Tuesday, 28 May 2024

जन्मदिन अखबार का -देवेंद्र कुमार

 

 

                   जन्मदिन अखबार का -देवेंद्र कुमार

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  अखबार देखते ही विनय का माथा गरम हो गया। पता नहीं यह किसकी बेहूदगी थी।   अखबार के पहले पन्ने पर किसी ने जगह जगह ‘जन्मदिन’ शब्द टेढ़े मेढ़े अक्षरों में लिख दिया था। उन्होंने तुरंत अखबार वाले जीतू को फोन मिलाया। उससे अखबार की नई प्रति लेकर आने को कहा। जीतू कई वर्षों से उनके घर रोज अखबार डालता आ रहा है। इससे पहले ऐसा तो कभी नहीं हुआ था। 

  जीतू ने माफ़ी मांगते हुए कहा कि वह तुरंत अखबार की नई कापी लेकर आ रहा है। उसने बताया कि और भी कई घरों से ऐसी शिकायत मिली है। कुछ देर बाद जीतू अखबार की नई प्रति लेकर आ गया। साथ में छह-सात साल का एक लड़का भी था। वह था उसका बेटा चमन। जीतू ने चमन के बाल पकड़ कर कहा-‘ साहबजी, यह सब इसी शैतान की करतूत है।   इसकी तो मैं अच्छी तरह खबर लूँगा। आपसे मैं इतना ही कह सकता हूँ कि आगे ऐसी गलती कभी नहीं होगी।’ विनय को पता चला कि उसके चार पड़ोसियों के अख़बारों पर भी इसी तरह ‘जन्म दिन’ शब्द लिखा मिला था। जीतू ने उन चारों के घरों में भी ख़राब अखबार के बदले नई प्रतियाँ दे दीं।  वे थे-- रामनिवास,जयंत, विलास और दयाल। 

  जीतू ने उन चारों के सामने भी अपने बेटे चमन को बुरा भला कहा और उससे सख्ती से निपटने का वादा किया। इस तरह डांट फटकार से बच्चा बुरी तरह घबरा गया और जोर जोर से रोने लगा। उस समय विनय की पत्नी जया वहीँ खड़ी थीं। उन्होंने चमन को चुप कराते हुए जीतू से कहा-‘ बच्चे से बात करने का यह कौन सा तरीका है। क्या तुम रोज अपने बेटे के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हो। 

  जया की फटकार सुन कर जीतू हडबडा गया। माफ़ी मांगने के स्वर में बोला-‘ नहीं मैडमजी, मैं और मेरी पत्नी चमन से बहुत प्यार करते हैं। असल में आज की  घटना ने मुझे कुछ परेशान कर दिया, क्योंकि इस कारण मैं कई घरों में अखबार नहीं पहुँचा सका। कल उनकी भी शिकायत सुननी पड़ेगी मुझे। 

  जया ने चमन से प्यार भरे स्वर में पूछा-‘ बेटा,तुमने अख़बार पर ‘जन्मदिन’ क्यों लिखा था भला?’

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  ‘ आज मेरा जन्म दिन है।’-कहते हुए चमन रो पड़ा।  

  ‘क्या सचमुच आज चमन का जन्मदिन है?’-विनय ने जीतू से पूछा। 

  ‘जी हाँ, है तो सही।’-जीतू ने कहा। 

  ‘तो आज के शुभ दिन पर भी उसे यों डांट फटकार रहे हो। भई आज तो चमन का दिन है,इसे गिफ्ट मिलने चाहियें। क्या बेटे का जन्मदिन तुम इसी तरह मनाया करते हो!’-जया ने व्यंग्य से कहा। 

