Wednesday, 10 July 2024

क्या बचपन आया था !-देवेंद्र कुमार

 



                                 

             क्या बचपन आया था !-देवेंद्र कुमार

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  जया की रमा दादी पूजा कर रही थीं। रविवार का दिन था, घर के सब लोग बाहर गए थे, नीचे बच्चे शोर मचा रहे थे, इसलिए दादी का ध्यान बार बार भटक जाता था। तभी झन्न की आवाज के साथ पूजा की थाली उलट गई। जलता दीपक बुझ गया, पूजा की सामग्री बिखर गई। बच्चों द्वारा उछाली गई फुटबाल खिड़की से होती हुई पूजा की थाली में आ गिरी थी। रमा गुस्से से भर उठीं और जोर से चिल्लाईं –‘ शैतान बच्चे ठीक से पूजा भी नहीं करने देते। उन्होंने फुटबाल उठा कर खिड़की से बाहर फेंक दी। थाली में पूजा की सामग्री फिर से सजाई, बुझा हुआ दीपक दोबारा जलाया और पूजा में ध्यान लगाने का प्रयास करने लगीं। लेकिन पूजा में मन नहीं लगा। मन उड़ कर न जाने कहाँ जा पहुंचा। 

 

  आँखों में एक छोटी लड़की की छवि उभर आई। वह गाँव की कच्ची, धूल भरी गलियों में सहेलियों के साथ गेंद से खेल रही है,झूला झूल रही है,हंस रही है, रो रही है, माँ की गोदी में लेटी हंस रही हैऔर फिर रमा ने उस लड़की को पहचान लियायह तो वह खुद थी। फिर उनका अपना बचपन सामने जीवंत हो उठा। उनकी आँखों से आंसू बह चले। उन्होंने अपने हाथों को फुटबाल खिड़की से बाहर फेंकते देखा। होंठो से निकला-वह फुटबाल नहीं, मेरा बचपन मेरे पास आया था, जिसे मैंने अपने ही हाथों से दूर फेंक दिया। अब वह कभी लौट कर नहीं आएगा। पूजा अधूरी रह गई, दादी देर तक अपने बचपन की उबड़ खाबड़ गलियों में भटकती रहीं ।

      

    पर आखिर कब तक अपने बचपन की गलियों में भटकती रह सकती थी रमा दादी। कुछ देर तक आँखें मूंदे बैठी रहने के बाद, वह उठ कर खिड़की में से नीचे झाँकने लगीं। उन्होंने देखा बच्चे चुप खड़े थे, शोर थम गया था। वे रह रह कर दादी की खिड़की की ओर देख रहे थे। रमा ने कहा,  ’बच्चो , वह फुटबाल कहाँ है जिसे मैंने गलती से नीचे फेंक दिया था।

                                                

 

  ‘गलती सेबच्चों ने अचरज से कहा। रमा दादी की बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी।

 

  ‘हाँ,मुझे फुटबाल को नहीं फेंकना चाहिए था। क्या तुम सब उस फुटबाल को खोज कर मेरे पास ला सकते हो। बदले में मैं तुम बच्चों को एक नई फुटबाल इनाम में दूँगी। 

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    नई फुटबाल के लालच में बच्चे तुरंत खोज में लग गए।  लेकिन उनकी पुरानी फुटबाल कहीं न मिली। जब बच्चे निराश होकर लौटे तो रमा खिड़की में ही खड़ी थीं। उन्होंने कहा-नहीं मिली न, मुझे पता था कि मैंने जिस फुटबाल को अपने से दूर फेंका था, वह अब मेरे पास कभी वापस नहीं आएगी,पर इसे छोड़ो, तुम्हें नई फुटबाल जरूर मिलेगी। फिर उन्होंने एक बच्चे को ऊपर बुला कर नई फुटबाल के लिए पैसे दे दिए। फुटबाल--प्रेमी बच्चे रमा के विचित्र व्यवहार को कभी समझ नहीं पाए।   रमा के मन के भीतर भला कौन झांक सकता था। 

 

