जा सकती।”
बढ़ई अभी गया नहीं था। वह पूरी बात सुन
रहा था। उसने भी चिड़िया को झरोखे पर लगी जाली से टकराते देख लिया था। बोला-“बाबू
जी, चिड़िया के लिए रास्ता मैं बना देता हूँ, पर बिल्ली उसमें
पंजा नहीं डाल सकेगी।‘’ बढ़ई ने जाली को बीचोंबीच से काटकर छोटा सा सूराख बना दिया।
जैसे ही वह छोटा सा सूराख बनकर तैयार हुआ चिड़िया उड़ती हुई आई और अंदर चली गई। कुछ
देर बाद बाहर उड़ गई। बच्चे तालियां बजाने लगे। रघु ने कहा- “मैं सोच रहा था,
मुझे
घोंसले की पहरेदारी करनी पड़ेगी। पर अब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। बिल्ली अब चिड़िया के
घोंसले पर हमला नहीं कर सकेगी।”
कुछ समय बाद अण्डों से बच्चे निकल आए।
बच्चे स्टूल पर खड़े होकर बारी बारी से घोंसले में झांकते थे और तालियां बजाते थे।
अब चिड़िया को घर से निकालने की बात तो दोनों ही भूल गए थे। अब वे चिड़िया के बार
बार आने जाने या चूं चिर्र करने की शिकायत नहीं करते थे। यह देखकर अचला और रजत भी संतुष्ट
थे।
एक शाम रजत दफ्तर से लौटे तो घर में
चुप्पी थी। रघु और गौरी खामोश बैठे थे. आज चिड़िया की कोई आवाज नहीं थी। रघु ने
कहा- “पापा, चिड़िया के बच्चे उड़ गए। अब चिड़िया भी नहीं आ
रही है।” उसकी आवाज़ में उदासी थी।
उस शाम पूरे घर में सन्नाटा रहा। खाने
की मेज पर भी बच्चे उदास थे। अचला ने देखा- बच्चों ने खाना नहीं खाया, बार बार
कहने पर भी नहीं। अचला ने कहा- “बच्चो क्या बात है। पहले तुम चिड़िया के
घर में आने से परेशान थे। अब जब वह चली गई है तब भी तुम खुश नहीं हो। आखिर क्यों?”
बच्चों ने जवाब नहीं दिया। चुपचाप सिर
झुकाए बैठे रहे। अचला और रजत समझ गए कि बच्चों के मन में उलझन क्यों है।
थोड़ी देर बाद अचला ने रजत को आवाज दी।
पुकारा- “जरा देखिए तो सही।”
रजत ने देखा- रघु कागज पर कुछ लिख रहा
था। लिखने के बाद स्टूल पर चढ़कर कागज घोंसले के ऊपर लगी जाली पर चिपका दिया। लिखा
था- किराए को खाली।
रजत और अचला हंसे तो रघु और गौरी भी
मुस्करा दिए। गौरी ने कहा- “अब एक जगह तैयार हो ही गई है तो वह
खाली क्यों रहे।
“लेकिन चिड़िया को क्या हमारी भाषा पढ़नी
आती है?”
“शायद!” रघु ने कहा और
हंस दिया। ( समाप्त )
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