  ‘जी, मैं तो सारा दिन काम में ही लगा रहता हूँ। हम जैसों के लिए तो हर दिन एक जैसा गुजरता है। ’-जीतू बोला। ‘अखबार बांटने के लिए सुबह बहुत जल्दी घर से निकलना होता है। नींद भी पूरी नहीं होती। इसके जन्म दिन पर इसकी माँ हलवा बनाती है। फिर दोनों माँ बेटा मंदिर जाते हैं।   शाम को मेरे घर लौटने पर हम इसे आइसक्रीम खिलाने ले जाते है। बस कुछ इसी तरह मनाते है चमन का जन्मदिन। 

  ‘ तो फिर आज ऐसा क्या हुआ कि इतने मुंह अँधेरे तुम चमन को अपने साथ ले गए?’- विनय के पडोसी दयाल ने पूछा।  

     ‘ रोज सुबह 4 बजे चौक पर अखबारों के ट्रक आते हैं। मैं और मेरे साथी लोग मांग के हिसाब से अख़बार लेते हैं।  फिर उन्हें घर घर पहुँचाने के लिए निकल जाते हैं। रोज तो मैं अकेला ही जाता हूँ। पर दो दिन पहले मुझे चमन के नानाजी की बीमारी की खबर मिली। मेरी पत्नी तुरंत उनसे मिलने चली गई।  घर में रह गए मैं और चमन।   मैं इसे घर पर अकेला नहीं छोड़ सकता था, इसीलिए चमन को साथ ले गया था।   वहां जब मैं हिसाब किताब में लगा था, तब न जाने कब इसने कई अखबारों पर पेन से जन्मदिन लिख डाला होगा।   और मैंने बिना देखे अखबार आप लोगों के घरों में डाल दिए। बस यही गलती हो गई मुझसे।’-जीतू ने बताया। 

  जया ने कहा-‘ अब मैं पूरी बात समझ सकती हूँ। चमन के दिमाग में अपने जन्मदिन की बात घूम रही होगी। बस उसने कई अखबारों पर ‘जन्मदिन’ लिख डाला। किसी बच्चे के लिए अपने जन्मदिन से बड़ी बात और क्या हो सकती है भला। 

 ‘ अब इस घटना को भुला कर हमें चमन का जन्मदिन मनाने के बारे में सोचना चाहिए।’—जया ने हंस कर कहा और चमन को गुदगुदा दिया।   चमन जोर से हंस पड़ा। 

  ‘ लेकिन चमन की माँ तो यहाँ है नहीं। मुझे तो हलवा बनाना आता नहीं।’-जीतू ने कहा।इस पर सब हंस दिए। जया ने कहा-‘जीतू, अखबार पर जन्मदिन शब्द लिखने के कारण इस बेचारे को तुम्हारी कड़ी  फटकार सुननी पड़ी है, हम सभी चमन के दोषी हैं। क्यों न हम सब मिल कर इसका जन्मदिन मनाएं’-सभी ने जया के प्रस्ताव का समर्थन किया। तय हो गया कि शाम के समय जया के घर पर चमन का जन्मदिन मनाया जायेगा। जया ने जीतू से कह दिया कि शाम को वह चमन के  साथ उनके घर पर आ जाए। 

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  जीतू ने संकोच भरे स्वर में कहा-‘ आप लोग क्यों तकलीफ करेंगे भला। चमन की माँ के आने के बाद हम लोग मना लेंगे इसका जन्म दिन हर बार की तरह।‘  

  ‘जन्म दिन का फंक्शन तो उसी दिन मनाया जाता है जिस दिन बच्चे का जन्म होता है। ’-दयाल ने कहा। ‘चमन का अगला जन्म दिन तुम जैसे चाहो मना लेना। पर आज तो तुम्हारे बेटे के जन्मदिन का उत्सव हम सब मिल कर मनाएंगे।’