   इस बात को कई दिन बीत गए। अपने बचपन की यादें रमा को आराम से नहीं रहने दे रही थीं,वह ठीक से पूजा में ध्यान नहीं लगा पा रही थीं। उस दिन पूजा के बाद रमा सोसाइटी के पार्क में जा बैठीं।सामने माली रामधन क्यारी में काम कर रहा था। पास में उसका छह -सात का बेटा राजू घास पर फुटबाल लुढका रहा था। फुटबाल कई जगह से कटी हुई थी इसलिए घास पर ठीक से लुढ़क नहीं रही थी।

 

   रमा उठ कर राजू के पास जा खड़ी हुई। उन्होंने कटी हुई फुटबाल को उठाया तो लगा जैसे यह वही फुटबाल है जिसे उन्होंने खिड़की से बाहर फेंक दिया था। रमा ने फुटबाल को दोनों हाथों में कस कर पकड़ लिया। फिर रामधन से कहा-मैं तुम्हारे बेटे के लिए नई फुटबाल मंगवा दूँगी। अगर तुम कहो तो इस फुटबाल को मैं ले जाऊं।

   

  रामधन ने हैरान स्वर में कहा-माँजी, ले जाइये,वैसे भी यह फुटबाल मेरी तो है नहीं।मुझे तो यह एक क्यारी में पड़ी मिली थी।

    

   रमा फुटबाल को सावधानी से हाथों में थामे हुए अपने फ़्लैट में आ गईं, और फुटबाल को पूजा की थाली के पास रख दिया। फिर देर तक उसे देखती रहीं। आँखों के सामने फिर से अपने भूले बिसरे बचपन के अनेक चित्र तैर गए। देर तक अपने बचपन में खोई बैठी रहीं।लगा जैसे सामने फुटबाल नहीं बचपन के दरवाजे की जादुई चाबी रखी थी।

 

  अगली दोपहर रमा पार्क में गईं तो उनके हाथ में रामधन के बेटे राजू के लिए नई फुटबाल थी। उन्होंने इधर उधर देखा पर रामधन नहीं दिखाई दिया, राजू भी नहीं था। कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद उन्होंने सोसाइटी के गार्ड से पूछा। पता चला कि रामधन के गाँव में किसी रिश्तेदार की शादी है, परिवार के साथ वहीँ गया है। दो दिन में वापस आ जायेगा। एक हफ्ता बीत गया, पर रामधन नहीं लौटा। गार्ड ने बताया कि गाँव में राजू बीमार हो गया है, इसीलिए रामधन अभी कुछ दिन के लिए गाँव में ही रुक गया है। 

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  रमा को चिन्ता ने घेर लिया। उन्हें लगा कि गाँव जाकर राजू का हाल चाल लेना चाहिए। वह समझती थीं कि राजू के कारण ही उन्हें बचपन की गलियों में ले जाने वाली फुटबाल फिर से मिल सकी थी। उन दोनों के बीच जैसे एक अनोखा सम्बन्ध बन गया था।

 

  रमा ने बेटे नरेश से पटल गाँव चलने को कहा तो वह चौंक उठा। बोला—‘ पटल गाँव में तो हमारा कोई सम्बन्धी रहता नहीं है, फिर वहां क्यों जाना है!

 

   ‘मेरा कोई तो है वहां, बस सवाल मत पूछ, ले चल मुझे। रमा ने कहा। पटल गाँव ज्यादा दूर नहीं था। नरेश की कार गाँव में पहुंची तो लोग जमा हो गए। रामधन रमा दादी को देख कर चौंक पड़ा, फिर रमा को राजू के पास ले गया। राजू बिस्तर पर लेटा था। रमा ने राजू का सिर सहलाया और एक नई चमचमाती फुटबाल उसके हाथो में थमा दी। नई फुटबाल पाकर राजू बहुत खुश हो गया। रमा ने रामधन से कहा-तुम्हारे बेटे को अच्छे इलाज की जरूरत है। तुम मेरे साथ वापस चलो। मैं एक अच्छे डाक्टर को जानती हूँ। उनकी दवाई से राजू और भी जल्दी स्वस्थ हो जाएगा।रामधन  ने तुरंत उनकी बात मान ली,इससे अच्छा और क्या हो सकता था भला। तैयार होकर रामधन तैयार होकर  रमा जी के साथ चल दिया||