  अब क्या कहता जीतू। वह चमन के साथ चला गया। शाम को चमन के साथ जया के घर पहुंचा तो अचरज से देखता रह गया। कमरा रंगारंग रोशनी से जगमगा रहा था।  रामनिवास,जयंत,विलास,दयाल  और विनय के परिवारों के अलावा और भी अनेक बच्चे वहां मौजूद थे। चमन को देखते ही सब ताली  बजाने लगे। मेज पर एक सुंदर केक रखा था,जिस पर ‘चमन 7’ लिखा था। जीतू एक बड़े बॉक्स में मिठाई लाया था। संगीत की मीठी धुन गूँज रही थी। केक काटने के बाद सब बच्चे मिलकर डांस करने लगे।  चमन बहुत खुश था। जीतू ने कहा-‘ मेरे बेटे का ऐसा जन्म दिन तो कभी नहीं मना।’

  जया ने हंस कर कहा-‘अब चमन को अखबार पर ‘जन्मदिन’ लिख कर याद नहीं दिलाना पड़ेगा।   हर वर्ष चमन का जन्मदिन हम सब इसी तरह मिल कर मनाया करेंगे।‘ कमरे में संगीत और बच्चों  की खिल खिल गूँज रही थी।   (समाप्त)  जन्मदिन अखबार का =देवेंद्र कुमार

  

 

 

Tuesday, 21 May 2024

तेरा सच =मेरा सच-देवेंद्र कुमार

 

तेरा सच =मेरा सच-देवेंद्र कुमार

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समुद्र के किनारे मछुआरों का एक गाँव था- टाना। टूटी-फूटी झोंपड़ियाँ समुद्र से थोड़ी दूर नारियल के झुण्ड  में बनी थीं। वहीं रहते थे भोले-भाले परिश्रमी मछुआरे। वे हर सुबह अपनी नौकाएँ लेकर समुद्र में निकल जाते, मछलियाँ पकड़ते और जब शाम को सूरज समुद्र के पानी को रंगीन बनाता हुआ डूबने की तैयारी में होता तो वे दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद, तट की ओर लौटते।

 

टाना का मुखिया था दीना। हट्टा-कट्टा। सब उसका सम्मन करते। वह पूरे गाँव को अपना परिवार समझता। उनके सुख-दुख में बराबर की हिस्सेदारी बँटाता। सबके लिए वह गाँव का नहीं, सब परिवारों का मुखिया था। लेकिन दीना के सब सुख घर से बाहर थे, घर में था उसका सबसे बड़ा दुख, उसका इकलौता बेटा राजा।

 

राजा स्वभाव में अपने पिता से एकदम उल्टा था। बात-बात पर गाँववालों से लड़ता, शराब पीकर गालियाँ बकता। वह मछलियाँ पकड़ने भी नहीं जाता था। उसके धंधे थे ठगी और चोरी। अक्सर ही लोग दीना के पास राजा की शिकायतें लेकर आते तो वह दुखी हो जाता। दीना राजा को समझा-समझाकर हार गया था पर उसने अपनी आदतें नहीं बदलीं।

 

दूसरी ओर गोपुरा था। गोपुरा एक अनाथ था। वह बहुत वर्ष पहले की बात है, समुद्र में भयंकर तूफान आया था एक रात। उसमें गाँव के कई लोग मर गए, गोपुरा के माता-पिता भी तूफान की भेंट चढ़ गए थे। बचा था केवल अबोध गोपुरा!  गोपुरा को दीना ने शरण दी थी। उसे राजा की तरह प्यार और संरक्षण दिया था। उसे यह बात कभी अनुभव नहीं होने दी कि उसका घर गोपुरा का घर नहीं है। लेकिन एक छत के नीचे एक-सा प्यार और स्नेह पाते हुए गोपुरा और राजा कितने अलग थे एक-दूसरे से।

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गोपुरा दीना का बहुत ध्यान रखता था। उसे पता था कि दीना क्यों उदास रहता है। उसने राजा को बहुत समझाने का प्रयत्न किया, कहा कि वह दीना का ध्यान रखे, उसे दुख दे। वह राजा को समझाता तो राजा उसे ही डाँट देता। वास्तव में वह गोपुरा से मन-ही-मन चिढ़ता था। उसे लगता था कि गोपुरा उसके अधिकार में हिस्सा बँटाने जाने कहाँ से चला आया है। वह गोपुरा का अपमान करने का कोई मौका हाथ से जाने देता। गोपुरा को दुख देकर उसे खुशी मिलती थी। वह चाहता था कि जैसे हो गोपुरा वहाँ से चला जाए।

 

उन्हीं दिनों की बात है। वह तूफानी रात थी। सब आराम की नींद ले रहे थे, पर गोपुरा अभी नहीं सोया था, क्योंकि राजा नहीं लौटा था। गोपुरा सोच रहा था, “इतने खराब मौसम में भी राजा बाहर क्यों घूम रहा है?”

 

राजा शराब के नशे में झूमता-झामता चला रहा था। एकाएक उसने तट से थोड़ी दूर एक नाव देखी तो चौंक पड़ा।यह किसकी नाव है? गाँव की तो हो नहीं सकती।इस तरह सोचता हुआ राजा नाव के निकट जा पहुँचा। उथले पानी में रुकी नाव लहरों के थपेड़ों से हिल रही थी।

 

राजा ने आगे बढ़कर झाँका तो चौंक पड़ा। नाव की तली में दो आदमी पड़े थे। एक छोटी लालटेन जल रही थी। दोनों आदमी शायद बेहोश थे। राजा  नाव में कूद पड़ा। उसने नाव की तलाशी ली तो एक पोटली में बँधे रुपए नजर गए। राजा का मन खिल उठा। वह रुपए लेकर घर की ओर चल दिया। उसने नाव में बेहोश पड़े व्यक्तियों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा। वह घर में घुसा तो गोपुरा जाग रहा था। उसने पूछा, “अब तक कहाँ थे, माँ बहुत चिंता कर रही थीं।

 

तट पर एक नाव...” राजा बुदबुदाया और बिस्तर में घुस गया। उसने आँखें बंद कर लीं।तट पर नाव...लेकिन किसकी?” गोपुरा ने आश्चर्य से पूछा। आधी रात के समय कौन-सी नाव गई थी। लेकिन उसे अपनी बात का उत्तर नहीं मिला। राजा सो गया था। गोपुरा लेटा रहा सका। वह दबे पाँव बाहर निकल आया। जल्दी-जल्दी चलता हुआ वह नाव के निकट पहुँचा। उसने एक ही दृष्टि  से सारी बात  भाँप ली। तुरंत उल्टे पैरों गाँव की ओर दौड़ा। उसने पुकारा तो कई लोग बाहर निकल आए। गोपुरा उन्हें लेकर दुबारा तट पर पहुँचा।नाव में पड़े बेहोश आदमियों को गाँव ले आया गया।

 

गाँव में वैद्य ने दोनों को दवाई दी। कुछ देर में उन्हें होश गया। उन्होंने बताया, वे दोनों पास के द्वीप पर जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने कोई चीज खाई थी, उसके बाद वे बेहोश हो गए थे। पता नहीं नाव कब बहकर किनारे लगी।  गाँव वालों ने उन्हें बताया कि वे सुरक्षित हैं। लेकिन तभी उन दोनों को पता चला कि उनके रुपए गायब हो गए हैं। वे घबरा उठे और पूछने लगे।

 

सबको गोपुरा पर संदेह हुए क्योंकि सबसे पहले उसी ने गाँव वालों को बेहोश आदमियों के बारे में बताया था। पूछने पर गोपुरा ने कहा, “मैं सच कहता हूँ, मैंने कुछ भी नहीं चुराया।लेकिन यदि  उसकी बात सही थी तो फिर रुपए कहाँ गए?पूरे गाँव में इस बात की चर्चा फैल गई, जितने मुँह उतनी बातें। लोग कहने लगे, “तो गोपुरा भी राजा जैसा ही निकला।कुछ लोगों ने कहा, “हमें तो लगता है कि अब तक हम जिन अपराधों का आरोप राजा पर लगाते रहे वे सब गोपुरा की ही कारस्तानी थीं।स्थिति बदल गई। अब राजा के सारे अपराध गोपुरा के सिर मढ़  दिए गए थे।