 

  अपने शहर पहुँच कर रमा ने कार डाक्टर अनु के क्लिनिक के बाहर रुकवा ली। वह डॉ.अनु को अच्छी तरह जानती थीं। क्लिनिक के वेटिंग हाल में रामधन और राजू को बैठा कर रमा कक्ष में जाकर डॉ. अनु से मिलीं,उन्हें राजू के बारे बताया। फिर कहा-राजू का पिता इलाज का खर्च नहीं उठा सकेगा। दवा के पैसे मैं दूँगी,लेकिन यह बात उसे पता नहीं चलनी चाहिए।  डॉ, अनु की मेज पर रुपये रख कर रमा बाहर आ गईं। 

 

   डॉ. अनु के इलाज से राजू जल्दी स्वस्थ हो गया। और फिर एक दिन उन्होंने राजू को नई फुटबाल के साथ खेलते देखा। रामधन ने कहा-माँजी,  डॉ. साहिबा बहुत अच्छी हैं। रमा मुस्करा कर अपने फ़्लैट में चली आईं। पूजा की थाली के पास रखी पुरानी फुटबाल को देख कर मन फिर से पीछे की यात्रा पर निकल पड़ा। सचमुच वह फुटबाल अतीत के दरवाजे की जादुई चाबी थी। घर में सब को पता था कि पुरानी फुटबाल को  उसकी जगह से हिलाना नहीं है। इस बारे में रमा किसी प्रश्न का उत्तर देने वाली नहीं  (समाप्त)                                   

 

 

Monday, 1 July 2024

तू मेरा मैं तेरा---देवेंद्र कुमार

 

                               तू मेरा मैं तेरा---देवेंद्र कुमार                                                                  

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   नाम है भीमा पर लोग उसे भीखू कहते हैं। क्यों भला! कारण है सबके सामने हाथ फ़ैलाने की बुरी आदत।iइसीलिए सब उससे बच कर चलते थे,सलाह देते कि कोई काम करे,इस तरह हरेक से याचना करना अच्छी बात नहीं। क्या करे भीमा! वह लंगड़ा कर चलता है,फ्रैक्चर के बाद हड्डी गलत जुड़ने की वजह से पैर में खराबी आ गई है। कई महीने तक काम पर न जा सकने के कारण नौकरी चली गई। इसके बाद काम मिला ही नहीं। अब सड़क पर आ गया है। लोगों के आगे हाथ फ़ैलाने के अतिरिक्त और कुछ सूझा ही नहीं। वह खुद इस तरह जीने को गलत मानता है लेकिन और करे भी तो क्या!

   एक दोपहर बस स्टैंड के पास खड़ा था, तभी एक बच्चे को जमीन पर गिरते देखा। भीमा ने बच्चे को गोद में उठा लिया। उसके माथे से  खून निकल रहा था। वह घबरा कर इधर उधर देखने लगा,समझ नहीं पा  रहा था कि क्या करे।और तभी उसे रजत बाबू नज़र आये,उसने पुकारा-'बाबू जी,इसे देखिये। ' रजत पास की सोसाइटी में रहते हैं, औरों  की तरह भीमा से नफरत नहीं करते,कभी कभार मदद भी कर देते  हैं।उन्होंने कहा-'आओ मेरे साथ, पास में एक कम्पाउंडर रहता है। वह इसके घाव की मरहम पट्टी कर देगा।    

        बच्चे की  मरहम पट्टी के बाद सड़क पर आये तो बच्चे के माँ बाप उसे खोजते मिल गए। उन्होंने बताया कि वे दूकान से सामान ले रहे थे तभी उनका बेटा हाथ छुड़ा कर भाग निकला। भीमा ने बताया कि कैसे क्या हुआ था। बच्चे की माँ ने  भीमा से कहा-'भैया ,तुमने मदद की, नहीं तो  कुछ भी हो सकता था। वह भीमा को कुछ पैसे देने लगी तो उसने मना  कर दिया।बोला -'बच्चे की मदद के बदले भीख क्यों दे रही हो।बेटा जैसा तुम्हारा वैसा मेरा|'  इतना कहते ही  मन में कुछ होने लगा।आखिर उसका अपना कौन है -कोई नहीं,आँखें गीली हो गईं।