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गोपुरा ने सब कुछ सुन लिया। उसका मन परेशान हो उठा। वह जानता था कि नाव को सबसे पहले उसने नहीं, राजा ने देखा था। हो सकता है, रुपए राजा ने लिए हों। लेकिन वह चुप ही रहा।यदि वह सच कहता तो राजा ही चोर सिद्ध होता। गोपुरा यह जानता था कि इससे दीना को कितना दुख होगा। वह सच बोलकर उन्हें और चोट नहीं पहुँचाना चाहता था।

 

वह चुप रहा और पूरा गाँव उस पर थू-थू करता रहा।गोपुरा और नहीं सह सका। चुपचाप घर से निकल आया और समुद्र के किनारे जाकर खड़ा हो गया। सूरज का लाल गोला पश्चिम में डूब रहा था। पक्षी अपने घोंसलों की ओर लौट रहे थे। सब ओर सन्नाटा था। एकाएक गोपुरा ने अपने आपको बहुत अकेला महसूस किया। उसे लगा दुनिया में उसका कोई नहीं है। उसकी आँखें डबडबा आईं।एकाएक उसे राजा नजर आया। वह एक तरफ खड़ा हँस रहा था। गोपुरा ने कहा, “राजा, पिताजी का ध्यान रखना, मैं जा रहा हूँ।

 

लेकिन कहाँ?”

 

गाँव को छोड़कर कहीं भी...मेरी इतनी बदनामी हो गई है कि अब एक पल भी रहना मुश्किल है। तुम चाहो तो एकदम नए सिरे से जीवन आरंभ कर सकते हो। तुम्हारे सब अपराधों का दोषी मुझे बना दिया गया  है। इस मौके को हाथ से मत जाने दो। अगर तुम सुधर सके तो पिताजी को बहुत सुख मिलेगा।

 

लेकिन तुमने चोरी नहीं की, फिर सच क्यों नहीं कह देते।राजा ने कहा।

 

अगर मैं सच बोलूँगा तो मुझे दूसरा सच भी बताना होगा कि चोरी किसने की। और मैं वह नहीं कर सकूँगा। देख रहे हो, पिताजी कितने बीमार हैं। अब उन्हें और चोट मत पहुँचाओ।कहकर गोपुरा जाने को हुआ, पर जा सका। राजा ने उसे रोक लिया और बोला, “तुम मेरे सारे अपराध अपने सिर पर लेकर मुझे निर्दोष दिखाना चाहते हो और यह भी चाहते हो कि मैं चुप रहूँ। मैं तो पिताजी की दृष्टि  में पहले से ही गिरा हुआ हूँ, लेकिन तुम भी ऐसे हो सकते हो, इसका झटका वह कभी नहीं सह पाएँगे।

 

मुझे जाने दो।गोपुरा ने कहा।

 

लेकिन राजा ने उसे कसकर पकड़ लिया। उसके होंठ फड़क रहे थे।नहीं जाने दूँगा। तुम्हें सच कहना होगा। एक सच तुम बोलोगे कि तुमने रुपए नहीं चुराए और दूसरा सच मैं बोलूँगा। यह सच बोलने का अवसर मुझसे मत छीनो। विश्वास करो, मैं सच बोलना चाहता हूँ। यदि तुम चले गए तो...राजा का गला रुँध गया था।

 

दोनों के आँसू रेत पर गिर रहे थे। राजा ने निर्णय कर लिया था, वह गोपुरा को नहीं जाने देगा।मैं सच बोलूँगा!” यह कहता हुआ वह गोपुरा का हाथ थामे गाँव की ओर बढ़ा जा रहा था।(समाप्त ) तेरा सच =मेरा सच =देवेंद्र कुमार