   तभी रजत उसे चाय की टपरी पर ले गए। बोले-'भीमा, आज तुमने एक अच्छा काम किया है। और बच्चे की मदद के बदले पैसे भी नहीं लिए। कैसा लग रहा है ?'

   क्या कहे भीमा। यह पहली बार था जब उसने भीख लेने से मना  किया था। क्या ऐसा रोज नहीं हो सकता! रजत चले गए ,भीमा सड़क पर निकल आया। शाम ढल रही थी। सड़क पर घरों की ओर लौटते लोग थे और आकाश में घोंसलों की  तरफ उड़ते परिंदों का शोर। भीमा को कहीं जाना नहीं था ,वह बस  चला जा रहा था।तभी उसने एक बूढ़े को पटरी पर बैठे देखा। बूढा सड़क पार ढाबे की ओर देख रहा था। जरूर भूखा है,वरना इस तरह  ढाबे की तरफ  ताकता हुआ न बैठा रहता।         

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   भीमा उसके पास जा खड़ा हुआ,पूछा -'क्यों, भूख लगी है?' बूढ़े ने उस की ओर देखा पर बोला  कुछ नहीं।भीमा ने कुछ सोचा और सड़क  पार करके ढाबे में चला गया। ढाबे वाला जीतन भीमा को जानता है। उसने तुनक कर कहा-'जानते हो न कि मैं भीख नहीं देता।'

   '  मैं अपने लिए नहीं, उसके लिए कह रहा हूँ।'और भीमा ने सड़क पार बैठे बूढ़े की ओर संकेत कर दिया।

       तेरे पास चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं और मैं मुफ्त में  रोटी खिलाता नहीं।'-जीतन के स्वर में कड़वाहट घुली हुई थी।

    भीमा ने देखा-ढाबे में कई ग्राहक खाना खा रहे थे,तंदूर से गरम रोटियां निकल रही थीं।भीमा कुछ  सोचता रहा फिर बोला -'तुम्हारे ढाबे में बहुत काम है। मुझसे कुछ काम करा लो। उसी को बूढ़े बाबा के खाने के दाम समझ लेना।

 जीतन ने कहा-'हाँ ऐसा कुछ हो तो सकता है। आज बर्तन साफ़ करने वाला नहीं  आया है. वही कर लो। और हाँ बूढ़े बाबा को यहाँ ले आओ।'   बात बन गई थी। वह बूढ़े को हाथ पकड़ कर ले आया और कुर्सी पर बैठा दिया।  जीतन के इशारे पर एक लड़के ने बाबा के सामने भोजन परोस  दिया।

    अब दाम चुकाने की बारी थी। सिंक में जूठी  प्लेटों का ढेर था। भीमा काम में जुट गया। बर्तन धोने के बाद उसने सिंक के नीचे भी सफाई कर दी, वहां काफी गंदगी थी। उसने देखा अब बाबा जमीन पर बैठा था। जीतन ने एक कोने में बनी कोठरी की ओर इशारा किया,बोला -कोठरी में काफी बेकार सामान पड़ा है,सफाई करके बाबा को वहां बैठा दो।'

   कोठरी से कबाड़ निकल कर भीमा ने ढाबे के बाहर फुटपाथ पर रख दिया ,और अच्छी तरह फर्श धो कर पोंछा लगा दिया| जीतन ध्यान से देख रहा था। उसने कहा-'ढाबे के बाहर एक छोटी चारपाई पड़ी है। उसे कोठरी में रख दो। बाबा उस पर लेट जाएगा।'

   बाबा को चारपाई पर लिटा कर भीमा ने झाड़ू थाम ली और फर्श पर पड़ा कूड़ा बुहार दिया I अब तक  सिंक में बहुत से जूठे बर्तन फिर जमा हो गए थे। भीमा ने उन्हें भी साफ़ कर डाला| तभी जीतन ने कहा-'क्या बाबा की भूख मिटने से तेरा पेट भी भर गया?”  क्या कहे भीमा!

  तभी कोठरी से बूढ़े के जोर जोर से खांसने की आवाज़ आने लगी। भीमा पानी का गिलास लेकर बाबा के पास चला गया, बाबा की पीठ सहलाई तो  कुछ आराम पड  गया। 'कोई दवा लेते हो?'-भीमा ने पूछा। बाबा ने जो कहा उससे पता चला कि फ्लाईओवर के नीचे एक पान वाला बैठता है,वहीँ पड़ी है बाबा की पोटली, उसी में दवा है।

 भीमा पान वाले के पास गया, कहा-'बाबा ने पोटली मंगवाई है|’

   'अरे तू कौन है?'

   'वह मेरे बाबा हैं| मैं इतने दिनों से दूसरे शहर में था , आज ही आया हूँ।' भीमा ने बात बनाई। पोटली लेकर चला तो मन में ख़ुशी थी।कितनी सफाई से उसने अपने को उस अनजान बूढ़े बाबा से जोड़ लिया था।

  ढाबे पर पहुंचा तो जीतन ने कहा-'आ खाना खा ले। 'ढाबे में काम करने वाले दो लड़के खाना खा रहे थे,भीमा भी उनके साथ बैठ गया| उसे देख कर वे मुस्कराये और उसके सामने खाना परोस दिया.। बाहर बारिश शुरू हो गई थी। जीतन ने छाता लिया और घर  जाते हुए बोला -' अब कहाँ जाओगे तुम दोनों। यहीं रह जाओ।'

  खाने के बाद उन लड़कों ने अपने साथ भीमा के लिए भी चादर बिछा दी. तेज बारिश पड  रही थी।खुले ढाबे में बौछारें अंदर तक  आ रही थीं।भीमा लेटा नहीं, चादर ओढ़ कर तंदूर के पास जा बैठा, जिससे हल्की गर्माहट मिल रही थी। वह अपने लिए नहीं, बाबा के बारे में सोच रहा था।

   आज तो जैसे तैसे खाना मिल गया लेकिन  कल ,हाँ कल क्या होगा? उसने पान वाले से बूढ़े को अपना बाबा बताया था। क्या वह झूठ सच हो सकता था! भीमा पूरी रात नहीं सोया। सिंक में पड़े बर्तनों को साफ़ किया, फर्श को फिर  से  बुहार दिया।

     सुबह जीतन आया तो साफ़ सफाई देख कर खुश हो गया। बर्तन सफाई वाला नहीं आया था। भीमा ने पूरे दिन काम किया। बीच बीच में बूढ़े बाबा की खोज खबर लेता रहा। जीतन ने कहा-'क्या तू रोज यहाँ काम करेगा?बर्तन सफाई वाला तो ठीक से काम नहीं करता। '

   'अगर उसे नौकरी से निकलोगे तो मैं काम नहीं करूंगा, '-भीमा ने कहा तो जीतन हंसने लगा,बोला –नहीं ढाबे में काम तो रहता ही है , और हाँ मैंने सोचा है,बूढा बाबा उस कोठरी रहे तो कोई हर्ज नहीं| तुम उसकी देख भाल कर ही लोगे। हमारे ढाबे से थोड़ी दूरी पर सुलभ शौचालय है। यहाँ काम करने वाले लड़के वहीँ नहाते धोते हैं, उनके पैसे मैं देता हूँ। तुम दोनों को भी दिक्कत नहीं होगी। '

   भीमा को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था। वह संतुष्ट भाव से काम में लग गया। कोठरी में बूढा बाबा आराम से लेटा  था। भीमा उसे सुलभ शौचालय ले गया था और लौट कर चाय बिस्किट दे दिए थे।कहीं यह भीमा का सपना तो नहीं था! जी नहीं ,एकदम नहीं, जो था एकदम सच था(समाप्त )